आदित्य चोपड़ा लेकर आ रहे हैं'रब ने बना दी जोड़ी'
-अजय ब्रह्मात्मज
लगभग बीस साल पहले यश चोपड़ा के बड़े बेटे आदित्य चोपड़ा ने तय किया कि वे अपने पिता की तरह ही फिल्म निर्देशन में कदम रखेंगे। यश चोपड़ा 'चांदनी' के निर्देशन की तैयारी में थे। आदित्य के उत्साह को देखते हुए यश चोपड़ा ने उन्हें फिल्म कंटीन्यूटी, कॉस्ट्यूम और कलाकारों को बुलाने की जिम्मेदारी दे दी। शूटिंग में शामिल होने के पहले आदित्य चोपड़ा ने भारतीय फिल्मकारों में राज कपूर, विजय आनंद, राज खोसला, मनोज कुमार, बिमल राय, बी आर चोपड़ा और अपने पिता यश चोपड़ा की सारी फिल्में सिलसिलेवार तरीके से देख ली थीं। उन दिनों वे सिनेमाघरों में जाकर फस्र्ट डे फस्र्ट शो देखने के अलावा नोट्स भी लेते थे और बाद में वास्तविक स्थिति से उनकी तुलना करते थे। आदित्य की इन गतिविधियों पर यश चोपड़ा की नजर रहती थी और उन्हें अपने परिवार में एक और निर्देशक की संभावना दिखने लगी थी। उन्होंने आदित्य की राय को तरजीह देना शुरू किया था, लेकिन अभी उन्हें इतना भरोसा नहीं हुआ था कि स्वतंत्र रूप से फिल्म का निर्देशन सौंप दें।
1989 से लेकर 1995 में 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' के प्रदर्शन तक आदित्य चोपड़ा अभ्यास करते रहे। स्टोरी सीटिंग, म्यूजिक सीटिंग और शेष चयन और छंटाई के समय वे पिता के साथ बैठने लगे थे। हिंदी फिल्मों के दर्शकों के निजी अनुभवों के आधार पर उन्होंने कहा था कि 'चांदनी' सुपर हिट होगी, जबकि 'लम्हे' की सफलता के प्रति आशंका प्रकट की थी। बेटे के अनुमान को सही होता देख यश चोपड़ा ने आदित्य चोपड़ा की राय को महत्व देना शुरू कर दिया था। खास कर 'डर' की शूटिंग के समय उन्होंने आदित्य को बड़ी जिम्मेदारियां दीं। इस फिल्म की शूटिंग के दौरान ही शाहरुख खान और आदित्य चोपड़ा करीब आए। दोनों ने मिलकर कुछ योजनाएं बनायीं और फिल्मों की शैली और शिल्प को लेकर भी कई बातें कीं।
कह सकते हैं कि सारी सुविधाओं और साधनों के बावजूद बीस सालों में केवल तीन फिल्मों के निर्देशन से आदित्य चोपड़ा ने सृजनात्मक आत्मसंयम का परिचय दिया है। पिता के असिस्टैंट के रूप में निर्देशन और प्रोडक्शन की बारीकियां को समझने के बाद 1995 में उन्होंने 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' का निर्देशन किया। होनहार के लक्षण तो बचपन में ही नजर आने लगते हैं। बचपन में आदित्य चोपड़ा को कहानियां सुनाने में मजा आता था। 'सिलसिला' की शूटिंग के समय उन्होंने शबाना आजमी को एक कहानी सुना कर प्रभावित किया था। तभी शबाना आजमी ने जावेद अख्तर से कहा था, 'एक दिन यह लडक़ा बहुत बड़ा निर्देशक बनेगा।' शबाना की भविष्यवाणी सच निकली। 1995 में रिलीज हुई 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' हिंदी फिल्मों के इतिहास में सबसे अधिक कमाई करने वाली फिल्म है। यह अभी तक मुंबई के मराठा मंदिर में चल रही है। यह दुनिया का अनोखा रिकार्ड है। अतीत में कभी ऐसा नहीं हुआ और भविष्य में ऐसी संभावना नहीं दिखती।
