दरअसल:उमीदें कायम हैं...
-अजय ब्रह्मात्मज
मनोरंजन की दुनिया में 2009 के पहले दिन आप सभी का स्वागत है। मंदी के इस दौर में, जबकि सारी गतिविधियां ठंडी पड़ी हुई हैं, तब भी मनोरंजन की दुनिया में हलचल है। अर्थशास्त्री भी मानते हैं कि मंदी के किसी भी दौर में मनोरंजन की दुनिया सबसे कम प्रभावित होती है। पिछले साल रब ने बना दी जोड़ी और गजनी की प्रचारित सफलता में से झूठ और झांसे का प्रतिशत यदि निकाल दें, तो भी मानना पड़ेगा कि दर्शकों ने उत्साह दिखाया। उन्होंने शाहरुख खान और आमिर खान की फिल्मों को हिट की श्रेणी में पहुंचा कर फिल्म इंडस्ट्री को भरोसा दिया कि हमेशा की तरह उम्मीद कायम है।
साल के पहले दिन अगले 364 दिनों की भविष्यवाणी कर पाना पंडितों के लिए आसान होता होगा। ग्रहों की दिशा से वे भविष्य का अनुमान कर लेते हैं। हम फिल्मी सितारों की दशा और दिशा से भविष्य का अनुमान लगा सकते हैं, लेकिन भविष्यवाणी नहीं कर सकते, क्योंकि दर्शकों का मिजाज कब और क्यों बदलेगा, यह कोई नहीं जानता। सच तो यह है कि वे किसी बड़े सितारे की फिल्म को बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिरा सकते हैं, तो किसी नए सितारे को लोकप्रियता के आकाश में चमका भी सकते हैं। ऊपरी तौर पर ऐसा लगता है कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में कुछ भी हो सकता है, लेकिन यदि सफल फिल्मों का बारीकी से अध्ययन करें, तो दर्शकों की रुचि को रेखांकित किया जा सकता है। केवल यही नहीं, ऐसा करके कुछ सूत्र और समीकरण भी खोजे जा सकते हैं। गणित और हिंदी फिल्मों में एक फर्क है। गणित में एक समीकरण से कई सवाल हल किए जा सकते हैं। फिल्मों की सफलता का समीकरण हर फिल्म के साथ बदल जाता है।
पिछले साल के अनुभव के आधार पर यह कहा जा सकता है कि हिंदी फिल्मों के दर्शकों में अब परिपक्वता आई है और इसीलिए वे नए और अपारंपरिक विषयों पर बनी फिल्मों को भी पसंद कर रहे हैं। उन्होंने अपने समर्थन में बड़े और छोटे का खयाल नहीं रखा। उन्हें एक तरफ सीमित बजट में नए चेहरे को लेकर बनी फिल्म पसंद आई, तो उन्होंने दूसरी तरफ बड़े सितारों की भव्य फिल्में भी दरकिनार कर दीं। उन्हें तो मनोरंजन चाहिए। मनोरंजन की दुनिया में वर्चस्व की राजनीति बदलती है। लोकप्रियता के क्षेत्र में आरक्षण नीति नहीं चलती। यहां सफलता हमेशा एक संभावना है, जिसके लिए जोखिम उठाना पड़ता है और अंधेरे में छलांग लगानी ही पड़ती है। कोई भी निर्देशक फिल्म के बारे में सोचते समय दर्शकों के संभावित समर्थन का अंदाजा नहीं लगा सकता। फिर भी एक तथ्य सामने आ रहा है कि फिल्म की रिलीज के पहले ही दर्शक मन बना चुके होते हैं। वे तय कर चुके होते हैं किआगामी फिल्म पर कितने पैसे खर्च करने हैं? अकेले देखना है, नहीं देखना है या सपरिवार देखना है। यह लगभग वैसी ही स्थिति और मानसिकता है, जैसे कि चुनाव की घोषणा से पहले समाज तय कर चुका होता है कि इस बार किसे वोट देना है? मतदान के पहले मतदाता फैसले ले चुके होते हैं।
दूसरों की कामयाबी और सफलता की संभावना ही फिल्म इंडस्ट्री के लोगों को सक्रिय रखती है। इस संभावना के कारण ही वे नए विषयों के साथ प्रयोग करते हैं और कामयाबी मिलने पर उसे दोहरा कर ट्रेंड का रूप दे देते हैं। एक तरह से फिल्म व्यवसाय वास्तव में अध्यवसाय है। इसलिए यदि यहां लगन और भावावेश हो, तो मुश्किलें आसान होती चली जाती हैं। अन्यथा फिल्म बना सकना बच्चों का खेल नहीं है, क्योंकि इसमें कई जिंदगियां बर्बाद हो जाती हैं। फिल्म इंडस्ट्री की एक सफलता के पीछे अनगिनत असफलताएं रहती हैं, जिनके बारे में हम जान ही नहीं पाते! दरअसल.., पराजित और असफल व्यक्तियों की कहानी में किसी की रुचि नहीं रहती। यह मानवीय स्वभाव है। हम विजेताओं का ही इतिहास लिखते हैं। विजेता ही नायक बनते हैं। उनकी शौर्यगाथा ही पुस्तकों का रूप लेती हैं और आगामी पीढ़ी केअध्ययन का विषय बनती हैं।
नए साल में सफलता की नई कहानियां होंगी। तरंग में हम आपको उन कहानियों के नाटकीय मोड़ों से परिचित कराते रहेंगे। फिल्म इंडस्ट्री की चमक-दमक और कानाफूसी के साथ ही उन अंधेरे कोनों को भी प्रकाशित करेंगे, जहां कई आवाजें अवसर के अभाव में दम तोड़ देती हैं।
