दिल्ली ६ के बारे में राकेश ओमप्रकश मेहरा
अभिषेक बच्चन और सोनम कपूर के साथ दिल्ली 6 में दिल्ली के चांदनी चौक इलाके की खास भूमिका है। चांदनी चौक का इलाका दिल्ली-6 के नाम से भी मशहूर है। राकेश कहते हैं, मुझे फिल्मों के कारण मुंबई में रहना पड़ता है। चूंकि मैं दिल्ली का रहने वाला हूं, इसलिए मुंबई में भी दिल्ली खोजता रहता हूं। नहीं मिलने पर क्रिएट करता हूं। आज भी लगता है कि घर तो जमीन पर ही होना चाहिए। अपार्टमेंट थोड़ा अजीब एहसास देते हैं।
क्या दिल्ली 6 दिल्ली को खोजने और पाने की कोशिश है?
हां, पुरानी दिल्ली को लोग प्यार से दिल्ली-6 बोलते हैं। मेरे नाना-नानी और दादा दादी वहीं के हैं। मां-पिता जी का भी घर वहीं है। मैं वहीं बड़ा हुआ। बाद में हमलोग नयी दिल्ली आ गए। मेरा ज्यादा समय वहीं बीता। बचपन की सारी यादें वहीं की हैं। उन यादों से ही दिल्ली-6 बनी है।
बचपन की यादों के सहारे फिल्म बुनने में कितनी आसानी या चुनौती रही?
दिल्ली 6 आज की कहानी है। आहिस्ता-आहिस्ता यह स्पष्ट हो रहा है कि मैं अपने अनुभवों को ही फिल्मों में ढाल सकता हूं। रंग दे बसंती आज की कहानी थी, लेकिन उसमें मेरे कालेज के दिनों के अनुभव थे। बचपन की यादों का मतलब यह कतई न लें कि यह पुरानी कहानी है। दिल्ली 6 आने वाले कल की कहानी है। फिल्म के अंशो को देख चुके लोगों ने बताया कि यह फिल्म अब ज्यादा प्रासंगिक हो गयी है। पूरी दुनिया में जो घटनाएं घट रही हैं, वे इस फिल्म को अधिक महत्वपूर्ण बना रही हैं। इसमें जिंदगी का हिस्सा बन रही घटनाओं का चित्रण है। फिल्म को भौगोलिक तौर पर दिल्ली में रखा है। मैं दिल्ली की गलियों, खुश्बू, तौर-तरीकों और लोगों से परिचित हूं। मुझे रिसर्च करने की ज्यादा जरूरत नहीं पड़ी।
रंग दे बसंती में दिल्ली थी और दिल्ली 6 में तो दिल्ली नाम में ही है। आपकी फिल्मों में स्थान या देशकाल सुनिश्चित रहने का कोई खास कारण?
मैं दिल्ली का हूं। मैं इस देश की भाषा बोलता हूं। इसकी संस्कृति में पला हूं और यही देख-देख कर बड़ा हुआ हूं। मैंने बाहर की दुनिया भी देखी है। 19 साल की उम्र से घूम रहा हूं। विदेश में भी नौकरी की। बाहर के एक्सपोजर का मतलब यह नहीं होता कि हम नकलची बंदर बन जाएं। अपनी कहानियां सुनाने में मजा आता है। गांव-घर में आज भी किस्से सुनाए जाते हैं। हम वही काम कर रहे हैं। बस,माध्यम अलग और खर्चीला है।
दिल्ली 6 के बारे में बताएं?
दिल्ली से जुड़ा मेरा एक अनुभव था। उसी को मैंने कहानी का रूप दिया। कमलेश जी ने उसका विस्तार किया। फिर प्रसून जोशी आए और वे कहानी को दूसरे स्तर पर ले गए। इस फिल्म में 9 गाने हैं, लेकिन कोई भी गाना लिप सिंक में नहीं है। एक जागरण है, जिसे मैंने रघुवीर यादव, ओम पुरी और पवन मल्होत्रा की आवाज में रखा है। एक रैप अभिषेक ने गाया है।
अभिषेक बच्चन और सोनम कपूर को प्रमुख भूमिकाएं सौंपने की क्या वजह रही?
अभिषेक बच्चन और मैं एक साथ करियर शुरू करने वाले थे। हम लोग समझौता एक्सप्रेस पर काम कर रहे थे। वह फिल्म नहीं बन सकी। फिर रंग दे बसंती आ गयी। दिल्ली 6 भी थोड़ी पहले बन सकती थी, लेकिन अभिषेक के पास समय नहीं था। मैंने बाहर तलाश की। संतुष्ट नहीं हुआ तो फिर अभिषेक के पास लौटा। सोनम के बारे में सोचने के बावजूद मैं आशंकित था। मुझे लग रहा था कि दिल्ली के मध्यवर्गीय परिवार की सामान्य लड़की की भूमिका में वो जंचेगी या नहीं? मैं मिलने गया तो एक घंटे की मुलाकात दिन भर लंबी हो गयी। मुझे सोनम न केवल जंची, बल्कि मैं तो कहूंगा कि वह दमदार अभिनेत्री हैं। उनमें नर्गिस और वहीदा रहमान की झलक है।
क्या दिल्ली 6 दिल्ली को खोजने और पाने की कोशिश है?
