फ़िल्म समीक्षा:महारथी
शिवम नायर की महारथी नसीरुद्दीन शाह और परेश रावल के अभिनय के लिए देखी जानी चाहिए। दोनों के शानदार अभिनय ने इस फिल्म को रोचक बना दिया है। शिवम नायर की दृश्य संरचना और उन्हें कैमरे में कैद करने की शैली भी उल्लेखनीय है। आम तौर पर सीमित बजट की फिल्मों में तकनीकी कौशल नहीं दिखता। इस फिल्म के हर दृश्य में निर्देशक की संलग्नता झलकती है।
परेश रावल ने बीस साल पहले एक नाटक का मंचन गुजराती में किया था। उस नाटक के अभी तक सात सौ शो हो चुके हैं। परेश रावल इस नाटक पर फिल्म बनाना चाहते थे और निर्देशन की जिम्मेदारी शिवम नायर को सौंपी। शिवम नायर नाटक पर आधारित इस फिल्म को अलग दृश्यबंध देते हैं और सिनेमा की तकनीक से दृश्यों को प्रभावपूर्ण बना देते हैं।
महारथी थ्रिलर है, लेकिन मजा यह है कि हत्या की जानकारी दर्शकों को हैं। पैसों के लोभ में एक आत्महत्या को हत्या बनाने की कोशिश में सभी किरदारों के स्वार्थ और मन के राज एक-एक कर खुलते हैं। फिल्म में सबसे सीधी और सरल किरदार निभा रही तारा शर्मा भी फिल्म के अंत में एक राज बताकर अपनी लालसा जाहिर कर देती है। हां, हम जिस तरह की नियोजित और सपाट थ्रिलर फिल्में देखते रहे हैं, उससे कुछ अलग है महारथी। फिल्म में जितनी घटनाएं बाहर घटती हैं, उतनी ही किरदारों के मन। यह मनोवैज्ञानिक थ्रिलर है। महारथी में नसीरुद्दीन शाह ने शराब की लत का शिकार व्यक्ति का किरदार स्वाभाविक तरीके से निभाया है। नशे में सिर्फ चाल ही नहीं लड़खड़ाती, पूरा व्यक्तित्व लड़खड़ा जाता है। परेश रावल ने लोभ, लालसा और चालाकी को चतुर तरीके से निभाया है। बोमन ईरानी, ओम पुरी, नेहा धूपिया सामान्य हैं। तारा शर्मा और विवेक शौक साधारण हैं।
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