एक्शन,थ्रिल और रोमांस का संगम है 'गजनी'-आमिर खान
आमिर खान का एक इंटरव्यू २४ दिसम्बर को पोस्ट किया था.उसी इंटरव्यू का यह असंपादित मूल है.यहाँ आमिर खान से 'गजनी' के साथ और भी विषयों पर बातें हुईं.आमिर के प्रशंसकों और सिनेमा के अध्येताओं को यह इंटरव्यू विशेष खुशी देगा,क्योंकि अभिनेता आमिर ने यहाँ कुछ और भी बातें की हैं...पढने का आनंद लें...
अपनी नई फिल्म गजनी के बारे में आमिर खान कहते हैं कि यह प्योर थ्रिलर फिल्म है, जो दर्शकों को बिल्कुल अलग तरह का अनुभव देगी। आमिर कहते हैं कि दर्शकों को मेरी फिल्मों को लेकर खास जिज्ञासा रहती है इसलिए उन्हें हमारी फिल्म से उम्मीद भी अधिक रहती है। आमिर ने गजनी सहित अपने फिल्मी जीवन और नई योजनाओं पर खुलकर उद्गार व्यक्त किए।
-कहा जा रहा है कि आमिर खान ने 'गजनी' के प्रचार में बाजी मार ली है। यह कितना सचेत प्रयास है?
<>जहां तक बाजी मारने की बात है तो उसके लिए फिल्म रिलीज होने दीजिए। हां, हाइप जरूर है। वह शायद इसलिए है कि मेरी फिल्में साल में एक दफा आती हैं तो लोगों की जिज्ञासा रहती है। मेरे मामले में दर्शकों की उम्मीद हर फिल्म के साथ बढ़ती जा रही है। पिछली फिल्म उन्हें अच्छी लगती है तो वे अगली फिल्म से और ज्यादा उम्मीद करते हैं। 'गजनी' से ज्यादा उम्मीद इसलिए है कि मैं लंबे वक्त के बाद पूरी तरह से एंटरटेनर फिल्म कर रहा हूं। मेरे लिए 'गजनी' का अनुभव अलग रहा है। दर्शक भी मान रहे हैं कि उनके लिए 'गजनी' देखना अलग अनुभव होगा। दर्शकों ने लंबे समय से कोई एक्शन थ्रिलर नहीं देखा है। मुझे लगता है कि पूरा हाइप इन सारी स्थितियों का मिला-जुला असर है। इसकी मार्केटिंग जरूर अलग ढंग से की जा रही है, क्योंकि इसमें संभावनाएं बहुत हैं। 'तारे जमीन पर' छोटी फिल्म थी तो उसकी मार्केटिंग अलग ढंग से की गई। मैं हमेशा मानता हूं कि जिस तरह की फिल्म है, हमेशा उसी अनुपात में सच्चाई से मार्केटिंग करनी चाहिए।
-ऐसा कहा गया कि आमिर खान ने सलमान खान से दोस्ती निभाई और शाहरुख खान की फिल्म के समय अपनी फिल्म का प्रचार झोंक दिया। क्या किसी को हराने का मन रहता है?
<>किसी को हराने में मेरी कोई रुचि नहीं है। मैं कभी नहीं चाहूंगा कि किसी का बुरा हो। हमारी सोच में ऐसी बात नहीं है, इसलिए किसी का बुरा नहीं होगा। हमारी वजह से किसी का नुकसान नहीं होगा। मल्टीप्लेक्स के कर्मचारियों ने 'गजनी' का लुक अपनाया। जो भी दर्शक 'रब ने बना दी जोड़ी' देखने गया, उसे 'गजनी' के लुक में कर्मचारी दिखे। टिकट खरीदने से लेकर सीट पर बैठने, पॉपकार्न खरीदने और बाहर निकलने तक 'गजनी' लुक के कर्मचारी दिखे। इससे 'रब ने बना दी जोड़ी' के दर्शक कम नहीं हुए। ऐसा तो नहीं हुआ कि वे सिनेमाघरों में 'गजनी' के लुक में कर्मचारियों को देख का लौट गए। हमेशा चल रही फिल्म के साथ आने वाली फिल्म की पब्लिसिटी की जाती है। दर्शक 'युवराज' देखने गए होंगे तो 'रब ने बना दी जोड़ी' का ट्रेलर दिखा होगा। मेरी फिल्म आएगी तो 'चांदनी चौक टू चाइना' का ट्रेलर दिखेगा। थिएटर में ट्रेलर, बाहर में पोस्टर दिखेंगे ़ ़ ़ प्रचार का यह पारंपरिक तरीका है। हमने एक नया रूप दिया कि आप आएंगे तो आपको 'गजनी' के लुक में कर्मचारी दिखेंगे। हर फिल्म के साथ ऐसा प्रचार नहीं हो सकता। 'गजनी' का एक खास स्ट्रांग लुक है, जो बहुत पहले से दर्शकों के बीच लोकप्रिय है। थिएटर के कर्मचारियों को 'गजनी' का लुक देना ट्रेलर दिखाने जैसा ही है। इस समय 'रब ने बना दी जोड़ी' के बजाय कोई और फिल्म होती तो भी हम यही करते। हमारी कोशिश यह नहीं कि किसी को नुकसान पहुंचाएं। हम अपना प्रचार कर रहे हैं। हमारी सारी कोशिश अपनी फिल्म के मद्देनजर है। हम नहीं चाहेंगे कि हमारी पब्लिसिटी से किसी का नुकसान हो जाए।
-क्या किसी कर्मचारी ने 'गजनी' लुक रखने से इंकार किया?
