इम्तियाज ने मुझे हमेशा सरप्राइज किया है-अनुराग कश्यप
-अजय ब्रह्मात्मज
'लव आज कलÓ के निर्देशक और अनुराग कश्यप पुराने दोस्त हैं। फिल्ममेकिंग की में दोनों की शैली अलग है, लेकिन दोनों एक-दूसरे को पसंद करने के साथ निर्भर भी करते हैं। अनुराग कश्यप ने अपने दोस्त इम्तियाज अली के बारे में खास बात की-
इम्तियाज बहुत शांत आदमी है। उसको मैंने कभी घबराते हुए नहीं देखा है। कभी परेशान होते हुए नहीं देखा है। उसमें उत्सुकता बहुत है। अगर आप बताएं कि कल दुनिया खत्म होने वाली है तो पूछेगा कि कैसी बात कर रहे हो? अच्छा कैसे खत्म होगी? छोड़ो, बताओ कि शाम को क्या कर रहे हो? वह इस तरह का आदमी है। बड़े प्यार से लोगों को हैंडिल करता है। बहुत सारी खूबियां है। उसके साथ जो एक बार काम कर ले या उसे जान ले तो वो दूर नहीं जाना चाहेगा।
उसके चेहरे पर अजीब सी मुस्कराहट रहती है। हमलोग उसको शुरू से बोलते थे तू अंदर से कहीं न कहीं बहुत बड़ा शैतान है। वह मुस्कुरा कर... छुपा कर रखता है। उसके अंदर कुछ बहुत ही खास बात है। सेंसिटिव बहुत है। बहुत ही रोमांटिक आदमी है। बहुत स्थिर है। डिपेंडेबल है। मुझे मालूम है कल कोई हो ना हो मगर इम्तियाज अली है। काफी चीजों के लिए मैं उस पर निर्भर कर सकता हूं। सलाह के लिए खास कर... हर स्क्रिप्ट पढ़ाता हूं। हर फिल्म दिखाता हूं। वह मुझसे बोलता है कि तू सबसे लड़ाई-झगड़ा बंद कर के बस काम करो। वही एक आदमी है, जिससे मैं सलाह लेता हूं।
मुझे उसकी फिल्म बहुत अच्छी लगती है। हिंदी फिल्मों की प्रेमकहानियां मुझे अच्छी नहीं लगतीं। नकली प्रेम कहानियां बनाते हैं। पता नहीं क्यों मैं अजीब तरीके से चिढ़ता हूं और दूर भागता हूं। इम्तियाज की फिल्में कहीं न कही बहुत स्वाभाविक, बहुत ही रीयल होती है। उसमें गाने बहुत स्वाभाविक तरीके से आते हैं। कहीं न कहीं आप उसमें अपने आप को पाते हो। उसका कैरेक्टर भले ही बिजनेस मैन है। 'जब वी मेटÓ लार्जरदेन लाइफ नहीं है। फिल्म का हीरो बहुत बड़ा बिजनेसमैन है, लेकिन ह्यूमन है। वह आदमी है। वह लार्जर दैन लाइफ नहीं है। हेलीकॉप्टर में नहीं घूमता है। वह एक नार्मल इंसान है। उसकी लव स्टोरी बहुत ही अलग रहती है। कुछ लोग हैं जो इस तरह के रोमांटिक फिल्में बनाते हैं, जो बहुत रीयल स्वाभाविक एक वास्तविक दुनिया में आधारित होती हैं। जैसे एडवर्ड बर्न बनाया करता था पहले। कुछ फ्रेंच फिल्ममेकर हैं जो साधारण सी प्रेम कहानियां बनाते हैं। वह जिस तरह के सेंसिटिव मूवमेंट क्रिएट करता है,उस से फिल्में आसपास की लगती हैं। उसके कैरेक्टर कहीं न कहीं कंफ्यूज और कमजोर लोग होते हैं। उसके कैरेक्टर पहले अपने आपको खोते हैं,फिर पाते हैं। यह उसकी खास बात है, जो मुझे बहुत अच्छी लगती है।
