बॉलीवुड में हिन्दी सिर्फ़ बोली जाती है..
-अजय ब्रह्मात्मज
अगर हिंदी फिल्म इंडस्ट्री भी सरकारी या अर्द्धसरकारी संस्थान होता और भारतीय संविधान के राजभाषा अधिनियम के अंतर्गत आता तो शायद झूठे आंकड़ों से ही कम से कम यह पता चलता कि रोजमर्रा के कार्य व्यापार में यहां हिंदी का कितना प्रयोग होता है। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में कोई हिंदी अधिकारी नहीं है और न ही यह संसदीय राजभाषा समिति के पर्यवेक्षण में है। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री ऐसी इकाई भी नहीं है कि हिंदी के क्रियान्वयन की वार्षिक रिपोर्ट पेश करे। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के हिंदी परहेज का सबसे बड़ा सबूत है कि इसे बॉलीवुड कहलाने में गर्व महसूस होता है। जी हां, यह सच है कि बॉलीवुड में हिंदी सिर्फ बोली जाती है, लिखी-पढ़ी नहीं जाती। बॉलीवुड में कोई भी काम हिंदी में नहीं होता। आश्चर्य न करे फिल्मों के संवादों के रूप में हम जो हिंदी सुनते है, वह भी इन दिनों देवनागरी में नहीं लिखी जाती। वह रोमन में लिखी जाती है ताकि आज के फिल्म स्टार उसे पढ़कर बोल सकें। अमिताभ बच्चन का ही कथन है कि अभिषेक बच्चन समेत आज के सभी युवा स्टारों की हिंदी कमजोर है। कुछ कलाकार, निर्देशक और तकनीशियन अपवाद हो सकते है, लेकिन अपवाद ही नियमों की पुष्टि करते है।
'द्रोण' फिल्म की म्यूजिक रिलीज के समय जया बच्चन के हिंदी बोलने पर हुए हंगामे से सारा देश वाकिफ है। लेकिन फिल्म के निर्देशक इसे 'द्रोणा' ही कहते रहे। उनका तर्क था कि मूल शब्द 'द्रोण' होगा, लेकिन फिल्म में हम अभिषेक बच्चन को 'द्रोणा' ही बुलाते है। डी आर ओ एन ए.. अब आप हिंदी में चाहे जैसे लिख लें, पिछले साल पॉपुलर हुई फिल्म 'सिंह इज किंग' की रिलीज के 15 दिन पहले फिल्म के निर्माता विपुल शाह की जिज्ञासा थी कि पोस्टर पर हिंदी में इसे कैसे लिखा जाए। एस आई एन जी एच बोलने में तो सिंघ सुनाई पड़ता है। सिंघ या सिंग का तुक किंग से मिलता है। बहरहाल, विपुल शाह ने सलाह मानी और एसआईएनडीएच को 'सिंह' ही लिखा। अन्यथा हम पोस्टर पर 'सिंग इज किंग' देखते। दारा सिंह की फिल्मों के पोस्टर पर हिंदी प्रदेशों के दर्शक उनका नाम दारा सिंग ही पढ़ते रहे है। फिल्म के शीर्षकों में मात्राओं की गलतियां आम है। इन पर कोई ध्यान नहीं देता। वैसे भी अधिकांश पोस्टरों से हिंदी नाम गायब हो गए है। 'पिंजर' शब्द से अपरिचित दर्शक उसे 'पिंजार' पढ़ेगा तो किसकी गलती होगी? यशराज फिल्म्स की 'बचना ऐ हसीनों' में 'हसीनों' की बिंदी गायब हो जाती है और किसी हिंदी भाषी की भृकुटि नहीं तनती। श्याम बेनेगल की फिल्म 'वेलकम टू सज्जानपुर' के पोस्टर में एक मील का पत्थर दिखता है, जिस पर 'सज्जानपूर' लिखा हुआ है। हिंदी के लिए सरकारी या गैर सरकारी स्तर पर 'भाषा संरक्षण' या 'भाषा बचाओ' संस्था नहीं है, जो फिल्मों में हिंदी के गलत प्रयोग पर आपत्ति दर्ज करे या उन्हे सुधरवाने की कोशिश करे।