<>मेरी जानकारी में ऐसी कोई सूचना नहीं आई है। यह थोपा नहीं गया है। इसे थोपा नहीं जा सकता और न मैं चाहूंगा कि थोपा जाए। मैं स्वयं कुछ थिएटरों में गया था। वे बहुत खुश और उत्साहित दिखे। अगर कोई 'गजनी' लुक नहीं रखना चाहे तो ठीक है। मेरे नजर में ऐसा कोई मामला नहीं आया। मैं इसमें सीधे तौर पर शामिल नहीं हूं। फिर भी अगर कहीं कुछ हुआ होता तो मेरी टीम मुझे बताती। ऐसा प्रचार लोगों की खुशी और सहभागिता से ही होता है। थिएटर के मैनेजर ऐसा प्रचार करते रहते हैं। वे पॉपकॉर्न के डब्बे या और चीजों पर आगामी फिल्म की तस्वीरें लगाते हैं। यह नया आइडिया था। थिएटर में तो हम लोगों ने किया, लेकिन पब्लिक तो बहुत पहले से 'गजनी' लुक में घूम रही है। थिएटर के मैनेजर 'गजनी' को इवेंट फिल्म के तौर पर देख रहे हैं। इसी कारण वे जोश में बहुत कुछ कर रहे हैं।
-पिछले छह-सात सालों में आप ने जैसी फिल्में की हैं, गजनी उनसे बिल्कुल अलग समझी जा रही है। यह किस रूप में अलग है?
-सबसे पहले तो यह मेरी पहली एक्शन थ्रिलर फिल्म है। मैंने पहले भी कहा कि लंबे वक्त के बाद एंटरटेनर फिल्म कर रहा हूं। तीसरी वजह यह है कि लंबे समय के बाद एक्शन फिल्म आ रही है। इधर आपने एक्शन फिल्में नहीं देखी होंगी। आजकल कामेडी ज्यादा बन रही है और कुछ रोमांटिक फिल्में आ जाती हैं। एक्शन फिल्में बंद हैं। बहुत सालों से लोगों ने प्योर एक्शन फिल्म नहीं देखी है।
-पूरा देश मुंबई हमले के बाद निराशा और हताशा के दौर से गुजर रहा है। इस माहौल में बदले की भावना पर आधारित आक्रामक एक्शन फिल्म 'गजनी' से दर्शकों को राहत मिल सकती है। कुछ लोगों का मानना है कि इससे 'गजनी' को फायदा होगा। आप क्या सोचते हैं?
-हमने ऐसी कोई प्लानिंग नहीं की थी। ऐसे हादसों के बारे में सोच भी नहीं सकते। हम दो सालों से इस फिल्म में लगे थे। मुंबई का हादसा बहुत दर्दनाक है। ऐसे आतंकी हमले पहले भी हुए हैं। बनारस में हुआ, मुंबई के लोकल ट्रेन में बम धमाके हुए और भी जगहों पर हुए। इस बार का मंजर अलग है। पहले बम रखकर आतंकी छिप जाते थे। अब वे खुलेआम चुनौती दे रहे हैं। यह बहुत ही खतरनाक हादसा है। हम सभी इससे दुखी हैं। मैं एकदम निराशा में चला गया था। हमने इतने जोश और रुचि से फिल्म बनाई थी, लेकिन ताजा माहौल में कुछ कहने या करने का मन नहीं हो रहा था। इस खतरनाक हादसे से हमें डरने की नहीं, जूझने की जरूरत है। यह हमें प्रभावित तो करे, लेकिन वैसे नहीं जैसे कि वे चाहते हैं। यह हमें प्रभावित करे कि हम सही तरीके अपनाएं। हम निराश होकर उम्मीद न छोड़ें। हमारी फिल्म बदले के बारे में है। आज लोगों में नाराजगी है, गुस्सा है, एक आग है, बदले की भावना और आक्रोश है ़ ़ ़ संयोग से ऐसे समय में 'गजनी' आ रही है। इस संयोग से मुझे खुशी नहीं हो सकती है कि फिल्म की भावना से उनका इमोशन जुड़े, लेकिन मुझे दर्द है कि यह हादसा हुआ।
-यह आपकी पहली रीमेक फिल्म होगी। कैसी सावधानी बरतनी पड़ी या चुनौतियां रहीं?
