रितिक रोशन :अभिनय में अलबेला
फिल्मी परिवारों के बच्चों को अपनी लांचिंग के लिए लंबा इंतजार नहीं करना पड़ता। उनके मां-बाप सिल्वर स्क्रीन पर उतरने की उनकी ख्वाहिश जल्दी से जल्दी पूरी करते हैं। इस सामान्य चलन से विपरीत रही रितिक रोशन की लांचिंग। जनवरी, 2000 में उनकी पहली फिल्म कहो ना प्यार है दर्शकों के सामने आयी, लेकिन उसके पहले पिता की सलाह पर अमल करते हुए उन्होंने फिल्म निर्माण की बारीकियों को सीखा। वे अपने पिता के सहायक रहे और किसी अन्य सहायक की तरह ही मुश्किलों से गुजरे। स्टारों की वैनिटी वैन के बाहर खड़े रहने की तकलीफ उठायी। कैमरे के आगे आने के पहले उन्होंने कैमरे के पीछे की जरूरतों को आत्मसात किया। यही वजह है कि वे सेट पर बेहद विनम्र और सहयोगी मुद्रा में रहते हैं। उन्हें अपने स्टाफ को झिड़कते या फिल्म यूनिट पर बिगड़ते किसी ने नहीं देखा।
[कामयाबी से मिला कान्फीडेंस]
रितिक रोशन मैथड, रिहर्सल और परफेक्शन में यकीन करते हैं। 1999 की बात है। उनकी पहली फिल्म अभी रिलीज नहीं हुई थी। फोटोग्राफर राजू श्रेष्ठा के स्टूडियो में वे फोटो सेशन करवा रहे थे। उन्होंने वहीं बातचीत और इंटरव्यू के लिए बुला लिया था। स्टूडियो के अंदर बज रहे मधुर संगीत और तेज रोशनी में वे एक खास मुद्रा को कैमरे में कैद करना चाहते थे। वे चाहते थे कि बाएं कान के पास गाल से टपकने को तैयार पसीने की बूंदें दिखें। उस परफेक्ट बूंद के लिए उन्होंने आधे घंटे लगाए और हो रही देरी के लिए आंखों से ही माफी मांगी। बाद में इंटरव्यू हुआ तो बातचीत में उनकी हकलाहट की समस्या पता चली। थोड़ी हैरत भी हुई कि इस हकलाहट के साथ वे फिल्म के संवाद कैसे बोल पाएंगे? कहो ना प्यार है रिलीज हुई तो हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को बहुमुखी प्रतिभा का धनी स्टार मिला। पर्दे पर संवाद अदायगी में उनकी हकलाहट आड़े नहीं आई। डबिंग में तकनीक की मदद से उन्होंने उस पर काबू पा लिया। और फिर कहो ना प्यार है की अद्वितीय कामयाबी से उनकी हकलाहट भी लगभग जाती रही। कामयाबी से मिले कान्फीडेंस ने उन्हें इस बीमारी से जुड़ी ग्रंथियों से दूर किया। अपने धैर्य, समर्पण और निरंतर अभ्यास से उन्होंने स्वयं को निखारा और परफेक्ट किया।
[वह दौर भी देखा है]
पहली फिल्म की अप्रतिम सफलता के बाद उनकी तीन फिल्मों फिजा, मिशन कश्मीर और यादें के बाक्स आफिस कलेक्शन ने निराश किया। यह पहला झटका था। 2001 में आई करण जौहर की कभी खुशी कभी गम चली, लेकिन उसमें अमिताभ बच्चन और शाहरुख खान भी थे। उसकी सफलता का वाजिब श्रेय उन्हें नहीं मिल पाया। उसके बाद आप मुझे अच्छे लगने लगे, ना तुम जानो न हम, मुझसे दोस्ती करोगी और मैं प्रेम की दीवानी हूं नहीं चली तो रितिक रोशन को 'वन फिल्म वंडर' कहा जाने लगा। उन दिनों रितिक रोशन गहन निराशा और असुरक्षा महसूस कर रहे थे। वे अपनी गलती और कमी नहीं समझ पा रहे थे। गौर करें तो इन सभी फिल्मों में निर्माता-निर्देशकों ने रितिक रोशन की लोकप्रियता को भुनाने और मुनाफा कमाने की जल्दबाजी दिखायी थी। उस झोंक में सूरज बड़जात्या जैसे निर्देशक भी रितिक रोशन का सही उपयोग करने में चूक गए थे।
[बगैर मेकअप किया मुश्किल किरदार]
