दरअसल : म्यूजिकल फिल्म पंचम अनमिक्स्ड
हिंदी फिल्मों की पत्रकारिता ही नहीं, इतिहास, शोध और विश्लेषण में भी हम ज्यादातर हीरो-हीरोइनों पर ही फोकस करते हैं। कभी-कभी ही ऐसी कोशिश होती है, जिसमें निर्देशक और गायकों पर ध्यान दिया जाता है। इनके बाहर हम जा ही नहीं पाते। ऐसा माना जाता है कि पाठकों की रुचि तकनीकी विषय और तकनीशियनों में नहीं है। वे सिर्फ अपने स्टारों के बारे में ही पढ़ना चाहते हैं।
इस माहौल में ब्रह्मानंद सिंह की अपारंपरिक कोशिश सराहनीय है। उन्होंने आर डी बर्मन पर पंचम अनमिक्स्ड नाम की फिल्म बनाई है। लगभग दो घंटे की इस फिल्म में ब्रह्मानंद हमें आर डी बर्मन के सुरीले जादुई संसार में ले जाते हैं। हम संगीतकार आर डी बर्मन से परिचित होते हैं। उनके समकालीन गीतकार, संगीतकार, गायक और संगीतज्ञों की बातचीत और नजरिए को एक सोच के साथ संपादित कर ब्रह्मानंद सिंह ने इतनी सटीक फिल्म बनाई है कि हम आर डी बर्मन यानी पंचम दा की सांगीतिक प्रतिभा को समझ पाते हैं। यह फिल्म दूसरे वृत्तचित्रों की तरह श्रेष्ठ संगीतकार की रचनाओं का सामान्य आकलन भर नहीं करती। हम उनके सहकर्मी और शार्गिदों के सौजन्य से उनके संगीत की बारीकियों को भी सुनते-गुनते हैं।
ब्रह्मानंद सिंह ने छह साल की मेहनत से इसे तैयार किया है। हालांकि बीच में कई बार ऐसा लगा कि वे यह फिल्म पूरी नहीं कर पाएंगे, लेकिन परिजन और मित्रों ने उन्हें हमेशा ढाढ़स बंधाया और फिल्म पूरी करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने पंचम दा के परिचितों से घंटों बातें कीं। पूरी बातचीत रिकॉर्ड करने और सुनने के बाद उन्हें एक सूत्र में पिरोना शुरू किया, ताकि फिल्म देखते वक्त हम अवांतर प्रसंगों से बच सकें। ब्रह्मानंद सिंह ने निजी बातचीत में बताया कि यह काम सबसे मुश्किल रहा। लगभग 200 घंटों की रिकार्डिग को काट-छांटकर दो घंटे की फिल्म में रोचक ढंग से संपादित करने में धैर्य के साथ अटूट रुचि की जरूरत थी। एक ही बातचीत को बार-बार सुनने से कई बार मर्म खो जाता है। अगर कई लोगों की बातचीत को एक धरातल पर लाना हो, तो परस्पर उपयुक्त पंक्तियों को जोड़ना पड़ता है। इसमें सावधानी बरतनी पड़ती है कि संदर्भ भी न कटे।
ब्रह्मानंद सिंह की पंचम अनमिक्स्ड को विभिन्न फिल्म फेस्टिवलों में सराहा और पुरस्कृत किया जा चुका है। उनकी इच्छा है कि किसी दिन उनकी फिल्म सिनेमाघरों में रेगुलर शो के तौर पर प्रदर्शित की जाए। उनकी यह इच्छा किसी सपने की तरह है, क्योंकि भारत में अभी तक डाक्यूमेंट्री को एक शुष्क और उबाऊ विधा माना जाता है। फीचर फिल्मों के व्यापक प्रभाव में दर्शक हर फिल्म से मनोरंजन चाहते हैं। ब्रह्मानंद सिंह कहते हैं, मनोरंजन तो पंचम अनमिक्स्ड में भी है। इसे बगैर इंटरवल के लोग देखते हैं। उन्हें सुध नहीं रहती और फिल्म खत्म हो जाती है। पंचम दा के गीतों से दर्शकों को साहचर्य बना हुआ है। संयोग की बात है कि आज का युवा वर्ग उनके संगीत को पसंद करता है। आप देखें कि उनके ही गीत सबसे ज्यादा रीमिक्स के तौर पर सामने आए हैं।
इधर शेमारू की मदद से ब्रह्मानंद सिंह अपनी फिल्म की डीवीडी ले आए हैं। इस डीवीडी के साथ उन्होंने आर डी बर्मन के तीस मेलोडियस गीतों का एक अलग डीवीडी भी रखा है। साथ में शोध के दौरान मिली सामग्रियों को संकलित कर एक कॉफी टेबल बुक पंचम-स्ट्रिंग्स ऑफ इटरर्निटी भी तैयार किया है। आम संगीत प्रेमियों और आर डी बर्मन यानी पंचम दा के खास प्रशंसकों के लिए ब्रह्मानंद सिंह की यह फिल्म वास्तव में एक म्यूजिकल तोहफा है। यह लोगों को पसंद आएगी।
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