हमारी दोस्ती बहुत पुरानी है। मुझे खुद नही मालूम था कि मैं फिल्ममेकर बनूंगा। हमलोग कॉलेज में थे। उसका पहला लक्ष्य यह था कि मैं 21 का होते ही पहले शादी कर लूंगा। 21 का होते ही उसने शादी कर ली। काम मिला नहीं और शादी कर ली। हम में से वह पहला आदमी था, जिसने पहले शादी की। वह सबसे ज्यादा ट्रैवल करता है और ट्रैवल करते समय लिखता है। सारी फिल्में वह ट्रैवल करते हुए लिखता है। वह यात्रा और जर्नी उसकी फिल्मों में आ जाती है। वह सही मायने में जीता है। 'सोचा न थाÓ की मैंने स्क्रिप्ट पढ़ी थी। स्क्रिप्ट पढक़र मुझे नहीं लगा था कि वह फिल्म इतनी अच्छी बनेगी। वह मेरी फेवरिट फिल्म है और 'जब वी मेटÓ में भी वही हुआ। उसका नजरिया ऐसा है कि आप स्क्रिप्ट को पढक़र अंदाज नहीं लगा सकते कि वह क्या करने वाला है। ऑन स्क्रीन क्या होने वाला है और कैसे अनफोल्ड होगी फिल्म... इसका अंदाजा स्क्रिप्ट पढ़ कर नहीं लगा सकते। वह सालों-साल बैठा रहता है, लिखता रहता है। उसकी कहानियां चलती रहती है। मैंने उसकी सारी कहानियां पढ़ी हैं और स्क्रीन पर देख कर सरप्राइज हुआ हूं। खास कर 'लव आज कलÓ मैंने देखी है। सात-आठ मिनट तक आप फिल्म देखते हैं तो समझने की कोशिश करते हैं। आठवें मिनट के बाद आप हिलेंगे नहीं। खास बात है। कहीं न कहीं पकड़ लेती है फिल्म।
इम्तियाज की जो कहानियां है, उसने उन्हें जिया हैं। मेरा जो सिनैमैटिक अप्रोच है, उसमें बहुत सारे प्रभाव दिख सकते हैं। क्योंकि मैं बहुत सारी चीजों से एक्सपोज्ड हूं। लेकिन इम्तियाज जिंदगी से कहानियां ढूंढ कर ला रहा है। जिंदगी की कहानियों की अलग बात होती है।
'लव आज कलÓ के निर्देशक और अनुराग कश्यप पुराने दोस्त हैं। फिल्ममेकिंग की में दोनों की शैली अलग है, लेकिन दोनों एक-दूसरे को पसंद करने के साथ निर्भर भी करते हैं। अनुराग कश्यप ने अपने दोस्त इम्तियाज अली के बारे में खास बात की-
इम्तियाज बहुत शांत आदमी है। उसको मैंने कभी घबराते हुए नहीं देखा है। कभी परेशान होते हुए नहीं देखा है। उसमें उत्सुकता बहुत है। अगर आप बताएं कि कल दुनिया खत्म होने वाली है तो पूछेगा कि कैसी बात कर रहे हो? अच्छा कैसे खत्म होगी? छोड़ो, बताओ कि शाम को क्या कर रहे हो? वह इस तरह का आदमी है। बड़े प्यार से लोगों को हैंडिल करता है। बहुत सारी खूबियां है। उसके साथ जो एक बार काम कर ले या उसे जान ले तो वो दूर नहीं जाना चाहेगा।
उसके चेहरे पर अजीब सी मुस्कराहट रहती है। हमलोग उसको शुरू से बोलते थे तू अंदर से कहीं न कहीं बहुत बड़ा शैतान है। वह मुस्कुरा कर... छुपा कर रखता है। उसके अंदर कुछ बहुत ही खास बात है। सेंसिटिव बहुत है। बहुत ही रोमांटिक आदमी है। बहुत स्थिर है। डिपेंडेबल है। मुझे मालूम है कल कोई हो ना हो मगर इम्तियाज अली है। काफी चीजों के लिए मैं उस पर निर्भर कर सकता हूं। सलाह के लिए खास कर... हर स्क्रिप्ट पढ़ाता हूं। हर फिल्म दिखाता हूं। वह मुझसे बोलता है कि तू सबसे लड़ाई-झगड़ा बंद कर के बस काम करो। वही एक आदमी है, जिससे मैं सलाह लेता हूं।