1995 में 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' की सफलता के बाद आदित्य चोपड़ा ने यशराज फिल्म्स को आर्थिक दृढ़ता दी। उसके बाद अपनी फिल्मों के निर्माण के लिए यशराज फिल्म्स को किसी फायनेंसर के पास नहीं जाना पड़ा। उस समय तय किया गया कि पिता और पुत्र बारी-बारी से फिल्मों के निर्माण और निर्देशन की जिम्मेदारी संभालेंगे। पिता-पुत्र की टीम ने इस दरम्यान युवा निर्देशकों को मौका दिया। मुंबई में आधुनिक तकनीक और सुविधाओं से संपन्न यशराज स्टूडियो की स्थापना की। इस वजह से आदित्य चोपड़ा ने सन् 2000 में आई 'मोहब्बतें' के बाद किसी फिल्म का निर्देशन नहीं किया। इधर उनके इस विराम को लेकर सवाल उठने लगे। एक तो उनकी देखरेख में आई इधर की फिल्मों ने अच्छा व्यापार नहीं किया और दूसरे उनकी कोई फिल्म नहीं आई तो उनकी सूझ-बूझ और निर्देशन प्रतिभा पर आलोचकों ने प्रश्न चिह्न लगा दिए।
'मोहब्बतें' के आठ सालों के बाद आदित्य चोपड़ा 'रब ने बना दी जोड़ी' लेकर आ रहे हैं। इस बार फिर उनके साथ शाहरुख खान हैं। शाहरुख खान को स्टारडम का दर्जा दिलाने में आदित्य चोपड़ा की भूमिका रही है। 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' के समय ही उन्होंने शाहरुख से कहा था कि तुम अभी स्टार हो। मेरी फिल्म के बाद तुम सुपर स्टार बन जाओगे। वही हुआ भी। 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' की कामयाबी ने शाहरुख खान को लोकप्रियता की ऊंचाई पर पहुंचा दिया। आदित्य चोपड़ा की दूसरी फिल्म 'मोहब्बतें' पहली फिल्म की तरह कामयाब नहीं रही, लेकिन उस फिल्म से अमिताभ बच्चन की दूसरी सफल पारी का आरंभ हुआ। शाहरुख खान भी थोड़े नए रोमांटिक अंदाज में दिखे। आदित्य चोपड़ा ने इस बार अपनी पिछली फिल्मों से अलग जाने की हिम्मत की है। उन्होंने पहली बार मिडिल क्लास किरदार सुरेन्द्र साहनी और तानी को अपनी फिल्म में जगह दी है। इस बार उनकी शूटिंग का अंदाज बदला हुआ है। सुरेन्द्र साहनी और तानी मध्यवर्गीय दंपति हैं। तानी उम्र में जवान और जिंदगी की रंगीनियों और सपनों में यकीन रखती है, जबकि सुरेन्द्र साहनी का सादा जीवन मध्यवर्गीय दबाव का नतीजा है। सुरेन्द्र साहनी से हुई शादी के बाद तानी को अपने सपने बिखरते नजर आते हैं। सुरेन्द्र साहनी अपनी पत्नी की मनोव्यथा समझते हैं और उसे खुशी एवं संतुष्टि देने के लिए कुछ करते हैं। इस फिल्म का एक संदेश है कि हर साधारण जोड़ी की प्रेमकहानी असाधारण होती है।
आदित्य चोपड़ा की शैली पर अपने पिता के साथ ही राज कपूर, राज खोसला और विजय आनंद का जबरदस्त प्रभाव है। यश चोपड़ा की फिल्मों में क्लोज शॉट का खास महत्व होता है, इसके विपरीत आदित्य चोपड़ा ट्राली शॉट ज्यादा पसंद करते हैं। यह उम्र का असर हो सकता है, जहां गति, स्पीड और मूवमेंट में ही रोमांच और आनंद मिलता है। आदित्य चोपड़ा के शिल्प में तकनीक और एहसास का सुंदर मेल है। उनके विषय के चुनाव और उसके निर्वाह से कुछ लोगों को आपत्ति हो सकती है, लेकिन सिनेमा के तकनीकी पक्ष पर आदित्य चोपड़ा की पकड़ को स्वीकार करना ही होगा। उनकी फिल्मों में किरदारों के बीच क्रियात्मक संवाद रहते हैं। उनके किरदार भिड़ते हैं, संवाद करते हैं और फिर नए दृश्य की ओर बढ़ते हैं। आदित्य चोपड़ा की फिल्में मॉडर्न होती हैं। लुक,कॉस्ट्यूम, व्यवहार आदि में उन्होंने सुसंस्कृत शहरी चरित्रों की रचना की है। कॉस्मोपोलिटन किरदारों को लेकर आदि ही आए। इन चरित्रों को आप बाहरी तौर पर पश्चिमी समाज से प्रभावित कह सकते हैं, लेकिन अंदरूनी स्तर पर उनमें भारतीयता