<>मैंने मूल फिल्म में काम नहीं किया है, इसलिए रीमेक फिल्म भी मेरे लिए ताजा अनुभव है। किसी दूसरी नई फिल्म करने जैसा ही जोश है, क्योंकि मेरे लिए यह नई फिल्म ही है। मेरी तरफ से यह सावधानी रही कि मूल फिल्म के हीरो सूर्या की नकल न करूं। सूर्या ने बहुत अच्छा काम किया है, लेकिन यह मेरी प्रस्तुति है। समान स्थितियों में मैं कैसे अपने इमोशन व्यक्त करता हूं ़ ़ मैंने उस पर ध्यान दिया है। डायरेक्टर के लिए ज्यादा मुश्किल रही होगी, क्योंकि वह इसे एक दफा बना चुका है। अब वही चीज वह दोबारा बना रहा है। अगर कोई मुझसे कहे कि 'तारे जमीन पर' दोबारा बनाओ तो मेरा जवाब होगा कि जो इमोशन थे, उन्हें मैं जाहिर कर चुका हूं। अब दोबारा क्या करूं? डायरेक्टर को खुद को रीचार्ज करना था। उसे पहले की तरह ही जोश बनाए रखना था। मुरूगदौस ने यह काम बखूबी किया है। उनमें बच्चों जैसा जोश है। चौदह साल के बच्चे का कौतूहल है उनमें। उनमें गजब की ऊर्जा है।
-मूल फिल्म से क्या चीजें बदली गई हैं?
<>फिल्म के आखिरी 30 मिनट ताजा हैं। वे मूल की तरह नहीं हैं। यह एक बड़ा बदलाव है।
-आपके बुकशेल्फ पर दार्शनिक नीत्से की चार किताबें हैं? कोई खास लगाव है क्या उनके लेखन और दर्शन से?
<>मेरे ख्याल में वे रोचक व्यक्ति थे। उनकी बातों में नवीनता है। मैंने एक किताब पढ़ी थी-ह्वेन नीत्से वेप्ट, जो किसी और ने उनकी जिंदगी के बारे में लिखी है। एक डा. बू्रयेर थे, जो फ्रायड के सीनियर थे। फ्रायड को मनोविश्लेषण का जनक कहा जाता है। डा. बू्रयेर उनके भी बाप हैं। यह किताब ब्रूयेर और नीत्से की बातचीत पर आधारित काल्पनिक किताब है। दोनों कभी मिले नहीं थे। लेखक ने दोनों की जिंदगी पर रिसर्च कर यह किताब लिखी थी। वह किताब मुझे बहुत ही अच्छी लगी थी। उसके बाद नीत्से में मेरी रुचि जगी। मैंने उन्हें पढ़ा कि वे कैसे दार्शनिक हैं?
-क्या उनके दर्शन से आप प्रभावित हुए?
<>उन्होंने काफी क्रांतिकारी बातें की हैं। मैं उनकी सारी अवधारणाओं से सहमत नहीं हूं। लेकिन उन्हें पढ़ना अच्छा लगता है।
-आप खुद बदले की भावना में यकीन रखते हैं क्या?
<>मैं अहिंसक व्यक्ति हूं। हिंसा में मेरा यकीन नहीं है। बदले की भावना का हम अपनी जिंदगी में अनुभव करते हैं। अलग-अलग वक्त पर ऐसा लगता है कि यार, इस आदमी ने इतना गलत किया है। इसका हमें बदला लेना है। जरूरी नहीं है कि उसकी जान ही लें। मन में उसे दुख पहुंचाने की भावना हो सकती है। हम सभी इस भावना से आवेशित होते हैं। कई बार यह उचित भी होता है। मैं व्यक्तिगत तौर पर बदले में यकीन नहीं रखता।
-कहते हैं एक्टिंग अपने अनुभवों को जीना है। फिर मूल रूप से अहिंसक होने पर 'गजनी' जैसी फिल्म कैसे कर पाए आप?
<>यही तो चुनौती है। एक्टर को कुछ ऐसा करने को मिले, जिसमें वह व्यक्तिगत तौर पर यकीन नहीं करता तो वह बड़ी चुनौती होती है। मैं रियल लाइफ में बदले में यकीन नहीं करता, लेकिन ऐसी भूमिका कैसे निभाऊंगा? वह एक अलग चुनौती है। 'गजनी' की बात करें तो उसकी जिंदगी में एक बड़ी चीज हुई और उसके बाद उसका दिमाग बदले के रास्ते पर निकल पड़ा। अगर मेरी जिंदगी में कहीं ऐसा हो गया तो मालूम नहीं कैसे रिएक्ट करूंगा या आप कैसे रिएक्ट करेंगे? अगर इतना बड़ा हादसा हमारी जिंदगी में हो तो हम सच्चाई से नहीं कह पाएंगे कि क्या करेंगे? क्या हमारे अंदर भी बदले की भावना जागेगी?
