फ़िल्म समीक्षा:सॉरी भाई
नयी सोच की फिल्म
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-अजय ब्रह्मात्मज
युवा ओर प्रयोगशील निर्देशक ओनिर की 'सॉरी भाई' रिश्तों में पैदा हुए प्रेम और मोह को व्यक्त करती है। हिंदी फिल्मों में ऐसे रिश्ते को लेकर बनी यह पहली फिल्म है। एक ही लडक़ी से दो भाइयों के प्रेम की फिल्में हम ने देखी है, लेकिन बड़े भाई की मंगेतर से छोटे भाई की शादी का अनोखा संबंध 'सॉरी भाई' में दिखा है। रिश्ते के इस बदलाव के प्रति आम दर्शकों की प्रतिक्रिया सहज नहीं होगी।
हर्ष (संजय सूरी)और आलिया (चित्रांगदा सिंह)की शादी होने वाली है। दोनों मारीशस में रहते हैं। हर्ष अपने परिवार को भारत से बुलाता है। छोटा भाई सिद्धार्थ, मां और पिता आते हैं। मां अनिच्छा से आई है, क्योंकि वह अपने बेटे से नाराज है। बहरहाल, मारीशस पहुंचने पर सिद्धार्थ अपनी भाभी आलिया के प्रति आकर्षित होता है। आलिया को भी लगता है कि सिद्धार्थ ज्यादा अच्छा पति होगा। दोनों की शादी में मां एक अड़चन हैं। नयी सोच की इस कहानी में 'मां कसम' का पुराना फार्मूला घुसाकर ओनिर ने अपनी ही फिल्म कमजोर कर दी है।
शरमन जोशी और चित्रांगदा सिंह ने अपने किरदारों को सही तरीके से मूत्र्त किया है। प्रेम के एहसास, आरंभिक झिझक और फिर उस प्रेम के स्वीकार को शरमन जोशी ने बारीकी से निभाया है। चित्रांगदा एक साथ मैच्योर और चुलबुली दिखती है। हिंदी फिल्मों में बदल रही औरत की एक छवि आलिया में नजर आती है। संजय सूरी ऐसी भूमिकाओं में टाइप होते जा रहे हैं। बोमन ईरानी और शबाना आजमी को अधिक मेहनत नहीं करनी थी। शबाना आजमी और चित्रांगदा सिंह के बीच के दृश्य अंतरंग और मर्मस्पर्शी हैं।
ओनिर ने पटकथा चुस्त रखी होती और अनावश्यक भावुक प्रसंग नहीं रखे होते तो फिल्म अधिक मार्मिक और प्रभावशाली होती। कुछ कमियों के बावजूद ओनिर की सोच प्रशंसनीय है। उन्होंने कुछ तो नया किया।
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-अजय ब्रह्मात्मज
युवा ओर प्रयोगशील निर्देशक ओनिर की 'सॉरी भाई' रिश्तों में पैदा हुए प्रेम और मोह को व्यक्त करती है। हिंदी फिल्मों में ऐसे रिश्ते को लेकर बनी यह पहली फिल्म है। एक ही लडक़ी से दो भाइयों के प्रेम की फिल्में हम ने देखी है, लेकिन बड़े भाई की मंगेतर से छोटे भाई की शादी का अनोखा संबंध 'सॉरी भाई' में दिखा है। रिश्ते के इस बदलाव के प्रति आम दर्शकों की प्रतिक्रिया सहज नहीं होगी।
हर्ष (संजय सूरी)और आलिया (चित्रांगदा सिंह)की शादी होने वाली है। दोनों मारीशस में रहते हैं। हर्ष अपने परिवार को भारत से बुलाता है। छोटा भाई सिद्धार्थ, मां और पिता आते हैं। मां अनिच्छा से आई है, क्योंकि वह अपने बेटे से नाराज है। बहरहाल, मारीशस पहुंचने पर सिद्धार्थ अपनी भाभी आलिया के प्रति आकर्षित होता है। आलिया को भी लगता है कि सिद्धार्थ ज्यादा अच्छा पति होगा। दोनों की शादी में मां एक अड़चन हैं। नयी सोच की इस कहानी में 'मां कसम' का पुराना फार्मूला घुसाकर ओनिर ने अपनी ही फिल्म कमजोर कर दी है।
शरमन जोशी और चित्रांगदा सिंह ने अपने किरदारों को सही तरीके से मूत्र्त किया है। प्रेम के एहसास, आरंभिक झिझक और फिर उस प्रेम के स्वीकार को शरमन जोशी ने बारीकी से निभाया है। चित्रांगदा एक साथ मैच्योर और चुलबुली दिखती है। हिंदी फिल्मों में बदल रही औरत की एक छवि आलिया में नजर आती है। संजय सूरी ऐसी भूमिकाओं में टाइप होते जा रहे हैं। बोमन ईरानी और शबाना आजमी को अधिक मेहनत नहीं करनी थी। शबाना आजमी और चित्रांगदा सिंह के बीच के दृश्य अंतरंग और मर्मस्पर्शी हैं।
ओनिर ने पटकथा चुस्त रखी होती और अनावश्यक भावुक प्रसंग नहीं रखे होते तो फिल्म अधिक मार्मिक और प्रभावशाली होती। कुछ कमियों के बावजूद ओनिर की सोच प्रशंसनीय है। उन्होंने कुछ तो नया किया।
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