माना जाता है कि हिंदी के प्रचार-प्रसार में हिंदी फिल्मों का बड़ा योगदान है। वास्तव में यह एक धारणा है, जिसका कोई आधार नहीं है। ना ही कभी कोई सर्वेक्षण हुआ है और ना कभी यह जानने की कोशिश की गयी है कि हिंदी फिल्मों ने हिंदी भाषा का किस रूप, अर्थ और ढंग से प्रसार किया? हां, हिंदी फिल्मों ने एक ऐसी सार्वजनिक सिनेमाई भाषा विकसित कर ली है, जो संवादों का मर्म समझे बगैर भी मनोरंजन प्रदान करती है। पिछले कुछ दशकों में इसने नए बाजार में प्रवेश किया है, इसलिए सहज निष्कर्ष निकाल लिया जाता है कि जो हिंदी फिल्में देख रहे है, वे हिंदी सीख भी रहे है। विदेशों में बसे भारतवंशियों की संतानों को हिंदी नहीं आती। वे हिंदी फिल्मों का आम के अचार की तरह चटखारा लेते है। पिछले पंद्रह-बीस सालों में बनी लोकप्रिय हिंदी फिल्मों के संवादों का अध्ययन करे तो उनमें अंग्रेजी शब्दों की मात्रा लगातार बढ़ती जा रही है। इन दिनों कुछ पात्र सिर्फ अंग्रेजी ही बोलते नजर आते है या बीच-बीच में बोले गए अंग्रेजी वाक्यों को किसी और तरीके से हिंदी में समझाने की जरूरत नहीं समझी जाती। हिंदी फिल्मों के दर्शकों का प्रोफाइल बदल गया है। निर्माता और निर्देशक के आग्रह पर लेखक एक ऐसी भाषा विकसित करने में कामयाब हुए है, जिसे महानगरों और बड़े शहरों में स्थित मल्टीप्लेक्स के दर्शक आसानी से समझ सकते है। चूंकि हिंदी फिल्मों की आय और कलेक्शन का मुख्य स्त्रोत मल्टीप्लेक्स और विदेशी बाजार हो गए है, इसलिए विषय, प्रस्तुति और भाषा का शहरीकरण तेजी से हो रहा है। 'रॉक ऑन' ताजा उदाहरण है। रॉक म्यूजिक से देश के अधिकांश दर्शक अपरिचित है, लेकिन इस फिल्म का क्रेज देखते ही बन रहा है। फरहान अख्तर की बहन को यह बताने में झेंप नहीं आती कि उन्हे हिंदी नहीं आती। हिंदी लिखने के लिए तो हम किसी को हायर कर सकते है। मैं अंग्रेजी में पढ़ी-लिखी हूं। उसी भाषा में सोचती और लिखती हूं। आश्चर्य नहीं कि उनकी फिल्म का नाम 'लक बाई चांस' है।
पॉपुलर सितारों में अकेले अमिताभ बच्चन है, जो हिंदी में पूछे गए सवालों के जवाब हिंदी में देते है। उनसे बातचीत करते समय यह ख्याल नहीं रखना पड़ता कि सरल हिंदी या अंग्रेजी शब्दों के पर्याय का इस्तेमाल करे। इसे शर्म कहे या हिंदी फिल्मों के सितारों का धर्म कहे.. सचमुच उन्हे हिंदी नहीं आती। फिल्मों के प्रचार में कैमरे के सामने वे टूटी-फूटी हिंदी से काम चलाते है। शाहरुख खान, सलमान खान और आमिर खान भले ही बेहतर हिंदी बोलते नजर आएं, लेकिन अगर उन्हे हिंदी पाठ दे दिया जाए तो उनका पठन चौथी-पांचवी कक्षा के हिंदी विद्यार्थियों जैसा हो जाता है। जी हां, उन्हे अक्षरों को जोड़कर या शब्दों के बीच ठहरकर पढ़ना चाहिए है। 