-आपने पत्रकारों से तस्वीरें मंगवाईं और याद किया कि उनसे पहली बार कब मिले थे। आपकी सटीक याद से पत्रकार चौंके हुए हैं और उन्हें लगता है कि फिर तो आपको उनकी कही या लिखी हर बात याद होगी?
<>आप के बारे में सही लिखा है न मैंने। चूंकि 'गजनी' में याददाश्त की बात है तो मेरी पीआर टीम ने यह चुनौती रखी कि चलिए आपकी याददाश्त जांचते हैं। मुझे भी यह अभ्यास रोचक लगा। यह आइडिया अच्छा रहा। अभी तक किसी ने नहीं कहा कि मैंने गलत लिखा है।
-यह कैसे संभव हुआ? क्या आपकी याददाश्त इतनी तेज है?
<>काफी हद तक मेरी यादों ने मेरा साथ दिया। कुछ चीजें मैंने रिसर्च भी की। कुछ पत्रकारों के लेख फिर से पढ़े। जिनसे नहीं मिला हूं, उनके बारे में जानने की कोशिश की। उनके लेखन को समझा।
-कहा जा रहा है कि आमिर खान मीडिया प्रेमी हो गए हैं। इससे कितना फायदा हुआ है?
<>इससे मुझे भावनात्मक फायदा हुआ है। जब मैंने तय किया था कि मीडिया से बात नहीं करूंगा, तब मैं परेशान था और मीडिया से बात नहीं कर रहा था। मेरी व्यक्तिगत परेशानियां थीं। उन दिनों मीडिया में 90 प्रतिशत मेरे खिलाफ ही लिखा या बताया जा रहा था। यह सोच कर कि यह खुद को समझता क्या है? मेरी तरफ से ऐसा कुछ भी नहीं था, लेकिन कहीं एक गैप था। तब मेरी सफलताओं को कम और असफलताओं को बड़ा कर के बताया जाता था। सफलता-असफलता से परे मेरे बारे में कुछ न कुछ बुरा ही रहता था। निगेटिव बातें होती थीं। मैंने अपनी तरफ से कोशिश की और इसे सुधारा। अभी 80 प्रतिशत कमी आ गई है। एक सुकून मिलता है। मैं सकारात्मक इंसान हूं। मुझे निगेटिव चीजें नहीं लेनी है। मैं दिल में क्यों निगेटिव बातें रखूं। और क्यूं मैं निगेटिव भावनाएं पालूं।
-कहते भी हैं कि नफरत निभाना ज्यादा मुश्किल काम है। मोहब्बत में तो सिर्फ मुस्कराना पड़ता है ़ ़ ़
<>बिल्कुल सही कहा है। नफरत मेरे स्वभाव में नहीं है। पहले मैं चुप रहता था और मुझे मीडिया के डंडे पड़ते थे। अभी बातें करता हूं तो डंडे कम हो गए हैं।
-मूल 'गजनी' देखने पर पूरी फिल्म थोड़ी क्रूर और हिंसक लगती है?
<>मैं तमिल के दर्शकों के बारे में नहीं जानता। मैं अपने दर्शकों के बारे में जानता हूं। उनके लिए मैं 20 सालों से फिल्में बना रहा हूं। मेरी कोशिश रही है कि हिंदी की 'गजनी' हिंदी दर्शकों की सोच-समझ के साथ चले। कैमरामैन रवि चंद्रन हैं। वे हिंदी फिल्मों के मशहूर कैमरामैन हैं। रहमान के बारे में सभी जानते हैं। इस फिल्म से जुड़े सभी कलाकार और तकनीशियन मूल रूप से हिंदी सिनेमा की समझ रखने वाले हैं। मुझे लगता है कि उसका असर होगा फिल्म पर।
-रोमांटिक गीत में आपकी एट पैक बॉडी दिखाई गई है। रोमांस तो बहुत नरम ख्याल है। उसमें शरीर सौष्ठव दिखाने की क्या जरूरत थी?
<>इस फिल्म के लिए मैंने बॉडी बनाई थी। फिल्म के कैमरामैन, डायरेक्टर और कोरियोग्राफर अहमद खान को मेरी बॉडी पसंद आई। उन्होंने कहा कि अरे यार बटन खोलो। तो एक-एक कर के सारे बटन खुल गए। ऐसा नहीं सोचा गया था कि गाने के लिए बॉडी बनानी है और उसे दिखाया है।
-क्या आपको उनके सुझाव सही लगे?
