युवराज भव्य सिनेमाई अनुभव देगा: सुभाष घई
सुभाष घई का अंदाज सबसे जुदा होता है। इसी अंदाज का एक नजारा युवराज में दर्शकों को मिलेगा। युवराज के साथ अन्य पहलुओं पर प्रस्तुत है बातचात-
आपकी युवराज आ रही है। इस फिल्म की झलकियां देख कर कहा जा रहा है कि यह सुभाष घई की वापसी होगी?
मैं तो यही कहूंगा कि कहीं गया ही नहीं था तो वापसी कैसी? सुभाष घई का जन्म इस फिल्म इंडस्ट्री में हुआ है। उसका मरण भी यहीं होगा। हां, बीच के कुछ समय में मैं आने वाली पीढ़ी और देश के लिए कुछ करने के मकसद से फिल्म स्कूल की स्थापना में लगा था। पंद्रह साल पहले मैंने यह सपना देखा था। वह अभी पूरा हुआ। ह्विस्लिंग वुड्स की स्थापना में चार साल लग गए। पचहत्तर करोड़ की लागत से यह इंस्टीट्यूट बना है। मैं अपना ध्यान नहीं भटकाना चाहता था, इसलिए मैंने फिल्म निर्देशन से अवकाश ले लिया था। पिछले साल मैंने दो फिल्मों की योजना बनायी। एक का नाम ब्लैक एंड ह्वाइट था और दूसरी युवराज थी। पहली सीरियस लुक की फिल्म थी। युवराज कमर्शियल फिल्म है। मेरी ऐसी फिल्म का दर्शकों को इंतजार रहा है, इसलिए युवराज के प्रोमो देखने के बाद से ही सुभाष घई की वापसी की बात चल रही है।
सुभाष घई देश के प्रमुख एंटरटेनर रहे हैं, क्या इसलिए दर्शकों को आपकी शैली की फिल्म का इंतजार रहता है?
लोग जब पूछते हैं कि मेरी अगली फिल्म कौन सी होगी, तो खुशी होती है, लेकिन साथ ही चिंता बढ़ जाती है। ब्लैक एंड ह्वाइट के निर्देशन के समय मैं आश्वस्त था कि मुझे सीरियस फिल्म बनानी है। टेररिज्म पर वह फिल्म थी। मैंने तय कर लिया था कि उसमें कोई भी कमर्शियल मसाला नहीं होगा। युवराज पूरी तरह से कमर्शियल फिल्म है। इसका म्यूजिक रिलीज हो चुका है और वह लोगों को पसंद आ रहा है। यह हमारी पहली सफलता है। दूसरी सफलता 21 नवंबर को रिलीज पर निर्भर करती है। मुझे उम्मीद है कि दर्शकों को उनके इंतजार का मनोरंजक फल मिलेगा।
युवराज के बारे में बताएं? यह किस रूप में विशेष फिल्म है?
युवराज म्यूजिकल फिल्म है। मेरी फिल्मों में लोगों को भव्यता के साथ मधुर संगीत की अपेक्षा रहती है। इस फिल्म में दोनों चीजें हैं। फिल्म की कहानी सिंपल है, लेकिन उसके मूवमेंट्स और रिश्ते बहुत मजबूत हैं। आशा करता हूं कि यह फिल्म दर्शकों को पसंद आएगी। फिल्म में बताया गया है कि पैसों की वजह से परिवार में कैसे हमारे संबंध बदल जाते हैं। हम ऊपर से प्यार जतलाते हैं, लेकिन अंदर से पैसों के बारे में सोचते रहते हैं। परिवार का मुखिया पूरे परिवार के लिए पैसे बनाता और जोड़ता है, लेकिन पैसा आते ही परिवार टूटना शुरू हो जाता है। यह आज की बड़ी समस्या है, मैंने इसी को संगीत और चरित्रों के माध्यम से मनोरंजक रूप में पेश किया है। इसमें एक संदेश भी मिलेगा।
सुभाष घई कई स्तरों पर काम करते हैं। उन कामों की जिम्मेदारी निभाते समय अलग व्यक्तित्व रहता होगा आपका, उनमें कैसे सामंजस्य बिठाते हैं?
सुभाष घई लेखक और निर्देशक हैं। वे एक पब्लिक लिमिटेड कंपनी के चेयरमैन हैं। उन्हें अपने निवेशकों की लाभ-हानि के बारे में सोचना पड़ता है। तीसरा रूप शिक्षक का है। मुझे इस बात की खुशी है कि मैं ऐसा इंस्टीट्यूट खोल सका, जो आज दूसरे या तीसरे नंबर पर है। आप भारतीय इतिहास को देखें तो पाएंगे कि अनेक व्यक्तियों ने कई काम एक साथ किए हैं। मैं तो तीन ही कर पा रहा हूं। जमाना बहुआयामी व्यक्तित्व का है। मैं एक साथ व्यापारी, रचनाकार और शिक्षक हूं। काम में मन लगे तो सामंजस्य बिठाना मुश्किल नहीं होता। हां, मैं राजनीति में नहीं जा सकता। मैं खेल जगत में नहीं जा सकता।
सुभाष घई एक्टर बनने की इच्छा से फिल्म इंडस्ट्री में आए थे। आज सुभाष घई की अनेक पहचानों में एक्टर कहां है?