'क्या आप पांचवी पास से तेज है?' के प्रचार में शाहरुख खान जब लंबे अभ्यास के बाद हिंदी में लिखते है तो 'पढ़ो' लिखते समय 'ढ' के नीचे बिंदी लगाना भूल जाते है। उनकी लोकप्रियता की चकाचौंध में खो रही बिंदी पर किसी का ध्यान नहीं जाता। यह वास्तविकता है कि ज्यादातर सितारे सिर्फ हिंदी बोल पाते है। उनकी हिंदी पर गौर करने पर हम पाते है कि वे पांच सौ से अधिक शब्दों का उपयोग नहीं करते। यह उनकी सीमा और मजबूरी है। एक बार सोहा अली खान ने बताया था कि अपने ड्राइवर और ब्वॉय से बात करने से उनकी हिंदी का अभ्यास हो जाता है। हिंदी के प्रति उनके इस रवैए का नतीजा हम 'खोया खोया चांद' में उनकी संवाद अदायगी में देख चुके है। सोहा अली खान तो फिर भी हिंदी में बात कर लेती है और अपने संवाद खुद डब करती है। काटरीना कैफ के बारे में क्या कहेगे? लगातार छह हिट फिल्मों की हीरोइन कैटरीना कैफ को हिंदी नहीं आती। इतने सालों के अभ्यास के बाद वह बमुश्किल से हिंदी के दस-बीस शब्द और वाक्य बोल पाती है, जिनमें 'नमस्ते' और 'धन्यवाद' शामिल है। अभी तक उनके संवाद डब किए जाते है। इसके पहले श्रीदेवी भी अपनी फिल्मों में लगातार दूसरों की आवाज में बोलती रहीं। हिंदी फिल्मों में सिर्फ पार्श्व गायन ही नहीं होता, पार्श्व संवाद अदायगी भी होती है। काश, हम उन बेनाम कलाकारों के बारे में जान पाते जो पॉपुलर सितारों की आवाज बनते है।
हिंदी फिल्मों के सार्वजनिक समारोहों में अंग्रेजी का चलन है। फिल्मों की प्रचार सामग्री अंग्रेजी में ही छपती और वितरित की जाती है। ऑडियो सीडी में हिंदी गाने रोमन में छपे होते है। ज्यादातर डीवीडी में फिल्मों के साथ दी गयी अतिरिक्त सामग्री अंग्रेजी में रहती है। 'जोधा अकबर' की डीवीडी में आशुतोष गोवारीकर का इंटरव्यू अंग्रेजी में है। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की संपर्क भाषा अंग्रेजी है। सारे अनुबंध और पत्र अंग्रेजी में तैयार किए जाते है। विडंबना है कि हिंदी के पत्रकारों को हिंदी फिल्मों के सितारों से बातचीत करने के लिए अंग्रेजी सीखनी पड़ती है। ये कड़वी सच्चाइयां है, जिन्हे हिंदी भाषी दर्शक सहज स्वीकार नहीं करेगे। हिंदी प्रदेशों में अधिकांश व्यक्तियों को यह भ्रम है कि हिंदी फिल्में उनके दम पर चलती है। यह भी एक निर्मूल धारणा ही है। सच तो यह है कि हिंदी फिल्मों का व्यापार हिंदी प्रदेशों पर निर्भर ही नहीं करता। यही कारण है कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में हिंदी व्यवहार की भाषा नहीं रह गयी है। तभी तो हिंदी कवि हरिवंशराय बच्चन के बेटे अमिताभ बच्चन ने अपने वायदे के बावजूद 270 से अधिक दिन बीत जाने के बाद भी अपना ब्लॉग पूरी तरह से हिंदी में लिखना आरंभ नहीं किया है। किसे परवाह है हिंदी भाषा और हिंदी दर्शकों की है। मनोज बाजपेयी अपना ब्लॉग हिंदी में लिख रहे है। उन्हे हिंदी फिल्म इंडस्ट्री ने हाशिए पर डाल रखा है।
