फ़िल्म समीक्षा:दशावतार
एक नहीं, दस कमल हासन
अगर आप कमल हासन के प्रशंसक हैं तो भी इस फिल्म को देखने जाने से पहले एक बार सोच लें। कमल हासन आत्ममुग्ध अभिनेता हैं। कुछ समय पहले तक उनकी इसी आत्ममुग्धता के कारण हमने कई प्रयोगात्मक और रोचक फिल्में देखीं। लेकिन इधर उनकी और दर्शकों की टयूनिंग नहीं बन पा रही है। वह आज भी प्रयोग कर रहे हैं। ताजा उदाहरण दशावतार है। हालांकि तमिल और हिंदी में बनी फिल्म के निर्देशक रवि कुमार है, लेकिन यह फिल्म कमल हासन का क्रिएटिव विलास है।
यह अमेरिका में काम कर रहे भारतीय वैज्ञानिक गोविंद सोमाया की कहानी है। गोविंद सिंथेटिक जैविक हथियार बनाने की प्रयोगशाला में काम करता है। एक छोटी घटना में हम उस जैविक हथियार का प्रभाव एक बंदर पर देखते हैं। गोविंद उस जैविक हथियार को सुरक्षित हाथों में पहुंचाना चाहता है।
संयोग से बैक्टीरिया जिस डिब्बे में बंद हैं वह भारत चला जाता है। गोविंद उसकी खोज में भारत आता है। यहां से नायक और खलनायक की बचने-पकड़ने के रोमांचक दृश्य शुरू होते हैं। इन दृश्यों में जो दूसरे किरदार आते हैं, उनमें से नौ भूमिकाएं कमल हासन ने ही निभाई है। एक सहज जिज्ञासा होती है कि अगर इन्हें अलग-अलग कलाकारों ने निभाया होता तो क्या फिल्म प्रभावशाली नहीं हो पाती? निश्चित ही कमल हासन ने अपनी सभी भूमिकाओं को मेकअप और मैनरिज्म से अलग करने की कोशिश की है। लेकिन उनकी जबरदस्त प्रतिभा के बावजूद कहीं न कहीं एकरूपता बनी रहती है। हालांकि कुछ दृश्यों में कमल हासन का निजी मैनरिज्म दिख ही जाता है।
रंगराजा नांबी ने कहानी, दृश्य, परिवेश और प्रस्तुति में प्रभावित किया है। ऐसा लगता है जैसे पर्दे पर हम कोई एपिक देख रहे हैं। सभी तकनीशियनों का सहयोग फिल्म के इस हिस्से को गत्यात्मक और विशाल बनाता है। लेकिन फिल्म की गति बनी नहीं रह पाती। कहीं न कहीं एक ही कलाकार द्वारा निभाए जा रहे नौ किरदारों की भिन्नता दिखाने में कहानी छूट गई है।
कमल हासन टुकड़ों-टुकड़ों में अच्छे लगते हैं। उनकी प्रतिभा के बारे में दो राय नहीं, लेकिन उसका दुरुपयोग उचित नहीं कहा जा सकता। असिन और मल्लिका शेरावत अपनी भूमिकाओं को निभा ले जाती हैं। असिन और कमल हासन की जोड़ी में उम्र का अंतराल साफ नजर आता है। फिल्म के विशेष प्रभाव अच्छे हैं। खासकर सुनामी के दृश्यों में तकनीकी दक्षता झलकती है।
यह अमेरिका में काम कर रहे भारतीय वैज्ञानिक गोविंद सोमाया की कहानी है। गोविंद सिंथेटिक जैविक हथियार बनाने की प्रयोगशाला में काम करता है। एक छोटी घटना में हम उस जैविक हथियार का प्रभाव एक बंदर पर देखते हैं। गोविंद उस जैविक हथियार को सुरक्षित हाथों में पहुंचाना चाहता है।
संयोग से बैक्टीरिया जिस डिब्बे में बंद हैं वह भारत चला जाता है। गोविंद उसकी खोज में भारत आता है। यहां से नायक और खलनायक की बचने-पकड़ने के रोमांचक दृश्य शुरू होते हैं। इन दृश्यों में जो दूसरे किरदार आते हैं, उनमें से नौ भूमिकाएं कमल हासन ने ही निभाई है। एक सहज जिज्ञासा होती है कि अगर इन्हें अलग-अलग कलाकारों ने निभाया होता तो क्या फिल्म प्रभावशाली नहीं हो पाती? निश्चित ही कमल हासन ने अपनी सभी भूमिकाओं को मेकअप और मैनरिज्म से अलग करने की कोशिश की है। लेकिन उनकी जबरदस्त प्रतिभा के बावजूद कहीं न कहीं एकरूपता बनी रहती है। हालांकि कुछ दृश्यों में कमल हासन का निजी मैनरिज्म दिख ही जाता है।
रंगराजा नांबी ने कहानी, दृश्य, परिवेश और प्रस्तुति में प्रभावित किया है। ऐसा लगता है जैसे पर्दे पर हम कोई एपिक देख रहे हैं। सभी तकनीशियनों का सहयोग फिल्म के इस हिस्से को गत्यात्मक और विशाल बनाता है। लेकिन फिल्म की गति बनी नहीं रह पाती। कहीं न कहीं एक ही कलाकार द्वारा निभाए जा रहे नौ किरदारों की भिन्नता दिखाने में कहानी छूट गई है।
कमल हासन टुकड़ों-टुकड़ों में अच्छे लगते हैं। उनकी प्रतिभा के बारे में दो राय नहीं, लेकिन उसका दुरुपयोग उचित नहीं कहा जा सकता। असिन और मल्लिका शेरावत अपनी भूमिकाओं को निभा ले जाती हैं। असिन और कमल हासन की जोड़ी में उम्र का अंतराल साफ नजर आता है। फिल्म के विशेष प्रभाव अच्छे हैं। खासकर सुनामी के दृश्यों में तकनीकी दक्षता झलकती है।
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