गणेश क्यों सुपरस्टार हैं और कार्तिक क्यों नहीं?-राम गोपाल वर्मा
१६ जनवरी २००९ को राम गोपाल वर्मा ने यह पोस्ट अपने माई ब्लॉग पर लिखी है.यहाँ चवन्नी के पाठकों के लिए उसी पोस्ट को हिन्दी में पेश किया जा रहा है.उम्मीद है रामू की इस पोस्ट का मर्म समझा जा सकेगा.
मेरे लिए यह हमेशा रहस्य रहा है कि कोई क्यों जिंदगी में कामयाब हो जाता है और कोई क्यों नहीं हो पाता? यह सिर्फ प्रतिभा या भाग्य की बात नहीं है। मेरे खयाल में इसका संबंध अचेतन प्रोग्रामिंग से होता है, जरूरी नहीं है कि उसे डिजाइन किया गया हो या उसके बारे में सोचा गया हो।
बीते सालों में मैंने कई ऐसे अनेक एक्टर और टेक्नीशियन देखे, जिनके बारे में मेरी ऊंची राय थी, लेकिन वे कुछ नहीं कर सके और जिन्हें मैं औसत या मीडियाकर समझता रहा वे शिखर पर पहुंच गए। ऐसा नहीं है कि मैं इस विषय का अधिकारिक ज्ञाता हूं, लेकिन जिस समय मैं ऐसा सोच रहा था … मेरे आसपास के लोग भी वही राय रखते थे।
इसकी सबसे सरल व्याख्या है 'एस' यानी 'सफलता' । लेकिन सफलता का मतलब क्या है? सफलता वास्तव में प्राथमिक तौर पर ज्यादातर लोगों की स्वीकृति है कि फलां आदमी बहुत ही अच्छा है। लेकिन यह कैसे पता चले कि इतने सारे लोग क्या सोच रहे हैं? 'गदर' और 'लगान' का उदाहरण लें। दोनों फिल्में एक ही दिन रिलीज हुईं, लेकिन 'लगान' की तुलना में 'गदर' ज्यादा बड़ी हिट रही। दोनों फिल्मों की रिलीज के सालों बाद मुझे कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं मिला, जिसकी पसंद 'गदर' हो। 'लगान' को पसंद करने वाले ढेर सारे मिल जाएंगे। तो 'गदर' को पसदं करनेवाले कौन थे? क्या वे चुपचाप मंगल ग्रह से आए थे और फिल्म देखकर वहीं चले गए?
मजाक एक तरफ, जिन्होंने 'गदर' पसंद की, वे कथित आम दर्शक होंगे, जिनकी परवाह हर चीज में नाम घुसेडऩे वाले समीक्षक और मीडिया नहीं करते। इसलिए जब वे लोगों की पसंद की फिल्मों की तारीफ में कुछ बोलते या लिखते नहीं है तो समय के साथ 'गदर' पसंद करने वाले भी धीरे-धीरे अपनी पसंद के प्रति आशंकित हो जाते हैं। उन्हें लगने लगता है कि 'गदर' पसंद करने से कोई गलती हो जाएगी।
मेरी एक चाची हैं। एक बार वह किसी के साथ सत्य साईं बाबा के दर्शन के लिए चली गयी थीं। वहां से लौटने के बाद अपने घर में उन्होंने उनकी एक बड़ी तस्वीर लगायी। उन्होंने दावा किया कि जब इतने हजारों लोग उनमें यकीन रखते हैं तो निश्चित ही वे दिव्य हैं। मैंने उनका प्रतिकार किया और कहा कि अगर वह सचमुच यकीन नहीं रखतीं, लेकिन हजारों लोगों के विश्वास के कारण खुद भी यकीन करने लगती हैं तो यही बात उन हजारों के साथ भी तो हो सकती है। इसका मतलब हुआ कि सभी एक सामूहिक झूठ में यकीन कर रहे हैं। मैं यहां सत्य साईं बाबा की बात नहीं कर रहा हूं। मैं उनके प्रति लोगों के यकीन के आधार पर सवाल कर रहा हूं।
