हिन्दी टाकीज:फिल्मी गानों की किताब ने खोली पोल-ममता श्रीवास्तव

हिन्दी टाकीज-२८

इस बार ममता श्रीवास्तव.ममता गोवा में रहती हैं और ममता टीवी नाम से ब्लॉग लिखती हैं.चवन्नी इनका नियमित पाठक है.ममता की आत्मीय शैली पाठकों से सहज रिश्ता बनती हैं और उनकी बातें किसी कहानी सी महसूस होती हैं.चवन्नी ने उनसे आग्रह किया था इस सीरिज के लिए.ममता ने लेख बहुत पहले भेज दिया था,लेकिन तकनीकी भूलों की वजह से यह लेख पहले पोस्ट नहीं हो सका.उम्मीद है ममता माफ़ करेंगीं और आगे भी अपने संस्मरणों को पढने का मौका देंगीं।

चवन्नी ने कई महीनों पहले जब हिन्दी टाकीज नाम से ब्लॉग शुरू किया था तब उन्होंने हमसे भी इस ब्लॉग पर सिनेमा से जुड़े अपने अनुभव लिखने के लिए कहा था पर उसके बाद कुछ महीनों तक तो हमने ब्लॉग वगैरा लिखना-पढ़ना छोड़ दिया था इस वजह से हमने हिन्दी टाकीज पर भी कुछ नही लिखा ।इतने सारे अनुभव और यादें है कि समझ नही आ रहा है कहाँ से शुरू करुँ । पर खैर आज हम cinema से जुड़े अपने अनुभव आप लोगों से बाँटने जा रहे है ।


सिनेमा या फ़िल्म इस शब्द का ऐसा नशा था क्या अभी भी है कि कुछ पूछिए मत ।वैसे भी ६०-७० के दशक मे film देखने के अलावा मनोरंजन का कोई और ख़ास साधन भी तो नही था । बचपन मे भी कभी पापा या मम्मी ने film देखने पर रोका नही मतलब हम लोगों के घर मे फ़िल्म देखने पर कभी भी कोई भी रोक- टोक नही थी ।बल्कि अच्छी इंग्लिश फ़िल्म तो पापा हम लोगों को ख़ुद ही दिखाने ले जाते थे .

और हम लोग अक्सर सपरिवार film देखने जाया करते थे ।और वो भी शाम यानी ६-९ का शो ।और फ़िल्म देखने के लिए स्कूल से आते ही फटाफट पढ़ाई करके बस तैयार होने लग जाते थे । पर हाँ पापा इस बात का जरुर ध्यान रखते थे कि film अच्छे हॉल मे लगी हो । इलाहाबाद मे उस ज़माने में सिविल लाईन्स का पैलेस और प्लाजा और चौक मे निरंजन सिनेमा हॉल हम लोगों का प्रिय हॉल था । वैसे अगर पिक्चर अच्छी हो तो कभी-कभी चौक मे बने विशम्भर और पुष्पराज हॉल मे भी देख लेते थे ।

उस समय film लगी नही कि film देखने का प्लान बनना शुरू हो जाता था । रेडियो पर बिनाका गीत सुन-सुनकर film देखने का तै होता था । और घर मे चूँकि हम ५ भाई-बहन थे तो उस ज़माने का कोई न कोई हीरो या हेरोईन हम पांचों मे किसी न किसी को ख़ास तौर पर पसंद होता था । इसलिए film देखने के लिए बहाने की ज्यादा जरुरत ही नही थी ।पर फ़िर भी हमें कभी-कभी छोटे होने का नुकसान भुगतना पड़ता था ।


इसी बात पर एक वाकया सुनाते है । अपने भाई-बहनों मे चूँकि हम सबसे छोटे है और हम film देखते हुए बहुत रोते थे जैसे मझली दीदी film को देखते हुए हमने रो-रोकर अपनी आँखें सुजा ली थी । :) वैसे अब भी रोते है :)

उस ज़माने मे मीना कुमारी की film देख कर अधिकतर महिलायें रोती ही थी क्योंकि उनकी एक्टिंग इतनी लाजवाब होती थी । और फ़िर हम तो बच्चे ही थे ।

खैर ये बात उन्ही दिनों की है हमें अच्छे से याद है वो गर्मियों के दिन थे जब काजल film आई थी तो सभी लोगों ने सोचा की ममता तो film मे बहुत रोती है तो इसे काजल film न दिखाई जाए और इसलिए पापा और दीदी लोगों ने रात
का शो ९-१२ का देखने का प्रोग्राम बनाया । और बस फ़िर क्या था सारे लोग यानी हमारी दीदी लोग हमसे कुछ ज्यादा ही प्यार से बात करने लगी थी । पर हम भी कुछ कम नही थे हमें लग रहा था की जरुर कुछ माजरा है पर कुछ समझ नही पा रहे थे ।

खैर शाम को मम्मी ने सबको फटाफट खाना खिलाया और आँगन मे हमें लेकर लेट गई और दीदी लोगों को बोला कि तुम लोग जाओ और पढ़ाई करो । आम तौर पर हम जल्दी सोने वालों मे से थे पर उस दिन हमें नींद ही नही आ रही थी । और हम आँगन में लेटे-लेटे देख रहे थे कि दीदी लोग धीरे-धीरे तैयार भी हो रही थी । हम जब भी उठने कि सोचते मम्मी कहती कि बेटा सो जाओ । तभी हमें कार कि आवाज सुनाई पड़ी तो हमने मम्मी से पूछ कि पापा कहाँ गए है तो मम्मी ने कहा कि दीदी लोग पढ़ाई नही कर रही थी इसलिए पापा उन्हें डॉक्टर से इंजेक्शन लगवाने गए है । (उस जमाने का ये बहुत ही आम सा बच्चों को फुसलाने का बहाना था ) :)वो तो अगले दिन पता चला कि कौन सा इंजेक्शन लगवाने गई थी हमारी दीदी लोग क्योंकि अगले दिन घर मे गाने की किताब मिली ।

आपको याद है की नही । उस ज़माने सिनेमा हॉल के बाहर गाने कीकिताब भी खूब बिका करती थी जिसमे ५-६ film के पूरे-पूरे गाने हुआ करते थे और उन गाने की किताबों को खरीदे बिना तो पिक्चर देखना पूरा ही नही होताथा । :)वो दिन और आज का दिन हमने काजल फ़िल्म नही देखी है । क्योंकि उसके बाद कभी काजल फ़िल्म हॉल मे देखने गए नही और t.v पर कभी देखी नही ।बाकी फिल्मों से जुड़ी यादें फ़िर कभी बाटेंगे।

Comments

ये यादें तो बेशकीमती हैं

गानों की किताबें हमने भी देखी हैं

पर खरीदी कभी नहीं

सोचा कभी हमने भी गर गीत लिखे

तो कहीं कोई यह न कह दे कि

गानों की पुस्तिकाएं इनके यहां से

बरामद हुई हैं

इन्‍होंने चुरा कर ही लिखे होंगे गीत।


ममता जी की यादों से

बचपन से ममता हो आई।

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