<>हां, मुझे आपको कोई दिक्कत नहीं थी। 'बहका' और 'गुजारिश' गाने पर जो प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं, उनसे लगता है कि लोगों को अच्छा लग रहा है। मुझे इस रूप में देख कर लोगों को अच्छा लग रहा है।
-किस विधा की फिल्म कहेंगे इसे? रोमांटिक, रोमांटिक थ्रिलर या एक्शन थ्रिलर?
<>यह एक्शन थ्रिलर है, जिसमें रोमांटिक और इमोशनल तत्व हैं।
-असिन को रखने की सबसे बड़ी बात क्या रही?
<>असिन ने मूल में अद्भुत काम किया है। मेरा एक ही सवाल था कि असिन को हिंदी आनी चाहिए। हमने पता किया तो मालूम हुआ कि उनकी हिंदी अच्छी है। इस फिल्म की शूटिंग सिंक साउंड में हुई है। कोई भी संवाद डब नहीं किया गया है। उनके उच्चारण में दक्षिण का टोन नहीं है।
-निर्देशक मुरूगदौस को जिम्मेदारी देने की वजह क्या रही?
<>मैंने यह फिल्म उनकी वजह से ही की। मैंने 'गजनी' देखी तो मुझे पसंद आई थी। शुरू में मैं निश्चित था, लेकिन डायरेक्टर से मिलने के बाद मैंने तय किया कि फिल्म करूंगा। उसकी दो वजहें हैं। एक तो डायरेक्टर जब मुझसे मिलने आए तो उन्होंने कहा कि हिंदी रीमेक में अंत का आधा घंटा सुधारना और बदलना है। उनकी यह बात जंची, क्योंकि मैं स्वयं वैसे ही सोच रहा था। उनसे सुनकर लगा कि हम दोनों एक ही तरह से सोच रहे हैं। दूसरी चीज उनकी एनर्जी थी। उनमें बच्चों जैसी ऊर्जा है। उनकी आंखों में चमक है। मुझे लगा कि यह बंदा कुछ अलग है। मुझे इनके साथ काम करना चाहिए।
-अब तो आप घोषित रूप से निर्देशक बन गए हैं। एक धारणा है कि आमिर खान निर्देशक के काम में काफी हस्तक्षेप करते हैं?
<>इसमें सच्चाई नहीं है। हां, निर्देशक की अपनी समझ से मैं निर्देशक को एक ही सीन दो-तीन तरीके से कर के बता सकता हूं। बताता भी हूं। अगर मेरी काबिलियत ज्यादा है तो उससे डायरेक्टर को मदद ही मिलती है। इस तरह मैं अपने किरदार को विभिन्न स्तरों और ऊंचाइयों पर ले जा सकता हूं। लेखक की लिखी कहानी को निर्देशक किसी और लेवल पर ले जाता है। उसी प्रकार डायरेक्टर की सोच को एक्टर बढ़ा सकता है। 'तारे जमीन पर' करते समय मैं दृश्य के बारे में एक ढंग से सोचता था। लेकिन दर्शिल उसे मेरी उम्मीद से बेहतर कर देता था। उसकी छलांग से मुझे खुशी होती थी। मैंने इधर जितने भी निर्देशकों के साथ काम किया चाहे वे मुरूगदौस हों, फरहान अख्तर, राकेश मेहरा, जॉन मैथ्यू या आशुतोष हों ़ ़ सभी के साथ मेरे अनुभव बहुत अच्छे रहे।
-क्या आपने यह फिल्म कुछ अलग करने या क्रिएटिव स्वाद बदलने की गरज से की?
<>मैं सिर्फ अलग करने की गरज से कोई फिल्म नहीं करता। फिल्म की कहानी में मैं अपना एकसाइटमेंट देखता हूं। स्वाभाविक तौर पर मैं अलग ही चीज सुनता हूं। कोई एक फिल्म कर चुका हूं तो उसकी विषय की फिल्म के बारे में नहीं सोचता। मैं अलग चीज खोजता नहीं हूं। मुझे अलग चीज आकर्षित करती है। यह फिल्म मैंने इसलिए की कि इसकी कहानी, भावना और प्रस्तुति पसंद आई। इसकी पटकथा जबरदस्त है। डायरेक्टर तो पसंद थे ही।
-कामेडी फिल्मों की तरफ कब आ रहे हैं? एक अरसा हो गया है आपको किसी कॉमिक किरदार में देखे।
<>अभी मैं राजकुमार हिरानी की जो फिल्म कर रहा हूं। उसमें कामेडी तो नहीं, लेकिन काफी ह्यूमर है। 'थ्री इडियट्स' जिंदगी के बारे में है और उसमें काफी ह्यूंमर है। राजू के साथ काम करने में बहुत मजा आ रहा है। राजू बहुत अच्छे निर्देशक हैं।
-क्या यह चेतन भगत की किताब पर आधारित है?
