दरअसल:विदेशी लोकेशन का आकर्षण

-अजय ब्रह्मात्मज

आए दिन हिंदी फिल्मों के जरिए हम किसी न किसी देश की यात्रा करते हैं। अमेरिका और इंग्लैंड के शहर और ऐतिहासिक स्थापत्य की झलक हम वर्षो से फिल्मों में देखते आ रहे हैं। एक दौर ऐसा आया था, जब किसी न किसी बहाने मुख्य किरदार यानी नायक-नायिका विदेश पहुंच जाते थे और फिर हिंदी के गरीब दर्शक अपने गांव-कस्बे और शहरों के सिनेमाघरों में उन विदेशी शहरों को देखकर खुश होते थे। एक टिकट में दो फायदे हो जाते थे, यानी मनोरंजन के साथ पर्यटन भी होता था। गौर करें, तो उस दौर में विदेशी लोकेशनों को फिल्मकार कहानी में अच्छी तरह पिरोकर पेश करते थे। फिर एक दौर ऐसा आया कि कहानी देश में चलती रहती थी और गाने आते ही नायक-नायिका विदेशी लोकेशनों में पहुंच जाते थे। यश चोपड़ा की फिल्मों में सुंदर और रोमांटिक तरीके से स्विट्जरलैंड की वादियां दिखती रहीं। उसके बाद करण जौहर जैसे निर्देशक अपनी फिल्म को लेकर विदेश चले गए। कभी खुशी कभी गम में उन्होंने जो विदेश प्रवास किया, वह अभी तक समाप्त नहीं हुआ है। उनके बैनर की फिल्में अभी तक भारत नहीं लौटी हैं। उनकी अगली फिल्म माई नेम इज खान भी अमेरिका में शूट हुई है। पिछले दिनों अक्षय कुमार से एक इंटरव्यू करने के सिलसिले में इटली जाना हुआ। इटली के नेपल्स (नैपोली) शहर से लगभग 300 किलोमीटर की दूरी पर फियागो कस्बा है। हरी-भरी पहाड़ी और नीले लहराते समुद्र का अद्भुत मिलन है यहां। समुद्र की लहरें पहाड़ी से टकराती हैं और मधुर धुन पैदा करती हैं। फियागो के समुद्रतट की खूबी यही है कि यहां समुद्र के किनारे रेत नहीं है। गोल, चौकोर और विभिन्न आकारों के चिकने-खुरदुरे पत्थरों से अटे पड़े समुद्रतट पर नंगे पांव चलने में कठिनाई होती है, लेकिन एक बार समुद्र में घुस गए, तो फिर निकलने का मन नहीं करता। समुद्र की फेनिल लहरें अपने आगोश में ले लेती हैं और पानी इतना साफ कि आप पांच-दस फीट गहरे उतरने पर भी समुद्रतल देख लें। अपने देश में ऐसा समुद्रतट दुर्लभ है। बहरहाल, इसी कस्बे के पुग्नोच्युसो रिसोर्ट में अक्षय कुमार ठहरे थे। वे साजिद नाडियाडवाला की फिल्म हाउसफुल की शूटिंग के लिए गए थे। इस फिल्म के निर्देशक साजिद खान हैं।

साजिद नाडियाडवाला अपनी फिल्मों के लिए विदेशी लोकेशन ही चुनते हैं। हाउसफुल की शूटिंग लंदन और इटली में हो रही है। उसके पहले कमबख्त इश्क और हे बेबी हमने देखी है। बातचीत चलने पर साजिद नाडियाडवाला ने साफ कहा, मैं अपनी फिल्मों के जरिए दर्शकों को खूबसूरत लोकेशन और शहर दिखाना चाहता हूं। मेरी फिल्मों में सपनों की दुनिया होती है। इस दुनिया के शहर और लोकेशन के लिए मुझे विदेश जाना पड़ता है। भारत में भी मनोरम स्थल हैं, लेकिन वहां आबादी नहीं है। विदेशी शहरों की साफ-सफाई, करीने से बसे शहर और अप्रदूषित वातावरण से फिल्म चटकदार और बहुरंगी दिखती है। आखिर कितने दर्शकों को इन लोकेशन और शहरों को देखने का सौभाग्य मिलता है?

साजिद नाडियाडवाला के कथन में सच्चाई तो है। हिंदी फिल्मों के दर्शकों का एक समूह खालिस मनोरंजन और आनंद के लिए फिल्में देखता है। विदेशी लोकेशनों में शूट की गई फिल्में अमूमन औसत से बेहतर व्यापार कर रही हैं। लगता है दर्शक मनोरंजन के साथ पर्यटन का लाभ उठाने के लिए ऐसी फिल्मों को प्रश्रय दे रहे हैं।

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