'द्रोण' फिल्म की म्यूजिक रिलीज के समय जया बच्चन के हिंदी बोलने पर हुए हंगामे से सारा देश वाकिफ है। लेकिन फिल्म के निर्देशक इसे 'द्रोणा' ही कहते रहे। उनका तर्क था कि मूल शब्द 'द्रोण' होगा, लेकिन फिल्म में हम अभिषेक बच्चन को 'द्रोणा' ही बुलाते है। डी आर ओ एन ए.. अब आप हिंदी में चाहे जैसे लिख लें, पिछले साल पॉपुलर हुई फिल्म 'सिंह इज किंग' की रिलीज के 15 दिन पहले फिल्म के निर्माता विपुल शाह की जिज्ञासा थी कि पोस्टर पर हिंदी में इसे कैसे लिखा जाए। एस आई एन जी एच बोलने में तो सिंघ सुनाई पड़ता है। सिंघ या सिंग का तुक किंग से मिलता है। बहरहाल, विपुल शाह ने सलाह मानी और एसआईएनडीएच को 'सिंह' ही लिखा। अन्यथा हम पोस्टर पर 'सिंग इज किंग' देखते। दारा सिंह की फिल्मों के पोस्टर पर हिंदी प्रदेशों के दर्शक उनका नाम दारा सिंग ही पढ़ते रहे है। फिल्म के शीर्षकों में मात्राओं की गलतियां आम है। इन पर कोई ध्यान नहीं देता। वैसे भी अधिकांश पोस्टरों से हिंदी नाम गायब हो गए है। 'पिंजर' शब्द से अपरिचित दर्शक उसे 'पिंजार' पढ़ेगा तो किसकी गलती होगी? यशराज फिल्म्स की 'बचना ऐ हसीनों' में 'हसीनों' की बिंदी गायब हो जाती है और किसी हिंदी भाषी की भृकुटि नहीं तनती। श्याम बेनेगल की फिल्म 'वेलकम टू सज्जानपुर' के पोस्टर में एक मील का पत्थर दिखता है, जिस पर 'सज्जानपूर' लिखा हुआ है। हिंदी के लिए सरकारी या गैर सरकारी स्तर पर 'भाषा संरक्षण' या 'भाषा बचाओ' संस्था नहीं है, जो फिल्मों में हिंदी के गलत प्रयोग पर आपत्ति दर्ज करे या उन्हे सुधरवाने की कोशिश करे।
माना जाता है कि हिंदी के प्रचार-प्रसार में हिंदी फिल्मों का बड़ा योगदान है। वास्तव में यह एक धारणा है, जिसका कोई आधार नहीं है। ना ही कभी कोई सर्वेक्षण हुआ है और ना कभी यह जानने की कोशिश की गयी है कि हिंदी फिल्मों ने हिंदी भाषा का किस रूप, अर्थ और ढंग से प्रसार किया? हां, हिंदी फिल्मों ने एक ऐसी सार्वजनिक सिनेमाई भाषा विकसित कर ली है, जो संवादों का मर्म समझे बगैर भी मनोरंजन प्रदान करती है। पिछले कुछ दशकों में इसने नए बाजार में प्रवेश किया है, इसलिए सहज निष्कर्ष निकाल लिया जाता है कि जो हिंदी फिल्में देख रहे है, वे हिंदी सीख भी रहे है। विदेशों में बसे भारतवंशियों की संतानों को हिंदी नहीं आती। वे हिंदी फिल्मों का आम के अचार की तरह चटखारा लेते है। पिछले पंद्रह-बीस सालों में बनी लोकप्रिय हिंदी फिल्मों के संवादों का अध्ययन करे तो उनमें अंग्रेजी शब्दों की मात्रा लगातार बढ़ती जा रही है। इन दिनों कुछ पात्र सिर्फ अंग्रेजी ही बोलते नजर आते है या बीच-बीच में बोले गए अंग्रेजी वाक्यों को किसी और तरीके से हिंदी में समझाने की जरूरत नहीं समझी जाती। हिंदी फिल्मों के दर्शकों का प्रोफाइल बदल गया है। निर्माता और निर्देशक के आग्रह पर लेखक एक ऐसी भाषा विकसित करने में कामयाब हुए है, जिसे महानगरों और बड़े शहरों में स्थित मल्टीप्लेक्स के दर्शक आसानी से समझ सकते है। चूंकि हिंदी फिल्मों की आय और कलेक्शन का मुख्य स्त्रोत मल्टीप्लेक्स और विदेशी बाजार हो गए है, इसलिए विषय, प्रस्तुति और भाषा का शहरीकरण तेजी से हो रहा है। 'रॉक ऑन' ताजा उदाहरण है। रॉक म्यूजिक से देश के अधिकांश दर्शक अपरिचित है, लेकिन इस फिल्म का क्रेज देखते ही बन रहा है। फरहान अख्तर की बहन को यह बताने में झेंप नहीं आती कि उन्हे हिंदी नहीं आती। हिंदी लिखने के लिए तो हम किसी को हायर कर सकते है। मैं अंग्रेजी में पढ़ी-लिखी हूं। उसी भाषा में सोचती और लिखती हूं। आश्चर्य नहीं कि उनकी फिल्म का नाम 'लक बाई चांस' है।