रहती है। हिंदी फिल्मों की प्रेमकहानी में प्रेमी-प्रेमिका के घर से भाग जाने की घटना आम है। दर्शक भी इसे मंजूर करते हैं। लेकिन 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' का नायक ऐसा नहीं करता है। वह नायिका के साथ भागता नहीं है। वह उसके पिता की अनुमति लेता है। यह अलग बात है कि वह फिर से अमेरिका लौट जाता है। भारतीय मूल्यों में उसका यकीन पक्का है, लेकिन भारतीय परिवेश उसे अपने अनुकूल नहीं लगा। यह अंतर्विरोध आदित्य चोपड़ा और उनके समकालीन फिल्मकारों में नजर आता है।
आदित्य चोपड़ा संपूर्ण नियंत्रण के पक्ष में रहते हैं। उनके सहयोगी बताते हैं कि वे सूनते तो सबकी हैं,लेकिन फिल्म वैसी ही बनाते हैं,जैसी उनके दिमाग में रहती है। पुरानी और नयी सोच की नोंक-झोंक तब साफ दिखती है,जब पिता-पुत्र दोनों सेट पर मौजूद हों। आदि फिल्म निर्माण के सभी तमनीकी पक्षों में पारंगत हैं,इसलिए वे उनमें हस्तक्षेप करते हैं और अपने तकनीशिनों को मजबूर करत हैं कि वे वही प्रभाव लाएं,जो वे चाहते हैं। आदित्य चोपड़ा सेट पर किसी प्रकार की फेरबदल में यकीन नहीं रखते। वे स्टारों की भी एक नहीं सुनते। 'रब ने बना दी जोड़ी' के लिए हां कहने में शाहरूख खान देरी लगा रहे थे तो आदि ने चेतावनी के अंदाज में कहा कि अगर तुम्हें दिक्कत है तो मैं सलमान या आमिर से बात करता हूं।
'रब ने बना दी जोड़ी' ने दर्शकों की आरंभिक जिज्ञासा बढ़ा दी है। शाहरुख खान के दीवाने उन्हें आदित्य चोपड़ा के निर्देशन में देखने के लिए उतावले हैं। देखना है कि आदित्य चोपड़ा कामयाबी की हैटट्रिक लगाते है या नहीं? आरंभिक रूझान तो उनके पक्ष में है।
लगभग बीस साल पहले यश चोपड़ा के बड़े बेटे आदित्य चोपड़ा ने तय किया कि वे अपने पिता की तरह ही फिल्म निर्देशन में कदम रखेंगे। यश चोपड़ा 'चांदनी' के निर्देशन की तैयारी में थे। आदित्य के उत्साह को देखते हुए यश चोपड़ा ने उन्हें फिल्म कंटीन्यूटी, कॉस्ट्यूम और कलाकारों को बुलाने की जिम्मेदारी दे दी। शूटिंग में शामिल होने के पहले आदित्य चोपड़ा ने भारतीय फिल्मकारों में राज कपूर, विजय आनंद, राज खोसला, मनोज कुमार, बिमल राय, बी आर चोपड़ा और अपने पिता यश चोपड़ा की सारी फिल्में सिलसिलेवार तरीके से देख ली थीं। उन दिनों वे सिनेमाघरों में जाकर फस्र्ट डे फस्र्ट शो देखने के अलावा नोट्स भी लेते थे और बाद में वास्तविक स्थिति से उनकी तुलना करते थे। आदित्य की इन गतिविधियों पर यश चोपड़ा की नजर रहती थी और उन्हें अपने परिवार में एक और निर्देशक की संभावना दिखने लगी थी। उन्होंने आदित्य की राय को तरजीह देना शुरू किया था, लेकिन अभी उन्हें इतना भरोसा नहीं हुआ था कि स्वतंत्र रूप से फिल्म का निर्देशन सौंप दें।
1989 से लेकर 1995 में 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' के प्रदर्शन तक आदित्य चोपड़ा अभ्यास करते रहे। स्टोरी सीटिंग, म्यूजिक सीटिंग और शेष चयन और छंटाई के समय वे पिता के साथ बैठने लगे थे। हिंदी फिल्मों के दर्शकों के निजी अनुभवों के आधार पर उन्होंने कहा था कि 'चांदनी' सुपर हिट होगी, जबकि 'लम्हे' की सफलता के प्रति आशंका प्रकट की थी। बेटे के अनुमान को सही होता देख यश चोपड़ा ने आदित्य चोपड़ा की राय को महत्व देना शुरू कर दिया था। खास कर 'डर' की शूटिंग के समय उन्होंने आदित्य को बड़ी जिम्मेदारियां दीं। इस फिल्म की शूटिंग के दौरान ही शाहरुख खान और आदित्य चोपड़ा करीब आए। दोनों ने मिलकर कुछ योजनाएं बनायीं और फिल्मों की शैली और शिल्प को लेकर भी कई बातें कीं।
