खान-तिकड़ी का जलवा शबाब पर
आमिर, शाहरुख और सलमान ने अपनी पिछली फिल्मों से साबित कर दिया है कि वे लोकप्रियता के सिंहासन पर टिके रहेंगे। खान-तिकड़ी की फिल्मों की समानता और कामयाबी पर एक नजर. हम सभी उन्हें खान-तिकड़ी के नाम से जानते हैं। पिछले 15-20 सालों से वे हिंदी फिल्मों में सक्रिय हैं और उन्होंने कामयाबी और लोकप्रियता की नई मिसाल कायम की है। संयोग ही है कि तीनों का जन्म 1965 में हुआ। खान-तिकड़ी में आमिर खान सबसे बड़े हैं। उनका जन्म 14 मार्च को हुआ। शाहरुख खान 2 नवंबर को पैदा हुए और सलमान खान 27 दिसंबर को..तीनों ने आगे-पीछे फिल्मों में शुरुआत की। इनमें आमिर और सलमान फिल्म परिवारों से हैं। शाहरुख दिल्ली से आए। उन्होंने टीवी सीरियल से शुरुआत की। आज तीनों ही फिल्म इंडस्ट्री और दर्शकों के दिलों पर राज कर रहे हैं। हिंदी फिल्मों के हीरो की औसत उम्र 18-25 लेकर चलें तो तीनों लगभग बीस साल बड़े हैं, लेकिन तीनों ही किसी यंग एक्टर से उन्नीस नहीं दिख रहे हैं।
उनकी कामयाबी की वजह खोजने चलें, तो सबसे पहले उनकी फिल्मों की सफलता और स्वीकृति पर नजर जाती है। चालीस से अधिक उम्र के तीनों खानों ने मिल कर फिल्म इंडस्ट्री को 40 अरब रुपयों से अधिक का कारोबार दिया है। हालांकि वे अभी अमिताभ बच्चन और धर्मेन्द्र से इस मामले में नीचे हैं। फिर भी सलमान की हम आपके हैं कौन ने 2 अरब 59 करोड़, शाहरुख खान के दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे ने 2 अरब 20 करोड़ और आमिर खान के राजा हिंदुस्तानी ने 1 अरब 59 करोड़ के कुल कारोबार से हिंदी फिल्मों के टॉप-15 फिल्मों में जगह पा ली है। सफलता की लंबी पारी में पिछले सालों में वे थोड़े लड़खड़ाते जरूर दिखे, किंतु अपनी फिल्मों ओम शांति ओम, गजनी और वांटेड से तीनों ने साबित कर दिया कि उनमें अभी दम-खम बचा है। वे अभी तक दर्शकों के दिलों पर राज कर रहे हैं और मुमकिन है कि आगे भी करते रहेंगे। ट्रेड विशेषज्ञ मानते हैं कि किसी यंग स्टार में ऐसी क्षमता नहीं दिखती कि वह तीनों खानों के सिंहासन को हिला सके, इसलिए ऐसा लगता है कि अगले पांच सालों तक वे चलते रहेंगे।
2007 में आई शाहरुख खान की ओम शांति ओम, 2008 में आई आमिर खान की गजनी और 2009 मे आई सलमान खान की वांटेड पर गौर करें तो उनमें अद्भुत समानताएं मिलती हैं। ओम शांति ओम, गजनी और वांटेड नायक प्रधान फिल्में हैं। तीनों ही फिल्मों के नायक हिंदी की मुख्य धारा की फिल्मों के पारंपरिक रूढि़वादी और हीरोइज्म के गुणों से परिपूर्ण हैं। तीनों ही फिल्मों में हिंदी फिल्मों की लोकप्रियता के सभी मसालों का समुचित उपयोग किया गया है। पिछले पांच सालों में हिंदी सिनेमा में ऊपरी तौर पर बदलाव दिख रहा है, लेकिन ओम शांति ओम, गजनी और वांटेड इन बदलावों को धता देकर आगे निकल गई हैं। इनकी सफलता कहीं न कहीं यह भी जाहिर करती है कि हिंदी फिल्मों का आम दर्शक आज भी ऐसी फिल्में ज्यादा पसंद करता है।
अन्य समानताओं पर ध्यान दें। तीनों ही फिल्मों की हीरोइनें हीरो से लगभग आधी उम्र की हैं और अपेक्षाकृत नई एवं अगली पीढ़ी की हैं। ओम शांति ओम की नायिका दीपिका पादुकोण उसी फिल्म से लांच हुई। गजनी की हीरोइन असिन ने दक्षिण के फिल्में की थीं, लेकिन हिंदी में यह उनकी पहली फिल्म थी। इसी प्रकार वांटेड की आयशा टाकिया की उम्र सलमान खान से काफी कम है। तीनों खानों की हीरोइनों का आधी उम्र का होना आकस्मिक संयोग नहीं है तीनों खानों ने समकालीन अभिनेत्रियों को अपनी हीरोइनों के तौर पर नहीं चुना।
इसके अलावा तीनों ही फिल्में स्पष्ट रूप से बुराई पर अच्छाई की थीम को लेकर चलती हैं। गौर करें कि हिंदी फिल्मों से विलेन गायब हो गए हैं। लेकिन ओम शांति ओम में अर्जुन रामपाल, गजनी में प्रदीप रावत और वांटेड में प्रकाश राज ने खलनायक के किरदारों को फिर से जिंदा किया। इन्हें अच्छी तरह परिभाषित किया गया था और पूरी तरह से खलकामी दिखाया गया था। अगर ताकतवर विलेन हो तो हीरो की हीरोगिरी दर्शकों से ताली बजवाती है। तीनों खानों ने अपनी फिल्मों में विलेन को खत्म कर दर्शकों की तालियां बटोरीं और बताया कि वे अच्छाई के प्रतीक हैं।
ओम शांति ओम, गजनी और वांटेड में एक पैटर्न दिखाई पड़ता है, जो समान ढंग से शाहरुख खान, आमिर खान और सलमान खान के वर्चस्व को फिर से स्थापित करता है। ढलती उम्र के तीनों नायकों ने इन फिल्मों की सफलता से साबित कर दिया है कि वे अभी आउट नहीं हो सकते। उनमें अभी तक आकर्षण कायम है और वे दर्शकों की रुचि के अनुसार ढलने के लिए तैयार हैं। तभी तो शाहरुख खान की ओम शांति ओम ने 89 करोड़, गजनी ने 1 अरब 36 करोड़ और वांटेड ने अभी तक 46 करोड़ का बिजनेस कर लिया है।
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