गीतकार तो अभिमन्यु होता है - जयदीप साहनी


'रब ने बना दी जोड़ी' के गीत जयदीप साहनी ने लिखे हैं। वे यशराज फिल्म्स की 'चक दे' से ज्यादा चर्चा में आए। वैसे याद करें तो 'जंगल' भी उन्होंने लिखी थी। अभी तक छह फिल्में लिख चुके जयदीप साहनी ने बारह फिल्मों में गीत भी लिखे हैं। पेश है एक बातचीत :-


हिंदी फिल्मों में सक्रिय चंद प्रतिभाशाली और प्रयोगशील क्रिएटिव दिमागों में से एक आप हैं। क्या आप सचमुच क्रिएटिव योगदान कर पा रहे हैं?
0 अपना क्रिएटिव योगदान कोई खुद कैसे आंक सकता है। मेरा निजी अनुभव रहा है कि प्रोडयूसर, डायरेक्टर, अभिनेता और टेक्नीशियन की तरह आपके योगदान को भी सराहा जाता है। अपने विषयों और किरदारों को फिल्म उद्योग की टेढ़ी-मेढ़ी गलियों से गुजारते हुए आम आदमी तक पहुंचाने की जिम्मेदारी आप नहीं लेंगे तो भला दूसरा कोई क्यों लेगा?


- यशराज फिल्म्स के साथ ही सीमित रहने से आपकी संभावनाएं सीमित नहीं होतीं क्या?
0 खास नहीं। यशराज एक खास तरह के सिनेमा के लिए जाना जाता है। लेकिन उन्होंने 'चक दे' जैसी फिल्म जोखिम के बावजूद बनायी। 'मैंने गांधी को नहीं मारा' को बिना शोर-शराबे के फायनेंस किया और 'माई ब्रदर निखिल' वितरित की। प्रोडयूसर मात्र बिजनेसमैन न रहकर फिल्मों से प्यार करने लगे तो काम का माहौल अलग होता है। यह मेरा निजी अनुभव है, फिर चाहे वे राम गोपाल वर्मा हों या यशराज।


- गीतों में भाव अधिक महत्वपूर्ण है या लय?
0 गीत अपने जन्म से ही भाव और लय का संगम है। यह शायरी से अलग है। भाव और लय में से एक भी फीका पड़े तो गीत फीका पड़ जाता है। आम आदमी अपनी जिंदगी में फिल्मी गीतों को शायरी से अलग ढंग से सुनता और सराहता है।- प्रसून जोशी, स्वानंद किरकिरे और आप ने हिंदी फिल्मों को नए शब्दों और पदों से परिचित कराया। यह अनायास हुआ है या इसके पीछे सचेत सोच है?0 हम अपने वक्त की भाषा में बात कर रहे हैं। हम अपने श्रोता से गीतों के जरिए संवाद करना चाहते हैं। हम ऐसा काम करना चाहते हैं, जो नया हो। उसी कोशिश में नए शब्द, पद और बाकी चीजों के प्रयोग होते हैं। फिल्मों का गीतकार हमेशा से ही लेखकों का अभिनन्यु रहा है। उसके हाथ सौ बेडिय़ां से बंधे रहते हैं। इस बंधन में ही हमारे पुरखे गीतकारों ने काम किया। आप गौर करें कि फिल्मों में गीत केवल दक्षिण एशिया में जिंदा है।


- हिंदी फिल्मों में हिंदी प्रदेशों की संस्कृति का असर कम दिखता है। क्या वजह हो सकती है?
0 मल्टीप्लेक्स संस्कृति के कारण ज्यादातर फिल्में शहरी लोगों के लिए बनने लगी हैं। फिल्मों की लागत मुख्य रूप से शहरों से ही निकलती है। इसे मैं खुशनुमा ट्रेंड नहीं मानता। अपनी संस्कृति और समाज के विषयों और लोगों पर फिल्में गए सालों में कम हो गयी है। हमारे बीच कुछ लेखकों और गीतकारों का मन इसी में लगता है। इधर हमें थोड़ी-बहुत सफलता मिली है। उसके बाद फिल्म जगत के लोगों का विश्वास भी अपने लोगों की कहानियां कहने में कुछ हद तक लौटा है।


- आप निर्देशन के कितने करीब पहुंचे हैं?
0 खास मन नहीं है। अभी बहुत लोगों की कहानियां कहनी है। बहुत से विषय उठाने हैं, जो फिल्मों में जाने क्यों नहीं दिखते और अपनी लेखनी को इस खातिर बहुत ज्यादा सुधारना है - ये ही अपने में टेढ़ी खीर है।


- यशराज के बाहर के लोगों के लिए आदित्य चोपड़ा रहस्य है। आप उनसे मिलते रहे हैं। उनके पर्सनल और क्रिएटिव पहलू के बारे में कुछ बता सकें क्या?
0 आदित्य फिल्म उद्योग के उन विरले लोगों में हैं, जो क्रिएटिव लोगों की भावनाओं और उनके काम की बारीकियों को समझते हैं, क्योंकि वे स्वयं कमाल के लेखक और निर्देशक हैं। वे अपने क्रिएटिव लोगों को जितना प्यार करते हैं, उतना ही अपने दर्शकों से भी प्यार करते हैं, इसलिए वे प्यारा पुल बन जाते हैं।


- आप के प्रिय गीतकार कौन हैं?
0 कई हैं। किस-किस के नाम गिनाऊं। हम खुशकिस्मत हैं कि हमारे सामने गुलजार साहब और जावेद साहब काम कर रहे हैं। गुरदास मान के गीतों से मैं शुरू से प्रभावित रहा हूं। उन्होंने आतंकवाद से लेकर जेनरेशन गैप तक पर लिखा है। दुख है कि पंजाब के बाहर उनके गीत-संगीत को सिर्फ नाचने का सामान समझा जाता है। हर भारतीय भाषा के गीतकार की यही कहानी है। विदेशी गीतकारों में बिली जोयल, जॉन लेनन, बॉब मार्ले, ब्रूस स्प्रिंग्सटीन, ट्रैसी चैपमैन, पीटर गैब्रियल, पिं्रस जैसे गीतकारों ने मुझे नजदीक से छुआ है। दक्षिण के वैरामुत्तु को सुनता हूं तो इस कला पर उनकी पकड़ से हैरान हो जाता हूं। साथियों में स्वानंद, प्रसून और सईद कादरी का काम पसंद हैं। नीलेश मिश्र ने अभी कम गीत लिखे हैं। महबूब को मिस करता हूं। न जाने वे कहां छिप गए हैं। रव्बी शेरगिल की लेखनी में साफगोई और आक्रामकता है, जो मेरे मन को रास आनेवाला लिखने का तरीका है।

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