पॉपुलर सितारों में अकेले अमिताभ बच्चन है, जो हिंदी में पूछे गए सवालों के जवाब हिंदी में देते है। उनसे बातचीत करते समय यह ख्याल नहीं रखना पड़ता कि सरल हिंदी या अंग्रेजी शब्दों के पर्याय का इस्तेमाल करे। इसे शर्म कहे या हिंदी फिल्मों के सितारों का धर्म कहे.. सचमुच उन्हे हिंदी नहीं आती। फिल्मों के प्रचार में कैमरे के सामने वे टूटी-फूटी हिंदी से काम चलाते है। शाहरुख खान, सलमान खान और आमिर खान भले ही बेहतर हिंदी बोलते नजर आएं, लेकिन अगर उन्हे हिंदी पाठ दे दिया जाए तो उनका पठन चौथी-पांचवी कक्षा के हिंदी विद्यार्थियों जैसा हो जाता है। जी हां, उन्हे अक्षरों को जोड़कर या शब्दों के बीच ठहरकर पढ़ना चाहिए है। 'क्या आप पांचवी पास से तेज है?' के प्रचार में शाहरुख खान जब लंबे अभ्यास के बाद हिंदी में लिखते है तो 'पढ़ो' लिखते समय 'ढ' के नीचे बिंदी लगाना भूल जाते है। उनकी लोकप्रियता की चकाचौंध में खो रही बिंदी पर किसी का ध्यान नहीं जाता। यह वास्तविकता है कि ज्यादातर सितारे सिर्फ हिंदी बोल पाते है। उनकी हिंदी पर गौर करने पर हम पाते है कि वे पांच सौ से अधिक शब्दों का उपयोग नहीं करते। यह उनकी सीमा और मजबूरी है। एक बार सोहा अली खान ने बताया था कि अपने ड्राइवर और ब्वॉय से बात करने से उनकी हिंदी का अभ्यास हो जाता है। हिंदी के प्रति उनके इस रवैए का नतीजा हम 'खोया खोया चांद' में उनकी संवाद अदायगी में देख चुके है। सोहा अली खान तो फिर भी हिंदी में बात कर लेती है और अपने संवाद खुद डब करती है। काटरीना कैफ के बारे में क्या कहेगे? लगातार छह हिट फिल्मों की हीरोइन कैटरीना कैफ को हिंदी नहीं आती। इतने सालों के अभ्यास के बाद वह बमुश्किल से हिंदी के दस-बीस शब्द और वाक्य बोल पाती है, जिनमें 'नमस्ते' और 'धन्यवाद' शामिल है। अभी तक उनके संवाद डब किए जाते है। इसके पहले श्रीदेवी भी अपनी फिल्मों में लगातार दूसरों की आवाज में बोलती रहीं। हिंदी फिल्मों में सिर्फ पार्श्व गायन ही नहीं होता, पार्श्व संवाद अदायगी भी होती है। काश, हम उन बेनाम कलाकारों के बारे में जान पाते जो पॉपुलर सितारों की आवाज बनते है।
हिंदी फिल्मों के सार्वजनिक समारोहों में अंग्रेजी का चलन है। फिल्मों की प्रचार सामग्री अंग्रेजी में ही छपती और वितरित की जाती है। ऑडियो सीडी में हिंदी गाने रोमन में छपे होते है। ज्यादातर डीवीडी में फिल्मों के साथ दी गयी अतिरिक्त सामग्री अंग्रेजी में रहती है। 'जोधा अकबर' की डीवीडी में आशुतोष गोवारीकर का इंटरव्यू अंग्रेजी में है। