दरअसल:कई परतें थीं बाबू मोशाय संबोधन में
अमिताभ बच्चन के सुपर स्टार बनने से पहले के सुपर स्टार भी मकाऊ में आयोजित आईफा अवार्ड समारोह में उपस्थित थे। फिल्म इंडस्ट्री में उनके योगदान को रेखांकित करते हुए सम्मानित किया गया। उन्होंने भगवा रंग के कपड़े पहन रखे थे। चाल में पहले जैसी चपलता नहीं थी, लेकिन कदम डगमगा भी नहीं रहे थे। वे बड़े आराम और सधे पांव से मंच पर चढ़े। सम्मान में मिली ट्राफी ग्रहण की, फिर अमिताभ बच्चन को बाबू मोशाय संबोधित करते हुए अपनी बात कही। मकाऊ में आयोजित आईफा अवार्ड समारोह में हम सुपर स्टार राजेश खन्ना को सुन रहे थे।
अपने अभिभाषण में उन्होंने एक बार भी अमिताभ बच्चन के नाम से संबोधित नहीं किया। बाबू मोशाय ही कहते रहे। अमिताभ बच्चन और राजेश खन्ना की फिल्म आनंद देख चुके दर्शकों को अच्छी तरह याद होगा कि इस फिल्म में अमिताभ बच्चन को राजेश खन्ना बाबू मोशाय ही कहते हैं। मकाऊ में मंच पर राजेश खन्ना के बाबू मोशाय संबोधन में लाड़, प्यार, दुलार, शिकायत, आशंका, प्रशंसा, मनमुटाव, अपेक्षा, उपेक्षा आदि भाव थे।
हर दो पंक्ति के बाद बाबू मोशाय को अलग अंदाज में उच्चरित कर राजेश खन्ना कुछ नया जोड़ते रहे। थोड़ा पीछे हटकर उनकी तरफ देखते हुए अमिताभ बच्चन के चेहरे पर हर बाबू मोशाय उच्चारण के बाद एक नए रंग की लहर दौड़ जाती थी। जो सभी ने सुना और समझा, राजेश खन्ना उससे कुछ ज्यादा कह रहे थे और पूरा यकीन है कि अमिताभ बच्चन उनके हर शब्द और उच्चारण के भेद और मर्म को समझ रहे थे। राजेश खन्ना ने स्पष्ट कहा कि वह भी एक दौर था, यह भी एक दौर है। पहले कोई और था, आज कोई और है..। राजेश खन्ना जिस तरफ इशारा कर रहे थे या मुट्ठी से फिसल चुकी लोकप्रियता को याद कर कसमसा रहे थे, उसे सभी ने देखा और समझा। ऐसे द्वंद्व और दंश से अधिक सहानुभूति नहीं हो पाती, क्योंकि बदलते वक्त के साथ हर शय बदलती है। हालांकि अमिताभ बच्चन ने अपने परिचय में राजेश खन्ना की अप्रतिम लोकप्रियता का जिक्र किया। उन्होंने बताया कि कैसे उनकी कार के टायर की धूल को लड़कियां अपनी मांगों में भरती थीं.., राजेश खन्ना जैसी लोकप्रियता कभी देव आनंद ने भी देखी थी। कहते हैं राजेश खन्ना की पलकें झपकती थीं, तो लड़कियां सिनेमाघरों में सीटों पर उछल पड़ती थीं। समय ने वह लोकप्रियता किसी और को दे दी है। अमिताभ बच्चन और राजेश खन्ना ने दो फिल्मों आनंद और नमक हराम में साथ काम किया। यह वही दौर था, जब एक स्टार का अस्त हो रहा था और दूसरे का उदय..।
आईफा अवार्ड में हर साल इस विशेष पुरस्कार से अपनी बिरादरी के किसी समकालीन या सीनियर कलाकार को सम्मानित करने के बाद अमिताभ बच्चन को ताने सुनने पड़ते हैं। फिरोज खान और धर्मेद्र ने भी अपने संबोधनों में शिकायतें रखी थीं। शायद यह अमिताभ बच्चन की लंबी पारी का साइड इफेक्ट हो! दूसरों को अपनी असफलता खलती है, लेकिन उसकी वजह जरूरी तो नहीं कि अमिताभ बच्चन ही हों। राजेश खन्ना ने अपने संबोधन में अमिताभ बच्चन से इशारे में कई सवाल किए। जाहिर है, हमें उम्मीद होगी ही कि वे अपने ब्लॉग पर इस प्रसंग और राजेश खन्ना के संबोधन के बारे में कुछ लिखें! तब शायद कुछ नए भेद खुलें। परतों से धूल छंटे और हम सब स्टारों के संबंधों को नए सिरे से समझें!
