फिल्म समीक्षा : दे दना दन
प्रियदर्शन अपनी फिल्मों का निर्देशन नहीं करते। वे फिल्मांकन करते हैं। ऐसा लगता है कि वे अपने एक्टरों को स्क्रिप्ट समझाने के बाद छोड़ देते हैं। कैमरा ऑन होने के बाद एक्टर अपने हिसाब से दिए गए किरदारों को निभाने की कोशिश करते हैं। उनकी फिल्मों के अंत में जो कंफ्यूजन रहता है, उसमें सीन की बागडोर एक्टरों के हाथों में ही रहती है। अन्यथा दे दना दन के क्लाइमेक्स सीन को कैसे निर्देशित किया जा सकता है? दे दना दन प्रियदर्शन की अन्य कामेडी फिल्मों के ही समान है। शिल्प, प्रस्तुति और निर्वाह में भिन्नता नहीं के बराबर है। हां, इस बार किरदारों की संख्या बढ़ गई है।
फिल्म के हीरो अक्षय कुमार और सुनील शेट्टी हैं। उनकी हीरोइनें कट्रीना कैफ और समीरा रेड्डी है। इन चारों के अलावा लगभग दो दर्जन कैरेक्टर आर्टिस्ट हैं। यह एक तरह से कैरेक्टर आर्टिस्टों की फिल्म है। वे कंफ्यूजन बढ़ाते हैं और उस कंफ्यूजन में खुद उलझते जाते हैं। फिल्म नितिन बंकर और राम मिश्रा की गरीबी, फटेहाली और गधा मजदूरी से शुरू होती है। दोनों अमीर होने की बचकानी कोशिश में एक होटल में ठहरते हैं, जहां पहले से ही कुछ लोग आकर ठहरे हैं। इंटरवल तक आते-आते सारे किरदार आपस में इस कदर उलझ जाते हैं कि कहानी का सिरा गायब हो जाता है। लेखक-निर्देशक चाहते भी नहीं कि दर्शकों के दिमाग में कोई कहानी या उसकी उम्मीद बची रहे। इंटरवल के बाद हीरो-हीरोइन और कैरेक्टर आर्टिस्ट एक लेवल पर गड्डमड्ड हो जाते हैं। सब बराबर हो जाते हैं।
सुस्त चाल में आरंभ हुई फिल्म इंटरवल के बाद रफ्तार पकड़ती है। रफ्तार पकड़ते ही गलतफहमी, छीनाझपटी, छींटाकशी, मसखरी, साजिश, बेवकूफी और बेसिर-पैर की हरकतें आरंभ हो जाती हैं। बीच-बीच में कुछ प्रचलित मुहावरे संवाद के तौर पर सुनाई पड़ते हैं। हम किरदारों की चीखों से खीझते हैं, लेकिन फिर उनकी नादानी और परेशानी पर हमें हंसी आती है। फिल्म हंसाती है और कुछ दृश्यों में कुछ ज्यादा ही हंसाती है। गलती से आप अपनी हंसी की वजह सोचने लगे तो एहसास होता है कि आप प्रियदर्शन की फूहड़ता में शामिल हो चुके हैं। लतीफेबाजों की महफिल में बैठ चुके हैं, जहां हंसना स्वाभाविक धर्म है। हम इसलिए हंस रहे हैं कि लोग हंस रहे हैं। लोग इसलिए हंस रहे हैं कि हम हंस रहे हैं।
दे दना दन में नारी और पैसों को लेकर जबरदस्त कंफ्यूजन है। प्रियदर्शन की कामेडी फिल्में मर्दवादी होती हैं और खुलेआम औरतों का मखौल उड़ाती हैं। परफार्मेस की बात करें तो इस फिल्म को राजपाल यादव, जानी लीवर और असरानी ने संभाला है। चौथा नाम अर्चना पूरण का लिया जा सकता है। कट्रीना कैफ, समीरा रेड्डी और नेहा धूपिया का चुनाव परफार्मेस के लिए नहीं, बल्कि प्रदर्शन के लिए किया गया है। अक्षय कुमार और सुनील शेट्टी हीरों हैं, क्योंकि वे हीरोइनों के साथ गाने गाते हैं। दे दना दन बताती है कि हम कामेडी फिल्मों को लेकर कितने कैजुअल हो चुके हैं। एक सवाल है कि क्या बगैर चीखे-चिल्लाए कामेडी फिल्मों के संवाद नहीं बोले जा सकते?
**1/2 ढाई स्टार
Comments
मगर राय अपनी-अपनी है!
ab use koi pasand karta hai ya nahi ise unhe kya matlab....
anjule shyam maury
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