कह सकते हैं कि सारी सुविधाओं और साधनों के बावजूद बीस सालों में केवल तीन फिल्मों के निर्देशन से आदित्य चोपड़ा ने सृजनात्मक आत्मसंयम का परिचय दिया है। पिता के असिस्टैंट के रूप में निर्देशन और प्रोडक्शन की बारीकियां को समझने के बाद 1995 में उन्होंने 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' का निर्देशन किया। होनहार के लक्षण तो बचपन में ही नजर आने लगते हैं। बचपन में आदित्य चोपड़ा को कहानियां सुनाने में मजा आता था। 'सिलसिला' की शूटिंग के समय उन्होंने शबाना आजमी को एक कहानी सुना कर प्रभावित किया था। तभी शबाना आजमी ने जावेद अख्तर से कहा था, 'एक दिन यह लडक़ा बहुत बड़ा निर्देशक बनेगा।' शबाना की भविष्यवाणी सच निकली। 1995 में रिलीज हुई 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' हिंदी फिल्मों के इतिहास में सबसे अधिक कमाई करने वाली फिल्म है। यह अभी तक मुंबई के मराठा मंदिर में चल रही है। यह दुनिया का अनोखा रिकार्ड है। अतीत में कभी ऐसा नहीं हुआ और भविष्य में ऐसी संभावना नहीं दिखती।
1995 में 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' की सफलता के बाद आदित्य चोपड़ा ने यशराज फिल्म्स को आर्थिक दृढ़ता दी। उसके बाद अपनी फिल्मों के निर्माण के लिए यशराज फिल्म्स को किसी फायनेंसर के पास नहीं जाना पड़ा। उस समय तय किया गया कि पिता और पुत्र बारी-बारी से फिल्मों के निर्माण और निर्देशन की जिम्मेदारी संभालेंगे। पिता-पुत्र की टीम ने इस दरम्यान युवा निर्देशकों को मौका दिया। मुंबई में आधुनिक तकनीक और सुविधाओं से संपन्न यशराज स्टूडियो की स्थापना की। इस वजह से आदित्य चोपड़ा ने सन् 2000 में आई 'मोहब्बतें' के बाद किसी फिल्म का निर्देशन नहीं किया। इधर उनके इस विराम को लेकर सवाल उठने लगे। एक तो उनकी देखरेख में आई इधर की फिल्मों ने अच्छा व्यापार नहीं किया और दूसरे उनकी कोई फिल्म नहीं आई तो उनकी सूझ-बूझ और निर्देशन प्रतिभा पर आलोचकों ने प्रश्न चिह्न लगा दिए।
'मोहब्बतें' के आठ सालों के बाद आदित्य चोपड़ा 'रब ने बना दी जोड़ी' लेकर आ रहे हैं। इस बार फिर उनके साथ शाहरुख खान हैं। शाहरुख खान को स्टारडम का दर्जा दिलाने में आदित्य चोपड़ा की भूमिका रही है। 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' के समय ही उन्होंने शाहरुख से कहा था कि तुम अभी स्टार हो। मेरी फिल्म के बाद तुम सुपर स्टार बन जाओगे। वही हुआ भी। 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' की कामयाबी ने शाहरुख खान को लोकप्रियता की ऊंचाई पर पहुंचा दिया। आदित्य चोपड़ा की दूसरी फिल्म 'मोहब्बतें' पहली फिल्म की तरह कामयाब नहीं रही, लेकिन उस फिल्म से अमिताभ बच्चन की दूसरी सफल पारी का आरंभ हुआ। शाहरुख खान भी थोड़े नए रोमांटिक अंदाज में दिखे। आदित्य चोपड़ा ने इस बार अपनी पिछली फिल्मों से अलग जाने की हिम्मत की है। उन्होंने पहली बार मिडिल क्लास किरदार सुरेन्द्र साहनी और तानी को अपनी फिल्म में जगह दी है। इस बार उनकी शूटिंग का अंदाज बदला हुआ है। सुरेन्द्र साहनी और तानी मध्यवर्गीय दंपति हैं। तानी उम्र में जवान और जिंदगी की रंगीनियों और सपनों में यकीन रखती है, जबकि सुरेन्द्र साहनी का सादा जीवन मध्यवर्गीय दबाव का नतीजा है। सुरेन्द्र साहनी से हुई शादी के बाद तानी को अपने सपने बिखरते नजर आते हैं। सुरेन्द्र साहनी अपनी पत्नी की मनोव्यथा समझते हैं और उसे खुशी एवं संतुष्टि देने के लिए कुछ करते हैं। इस फिल्म का एक संदेश है कि हर साधारण जोड़ी की प्रेमकहानी असाधारण होती है।