मनोरंजन की दुनिया में 2009 के पहले दिन आप सभी का स्वागत है। मंदी के इस दौर में, जबकि सारी गतिविधियां ठंडी पड़ी हुई हैं, तब भी मनोरंजन की दुनिया में हलचल है। अर्थशास्त्री भी मानते हैं कि मंदी के किसी भी दौर में मनोरंजन की दुनिया सबसे कम प्रभावित होती है। पिछले साल रब ने बना दी जोड़ी और गजनी की प्रचारित सफलता में से झूठ और झांसे का प्रतिशत यदि निकाल दें, तो भी मानना पड़ेगा कि दर्शकों ने उत्साह दिखाया। उन्होंने शाहरुख खान और आमिर खान की फिल्मों को हिट की श्रेणी में पहुंचा कर फिल्म इंडस्ट्री को भरोसा दिया कि हमेशा की तरह उम्मीद कायम है।
साल के पहले दिन अगले 364 दिनों की भविष्यवाणी कर पाना पंडितों के लिए आसान होता होगा। ग्रहों की दिशा से वे भविष्य का अनुमान कर लेते हैं। हम फिल्मी सितारों की दशा और दिशा से भविष्य का अनुमान लगा सकते हैं, लेकिन भविष्यवाणी नहीं कर सकते, क्योंकि दर्शकों का मिजाज कब और क्यों बदलेगा, यह कोई नहीं जानता। सच तो यह है कि वे किसी बड़े सितारे की फिल्म को बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिरा सकते हैं, तो किसी नए सितारे को लोकप्रियता के आकाश में चमका भी सकते हैं। ऊपरी तौर पर ऐसा लगता है कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में कुछ भी हो सकता है, लेकिन यदि सफल फिल्मों का बारीकी से अध्ययन करें, तो दर्शकों की रुचि को रेखांकित किया जा सकता है। केवल यही नहीं, ऐसा करके कुछ सूत्र और समीकरण भी खोजे जा सकते हैं। गणित और हिंदी फिल्मों में एक फर्क है। गणित में एक समीकरण से कई सवाल हल किए जा सकते हैं। फिल्मों की सफलता का समीकरण हर फिल्म के साथ बदल जाता है।
पिछले साल के अनुभव के आधार पर यह कहा जा सकता है कि हिंदी फिल्मों के दर्शकों में अब परिपक्वता आई है और इसीलिए वे नए और अपारंपरिक विषयों पर बनी फिल्मों को भी पसंद कर रहे हैं। उन्होंने अपने समर्थन में बड़े और छोटे का खयाल नहीं रखा। उन्हें एक तरफ सीमित बजट में नए चेहरे को लेकर बनी फिल्म पसंद आई, तो उन्होंने दूसरी तरफ बड़े सितारों की भव्य फिल्में भी दरकिनार कर दीं। उन्हें तो मनोरंजन चाहिए। मनोरंजन की दुनिया में वर्चस्व की राजनीति बदलती है। लोकप्रियता के क्षेत्र में आरक्षण नीति नहीं चलती। यहां सफलता हमेशा एक संभावना है, जिसके लिए जोखिम उठाना पड़ता है और अंधेरे में छलांग लगानी ही पड़ती है। कोई भी निर्देशक फिल्म के बारे में सोचते समय दर्शकों के संभावित समर्थन का अंदाजा नहीं लगा सकता। फिर भी एक तथ्य सामने आ रहा है कि फिल्म की रिलीज के पहले ही दर्शक मन बना चुके होते हैं। वे तय कर चुके होते हैं किआगामी फिल्म पर कितने पैसे खर्च करने हैं? अकेले देखना है, नहीं देखना है या सपरिवार देखना है। यह लगभग वैसी ही स्थिति और मानसिकता है, जैसे कि चुनाव की घोषणा से पहले समाज तय कर चुका होता है कि इस बार किसे वोट देना है? मतदान के पहले मतदाता फैसले ले चुके होते हैं।
दूसरों की कामयाबी और सफलता की संभावना ही फिल्म इंडस्ट्री के लोगों को सक्रिय रखती है। इस संभावना के कारण ही वे नए विषयों के साथ प्रयोग करते हैं और कामयाबी मिलने पर उसे दोहरा कर ट्रेंड का रूप दे देते हैं। एक तरह से फिल्म व्यवसाय वास्तव में अध्यवसाय है। इसलिए यदि यहां लगन और भावावेश हो, तो मुश्किलें आसान होती चली जाती हैं। अन्यथा फिल्म बना सकना बच्चों का खेल नहीं है, क्योंकि इसमें कई जिंदगियां बर्बाद हो जाती हैं। फिल्म इंडस्ट्री की एक सफलता के पीछे अनगिनत असफलताएं रहती हैं, जिनके बारे में हम जान ही नहीं पाते! दरअसल.., पराजित और असफल व्यक्तियों की कहानी में किसी की रुचि नहीं रहती। यह मानवीय स्वभाव है। हम विजेताओं का ही इतिहास लिखते हैं। विजेता ही नायक बनते हैं। उनकी शौर्यगाथा ही पुस्तकों का रूप लेती हैं और आगामी पीढ़ी केअध्ययन का विषय बनती हैं।
नए साल में सफलता की नई कहानियां होंगी। तरंग में हम आपको उन कहानियों के नाटकीय मोड़ों से परिचित कराते रहेंगे। फिल्म इंडस्ट्री की चमक-दमक और कानाफूसी के साथ ही उन अंधेरे कोनों को भी प्रकाशित करेंगे, जहां कई आवाजें अवसर के अभाव में दम तोड़ देती हैं।
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