कामयाबी तो झ;ा मार का पीछे आएगी-राज कुमार हिरानी
युवा पीढ़ी के संवेदनशील निर्देशक राज कुमार हिरानी की फिल्म '3 इडियट' 25 दिसंबर को रिलीज हो रही है। उनकी निर्देशन प्रक्रिया पर खास बातचीत-
[फिल्मों की योजना कैसे जन्म लेती है? अपनी फिल्म को कैसे आरंभ करते हैं आप?]
मेरी फिल्में हमेशा किसी थीम से जन्म लेती हैं। मुन्नाभाई एमबीबीएस के समय विचार आया कि डाक्टरों के अंदर मरीज के प्रति करुणा हो तो बीमारियों का इलाज आसान होगा। लगे रहो मुन्नाभाई के समय मैंने गांधीगिरी की प्रासंगिकता का थीम लिया। 3 इडियट में मैं कहना चाहता हूं कि आप कामयाबी के पीछे न भागें। काबिलियत के पीछे भागें तो कामयाबी के पास कोई चारा नहीं होगा, वह झख मार कर आएगी।
[क्या पहले एक्टर के बारे में सोचते हैं और फिर कैरेक्टर डेवलप करते हैं या पहले कैरेक्टर गढ़ते हैं और फिर एक्टर खोजते हैं?]
मैं स्क्रिप्ट लिखने के बाद एक्टर के बारे में सोचता हूं। सिर्फ थीम पर फिल्म बनेगी तो बोरिंग हो जाएगी, कैरेक्टर उसे इंटरेस्टिंग बनाते हैं, फिर माहौल और उसके बाद सीन बनते हैं। स्क्रिप्ट लिखने की राह में जो दृश्य सोचे जाते हैं, उनमें से कुछ अंत तक जाते हैं और कुछ मर जाते हैं।
[पहली फिल्म के समय आप अनुभवों से समृद्ध होते हैं। एक बार कामयाब हो गए तो जिंदगी व्यस्त और सीमित हो जाती है। फिर नए विषयों की तलाश कैसे करते हैं?]
बिल्कुल सही समस्या बता रहे हैं आप। कई बार निराशा होती हैं। मन छोटा हो जाता है। आजकल लोग दूसरों की फिल्मों से विषय ले लेते हैं या किताबों का सहारा लेते हैं। हम अपनी जिंदगी के पुराने किस्सों और तजुर्बो को भी कहानी और सीन बनाते हैं। मुझे लगता है कि जिंदगी का एक्सपीरिएंस जरूरी है। एक समय के बाद ये अनुभव सीमित होने लगते हैं। तब सचेत रूप से कोशिश करनी पड़ती है कि एक्सपीरिएंस का इनपुट न रुके।
3 इडियट के बाद मैं छह महीने के लिए छोटे शहरों में निकल जाऊंगा। वहां बहुत कहानियां मिलती हैं।
[क्या कामयाबी से चीजें बदलने लगती हैं?]
बिल्कुल। हम सीमित दायरे में जीने लगते हैं। इसके अलावा लोगों का व्यवहार भी आप के प्रति बदल जाता है। उनको लगता है कि कैसे बोलें कि आप गलत हैं। या फिर ज्यादातर लोगों को लगता है कि कामयाब डायरेक्टर है, सही ही सोच रहा होगा। हमें ऐसा माहौल रखना पड़ता है कि हमारे सहयोगी खुल के बोल पाएं।
[दो सफल फिल्मों के बाद आपके मन में '3 इडियट' को लेकर कोई आशंका तो नहीं होगी?]
किसी उम्मीद या अपेक्षा का डर न पहले था और न अभी है। डर इस बात का होता है कि हम अपना काम ठीक से कर पा रहे हैं कि नहीं? कहीं हमने कामचोरी तो नहीं की। हम अपने काम में ईमानदार रहें। आप देश के सभी दर्शकों के बारे में सोच कर फिल्म नहीं बना सकते। कई बार अच्छी फिल्में नहीं चल पातीं। इसका मतलब यह नहीं होना चाहिए कि डायरेक्टर फेल हो गया। मैं खुद को लकी मानता हूं कि मेरी संवेदना दर्शकों की फीलिंग से मैच कर गई।
[लगातार विधु विनोद चोपड़ा के साथ काम करने की कोई खास वजह है क्या?]
विधु के साथ एक कंफर्ट है। वे खुद डायरेक्टर हैं तो मेरी बात जल्दी समझ जाते हैं। उन्होंने ऐसा माहौल बना रखा है कि मैं खुद को प्रोडयूसर ही समझता हूं।
[बीस साल के रैंचो के लिए आमिर खान का चुनाव कैसे हुआ?]
मुझे इस रोल के लिए कोई यंग एक्टर नहीं मिला। हम तो चाहते थे कि किसी नए एक्टर को पेश करें। आमिर को स्क्रिप्ट पसंद आई थी, लेकिन उन्हें भी लगा कि वे बीस साल के लगेंगे क्या? मैंने उन्हें बताया कि एक्टर का काम रोल में ढलना है। आप कभी औरत, कभी ग्रामीण, कभी शहरी तो कभी बूढ़े बनते हैं। आमिर ने कुछ दिनों तक सोचने के बाद हामी भरी और कहा कि मैं 20 साल का लग सकता हूं। उनके ट्रांसफार्मेशन को देखने के बाद मेरे मन का डर निकल गया था। फिल्म देखेंगे तो आप मेरी बात से सहमत होंगे।
[आपकी हीरोइनें ग्लैमरस होती जा रही हैं। पहले ग्रेसी, फिर विद्या और अब करीना ..]
लगता है मेरी किस्मत बदलती जा रही है। ओमकारा और जब वी मेट देखने के बाद मुझे करीना कपूर अच्छी लगीं। उन्होंने पूरी एक्साइटमेंट दिखाई काम करने की। उन्होंने अपने परफार्मेस और लुक का खुद ही खयाल रखा। करीना कपूर को इस फिल्म में आप ग्लैमरस रूप में नहीं देखेंगे।
[आपकी फिल्मों में पुरुष किरदार और उनकी दोस्ती प्रमुख होती है?]
हां, काफी लोग शिकायतें करते हैं। खास कर हीरोइनें मिलती हैं तो गालियां देती हैं कि केवल हीरो वाली फिल्में बनाते हो। शायद मेरी जिंदगी से निकली फिल्में हैं, इसलिए ऐसा हो रहा है। दोस्तों और दोस्ती के माहौल में रहा हूं। पहले मैं बहुत शरारती था। अभी शांत हो गया हूं। नागपुर में कालेज के दिनों में किसी लड़की से बात कर लेना भर बड़ी बात होती थी। लोग शर्र्ते लगाया करते थे कि जाओ उस लड़की से बात कर के दिखाओ!
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एक बेहतरीन इंटरव्यू के लिए आभार...