आदित्य चोपड़ा की शैली पर अपने पिता के साथ ही राज कपूर, राज खोसला और विजय आनंद का जबरदस्त प्रभाव है। यश चोपड़ा की फिल्मों में क्लोज शॉट का खास महत्व होता है, इसके विपरीत आदित्य चोपड़ा ट्राली शॉट ज्यादा पसंद करते हैं। यह उम्र का असर हो सकता है, जहां गति, स्पीड और मूवमेंट में ही रोमांच और आनंद मिलता है। आदित्य चोपड़ा के शिल्प में तकनीक और एहसास का सुंदर मेल है। उनके विषय के चुनाव और उसके निर्वाह से कुछ लोगों को आपत्ति हो सकती है, लेकिन सिनेमा के तकनीकी पक्ष पर आदित्य चोपड़ा की पकड़ को स्वीकार करना ही होगा। उनकी फिल्मों में किरदारों के बीच क्रियात्मक संवाद रहते हैं। उनके किरदार भिड़ते हैं, संवाद करते हैं और फिर नए दृश्य की ओर बढ़ते हैं। आदित्य चोपड़ा की फिल्में मॉडर्न होती हैं। लुक,कॉस्ट्यूम, व्यवहार आदि में उन्होंने सुसंस्कृत शहरी चरित्रों की रचना की है। कॉस्मोपोलिटन किरदारों को लेकर आदि ही आए। इन चरित्रों को आप बाहरी तौर पर पश्चिमी समाज से प्रभावित कह सकते हैं, लेकिन अंदरूनी स्तर पर उनमें भारतीयता रहती है। हिंदी फिल्मों की प्रेमकहानी में प्रेमी-प्रेमिका के घर से भाग जाने की घटना आम है। दर्शक भी इसे मंजूर करते हैं। लेकिन 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' का नायक ऐसा नहीं करता है। वह नायिका के साथ भागता नहीं है। वह उसके पिता की अनुमति लेता है। यह अलग बात है कि वह फिर से अमेरिका लौट जाता है। भारतीय मूल्यों में उसका यकीन पक्का है, लेकिन भारतीय परिवेश उसे अपने अनुकूल नहीं लगा। यह अंतर्विरोध आदित्य चोपड़ा और उनके समकालीन फिल्मकारों में नजर आता है।
आदित्य चोपड़ा संपूर्ण नियंत्रण के पक्ष में रहते हैं। उनके सहयोगी बताते हैं कि वे सूनते तो सबकी हैं,लेकिन फिल्म वैसी ही बनाते हैं,जैसी उनके दिमाग में रहती है। पुरानी और नयी सोच की नोंक-झोंक तब साफ दिखती है,जब पिता-पुत्र दोनों सेट पर मौजूद हों। आदि फिल्म निर्माण के सभी तमनीकी पक्षों में पारंगत हैं,इसलिए वे उनमें हस्तक्षेप करते हैं और अपने तकनीशिनों को मजबूर करत हैं कि वे वही प्रभाव लाएं,जो वे चाहते हैं। आदित्य चोपड़ा सेट पर किसी प्रकार की फेरबदल में यकीन नहीं रखते। वे स्टारों की भी एक नहीं सुनते। 'रब ने बना दी जोड़ी' के लिए हां कहने में शाहरूख खान देरी लगा रहे थे तो आदि ने चेतावनी के अंदाज में कहा कि अगर तुम्हें दिक्कत है तो मैं सलमान या आमिर से बात करता हूं।
'रब ने बना दी जोड़ी' ने दर्शकों की आरंभिक जिज्ञासा बढ़ा दी है। शाहरुख खान के दीवाने उन्हें आदित्य चोपड़ा के निर्देशन में देखने के लिए उतावले हैं। देखना है कि आदित्य चोपड़ा कामयाबी की हैटट्रिक लगाते है या नहीं? आरंभिक रूझान तो उनके पक्ष में है।
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