दरअसल:मनोरंजन जगत में कहां है मंदी?
-अजय ब्रह्मात्मज
एक तरफ से देखें, तो मनोरंजन जगत भी मंदी की मार से नहीं बच सका है। कई फिल्मों का निर्माण रुक गया है। प्रोडक्शन कंपनियां निर्माणाधीन फिल्मों पर पुनर्विचार कर रही हैं। बजट कम किया जा रहा है। फिल्म स्टारों के पारिश्रमिक कतरे जा रहे हैं। मोटे तौर पर कहा जा रहा है कि फिल्म इंडस्ट्री सावधान हो गई है। मंदी की मार से खुद को बचाने के लिए सुरक्षा इंतजाम शुरू हो गए हैं। उसी के तहत सब कुछ दुरुस्त किया जा रहा है।
अब दूसरी तरफ से देखें, तो कोई मंदी नहीं दिखाई पड़ती। फिल्म इंडस्ट्री का कारोबार बढ़ा है। पिछले तीन-चार महीनों में हिंदी फिल्मों का कलेक्शन ज्यादा हो गया है। इन महीनों में ही गजनी जैसी फिल्म आई, जिसने लगभग 240 करोड़ के कुल आय से नया रिकार्ड स्थापित कर दिया। मंदी के इस दौर में आय के रिकार्ड बन रहे हैं।
आंकड़े बताते हैं कि 2008 के आखिरी तीन महीनों में हिंदी फिल्म इंडस्ट्री ने 680 करोड़ रुपयों का बिजनेस किया। पिछले साल के पहले नौ महीनों में अधिकांश फिल्मों के फ्लॉप होने के कारण इंडस्ट्री में उदासी का माहौल था।
अक्टूबर से दिसंबर के बीच की कामयाब फिल्मों ने इंडस्ट्री की उदासी को खुशी में बदल दिया। फैशन, गोलमाल रिटर्न्स, रब ने बना दी जोड़ी, दोस्ताना और गजनी देखने के लिए उमड़ी दर्शकों की भीड़ से प्रसन्नता लौटी। 2009 के जनवरी महीने में हालांकि राज ही अकेली सफल फिल्म रही, लेकिन पहले महीने में 50-55 करोड़ के बिजनेस से यह उम्मीद बंधी है कि यह साल अच्छा गुजरेगा। उम्मीद की जा रही है कि फरवरी में रिलीज हो रही फिल्मों, खासकर दिल्ली 6 को देखने दर्शक आएंगे। अगर पिछले साल के जनवरी महीने के बिजनेस से तुलना करें, तो इस साल अच्छी बढ़ोतरी दिख रही है।
इंटरनेशनल आर्थिक मंदी से वित्त जगत में आए भूकंप के झटके महसूस होने के पहले से ही हिंदी फिल्म इंडस्ट्री सावधान हो गई थी। ऐसा लग रहा था कि उस मंदी का असर भारत तक पहुंच चुका है, जिसकी वजह से दर्शकों ने अपनी जेबें सिल ली हैं। फिल्म प्रोडक्शन में तेजी से उभरे कॉरपोरेट हाउस के मार्केटिंग अधिकारियों ने असर के पहले ही बजट को कम करने की कवायद शुरू कर दी थी। फिल्म स्टारों, डायरेक्टर और कार्यकारी निर्माताओं के साथ बैठकें की जाने लगी थीं कि संभावित मंदी को देखते हुए कटौती करनी होगी। एक घबराहट इंडस्ट्री में फैल गई थी। फिल्मों के अच्छे बिजनेस के बावजूद यह घबराहट कम नहीं हुई है। ऐसा कहा जा रहा है कि प्रोडक्शन कंपनियां मंदी के बहाने फिल्मों की लागत को कम कर देने में फायदा देख रही हैं। फिल्में छूट जाने या बंद हो जाने के डर से स्टार और डायरेक्टर दबाव में आकर अपने पैसे कम कर रहे हैं।
दरअसल, हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में मंदी का सीधा असर प्रोडक्शन कंपनियों की योजनाओं पर पड़ा है। आमदनी और कलेक्शन की बात करें, तो उसमें बढ़ोतरी ही हुई है। फिर भी, मंदी का बहाना है और इंडस्ट्री में घबराहट है, लिहाजा प्रोडक्शन कंपनियों को अच्छा अवसर मिल गया है। इस अवसर का लाभ उठाते हुए वे लाभ की संभावना बरकरार रखते हुए निवेश और लागत कम करने में सफल हो रहे हैं। वास्तव में मंदी के बहाने अपना मुनाफा बढ़ाने की युक्ति में लगे हैं। अमिताभ बच्चन ने अपने ब्लॉग में स्पष्ट शब्दों में लिखा है कि मनोरंजन में मंदी नहीं है। उदासी और हताशा के खौफनाक दौर में मनोरंजन की मांग बढ़ जाती है। पिछले चार महीनों में कामयाब हुई फिल्मों का कलेक्शन भी इस धारणा को मजबूत करते हैं। जो फिल्में फ्लॉप हुई, वे वास्तव में बुरी थीं। अगर मंदी का ही असर होता, तो बाकी फिल्में भी प्रभावित होतीं और कम से कम गजनी 240 करोड़ का रिकार्ड बनाने में सफल नहीं होती। वास्तव में मंदी के झूठ और डर को समझने की जरूरत है। कहीं ऐसा तो नहीं कि संभावित खौफ में निवेशकों, पूंजीपतियों और प्रोडक्शन कंपनियों ने मुट्ठियां बांध ली हैं और अपने लाभ को शेयर करने से बच रही हैं!