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की संपर्क भाषा अंग्रेजी है। सारे अनुबंध और पत्र अंग्रेजी में तैयार किए जाते है। विडंबना है कि हिंदी के पत्रकारों को हिंदी फिल्मों के सितारों से बातचीत करने के लिए अंग्रेजी सीखनी पड़ती है। ये कड़वी सच्चाइयां है, जिन्हे हिंदी भाषी दर्शक सहज स्वीकार नहीं करेगे। हिंदी प्रदेशों में अधिकांश व्यक्तियों को यह भ्रम है कि हिंदी फिल्में उनके दम पर चलती है। यह भी एक निर्मूल धारणा ही है। सच तो यह है कि हिंदी फिल्मों का व्यापार हिंदी प्रदेशों पर निर्भर ही नहीं करता। यही कारण है कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में हिंदी व्यवहार की भाषा नहीं रह गयी है। तभी तो हिंदी कवि हरिवंशराय बच्चन के बेटे अमिताभ बच्चन ने अपने वायदे के बावजूद 270 से अधिक दिन बीत जाने के बाद भी अपना ब्लॉग पूरी तरह से हिंदी में लिखना आरंभ नहीं किया है। किसे परवाह है हिंदी भाषा और हिंदी दर्शकों की है। मनोज बाजपेयी अपना ब्लॉग हिंदी में लिख रहे है। उन्हे हिंदी फिल्म इंडस्ट्री ने हाशिए पर डाल रखा है।
Comments
अजीब सी स्थिति हो गयी है.इसके लिए किसी एक को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता.पर हाँ..जो माध्यम
इन कलाकारों को पाल रहा है उसके प्रति इनकी ऐसी (दु-)र्भावना एक झुंझलाहट करने के सिवाय कुछ नहीं करती .हम अभिशप्त हैं इनको देखने-सुनने (कम-से-कम अब ये जानकर तो यही कहना होगा)के लिए.
सर कृपया यह भी बताएं कि क्या क्षेत्रीय मसलन ,दक्षिण या मराठी या भोजपुरी,पंजाबी आदि फिल्मों का सारा खेल भी इसी तरह से चलता है क्या?
जो कुछ आपने लिखा है, वह सब किश्तों में मैंने कई बार सोचा है किन्तु इस सबका प्रतिवाद किससे और कहां किया जाए-सूझ नहीं पडा। फिल्मों की प्रचार सामग्री में कहीं भी, कोई सम्पर्क पता नहीं होता। सारी सामग्री तैयार करने वालों को, हिन्दी प्रयुक्त कर प्रतिष्ठा और वैभव प्राप्त करने वालों को कैसे सूचित किया जाए कि उनका आचरण आपत्तिजनक और व्यथित कर देने वाला है? चूंकि इन सब तक कोई प्रतिवाद, किसी की खिन्नता पहुंचती ही नहीं सो सब यही मान कर चलते हैं कि जो वे कर रहे हैं वही ठीक है और इस सब पर किसी को कोई आपत्ति नहीं है।
कुछ अभिनेताओं/अभिनेत्रियों के डाक के पते उपलब्ध हो भी जाते हैं तो उन्हें भेजे गए पत्र उन तक पहुंचते ही नहीं। सब के सब फेन-मेल के ढेर में दब कर रह जाते हैं।
फिल्मों की अपेक्षा छोटे पर्दे पर हिन्दी का प्रभाव और प्रमुखता अधिक है। यहां हिन्दी बोलने, लिखने और पढने वाले न केवल अधिक अपितु अपेक्षा से अधिक पाए जा रहे हैं। किन्तु खेदजनक स्थिति यह है कि वे भी जैसे ही बडे वर्दे पर पहुंचते हैं, अंग्रेजी के दास हो जाते हैं।
वैसे बडे पर्दे पर मनोज वाजपेयी, आशुतोष राणा, गोविन्द नामदेव, राजपाल यादव जैसे गिनती के कुछ प्रमुख अभिनेता उभर कर सामने आए हैं जो गर्वपूर्वक हिन्दी बोलते हैं।
और वैसे भी ये सितारे हिन्दी मे बात करने अपनी शान के ख़िलाफ़ भी समझते है ।
यह सच नहीं है गुरु की किसी को हिंदी नहीं आती. अभिषेक की तो बात ही मत करिये बस बी.कौम पास है वह आदमी....