मैं यह भी नहीं समझ सका कि कार्तिक अपने भाई गणेश से छोटे भगवान क्यों हैं? मिथकों में कहीं नहीं कहा गया है कि कार्तिक कमतर हैं और न कहीं यह लिखा गया है कि गणेश असाधारण हैं। लेकिन किसी कारण से स्वर्ग के पीआर डिपार्टमेंट ने गणेश को आगे रखा और कार्तिक को पीछे कर दिया। उन्होंने बुलंद आवाज में गणेश का प्रोमोशन किया, यहां तक कि उनके जन्म की अतार्किक कहानी को भी श्रद्धालु (दर्शक) ध्यान से देखते-सुनते हैं (उन पर आधारित अतार्किक फिल्म भी सुपरहिट हो जाती है।)
अगर फिल्म इंडस्ट्री में कोई लेखक ऐसी कहानी सुनाए तो उसे हमेशा के लिए बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा। 'बाल गणेश द्वार पर खड़े होकर पहरा दे रहे हैं। मां पार्वती अंदर नहा रही हैं। पिता शिव आते हैं तो गणेश उन्हें रोकते हैं। क्रोधित होकर शिव उनका सिर काट देते हैं (मेरे ख्याल में शिव की क्रूरता से दुनिया को सीखना चाहिए।) और जब पार्वती बताती हैं कि वह बच्चा कौन है। शिव बाहर जाते हैं और एक हाथी का सिर (क्या जंगली जीवों के पक्षधर पेटा वाले सुन रहे हैं) काट लाते हैं और बच्चे के सिर पर चिपका देते हैं।' इसके अलावा वे मां के प्रिय थे… बाकी मेरी समझ में नहीं आता कि उन्हें दिव्य प्रतिष्ठा क्यों मिली और निस्संदेह हमने कभी कार्तिक के बारे में जिज्ञासा नहीं की, क्योंकि उन्हें नजरअंदाज करने के लिए हमें तैयार कर दिया गया था।
हर तरह से और व्यावहारिक दृष्टिकोण से कार्तिक अधिक सुंदर हैं और स्मार्ट दिखते हैं। (कम से कम गणेश की तरह उनसे जुड़ी कोई अतार्किक कहानी नहीं है) और न ही मिथकों में कहीं यह उल्लेख है कि वे गणेश से कम शक्तिशाली हैं।
तो फिर गणेश क्यों सुपरस्टार हैं और कार्तिक क्यों नहीं?
अंत में इनता ही कहना चाहूंगा कि किसी के कामयाब होने या न होने का चमत्कार सिर्फ बालीवुड में ही नहीं होता, डिवाइनवुड में भी यही होता है।
मेरे लिए यह हमेशा रहस्य रहा है कि कोई क्यों जिंदगी में कामयाब हो जाता है और कोई क्यों नहीं हो पाता? यह सिर्फ प्रतिभा या भाग्य की बात नहीं है। मेरे खयाल में इसका संबंध अचेतन प्रोग्रामिंग से होता है, जरूरी नहीं है कि उसे डिजाइन किया गया हो या उसके बारे में सोचा गया हो।
बीते सालों में मैंने कई ऐसे अनेक एक्टर और टेक्नीशियन देखे, जिनके बारे में मेरी ऊंची राय थी, लेकिन वे कुछ नहीं कर सके और जिन्हें मैं औसत या मीडियाकर समझता रहा वे शिखर पर पहुंच गए। ऐसा नहीं है कि मैं इस विषय का अधिकारिक ज्ञाता हूं, लेकिन जिस समय मैं ऐसा सोच रहा था … मेरे आसपास के लोग भी वही राय रखते थे।
इसकी सबसे सरल व्याख्या है 'एस' यानी 'सफलता' । लेकिन सफलता का मतलब क्या है? सफलता वास्तव में प्राथमिक तौर पर ज्यादातर लोगों की स्वीकृति है कि फलां आदमी बहुत ही अच्छा है। लेकिन यह कैसे पता चले कि इतने सारे लोग क्या सोच रहे हैं? 'गदर' और 'लगान' का उदाहरण लें। दोनों फिल्में एक ही दिन रिलीज हुईं, लेकिन 'लगान' की तुलना में 'गदर' ज्यादा बड़ी हिट रही। दोनों फिल्मों की रिलीज के सालों बाद मुझे कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं मिला, जिसकी पसंद 'गदर' हो। 'लगान' को पसंद करने वाले ढेर सारे मिल जाएंगे। तो 'गदर' को पसदं करनेवाले कौन थे? क्या वे चुपचाप मंगल ग्रह से आए थे और फिल्म देखकर वहीं चले गए?