मुझे उसकी फिल्म बहुत अच्छी लगती है। हिंदी फिल्मों की प्रेमकहानियां मुझे अच्छी नहीं लगतीं। नकली प्रेम कहानियां बनाते हैं। पता नहीं क्यों मैं अजीब तरीके से चिढ़ता हूं और दूर भागता हूं। इम्तियाज की फिल्में कहीं न कही बहुत स्वाभाविक, बहुत ही रीयल होती है। उसमें गाने बहुत स्वाभाविक तरीके से आते हैं। कहीं न कहीं आप उसमें अपने आप को पाते हो। उसका कैरेक्टर भले ही बिजनेस मैन है। 'जब वी मेटÓ लार्जरदेन लाइफ नहीं है। फिल्म का हीरो बहुत बड़ा बिजनेसमैन है, लेकिन ह्यूमन है। वह आदमी है। वह लार्जर दैन लाइफ नहीं है। हेलीकॉप्टर में नहीं घूमता है। वह एक नार्मल इंसान है। उसकी लव स्टोरी बहुत ही अलग रहती है। कुछ लोग हैं जो इस तरह के रोमांटिक फिल्में बनाते हैं, जो बहुत रीयल स्वाभाविक एक वास्तविक दुनिया में आधारित होती हैं। जैसे एडवर्ड बर्न बनाया करता था पहले। कुछ फ्रेंच फिल्ममेकर हैं जो साधारण सी प्रेम कहानियां बनाते हैं। वह जिस तरह के सेंसिटिव मूवमेंट क्रिएट करता है,उस से फिल्में आसपास की लगती हैं। उसके कैरेक्टर कहीं न कहीं कंफ्यूज और कमजोर लोग होते हैं। उसके कैरेक्टर पहले अपने आपको खोते हैं,फिर पाते हैं। यह उसकी खास बात है, जो मुझे बहुत अच्छी लगती है।
हमारी दोस्ती बहुत पुरानी है। मुझे खुद नही मालूम था कि मैं फिल्ममेकर बनूंगा। हमलोग कॉलेज में थे। उसका पहला लक्ष्य यह था कि मैं 21 का होते ही पहले शादी कर लूंगा। 21 का होते ही उसने शादी कर ली। काम मिला नहीं और शादी कर ली। हम में से वह पहला आदमी था, जिसने पहले शादी की। वह सबसे ज्यादा ट्रैवल करता है और ट्रैवल करते समय लिखता है। सारी फिल्में वह ट्रैवल करते हुए लिखता है। वह यात्रा और जर्नी उसकी फिल्मों में आ जाती है। वह सही मायने में जीता है। 'सोचा न थाÓ की मैंने स्क्रिप्ट पढ़ी थी। स्क्रिप्ट पढक़र मुझे नहीं लगा था कि वह फिल्म इतनी अच्छी बनेगी। वह मेरी फेवरिट फिल्म है और 'जब वी मेटÓ में भी वही हुआ। उसका नजरिया ऐसा है कि आप स्क्रिप्ट को पढक़र अंदाज नहीं लगा सकते कि वह क्या करने वाला है। ऑन स्क्रीन क्या होने वाला है और कैसे अनफोल्ड होगी फिल्म... इसका अंदाजा स्क्रिप्ट पढ़ कर नहीं लगा सकते। वह सालों-साल बैठा रहता है, लिखता रहता है। उसकी कहानियां चलती रहती है। मैंने उसकी सारी कहानियां पढ़ी हैं और स्क्रीन पर देख कर सरप्राइज हुआ हूं। खास कर 'लव आज कलÓ मैंने देखी है। सात-आठ मिनट तक आप फिल्म देखते हैं तो समझने की कोशिश करते हैं। आठवें मिनट के बाद आप हिलेंगे नहीं। खास बात है। कहीं न कहीं पकड़ लेती है फिल्म।
इम्तियाज की जो कहानियां है, उसने उन्हें जिया हैं। मेरा जो सिनैमैटिक अप्रोच है, उसमें बहुत सारे प्रभाव दिख सकते हैं। क्योंकि मैं बहुत सारी चीजों से एक्सपोज्ड हूं। लेकिन इम्तियाज जिंदगी से कहानियां ढूंढ कर ला रहा है। जिंदगी की कहानियों की अलग बात होती है।
Comments
बहुत बहुत शुक्रिया इस पोस्ट के लिए..
In fact interactions like these fascinates me and people away the most.
simply mind blowing.
Thanks.