<>चेतन भगत की किताब पर राजू ने काम किया और इस फिल्म की कहानी विकसित की। मैंने किताब नहीं पढ़ी है, इसलिए नहीं बता सकता कि क्या अलग है? राजू ने बताया था कि उन्होंने चेतन की किताब में काफी कुछ जोड़ा। अगर आपने किताब पढ़ी हो तो शायद फिल्म अलग लगे, क्योंकि राजू ने इसमें अपना भी कुछ डाला है।
-आपकी पत्नी किरण राव की फिल्म 'धोबीघाट' की क्या स्थिति है?
<>उसे किरण स्वयं प्रोड्यूस कर रही हैं। उन्होंने इसका लेखन, निर्देशन और निर्माण किया है। उनके जीवनसाथी होने की वजह से मैं उन्हें हर प्रकार का सहयोग देना चाहता हूं। आमिर खान प्रोडक्शन इसे प्रस्तुत कर रहा है। तकनीकी रूप से मैं निर्माता नहीं हूं। 'धोबीघाट' संबंधों की कहानी है। मुंबई के बारे में है। इस शहर की जिंदगी इसमें मिलेगी। उसके अलग पहलू हैं। चार जिंदगियां एक मोड़ पर आकर जुड़ती हैं।
-आमिर खान प्रोडक्शन में क्या नया हो रहा है?
<>हमलोग 'देहली बेली' बना रहे हैं। उसके अलावा एक और फिल्म अनुषा रिजवी की है। 'देहली बेली' अंग्रेजी में बनी कामेडी फिल्म होगी। अनुषा की फिल्म ग्रामीण भारत की कहानी है। किसी ने गलत लिख दिया कि वह किसानों की आत्महत्या पर है। फिल्म आज के गाव की कहानी है। गांव की जिंदगी, स्थानीय प्रशासन, स्थानीय राजनीति और उस राजनीति का राष्ट्रीय राजनीति से संबंध और मीडिया ़ ़ इन सभी को मिलाकर अनुषा ने एक व्यंग्य लिखा है, लेकिन यह वास्तव में ग्रामीण भारत की कहानी है। मैं दोनों में एक्ट नहीं कर रहा हूं।
-एक्टर, डायरेक्टर और प्रोड्यूसर आमिर खान फिर एक साथ कितनी जल्दी आ रहे हैं?
<>टाइम ही नहीं मिला। 'तारे जमीन पर' के बाद मैं 'गजनी' में लग गया। 'गजनी' अभी रिलीज होगी और जनवरी से 'थ्री इडियट़्स' की शूटिंग आरंभ हो जाएगी। मेरा खयाल है कि राजू की फिल्म पूरी होने के बाद मैं इत्मीनान से सोचूंगा कि मेरी अगली फिल्म कौन सी होगी?
-आपकी उम्र बढ़ रही है। क्या कभी यह ख्याल आया कि अपने बारे में नए सिरे से सोचें?
<>मेरी कोशिश है कि मैं जवान दिखूं। उम्र तो बढ़ेगी ही। उम्र के साथ एनर्जी लेवल बदलती जाती है। जवानी में अनुभव कम होता है। अभी मेरी उम्र 43 है और मुझे 20 सालों का अनुभव है। मेरी एनर्जी अभी तक पहले जैसी है। उसमें कमी नहीं आई है। रोल की बात करूं तो मैंने हमेशा अलग-अलग किस्म के रोल की चुनौती स्वीकार की है। उम्र मेरे लिए बाधा नहीं है। अगर मुझे अस्सी साल के व्यक्ति की भूमिका मिले तो मैं वह करना चाहूंगा। रोल और डायरेक्टर पसंद आने के बाद अगर मुझे लगेगा कि मैं उस किरदार को निभा पाऊंगा, तभी हा कहूंगा। मुझे संतोषी ने 'भगत सिंह' ऑफर की थी। मुझे लगा था कि मैं उसे नहीं कर सकता। भगत सिंह की सच्चाई थी कि वे अठारह साल के लगें। एक लड़का जो 21 साल की उम्र में फांसी चढ़ जाता है, वह अठारह साल की उम्र में कैसा रहा होगा? उसकी बात का अलग वजन होगा। भगत सिंह ऐतिहासिक किरदार थे और उस किरदार का एक बड़ा फैक्टर उनकी उम्र थी। उस उम्र में वे वैसी बातें कर रहे थे और बलिदान के लिए तैयार थे। एक्टर के तौर पर मैं भगत सिंह का किरदार कर सकता हूं, लेकिन उनकी उम्र को मैं सच्चाई से पर्दे पर नहीं ला सकता था।
-इस स्थिति के बारे में क्या कहेंगे कि हिंदी फिल्मों में हीरो की स्क्रीन एज लंबी होती है। लेकिन हीरोइनों की उम्र कम होती है?