मजाक एक तरफ, जिन्होंने 'गदर' पसंद की, वे कथित आम दर्शक होंगे, जिनकी परवाह हर चीज में नाम घुसेडऩे वाले समीक्षक और मीडिया नहीं करते। इसलिए जब वे लोगों की पसंद की फिल्मों की तारीफ में कुछ बोलते या लिखते नहीं है तो समय के साथ 'गदर' पसंद करने वाले भी धीरे-धीरे अपनी पसंद के प्रति आशंकित हो जाते हैं। उन्हें लगने लगता है कि 'गदर' पसंद करने से कोई गलती हो जाएगी।
मेरी एक चाची हैं। एक बार वह किसी के साथ सत्य साईं बाबा के दर्शन के लिए चली गयी थीं। वहां से लौटने के बाद अपने घर में उन्होंने उनकी एक बड़ी तस्वीर लगायी। उन्होंने दावा किया कि जब इतने हजारों लोग उनमें यकीन रखते हैं तो निश्चित ही वे दिव्य हैं। मैंने उनका प्रतिकार किया और कहा कि अगर वह सचमुच यकीन नहीं रखतीं, लेकिन हजारों लोगों के विश्वास के कारण खुद भी यकीन करने लगती हैं तो यही बात उन हजारों के साथ भी तो हो सकती है। इसका मतलब हुआ कि सभी एक सामूहिक झूठ में यकीन कर रहे हैं। मैं यहां सत्य साईं बाबा की बात नहीं कर रहा हूं। मैं उनके प्रति लोगों के यकीन के आधार पर सवाल कर रहा हूं।
मैं यह भी नहीं समझ सका कि कार्तिक अपने भाई गणेश से छोटे भगवान क्यों हैं? मिथकों में कहीं नहीं कहा गया है कि कार्तिक कमतर हैं और न कहीं यह लिखा गया है कि गणेश असाधारण हैं। लेकिन किसी कारण से स्वर्ग के पीआर डिपार्टमेंट ने गणेश को आगे रखा और कार्तिक को पीछे कर दिया। उन्होंने बुलंद आवाज में गणेश का प्रोमोशन किया, यहां तक कि उनके जन्म की अतार्किक कहानी को भी श्रद्धालु (दर्शक) ध्यान से देखते-सुनते हैं (उन पर आधारित अतार्किक फिल्म भी सुपरहिट हो जाती है।)
अगर फिल्म इंडस्ट्री में कोई लेखक ऐसी कहानी सुनाए तो उसे हमेशा के लिए बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा। 'बाल गणेश द्वार पर खड़े होकर पहरा दे रहे हैं। मां पार्वती अंदर नहा रही हैं। पिता शिव आते हैं तो गणेश उन्हें रोकते हैं। क्रोधित होकर शिव उनका सिर काट देते हैं (मेरे ख्याल में शिव की क्रूरता से दुनिया को सीखना चाहिए।) और जब पार्वती बताती हैं कि वह बच्चा कौन है। शिव बाहर जाते हैं और एक हाथी का सिर (क्या जंगली जीवों के पक्षधर पेटा वाले सुन रहे हैं) काट लाते हैं और बच्चे के सिर पर चिपका देते हैं।' इसके अलावा वे मां के प्रिय थे… बाकी मेरी समझ में नहीं आता कि उन्हें दिव्य प्रतिष्ठा क्यों मिली और निस्संदेह हमने कभी कार्तिक के बारे में जिज्ञासा नहीं की, क्योंकि उन्हें नजरअंदाज करने के लिए हमें तैयार कर दिया गया था।
हर तरह से और व्यावहारिक दृष्टिकोण से कार्तिक अधिक सुंदर हैं और स्मार्ट दिखते हैं। (कम से कम गणेश की तरह उनसे जुड़ी कोई अतार्किक कहानी नहीं है) और न ही मिथकों में कहीं यह उल्लेख है कि वे गणेश से कम शक्तिशाली हैं।
तो फिर गणेश क्यों सुपरस्टार हैं और कार्तिक क्यों नहीं?
अंत में इनता ही कहना चाहूंगा कि किसी के कामयाब होने या न होने का चमत्कार सिर्फ बालीवुड में ही नहीं होता, डिवाइनवुड में भी यही होता है।
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