अपने अभिभाषण में उन्होंने एक बार भी अमिताभ बच्चन के नाम से संबोधित नहीं किया। बाबू मोशाय ही कहते रहे। अमिताभ बच्चन और राजेश खन्ना की फिल्म आनंद देख चुके दर्शकों को अच्छी तरह याद होगा कि इस फिल्म में अमिताभ बच्चन को राजेश खन्ना बाबू मोशाय ही कहते हैं। मकाऊ में मंच पर राजेश खन्ना के बाबू मोशाय संबोधन में लाड़, प्यार, दुलार, शिकायत, आशंका, प्रशंसा, मनमुटाव, अपेक्षा, उपेक्षा आदि भाव थे।
हर दो पंक्ति के बाद बाबू मोशाय को अलग अंदाज में उच्चरित कर राजेश खन्ना कुछ नया जोड़ते रहे। थोड़ा पीछे हटकर उनकी तरफ देखते हुए अमिताभ बच्चन के चेहरे पर हर बाबू मोशाय उच्चारण के बाद एक नए रंग की लहर दौड़ जाती थी। जो सभी ने सुना और समझा, राजेश खन्ना उससे कुछ ज्यादा कह रहे थे और पूरा यकीन है कि अमिताभ बच्चन उनके हर शब्द और उच्चारण के भेद और मर्म को समझ रहे थे। राजेश खन्ना ने स्पष्ट कहा कि वह भी एक दौर था, यह भी एक दौर है। पहले कोई और था, आज कोई और है..। राजेश खन्ना जिस तरफ इशारा कर रहे थे या मुट्ठी से फिसल चुकी लोकप्रियता को याद कर कसमसा रहे थे, उसे सभी ने देखा और समझा। ऐसे द्वंद्व और दंश से अधिक सहानुभूति नहीं हो पाती, क्योंकि बदलते वक्त के साथ हर शय बदलती है। हालांकि अमिताभ बच्चन ने अपने परिचय में राजेश खन्ना की अप्रतिम लोकप्रियता का जिक्र किया। उन्होंने बताया कि कैसे उनकी कार के टायर की धूल को लड़कियां अपनी मांगों में भरती थीं.., राजेश खन्ना जैसी लोकप्रियता कभी देव आनंद ने भी देखी थी। कहते हैं राजेश खन्ना की पलकें झपकती थीं, तो लड़कियां सिनेमाघरों में सीटों पर उछल पड़ती थीं। समय ने वह लोकप्रियता किसी और को दे दी है। अमिताभ बच्चन और राजेश खन्ना ने दो फिल्मों आनंद और नमक हराम में साथ काम किया। यह वही दौर था, जब एक स्टार का अस्त हो रहा था और दूसरे का उदय..।
आईफा अवार्ड में हर साल इस विशेष पुरस्कार से अपनी बिरादरी के किसी समकालीन या सीनियर कलाकार को सम्मानित करने के बाद अमिताभ बच्चन को ताने सुनने पड़ते हैं। फिरोज खान और धर्मेद्र ने भी अपने संबोधनों में शिकायतें रखी थीं। शायद यह अमिताभ बच्चन की लंबी पारी का साइड इफेक्ट हो! दूसरों को अपनी असफलता खलती है, लेकिन उसकी वजह जरूरी तो नहीं कि अमिताभ बच्चन ही हों। राजेश खन्ना ने अपने संबोधन में अमिताभ बच्चन से इशारे में कई सवाल किए। जाहिर है, हमें उम्मीद होगी ही कि वे अपने ब्लॉग पर इस प्रसंग और राजेश खन्ना के संबोधन के बारे में कुछ लिखें! तब शायद कुछ नए भेद खुलें। परतों से धूल छंटे और हम सब स्टारों के संबंधों को नए सिरे से समझें!
Comments
Rajesh Khanna's emotional address was a historical moment in the dramatic Indian Film Indistry.
Historical in the sense that After khanna's departure from Cinema and after his fadded popularity, this was the first time that we publicly saw the expression which could have remained mystrical.
His arrogance was notorious. His relationship with family and friends was not intimate. Most Of all we would have never known how he felt like after not being 'THE SUPERSTAR RAJESH KHANNA.'
By the way Amitabh standing behind humbly reminded me the previous IIFA's. Dharmendra and Feroz Khan had a humble Amitabh too, Standing Behind when they received LIFETIME ACHIEVEMENT AWARD.
Your suggestion to MR. Bachchan Have my feeling too.
That is the only place where we can know the truth.
The brightest SUN's of cinema. Their Rise and end.
Gajendra Singh Bhati
आपने ठीक ही लिखा है की राजेश जी का स्टारडम था किसी वक्त में ..देवानंद को भी लोकप्रियता मिली ..लेकिन मेरी समझ में यह नहीं आता की अमिताभ जी के लम्बे स्टारडम पीरियड से लोगों को क्या दिक्कत है ......
और फिर पब्लिक के ऊपर भी तो डिपेंड करता है की वो किसको परदे पर देख कर खुश होती है ...मैं तो खुद भी कभी राजेश जी का इतना फैन था की मैनें एक साथ ही एक दर्जन कालर वाले कुरते सिलवा लिए थे ....पर आज मैं नाना पाटेकर जी की फिल्में देखता हूँ....यह तो समय समय की बात है जिसे हर कलाकार को समझना चाहिए .
शुभकामनाएं .
हेमंत कुमार
हम आपको आपके भाग्य की ओर ले जाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं
https://www.gaia.com/article/what-is-the-illuminati
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