हां, पुरानी दिल्ली को लोग प्यार से दिल्ली-6 बोलते हैं। मेरे नाना-नानी और दादा दादी वहीं के हैं। मां-पिता जी का भी घर वहीं है। मैं वहीं बड़ा हुआ। बाद में हमलोग नयी दिल्ली आ गए। मेरा ज्यादा समय वहीं बीता। बचपन की सारी यादें वहीं की हैं। उन यादों से ही दिल्ली-6 बनी है।
बचपन की यादों के सहारे फिल्म बुनने में कितनी आसानी या चुनौती रही?
दिल्ली 6 आज की कहानी है। आहिस्ता-आहिस्ता यह स्पष्ट हो रहा है कि मैं अपने अनुभवों को ही फिल्मों में ढाल सकता हूं। रंग दे बसंती आज की कहानी थी, लेकिन उसमें मेरे कालेज के दिनों के अनुभव थे। बचपन की यादों का मतलब यह कतई न लें कि यह पुरानी कहानी है। दिल्ली 6 आने वाले कल की कहानी है। फिल्म के अंशो को देख चुके लोगों ने बताया कि यह फिल्म अब ज्यादा प्रासंगिक हो गयी है। पूरी दुनिया में जो घटनाएं घट रही हैं, वे इस फिल्म को अधिक महत्वपूर्ण बना रही हैं। इसमें जिंदगी का हिस्सा बन रही घटनाओं का चित्रण है। फिल्म को भौगोलिक तौर पर दिल्ली में रखा है। मैं दिल्ली की गलियों, खुश्बू, तौर-तरीकों और लोगों से परिचित हूं। मुझे रिसर्च करने की ज्यादा जरूरत नहीं पड़ी।
रंग दे बसंती में दिल्ली थी और दिल्ली 6 में तो दिल्ली नाम में ही है। आपकी फिल्मों में स्थान या देशकाल सुनिश्चित रहने का कोई खास कारण?
मैं दिल्ली का हूं। मैं इस देश की भाषा बोलता हूं। इसकी संस्कृति में पला हूं और यही देख-देख कर बड़ा हुआ हूं। मैंने बाहर की दुनिया भी देखी है। 19 साल की उम्र से घूम रहा हूं। विदेश में भी नौकरी की। बाहर के एक्सपोजर का मतलब यह नहीं होता कि हम नकलची बंदर बन जाएं। अपनी कहानियां सुनाने में मजा आता है। गांव-घर में आज भी किस्से सुनाए जाते हैं। हम वही काम कर रहे हैं। बस,माध्यम अलग और खर्चीला है।
दिल्ली 6 के बारे में बताएं?
दिल्ली से जुड़ा मेरा एक अनुभव था। उसी को मैंने कहानी का रूप दिया। कमलेश जी ने उसका विस्तार किया। फिर प्रसून जोशी आए और वे कहानी को दूसरे स्तर पर ले गए। इस फिल्म में 9 गाने हैं, लेकिन कोई भी गाना लिप सिंक में नहीं है। एक जागरण है, जिसे मैंने रघुवीर यादव, ओम पुरी और पवन मल्होत्रा की आवाज में रखा है। एक रैप अभिषेक ने गाया है।
अभिषेक बच्चन और सोनम कपूर को प्रमुख भूमिकाएं सौंपने की क्या वजह रही?
अभिषेक बच्चन और मैं एक साथ करियर शुरू करने वाले थे। हम लोग समझौता एक्सप्रेस पर काम कर रहे थे। वह फिल्म नहीं बन सकी। फिर रंग दे बसंती आ गयी। दिल्ली 6 भी थोड़ी पहले बन सकती थी, लेकिन अभिषेक के पास समय नहीं था। मैंने बाहर तलाश की। संतुष्ट नहीं हुआ तो फिर अभिषेक के पास लौटा। सोनम के बारे में सोचने के बावजूद मैं आशंकित था। मुझे लग रहा था कि दिल्ली के मध्यवर्गीय परिवार की सामान्य लड़की की भूमिका में वो जंचेगी या नहीं? मैं मिलने गया तो एक घंटे की मुलाकात दिन भर लंबी हो गयी। मुझे सोनम न केवल जंची, बल्कि मैं तो कहूंगा कि वह दमदार अभिनेत्री हैं। उनमें नर्गिस और वहीदा रहमान की झलक है।
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