दरअसल:फिल्म बिरादरी के बोल-वचन

-अजय ब्रह्मात्मज
चुनाव समाप्त होने को आए। अगले हफ्तों में नई सरकार चुन ली जाएगी। सत्ता के समीकरण से अभी हम वाकिफ नहीं हैं, लेकिन यकीन रखें, देश का लोकतंत्र डावांडोल नहीं होगा। जो भी सरकार बनेगी, वह चलेगी। फिल्मों के स्तंभ में राजनीति की बात अजीब-सी लग सकती है। दरअसल, चुनाव की घोषणा के बाद फिल्मी हस्तियों ने वोट के लिए मतदाताओं को जागरूक करने के अभियान में आगे बढ़ कर हिस्सा लिया। आमिर खान ने कहा, अच्छे को चुनें, सच्चे को चुनें। दूसरी तरफ करण जौहर के नेतृत्व में अभिषेक बच्चन, करीना कपूर, प्रियंका चोपड़ा, रितेश देशमुख, रणवीर कपूर, असिन, इमरान खान, शाहिद कपूर, सोनम कपूर, जेनिलिया और फरहान अख्तर यह बताते नजर आए कि देश का बदलाव जनता के हाथ में है।
करण जौहर का अभियान फिल्म स्टारों के उदास चेहरों से आरंभ होता है। सभी कह रहे हैं कि इस देश का कुछ नहीं हो सकता। देश का कुछ क्यों नहीं हो सकता, क्योंकि सड़कों पर कचरा है, देश में प्रदूषण है, पुलिस रिश्वत लेती है और राजनीतिज्ञ अपराधी हैं। देश में आतंकवादी आकर हंगामा मचा देते हैं। इन सभी से निराश हमारे फिल्म स्टारों को लगता है कि कुछ नहीं हो सकता इस देश का.., फिर खुद ही कहते हैं कि हो सकता है, अगर हम वोट दें। यहीं एक फिल्मी संवाद आता है, शायद यह सभी समस्याओं का हल नहीं है, लेकिन एक शुरुआत है। शुरुआत क्या है, वोट देना। इस अभियान में निराशा के जो संदर्भ दिए गए हैं, वे देश की मूलभूत समस्याएं नहीं हैं। वास्तव में इस अभियान के स्क्रिप्ट लेखक और निर्देशक मूलभूत समस्याओं से परिचित ही नहीं हैं। बीच में एक उदाहरण दिया जाता है कि फिल्म और खेल बिरादरी में जात-पात या धर्म का भेदभाव नहीं है। फिल्म इंडस्ट्री और खेल जगत पर नजर रखनेवाले आसानी से बता सकते हैं कि यहां किस प्रकार का भेदभाव जारी है।
रोचक तथ्य यह है कि इस अभियान फिल्म में शामिल फिल्म कलाकारों में से अधिकांश ने वोट ही नहीं दिया। मुंबई में एक शब्द प्रचारित है बोल-वचन। बोलने और करने में अंतर दिखे, तो इस शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। ज्यादातर फिल्म स्टारों की चिंता और चुनाव की जागरूकता में उनकी भागीदारी बोल-वचन ही रही। उन्होंने जागरूकता अभियान को भी फिल्म प्रचार या उत्पादों के एंडोर्समेंट के रूप में लिया। खुद उपयोग करें या न करें, लेकिन यह बोलते नजर आएंगे कि फलां उत्पाद कैसे बेहतर, उपयोगी और जरूरी है। वोट देने के लिए प्रेरित करने तक ही बात सीमित नहीं थी। वे यह भी बता रहे थे किप्रत्याशियों के चुनाव में सावधानी बरतें। सावधानी सिर्फ इस बात की रखें कि प्रत्याशी अपराधी नहीं हो। यह महज अराजनीतिक सावधानी है। कुछ मामलों में ही चंद राजनीतिज्ञों के अपराधी होने की बात सही हो सकती है। अपराध के आरोप राजनीति से प्रेरित भी तो हो सकते हैं। मतदाताओं ने फिल्म स्टारों की एक नहीं सुनी। मुंबई और देश में फिल्म स्टारों की संलग्नता और हिस्सेदारी के बावजूद मतदान का प्रतिशत नहीं बढ़ा। नतीजे आने पर पता चलेगा कि अपराधियों को न चुनने की उनकी सलाह पर मतदाताओं ने कितना अमल किया। वास्तव में इन अभियानों में किसी स्टार की राजनीति स्पष्ट नहीं हुई। विशेष समस्याओं की बात तो दूर उनके बयानों और बातों से यह भी नहीं पता चलता कि वे राजनीति के किस पक्ष में यकीन करते हैं। राजनीति से परहेज करते हुए मतदान की अपील करना वैसा ही है, जैसा फिल्म में किसी किरदार को निभाना। एक तरह से हमारी फिल्मी हस्तियां इस अभियान में अभिनय ही कर रही थीं। उन्होंने इसे अभिनय और विज्ञापन बना दिया। अब उनकी समझ में आ रहा होगा कि उनका प्रयास निष्फल रहा। या फिर जैसा कि फिल्म फ्लॉप होने पर होता है। हमेशा की तरह वे जनता को कोस रहे होंगे कि इनका कुछ नहीं हो सकता, इस देश का कुछ नहीं हो सकता।

Comments

apne sach kha hai .
abhineta ka kam sirf paisa lekar abhinay karna hota hai .
hmare desh ke netao ko bhi ab smjh jana chahiye ki abhinetao ko siref abhinay hi karne de .

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