अब दूसरी तरफ से देखें, तो कोई मंदी नहीं दिखाई पड़ती। फिल्म इंडस्ट्री का कारोबार बढ़ा है। पिछले तीन-चार महीनों में हिंदी फिल्मों का कलेक्शन ज्यादा हो गया है। इन महीनों में ही गजनी जैसी फिल्म आई, जिसने लगभग 240 करोड़ के कुल आय से नया रिकार्ड स्थापित कर दिया। मंदी के इस दौर में आय के रिकार्ड बन रहे हैं।
आंकड़े बताते हैं कि 2008 के आखिरी तीन महीनों में हिंदी फिल्म इंडस्ट्री ने 680 करोड़ रुपयों का बिजनेस किया। पिछले साल के पहले नौ महीनों में अधिकांश फिल्मों के फ्लॉप होने के कारण इंडस्ट्री में उदासी का माहौल था।
अक्टूबर से दिसंबर के बीच की कामयाब फिल्मों ने इंडस्ट्री की उदासी को खुशी में बदल दिया। फैशन, गोलमाल रिटर्न्स, रब ने बना दी जोड़ी, दोस्ताना और गजनी देखने के लिए उमड़ी दर्शकों की भीड़ से प्रसन्नता लौटी। 2009 के जनवरी महीने में हालांकि राज ही अकेली सफल फिल्म रही, लेकिन पहले महीने में 50-55 करोड़ के बिजनेस से यह उम्मीद बंधी है कि यह साल अच्छा गुजरेगा। उम्मीद की जा रही है कि फरवरी में रिलीज हो रही फिल्मों, खासकर दिल्ली 6 को देखने दर्शक आएंगे। अगर पिछले साल के जनवरी महीने के बिजनेस से तुलना करें, तो इस साल अच्छी बढ़ोतरी दिख रही है।
इंटरनेशनल आर्थिक मंदी से वित्त जगत में आए भूकंप के झटके महसूस होने के पहले से ही हिंदी फिल्म इंडस्ट्री सावधान हो गई थी। ऐसा लग रहा था कि उस मंदी का असर भारत तक पहुंच चुका है, जिसकी वजह से दर्शकों ने अपनी जेबें सिल ली हैं। फिल्म प्रोडक्शन में तेजी से उभरे कॉरपोरेट हाउस के मार्केटिंग अधिकारियों ने असर के पहले ही बजट को कम करने की कवायद शुरू कर दी थी। फिल्म स्टारों, डायरेक्टर और कार्यकारी निर्माताओं के साथ बैठकें की जाने लगी थीं कि संभावित मंदी को देखते हुए कटौती करनी होगी। एक घबराहट इंडस्ट्री में फैल गई थी। फिल्मों के अच्छे बिजनेस के बावजूद यह घबराहट कम नहीं हुई है। ऐसा कहा जा रहा है कि प्रोडक्शन कंपनियां मंदी के बहाने फिल्मों की लागत को कम कर देने में फायदा देख रही हैं। फिल्में छूट जाने या बंद हो जाने के डर से स्टार और डायरेक्टर दबाव में आकर अपने पैसे कम कर रहे हैं।
दरअसल, हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में मंदी का सीधा असर प्रोडक्शन कंपनियों की योजनाओं पर पड़ा है। आमदनी और कलेक्शन की बात करें, तो उसमें बढ़ोतरी ही हुई है। फिर भी, मंदी का बहाना है और इंडस्ट्री में घबराहट है, लिहाजा प्रोडक्शन कंपनियों को अच्छा अवसर मिल गया है। इस अवसर का लाभ उठाते हुए वे लाभ की संभावना बरकरार रखते हुए निवेश और लागत कम करने में सफल हो रहे हैं। वास्तव में मंदी के बहाने अपना मुनाफा बढ़ाने की युक्ति में लगे हैं। अमिताभ बच्चन ने अपने ब्लॉग में स्पष्ट शब्दों में लिखा है कि मनोरंजन में मंदी नहीं है। उदासी और हताशा के खौफनाक दौर में मनोरंजन की मांग बढ़ जाती है। पिछले चार महीनों में कामयाब हुई फिल्मों का कलेक्शन भी इस धारणा को मजबूत करते हैं। जो फिल्में फ्लॉप हुई, वे वास्तव में बुरी थीं। अगर मंदी का ही असर होता, तो बाकी फिल्में भी प्रभावित होतीं और कम से कम गजनी 240 करोड़ का रिकार्ड बनाने में सफल नहीं होती। वास्तव में मंदी के झूठ और डर को समझने की जरूरत है। कहीं ऐसा तो नहीं कि संभावित खौफ में निवेशकों, पूंजीपतियों और प्रोडक्शन कंपनियों ने मुट्ठियां बांध ली हैं और अपने लाभ को शेयर करने से बच रही हैं!
Comments