यही हालत करिश्मा कपूर जी का भी है... अधिकांश हिंदी फिल्म के एक्ट्र ज्यादा पढे लिखे नही है.
वे भी बेचारे क्या करें? जब हिंदी आती ही नहीं तो हिंदी में बात-चीत कैसे करें? इंटरव्यू कैसे दें? इनमें इनकी भी कोई गलती नहीं है। इनकी परवरिश ही नहीं हुई ऐसे माहौल में।
लेकिन ताज्जुब तब होता है जब हिंदी अच्छे से जानने समझने वाले अमिताभ बच्चन, अनुराग कश्यप जैसे लोग अपना ब्लॉग अंग्रेजी में लिखना पसंद करते हैं। अगर अपनी मज़बूरियों का रोना रोना है तो अंग्रेजीदां लोगों के कंधे ज्यादा सुहाते हैं। शायद इन्हें लगता है कि हिंदी पढ़ने वाले इनका मर्म समझ नहीं पाएंगे।
खैर, अपनी-अपनी च्वाइस है। तो अपन भी उनके ब्लॉग में फटकते नहीं। कभी भूले भटके पहुँच गए, तो घूम हटलकर वापस आ जाते हैं। मनोज वाजपेयी को पढ़ते हैं। क्या करें अपनी भी च्वाइस है, और मज़बूरी भी है, अंग्रेजी पढ़ने में हाथ ज़रा तंग है।
लेकिन अभी भी एक इच्छा होती है कि काश! हम इनका लिखा हिंदी में पढ़ पाते!
- आनंद
need bpo jobs without a single rupee!!!!!!!! a genuine job from home.
Work from home
हिंदी फ़िल्म उद्योग में गुलाम मानसिकता वाले लोगों की कमी नहीं है। ऐसे लोगों की वास्तविकता को सामने लाकर आपने बहुत अच्छा काम किया है।
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भारत में प्रदर्शित होने वाली फिल्मों एवं उनके प्रोमोज़ के नाम/शीर्षक एवं फिल्म/प्रोमोज़ के आरम्भ और अंत में (कलाकारों/गायकों के नाम/फिल्म निर्माण टीम आदि के नाम) जो कुछ भी स्क्रीन पर लिखा हुआ दिखाई देता है, उस सम्बन्ध में क्या नियम है? जैसे ऐसे शीर्षक/नाम एवं अन्य विवरण किस भाषा और लिपि में प्रदर्शित किए जाने चाहिए?
[सूप्रम अविलम्ब ऐसा नियम बनाए कि भारत में प्रदर्शित/उद्घाटित/रिलीज़ होने वाली फ़िल्में जिस भाषा की होंगी उसके नाम /शीर्षक और फिल्म के आरम्भ, अंत और फिल्म के दौरान एवं /उनके प्रोमोज़ में जो कुछ भी स्क्रीन पर लिखा हुआ दिखाई देता है, वह उसी भाषा में लिखा/टाइप किया होना अनिवार्य होगा जिस भाषा की वह फिल्म है. जैसे गुजराती अथवा तमिल भाषा की फिल्म में स्क्रीन पर लिखा हुआ सबकुछ गुजराती और तमिल में हो. यदि तमिल फिल्म का नाम अंग्रेजी में है तो भी उसे तमिल की लिपि में प्रदर्शित किया जाना अनिवार्य किया जाना चाहिए. फिल्म निर्माता फिल्म की मूल भाषा से इतर अन्य किसी भी वैकल्पिक भाषा (अंग्रेजी सहित) प्रयोग करना चाहे तो उसे इसकी छूट दी जाए परन्तु जिस भाषा की फिल्म है उसके सभी विवरण (टाइटल्स) उसी भाषा में लिखना अनिवार्य किया जाए]
भारत में प्रदर्शित होने वाली फिल्मों/वृत्तचित्र/धारावाहिक/टीवी शो/ कार्यक्रमों के पोस्टर/सीडी एवं कैसेट के आवरण/वेबसाइट आदि किस भाषा में बनाये जाने चाहिए, उस सम्बन्ध में क्या नियम हैं?
