फ़िल्म समीक्षा:एक विवाह ऐसा भी
परिवार और रिश्तों की कहानी
राजश्री प्रोडक्शन की एक विवाह ऐसा भी हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का देसी सिनेमा है। पश्चिमी प्रभाव, तकनीकी विकास और आप्रवासी एवं विदेशी दर्शकों को लुभाने की कोशिश में अपने ही दर्शकों को नजरअंदाज करते हिंदी सिनेमा में ऐसे विषयों को इन दिनों पिछड़ा मान लिया गया है।
महानगरों की गलाकाट प्रतियोगिता, होड़ और आपाधापी के बावजूद आप के दिल में संबंधों की गर्माहट बची है तो संभव है कि फिल्म को देखते हुए छिपी और दबी भावनाएं आपकी आंखे नम कर दें। कौशिक घटक और फिल्म के लेखक ने ऐसे कोमल और हृदयस्पर्शी दृश्यों को रचा है जो हमारी स्मृतियों में कहीं सोए पड़े हैं। वास्तव में एक विवाह ऐसा भी देशज सिनेमा है। यह परिवार और रिश्तों की कहानी है। यह त्याग और समर्पण की कहानी है। यह प्रेम के स्थायी राग की कहानी है। यह परस्पर विश्वास और संयम की कहानी है। मुमकिन है महानगरों और मल्टीप्लेक्स के दर्शक इस कहानी की विश्वसनीयता पर ही शक करें।
सूरज बड़जात्या की देखरेख में कौशिक घटक ने किसी प्रादेशिक शहर का मोहल्ले के मध्यवर्गीय परिवार को चुना है। यहां भव्य सेट और आलीशान मकान नहीं है। पीछे दीवार ही नजर आती है, किसी मध्यवर्गीय घर की तरह। यह वह परिवार है, जिसके घर में आज भी आंगन और तुलसी का चौबारा है। धार्मिक चिन्ह, रीति और प्रतीक दिनचर्या के हिस्से हैं। भारतीय समाज से ये चिन्ह अभी विलुप्त नहीं हुए हैं, लेकिन आज के निर्देशक इन्हें डाउन मार्केट की चीज समझ कर प्रस्तुत नहीं करते। यही वह समाज है, जहां भारतीयता सांसें ले रही है। कौशिक घटक ने उस समाज को चित्रित करने का जोखिम लिया है।
किरदार गहरा और ठोस हो तो कलाकार की क्षमता निखरती है। ईशा कोप्पिकर ने चांदनी के मनोभावों और उसकी जिंदगी के उतार-चढ़ाव को खूबसूरती से व्यक्त किया है। सोनू सूद प्रेम की भूमिका में जंचे हैं। उन्होंने संयमित अभिनय किया है। अन्य कलाकार अपनी छोटी भूमिकाओं से फिल्म को मजबूत ही करते हैं।
फिल्म का गीत-संगीत विशेष रूप से उल्लेखनीय है। रवींद्र जैन ने संवादों, दृश्यों और नाटकीय प्रसंगों को उपयुक्त बोल देकर गीतों में गूंथा है। चूंकि फिल्म के नायक-नायिका गायक हैं, इसलिए रवींद्र जैन को अपनी प्रतिभा दिखाने का भरपूर अवसर मिला।
-अजय ब्रह्मात्मज
राजश्री प्रोडक्शन की एक विवाह ऐसा भी हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का देसी सिनेमा है। पश्चिमी प्रभाव, तकनीकी विकास और आप्रवासी एवं विदेशी दर्शकों को लुभाने की कोशिश में अपने ही दर्शकों को नजरअंदाज करते हिंदी सिनेमा में ऐसे विषयों को इन दिनों पिछड़ा मान लिया गया है।
महानगरों की गलाकाट प्रतियोगिता, होड़ और आपाधापी के बावजूद आप के दिल में संबंधों की गर्माहट बची है तो संभव है कि फिल्म को देखते हुए छिपी और दबी भावनाएं आपकी आंखे नम कर दें। कौशिक घटक और फिल्म के लेखक ने ऐसे कोमल और हृदयस्पर्शी दृश्यों को रचा है जो हमारी स्मृतियों में कहीं सोए पड़े हैं। वास्तव में एक विवाह ऐसा भी देशज सिनेमा है। यह परिवार और रिश्तों की कहानी है। यह त्याग और समर्पण की कहानी है। यह प्रेम के स्थायी राग की कहानी है। यह परस्पर विश्वास और संयम की कहानी है। मुमकिन है महानगरों और मल्टीप्लेक्स के दर्शक इस कहानी की विश्वसनीयता पर ही शक करें।
सूरज बड़जात्या की देखरेख में कौशिक घटक ने किसी प्रादेशिक शहर का मोहल्ले के मध्यवर्गीय परिवार को चुना है। यहां भव्य सेट और आलीशान मकान नहीं है। पीछे दीवार ही नजर आती है, किसी मध्यवर्गीय घर की तरह। यह वह परिवार है, जिसके घर में आज भी आंगन और तुलसी का चौबारा है। धार्मिक चिन्ह, रीति और प्रतीक दिनचर्या के हिस्से हैं। भारतीय समाज से ये चिन्ह अभी विलुप्त नहीं हुए हैं, लेकिन आज के निर्देशक इन्हें डाउन मार्केट की चीज समझ कर प्रस्तुत नहीं करते। यही वह समाज है, जहां भारतीयता सांसें ले रही है। कौशिक घटक ने उस समाज को चित्रित करने का जोखिम लिया है।
किरदार गहरा और ठोस हो तो कलाकार की क्षमता निखरती है। ईशा कोप्पिकर ने चांदनी के मनोभावों और उसकी जिंदगी के उतार-चढ़ाव को खूबसूरती से व्यक्त किया है। सोनू सूद प्रेम की भूमिका में जंचे हैं। उन्होंने संयमित अभिनय किया है। अन्य कलाकार अपनी छोटी भूमिकाओं से फिल्म को मजबूत ही करते हैं।
फिल्म का गीत-संगीत विशेष रूप से उल्लेखनीय है। रवींद्र जैन ने संवादों, दृश्यों और नाटकीय प्रसंगों को उपयुक्त बोल देकर गीतों में गूंथा है। चूंकि फिल्म के नायक-नायिका गायक हैं, इसलिए रवींद्र जैन को अपनी प्रतिभा दिखाने का भरपूर अवसर मिला।
Comments
विवाह धर्म का बन्धन है,सेक्स-कर्म-असुन्दर.
सेक्स बङा असुन्दर,प्रेम प्रभु का प्रसाद है.
प्रेम के बलपर बीते जीवन,ना अवसाद है.
कह साधक कवि,जरूर जाना इसी फ़िलम में.
सुर-संस्कृति के सुन्दर, राजश्री की फ़िल्म में.