फ़िल्म समीक्षा:संकट सिटी
बड़े शहर की भूमिगत दुनिया
-अजय ब्रह्मात्मज
बड़े शहरों में एक भूमिगत दुनिया होती है। इस दुनिया में अपराधी पलते और रहते हैं। उनकी जिंदगी में भी छल, धोखा, प्रपंच और कपट है। उनके भी सपने होते हैं और उन सपनों को पाने की कोशिशें होती हैं। वहां हमदर्दी और मोहब्बत होती है तो बदले की भावना भी। पंकज आडवाणी ने संकट सिटी में इसी दुनिया के किरदारों को लिया है। इन किरदारों को हम कार चोर, मैकेनिक, फिल्म निर्माता, बिल्डर, होटल मालिक, वेश्या और चालबाज व्यक्तियों के रूप में देखते हैं।
सतह पर जी रहा आम आदमी सतह के नीचे की जिंदगी से नावाकिफ रहता है। कभी किसी दुर्घटना में भिड़ंत होने या किसी चक्कर में फंसने पर ही उस दुनिया की जानकारी मिलती है। गुरु की मुसीबत मर्सिडीज की चोरी और उसमें रखे एक करोड़ रुपए से शुरू होती है। एक के बाद दूसरी और दूसरी के बाद बाकी घटनाएं होती चली जाती हैं और बेचारा गुरु मुसीबतों के चक्रव्यूह में फंसता चला जाता है। निर्देशक पंकज आडवाणी ने गुरु के बहाने सड़ चुकी सामाजिक व्यवस्था में सक्रिय स्वार्थी और घटिया किस्म के पिस्सुओं (व्यक्तियों) का चेहरा दिखाया है। सभ्य समाज में हम उन्हें अपने आसपास विभिन्न पेशों (फिल्मकार, अध्यात्मिक गुरु, होटल और पब मालिक आदि) की शक्ल में देखते रहते हैं। इस फिल्म को देखते हुए हंसी आती है। उस हंसी के साथ एक टीस भी उठती है। निर्देशक ने बखूबी दृश्यों और प्रसंगों का व्यंग्यात्मक निर्वाह किया है। संकट सिटी हिंदी फिल्मों की प्रचलित कामेडी नहीं है। यह कामेडी से आगे जाती है। सिनेमा की भाषा में इसे ब्लैक कामेडी कहते है। यों समझें कि आप श्रीलाल शुक्ल, हरिशंकर परसाई या शरद जोशी को पढ़ रहे हैं। फिल्म व्यंग्य जैसा आनंद देती है। कुछ किरदार निरीह और बेचारे हैं तो कुछ धूर्त्त, कमीने और चालबाज। प्रासंगिक और चुटीले संवाद इन फिल्मों को खास बनाते हैं। इनके सोशल, पालिटिकल और हिस्टोरिकल रेफरेंस होते हैं। निर्देशक ने फिल्म की जरूरत और मकसद के मुताबिक के के मेनन, दिलीप प्रभावलकर, अनुपम खेर, वीरेंद्र सक्सेना, यशपाल शर्मा, हेमंत पांडे, मनोज पाहवा और चंकी पांडे को चुना और उनसे बेहतरीन काम लिया है।
रेटिंग : ***1/2
Comments
angrezi-vichar.blogspot.com
jhallevichar.blogspot.com
jhalli-kalam-se
aap parivaar ke saath jate hain kya film dekhne?koi bhi film parivarik anand ke liye nahin hoti.film dekhte samay aapka film se nijee rishta banta hai.film achchhi ho ta ehsaas nahin rahta ki paas mein kaun baitha hai.
...aur aap ko kisne bata diya ki maine film nahin dekhi...