<>यह हम तय नहीं करते। यह दर्शकों की पसंद पर निर्भर करता है। अगर दर्शक किसी कलाकार को पसंद करते हैं तो वह एक्टर हो कि एक्ट्रेस ़ ़ ़ डायरेक्टर और प्रोड्यूसर उसे काम देंगे। दर्शकों की रुचि कम हो जाएगी तो एक्टर को काम मिलना बंद हो जाएगा। हां,लेकिन आपकी बात सच है कि हीरोइनों की पर्दे पर उम्र कम होती है।
-हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की वर्तमान स्थिति के बारे में क्या कहेंगे?
<>फिल्म बिजनेस हमेशा रियलिस्टिक होना चाहिए। सही आंकड़ों का इस्तेमाल होना चाहिए। जो प्रस्ताव या योजना व्यावहारिक नहीं है, उसके ख्वाब देखने से नुकसान ही होगा। मेरी सोच हमेशा यही रही है। मैं मानता हूं कि अगर कोई निर्माता मुझ से कमाता नहीं तो मेरी जिम्मेदारी पूरी नहीं होती। मेरे लिए यह यह गर्व की बात है कि मेरा निर्माता मुझ से कमाता है। मेरा वितरक मुझ से कमाता है। प्रदर्शक कमाता है। मैं इसे बहुत महत्व देता हूं। जीवन का मेरा यह सिद्धांत है कि अगर मैं किसी चीज से जुड़ता हूं तो जो लोग मुझे जोड़ रहे हैं, उन्हें संतुष्टि मिलनी चाहिए। उन्हें संतुष्टि तभी मिलेगी, जब उन्हें लाभ होगा। फिल्म इंडस्ट्री में जो कोई भी मेरे साथ काम करे, वह फायदे में रहे। मैं यही चाहता हूं और उसकी कोशिश करता हूं।
-छोटी फिल्मों की सफलता के बारे में क्या कहेंगे?
<>मुझे लगता है कि यह बहुत ही अच्छी बात है। अलग-अलग विषयों पर फिल्में बन रही हैं। इससे हमारे दर्शक बढ़ेंगे। हमारा सिनेमा और ज्यादा सेहतमंद होगा। बड़ी फिल्में तो बनती रहेंगी। फिल्में वही चलती हैं, जो सही बनती हैं और अच्छी चलती है। फिर वह बड़ी हो या छोटी। अभी 'तारे जमीन पर' को क्या बोलेंगे? एक तरह से वह छोटी फिल्म थी। क्योंकि बड़े पैमाने पर नहीं बनी थी। लेकिन सफलता की बात करें तो वह बड़ी सफल रही। उसे छोटी या बड़ी फिल्म कहेंगे? मैं अब कह सकता हूं कि वह बड़ी फिल्म है, क्योंकि वैसी सफलता शायद ही किसी और को मिली होगी। सिर्फ कमाई के लिहाज से से ही नहीं, सराहना के लिहाज से भी। मेरे लिए फिल्म छोटी या बड़ी नहीं होती। मेरे लिए जरूरी है कि आप क्या कह रहे हैं। फिल्म का बजट उसकी जरूरत के हिसाब से होना चाहिए। क्या वह जरूरत व्यावहारिक है? हर फिल्म का अपना अर्थशास्त्र होता है।
-छोटी फिल्म का मतलब है-नॉन स्टार, अपारंपरिक विषय, सीमित बजट और नई शैली ़ ़ ़
<>जी, मैं समझ रहा हूं। मैं वैसी फिल्में प्रोड्यूस कर रहा हूं। मैं खुद छोटा निर्माता हूं। मेरी दोनों फिल्में छोटी और सामान्य है। 'देलही बेली' अंग्रेजी में है। अंग्रेजी में बनने से दर्शक वैसे ही घट जाते हैं। अनुषा की फिल्म ग्रामीण भारत पर है। उसमें नाच, गाना, एक्शन, रोमांस थ्रिलर नहीं है। वह मुद्दे पर आधारित फिल्म है। भारत में ऐसी फिल्म आपने नहीं देखी होगी। मैं स्वयं वैसी फिल्में बना रहा हूं। मैं उनमें अभिनय नहीं कर रहा हूं। मुझे लगता है कि अनुषा की कहानी पसंद है तो उस पर फिल्म बननी चाहिए। अब उस पर ठीक बजट में फिल्म बने और सभी को लाभ हो।
-लेकिन क्या आमिर खान किसी छोटी फिल्म का हिस्सा हो सकते हैं? उनके आते ही फिल्म बड़ी हो जाती है। इसमें उनकी फीस शामिल हो जाती है।
<>क्यों नहीं बन सकती? हो सकता है कि उस फिल्म के लिए मैं अपनी फीस ही न लूं।
-मल्टीप्लेक्स संस्कृति की वजह से भारत के छोटे शहरों की तरफ निर्माता ध्यान नहीं दे रहे हैं। क्या फिर से ऐसी फिल्म बन सकती है, जो पूरे भारत में एक सी पसंद की जाए।