[जैसे गुजराती अथवा तमिल भाषा की फिल्म के पोस्टर/सीडी एवं कैसेट के आवरण/वेबसाइट आदि में गुजराती और तमिल प्रयोग करना अनिवार्य किया जाए. फिल्म निर्माता फिल्म की मूल भाषा से इतर अन्य कोई वैकल्पिक भाषा (अंग्रेजी अथवा हिन्दी) का प्रयोग करना चाहे तो उसे इसकी छूट दी जाए परन्तु जिस भाषा की फिल्म है उसका प्रयोग और उसको प्राथमिकता देना अनिवार्य किया जाए]
भारत सरकार द्वारा मान्य/पंजीकृत सभी टीवी चैनलों पर प्रसारित होने वाले सभी वृत्तचित्र/धारावाहिक/टीवी शो/ कार्यक्रमों/ समाचार अंकों (बुलेटिनों) के नाम/शीर्षक एवं कार्यक्रम आदि के आरम्भ और अंत में (कलाकारों/गायकों के नाम/फिल्म निर्माण टीम आदि के नाम) जो कुछ भी स्क्रीन पर लिखा हुआ दिखाई देता है, उस सम्बन्ध में क्या नियम है? जैसे ऐसे शीर्षक/नाम एवं अन्य विवरण किस भाषा और लिपि में प्रदर्शित किए जाने चाहिए?
भारत सरकार द्वारा मान्य/पंजीकृत सभी टीवी चैनलों द्वारा अपनी आधिकारिक वेबसाइट बनाये जाने के सम्बन्ध में क्या नियम हैं और ऐसी वेबसाइट किस भाषा में बनाई जानी चाहिए?
हर वर्ष भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया) के आयोजन में हर स्तर पर भारत की राजभाषा की घोर उपेक्षा की जाती है और राजभाषा सम्बन्धी प्रावधानों का खुला उल्लंघन होता है. उल्लंघन की बानगी कुछ इस प्रकार है : (क) समारोह के बैनर, पोस्टर, हस्त-पुस्तिकाएँ, सूची-पत्र (कैटलाग) केवल अंग्रेजी में छापे जाते हैं जबकि इन्हें अनिवार्य रूप से हिन्दी-अंग्रेजी दोनों में होना चाहिए. (ख). समारोह का प्रतीकचिह्न भी केवल अंग्रेजी में जारी किया जाता गया है और वर्षों से ऐसा हो रहा है. (ग) समारोह की वेबसाइट की वेबसाइट भी केवल अंग्रेजी में बनायी है. भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के आयोजन में राजभाषा के अनुपालन की जिम्मेदारी किस अधिकारी की है उसका नाम, पदनाम, पता, फैक्स नम्बर एवं ईमेल आईडी क्या है? भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव एवं इसी तरह के भारत में आयोज्य अन्य अन्तराष्ट्रीय कार्यक्रमों के आयोजन में राजभाषा के अनुपालन के लिए मंत्रालय ने पिछले ३ वर्षों में क्या कदम उठाए हैं?
४४वां भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव इस वर्ष २० से ३० नवंबर २०१३ के बीच आयोजित होगा उसमें राजभाषा के अनुपालन और हिन्दी के प्रयोग को सुनिश्चित करने के लिए मंत्रालय क्या कदम उठा रहा है? उसकी क्या योजना है?