फ़िल्म समीक्षा:युवराज
पुरानी शैली की भावनात्मक कहानी
युवराज देखते हुए महसूस होता रहा कि मशहूर डायरेक्टर अपनी शैली से अलग नहीं हो पाते। हर किसी का अपना अंदाज होता है। उसमें वह सफल होता है और फिर यही सफलता उसकी सीमा बन जाती है। बहुत कम डायरेक्टर समय के साथ बढ़ते जाते हैं और सफल होते हैं।
सुभाष घई की कथन शैली, दृश्य संरचना, भव्यता का मोह, सुंदर नायिका और चरित्रों का नाटकीय टकराव हम पहले से देखते आ रहे हैं। युवराज उसी परंपरा की फिल्म है। अपनी शैली और नाटकीयता में पुरानी। लेकिन सिर्फ इसी के लिए सुभाष घई को नकारा नहीं जा सकता। एक बड़ा दर्शक वर्ग आज भी इस अंदाज की फिल्में पसंद करता है।
युवराज देखते हुए महसूस होता रहा कि मशहूर डायरेक्टर अपनी शैली से अलग नहीं हो पाते। हर किसी का अपना अंदाज होता है। उसमें वह सफल होता है और फिर यही सफलता उसकी सीमा बन जाती है। बहुत कम डायरेक्टर समय के साथ बढ़ते जाते हैं और सफल होते हैं।
सुभाष घई की कथन शैली, दृश्य संरचना, भव्यता का मोह, सुंदर नायिका और चरित्रों का नाटकीय टकराव हम पहले से देखते आ रहे हैं। युवराज उसी परंपरा की फिल्म है। अपनी शैली और नाटकीयता में पुरानी। लेकिन सिर्फ इसी के लिए सुभाष घई को नकारा नहीं जा सकता। एक बड़ा दर्शक वर्ग आज भी इस अंदाज की फिल्में पसंद करता है।
युवराज तीन भाइयों की कहानी है। वे सहोदर नहीं हैं। उनमें सबसे बड़ा ज्ञानेश (अनिल कपूर) सीधा और अल्पविकसित दिमाग का है। पिता उसे सबसे ज्यादा प्यार करते हैं। देवेन (सलमान खान) हठीला और बदमाश है। उसे अनुशासित करने की कोशिश की जाती है, तो वह और अडि़यल हो जाता है। पिता उसे घर से निकाल देते हैं। सबसे छोटा डैनी (जाएद खान) को हवाबाजी अच्छी लगती है। देवेन और डैनी पिता की संपत्ति हथियाने में लगे हैं। ज्ञानेश रुपये-पैसों से अनजान होने के बावजूद पिता की संपत्ति का उत्तराधिकारी बन चुका है। ज्ञानेश के संरक्षक पारिवारिक मित्र और वकील सिंकदर मिर्जा (मिथुन चक्रवर्ती) हैं। वह चाहते हैं कि तीनों भाई मिलकर रहें, लेकिन मामा (अंजन श्रीवास्तव) की ख्वाहिशें और साजिशें कुछ और हैं। फिल्म का भावनात्मक अंत होता है। अंतिम दृश्यों में सुभाष घई की पकड़ नजर आती है। उन्होंने तीनों भाइयों के मिलने के प्रसंग को भावपूर्ण और नाटकीय बना दिया है। फिल्म का संदेश है कि हम निजी ढंग से जिएं, लेकिन मिल कर रहें तभी खुशहाल परिवार बनता है।
फिल्म के आरंभिक दृश्यों को सलमान खान के जीवन के प्रचलित धारणाओं से मिला दिया गया है। हम देवेन में सलमान को पाते हैं। सलमान और कैटरीना का प्रेम प्रसंग लंबा हो गया है। उसमें प्रेम का उद्दाम रूप भी नहीं दिखता। वास्तविक जिंदगी के प्रेमी-प्रेमिका पर्दे पर वही केमिस्ट्री क्यों नहीं पैदा कर पाते? सलमान नेचुरल हैं, लेकिन उन पर निर्देशक का अंकुश नहीं है। इस वजह से उनका किरदार कभी विनोदशील तो कभी भावुक नजर आता है। कैटरीना कैफ हमेशा की तरह सुंदर लगी है। भव्य सेट की पृष्ठभूमि में आकर्षक परिधान पहने जब सेलो बजाती हैं, तो किसी स्वप्नसुंदरी की तरह प्रतीत होती हैं। जाएद खान ने अपने किरदार पर मेहनत की है। युवराज में अनिल कपूर की भूमिका उल्लेखनीय है। इस फिल्म को देखते हुए उनकी ही फिल्म ईश्वर और राज कपूर की कई ख्यात छवियां कौंधती हैं। अनिल कपूर ने कुछ दृश्यों को यादगार बना दिया है।
फिल्म का गीत-संगीत मधुर और प्रशंसनीय है। एआर रहमान और गुलजार ने फिल्म के भाव को शब्द, स्वर और ध्वनि से उचित संगत दी है। गानों का फिल्मांकन सुभाष घई की विशिष्टता है। वह इस फिल्म में भी नजर आती है।
फिल्म के आरंभिक दृश्यों को सलमान खान के जीवन के प्रचलित धारणाओं से मिला दिया गया है। हम देवेन में सलमान को पाते हैं। सलमान और कैटरीना का प्रेम प्रसंग लंबा हो गया है। उसमें प्रेम का उद्दाम रूप भी नहीं दिखता। वास्तविक जिंदगी के प्रेमी-प्रेमिका पर्दे पर वही केमिस्ट्री क्यों नहीं पैदा कर पाते? सलमान नेचुरल हैं, लेकिन उन पर निर्देशक का अंकुश नहीं है। इस वजह से उनका किरदार कभी विनोदशील तो कभी भावुक नजर आता है। कैटरीना कैफ हमेशा की तरह सुंदर लगी है। भव्य सेट की पृष्ठभूमि में आकर्षक परिधान पहने जब सेलो बजाती हैं, तो किसी स्वप्नसुंदरी की तरह प्रतीत होती हैं। जाएद खान ने अपने किरदार पर मेहनत की है। युवराज में अनिल कपूर की भूमिका उल्लेखनीय है। इस फिल्म को देखते हुए उनकी ही फिल्म ईश्वर और राज कपूर की कई ख्यात छवियां कौंधती हैं। अनिल कपूर ने कुछ दृश्यों को यादगार बना दिया है।
फिल्म का गीत-संगीत मधुर और प्रशंसनीय है। एआर रहमान और गुलजार ने फिल्म के भाव को शब्द, स्वर और ध्वनि से उचित संगत दी है। गानों का फिल्मांकन सुभाष घई की विशिष्टता है। वह इस फिल्म में भी नजर आती है।
Comments
ALOK SINGH "SAHIL"
घई प्रसिद्ध इस मार्ग पर,बेचें सपने दिव्य.
सपने बेचे दिव्य,जमीं से दूर हवा में.
लटक ही जाता है दर्शक,फ़िर दूर हवा में.
कह साधक कवि,फ़िल्में हैं साहित्य आजका.
सचमुच मिल जाता इनमें ,प्रतिबिम्ब आज का.