<>इसके कई कारण हैं। ग्रामीण और शहरी भारत का फर्क सिर्फ एंटरटेनमेंट में नहीं रह गया है। हर पहलू में नजर आ रहा है। यह अच्छी बात नहीं है। दूसरी चीज ़ ़ हिंदी प्रदेशों से सही कलेक्शन नहीं आता। वहां इतनी चोरी होती है। ऐसी स्थिति में प्रोड्यूसर सोचता है कि क्यों अपना वक्त बर्बाद करें। बिहार से हमें सही आंकड़ा नहीं मिलता तो मैं क्यों परवाह करूं। कुछ हद तक थिएटरों के मालिक और वहां के वितरकों की जिम्मेदारी है। वे वहां एक्टिव हैं। वे जिम्मेदारी निभा सकते हैं। मुंबई के प्रोड्यूसर को रिटर्न नहीं मिलेगा तो वह फिल्म नहीं बनाएगा। फिल्म का बाजार या कोई भी बाजार लाभ की शर्तो पर चलता है। अगर मैट्रो और मल्टीप्लेक्स से फायदा दिख रहा है तो वहां की फिल्में बन रही है। हालांकि मैं स्वयं बाजार के नियमों का पालन नहीं करता, लेकिन में अकेला हूं। मैं अपनी सोच और भावनाओं से चलता हूं। अपनी सोच के बावजूद मैं निर्माता को गलत नहीं कह सकता। क्योंकि जो पैसे लगा रहा है, उसे पैसे वापस चाहिए। बाजार को बदलना जरूरी है। छोटे शहरों से आय दिखे तो बदलाव आएगा।
- ऐसा लग रहा है कि 'गजनी' शहर-देहात के दर्शकों को समान रूप से पसंद आएगी?
<>बिल्कुल। लंबे अरसे के बाद ऐसी फिल्म आ रही है। जिसे हम सही मायने में यूनिवर्सल एंटरटेनर कह सकते हैं। इसमें संभावना है। 'गजनी' ए, बी और सी सभी श्रेणियों के दर्शकों को पसंद आएगी। 'गजनी' दर्शकों की जरूरत पूरी करेगी।
-दर्शकों का प्रोफाइल भी बदला है। पहले मुख्य रूप से मध्यवर्ग ही सिनेमा का दर्शक था। अब यह मल्टीप्लेक्स के जरिए उच्चवर्ग की चीज होती जा रही है?
<>शायद आप सही कह रहे हैं।
-क्या आप मानेंगे कि सिनेमा समाज का आईना है और उसे यह जिम्मेदारी निभानी चाहिए?
<>फिल्मों का मुख्य उद्देश्य दर्शकों का मनोरंजन करना है। अक्सर सिनेमा में समाज का प्रतिबिंब दिखाई पड़ता है, लेकिन यह उनका उत्तारदायित्व नहीं है। कैसी भी फिल्म बनाकर मैं दर्शकों का मनोरंजन कर सकता हूं। कुछ फिल्में समाज को दिखाती हैं और कुछ फिल्में सिर्फ मनोरंजन करती हैं। दोनों तरह की फिल्में बनती रही हैं और आगे भी बनती रहेंगी। यह फिल्मकार और एक्टर की पसंद पर निर्भर करता है। मैंने अपने ढंग से फिल्में चुनीं। कोई और किसी और ढंग से चुनेगा। हर क्रिएटिव इंसान अलग होता है।
-क्या एक्टिंग खुद के लिए ही करनी चाहिए। कहते हैं आम उपयोग के माध्यमों में अपनी पसंद नहीं थोपनी चाहिए।
<>आपकी बात में एक हद तक वह सच्चाई है कि हमें कुछ भी थोपना नहीं चाहिए। मैं अलग तरह से कहूं तो सिनेमा हमारे सपनों को संतुष्ट करता है। यह हमारे सपनों की अभिव्यक्ति है। जो चीज हमें अपनी निजी जिंदगी में नहीं मिलती, उसे पर्दे पर देख कर हम प्रभावित होते हैं। हमारी रुचि बनती है। मान लीजिए कि मैं एक ऐसे परिवार से हूं, जहां हम सभी एक साथ नहीं रहते। भारत के शहरों में संयुक्त परिवार बिखर चुका है। लिहाजा 'हम आपके हैं कौन' आती है तो सुपर-डुपर हिट होती है। वह इसलिए हिट नहीं होती कि हिंदुस्तानी फैमिली वैसी ही है। 'हम आपके हैं कौन' में हमारी इच्छाएं पूरी होती हैं। सुपरमैन को देख कर मजा आता है। जो चीजें हमारी जिंदगी में नहीं होती हैं, उन्हें पर्दे पर पाकर हम खुश होते हैं। उसे जी लेते हैं।
Comments
इंटरव्यू काफी विस्तत है। कई नई चीजें पता चलीं।
शुक्रिया