गजनी,गुप्त ज्ञान,दीदी और दादी
एक दीदी हैं मेरी.दिल्ली में रहती हैं.अभी पिछले दिनों दिल्ली जाना हुआ तो उनसे मुलाक़ात हुई.मुलाक़ात के पहले ही उनके बेटे ने बता दिया था की माँ आमिर खान से बहुत नाराज़ हैं.मुझे लगा की गजनी देख कर आमिर खान से नाखुश हुए प्रशंसकों में से वह भी एक होंगी.बहरहाल.मिलने पर मैंने ही पूछा,कैसी लगी गजनी.उन्होंने भोजपुरी में प्रचलित सभी सभ्य गलिया दिन और कहा भला ऐसी फ़िल्म बनती है.नाम कुछ और रखा और फ़िल्म में कुछ और दिखा दिया.बात आगे बढ़ी तो उन्होंने बताया की वह तो गजनी देखने गई थीं.उन्हें लगा था की ऐतिहासिक फ़िल्म होगी और मुहम्मद गजनी के जीवन को लेकर फ़िल्म बनी होगी.लेकिन यहाँ तो आमिर खान था और वह गजनी को मार रहा था.गजनी भी कौन?एक विलेन.मेरा तो दिमाग ही ख़राब हो गया।
फिर उन्होंने एक दादी का किस्सा सुनाया.बचपन की बात थी.उनकी सहेली नियमित तौर पर फ़िल्म देखती थी.चूंकि परिवार से अकेले जाने की इजाज़त नहीं थी,इसलिए दादी को साथ में ले जाना पड़ता था.दादी के साथ जाने पर घर के बड़े-बूढ़े मना नहीं करते थे.एक बार शहर में गुप्त ज्ञान फ़िल्म लगी.दीदी की सहेली ने दादी को राजी किया और दादी-पोती फ़िल्म देखने चली गयीं.उन्हें भ्रम था की कोई ज्ञानवर्धक फ़िल्म होगी.फ़िल्म शुरू होते ही पता चल गया की यह तो वैसी फ़िल्म नहीं,जैसी वे सोच कर आई थीं.लेकिन अब वहां से निकलना मुश्किल था.भीड़ में ख़ुद को पाकर दादी की झेंप बढती जा रही थी.उन्होंने तत्काल तरकीब निकाली.दादी ने घूंघट काढ़ लिया,ताकि उनका झुर्रीदार चेहरा किसी को नहीं दिखे.उन्होंने पोती को सलाह दी की दुपट्टे से सर धक् लो और कान के ऊपर से ऐसे दुपट्टे को खोंसो जैसे मुस्लमान लड़कियां दुपट्टा लेती है.दादी और पोती ने ऐसा कर लिया की पहचान में न आयें सिनेमाघर से निकालने पर सीधे घर का रिक्शा लेने के बजाय दोनों कुछ देर बाज़ार में घूमती रहीं.फिर एक रेस्तरां में कुछ खाया.इस बीच दादी का घूंघट खुलता गया और पोती का दुपट्टा भी कानों के पीछे से निकल आया।
आज भी पोती दादी की होशियारी का गुणगान करती हैं.गुप्त ज्ञान नाम से उन्हें सालों पहले ज्ञानवर्धक फ़िल्म का भ्रम हुआ था.सालों बाद गजनी नाम के भ्रम दीदी आमिर खान की फ़िल्म देख आई.
फिर उन्होंने एक दादी का किस्सा सुनाया.बचपन की बात थी.उनकी सहेली नियमित तौर पर फ़िल्म देखती थी.चूंकि परिवार से अकेले जाने की इजाज़त नहीं थी,इसलिए दादी को साथ में ले जाना पड़ता था.दादी के साथ जाने पर घर के बड़े-बूढ़े मना नहीं करते थे.एक बार शहर में गुप्त ज्ञान फ़िल्म लगी.दीदी की सहेली ने दादी को राजी किया और दादी-पोती फ़िल्म देखने चली गयीं.उन्हें भ्रम था की कोई ज्ञानवर्धक फ़िल्म होगी.फ़िल्म शुरू होते ही पता चल गया की यह तो वैसी फ़िल्म नहीं,जैसी वे सोच कर आई थीं.लेकिन अब वहां से निकलना मुश्किल था.भीड़ में ख़ुद को पाकर दादी की झेंप बढती जा रही थी.उन्होंने तत्काल तरकीब निकाली.दादी ने घूंघट काढ़ लिया,ताकि उनका झुर्रीदार चेहरा किसी को नहीं दिखे.उन्होंने पोती को सलाह दी की दुपट्टे से सर धक् लो और कान के ऊपर से ऐसे दुपट्टे को खोंसो जैसे मुस्लमान लड़कियां दुपट्टा लेती है.दादी और पोती ने ऐसा कर लिया की पहचान में न आयें सिनेमाघर से निकालने पर सीधे घर का रिक्शा लेने के बजाय दोनों कुछ देर बाज़ार में घूमती रहीं.फिर एक रेस्तरां में कुछ खाया.इस बीच दादी का घूंघट खुलता गया और पोती का दुपट्टा भी कानों के पीछे से निकल आया।
आज भी पोती दादी की होशियारी का गुणगान करती हैं.गुप्त ज्ञान नाम से उन्हें सालों पहले ज्ञानवर्धक फ़िल्म का भ्रम हुआ था.सालों बाद गजनी नाम के भ्रम दीदी आमिर खान की फ़िल्म देख आई.
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