आलोचना के इस दौर में रितिक रोशन ने आत्ममंथन और कॅरिअर विश्लेषण किया। उन्होंने अपनी प्राथमिकताएं तय करने के साथ आमिर खान से सबक लिया। एक समय में एक फिल्म करने और उसे पूरी तल्लीनता के साथ करने की रणनीति पर अमल किया। नतीजा कोई मिल गया के रूप में सामने आया। पिता राकेश रोशन के निर्देशन में बनी इस फिल्म में रितिक रोशन ने ऑटिज्म के शिकार बच्चे की प्रभावशाली भूमिका निभायी थी। पा में हम सभी अमिताभ बच्चन के ऑरो रूपांतरण की तारीफ कर रहे हैं। गौर करें तो छह साल पहले रितिक रोशन ने बगैर मेकअप के उस मुश्किल किरदार को पर्दे पर विश्वसनीय बना दिया था।
[हैरतअंगेज एक्शन का जोखिम]
कोई मिल गया में सही मायने में उन्हें 'लक्ष्य' मिल गया था। 2003 से 2009 के बीच उनकी केवल चार फिल्में आई। लक्ष्य, कृष, धूम-2 और जोधा अकबर में उनके किरदारों का बारीक अध्ययन करें तो सभी एक-दूसरे से स्वभाव और प्रकृति में कोसों दूर हैं। आगे-पीछे आई धूम-2 और जोधा अकबर में रितिक रोशन और ऐश्वर्या राय के परफार्मेस की भिन्नता चौंकाती है। एक अत्याधुनिक और दूसरी पीरियड, लेकिन दोनों में ही परफेक्ट नजर आते रितिक रोशन। उसके पहले कृष में उन्हें कोई मिल गया के नायक को सुपरहीरो की ऊंचाई तक ले जाने का मौका मिला था। इस फिल्म में हैरतअंगेज एक्शन का जोखिम रितिक ने उठाया था। वे शूटिंग के दरम्यान घायल भी हुए थे, लेकिन एक्शन और परफार्मेस से उन्होंने कृष को रोमांचक एवं बच्चों के बीच लोकप्रिय बना दिया था। कृष की कामयाबी इसी में है कि यह फिल्म बच्चों के साथ बड़ों को भी पसंद आई थी।
[जीवंत किया ऐतिहासिक किरदार]
जोधा अकबर में उन्होंने उस अकबर की भूमिका को निभाने की चुनौती स्वीकार की, जो पृथ्वीराज कपूर का पर्याय मानी जाती है। उन्होंने युवा अकबर के रूप में आशुतोष गोवारिकर की सोच के अनुरूप परफार्मेस किया और ऐतिहासिक किरदार को अपेक्षित गहराई के साथ जीवंत किया। इस फिल्म को देखते समय दर्शकों को रत्ती भर खयाल नहीं आया कि उन्होंने अभी-अभी धूम-2 में रितिक रोशन को बिल्कुल अलग अंदाज में देखा था।
[सभी निर्देशक करते हैं तारीफ]
रितिक रोशन के सभी डायरेक्टर उनके समर्पण और परफेक्शन की तारीफ करते हैं। रितिक निर्देशक की सोच और कल्पना को अभिनय से सींचते हैं। अपनी फिल्मों की शूटिंग के दरम्यान रितिक रोशन कोई और काम नहीं करते। वे दूसरे पापुलर स्टारों की तरह खाली समय का उपयोग एड, इवेंट या परफार्मेस से पैसे कमाने में नहीं करते। उनका खाली समय परिवार के लिए समर्पित रहता है।
[इस साल होगा डबल धमाका]
सन् 2004 से रितिक रोशन की फिल्में हर दूसरे साल आती रही हैं। 2010 में उनके प्रशंसक और दर्शक खुश हो सकते हैं, क्योंकि इस साल उनकी दो फिल्में काइट्स और गुजारिश रिलीज होंगी। पिछले साल काइट्स की शूटिंग के दरम्यान जब बारबरा मोरी और उनके बीच के रोमांस की खबरें आई तो उनके करीबियों को आश्चर्य हुआ था। पत्नी और परिवार के लिए समर्पित रितिक रोशन से संबंधित झूठी खबरों की सच्चाई जल्दी ही सामने आ गई। काइट्स के दृश्यों के लिए जरूरी रितिक रोशन और बारबरा मोरी की अंतरंगता को वास्तविक समझने की भूल किसी से हो गई थी। बहरहाल, काइट्स अभी रिलीज नहीं हुई है। इस फिल्म के निर्देशक अनुराग बसु की बात को सही मानें तो हिंदी फिल्मों के इतिहास में काइट्स जैसी फिल्म नहीं बनी है। अभी तक ऐसे नायक की कल्पना ही नहीं की गयी थी। अभिनय और नायकत्व को विस्तार दे रहे रितिक रोशन ने संजय लीला भंसाली की गुजारिश में नयी चुनौती स्वीकार की है। उन्होंने पैराप्लेजिया से ग्रस्त व्यक्ति की भूमिका निभायी है, जिसे पूरी फिल्म में ह्वीलचेयर पर ही रहना है। यह भी एक संयोग है कि रितिक रोशन और ऐश्वर्या राय की यह तीसरी फिल्म होगी!
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