जो एक्टर सुभाष घई है, उसी ने सब कुछ बनाया है। फिल्मों की स्क्रिप्ट लिखना। संजय दत्त, शाहरुख खान और अनिल कपूर से एक्टिंग करवाना। इन सभी के चरित्रों को लिखना और उनसे परफॉर्म करवा लेना वास्तव में मेरी अभिनय क्षमता से ही संभव हुआ। मेरे किरदार बड़े चटपटे और मजेदार होते हैं। वे एक आयामी और नीरस नहीं होते। आप युवराज में सलमान खान, जाएद खान, अनिल कपूर और कैटरीना कैफ के अभिनय में सुभाष घई को पा सकते हैं।
अपने कॅरियर का टर्निग पाइंट किसे मानते हैं?
दूसरे निर्माताओं के लिए फिल्में बनाते हुए मुझे कई तरह के समझौते करने पड़ते थे। बहुत तकलीफ होती थी। फिर एक मित्र आए। उन्होंने सपोर्ट किया। मुझे निर्माता बनने में डर लगता था। उस मित्र की मदद से मैंने कर्ज बनायी। वह मेरे हिसाब से बनी। कर्ज की बहुत सराहना हुई। उसकी रीमेक अभी आयी है। वह पहला टर्निग पाइंट रहा। फिर एक टर्निग पाइंट हीरो से आया। वह फिल्म मैंने स्टार सिस्टम के विरोध में की थी। मैंने एक नए लड़के-लड़की को लेकर हीरो फिल्म बनायी। वह उस समय की मल्टीस्टारर फिल्मों से बड़ी हिट साबित हुई। उस फिल्म ने मुझे नया मोड़ और मान दिया। उसके बाद दिलीप कुमार के साथ बनी कर्मा और सौदागर को भी मोड़ मानता हूं। मुक्ता आटर््स के तौर पर मैंने सबसे पहली पब्लिक लिमिटेड कंपनी स्थापित की। फिर ह्विस्लिंग वुड इंस्टीट्यूट की स्थापना भी बड़ी घटना है। अपनी इच्छाशक्ति और ऊर्जा के दम पर यहां तक पहुंचा।
युवराज के प्रचार से ताल की याद आ रही है?
ताल से तुलना स्वाभाविक है। इस फिल्म के बारे में सोचते समय भी ताल हमारे दिमाग में थी। मैंने रहमान साहब से बात भी की थी। इसका संगीत सुनते समय ऐसा लग सकता है कि ताल जैसी फिल्म होगी। फिल्म रिलीज होने के बाद यह धारणा बदल जाएगी। ताल एक लड़की की कहानी थी। यह तीन भाइयों की मसालेदार कहानी है। फिल्म देखते समय पृथकता महसूस होगी। वैसे दोनों ही सुभाष घई की फिल्में हैं तो समानता स्वाभाविक है। एम एफ हुसैन की रेखाएं उनकी कृतियों में आती रहेंगी।
युवराज के कलाकारों के चुनाव के बारे में क्या कहेंगे?
कहानी लिखते समय मेरे दिमाग में किरदार रहते हैं। फिर उन किरदारों के लिहाज से एक्टर चुनता हूं। उनकी सहूलियत देखता हूं। उनकी उपलब्धता और सहूलियत देख कर ही चुनता हूं। इस फिल्म के लिए सलमान खान राजी हो गए। अनिल कपूर मुझ पर पूरा विश्वास करते हैं। जाएद खान मेरे साथ काम करना चाहते थे। इस तरह मेरी टीम पूरी हो गयी। फिल्म में तीनों एकदम उपयुक्त लगेंगे। आप तय नहीं कर पाएंगे कि किस ने सबसे अच्छा परफॉर्म किया है।
कैटरीना कैफ को चुनने की वजह क्या रही?
कैटरीना को इसलिए चुना कि उन्हें म्यूजिसियन का रोल करना था। मुझे ऐसी एक्ट्रेस चाहिए थी, जो देखने में योरोपीयन लगे। मेरी फिल्म योरोप में है। कैटरीना वेस्टर्न आर्केस्ट्रा में काम करती हैं। इस फिल्म में वह बहुत खूबसूरत लगी हैं। उन्होंने अपने किरदार को अच्छी तरह निभाया है।
आपकी युवराज आ रही है। इस फिल्म की झलकियां देख कर कहा जा रहा है कि यह सुभाष घई की वापसी होगी?
मैं तो यही कहूंगा कि कहीं गया ही नहीं था तो वापसी कैसी? सुभाष घई का जन्म इस फिल्म इंडस्ट्री में हुआ है। उसका मरण भी यहीं होगा। हां, बीच के कुछ समय में मैं आने वाली पीढ़ी और देश के लिए कुछ करने के मकसद से फिल्म स्कूल की स्थापना में लगा था। पंद्रह साल पहले मैंने यह सपना देखा था। वह अभी पूरा हुआ। ह्विस्लिंग वुड्स की स्थापना में चार साल लग गए। पचहत्तर करोड़ की लागत से यह इंस्टीट्यूट बना है। मैं अपना ध्यान नहीं भटकाना चाहता था, इसलिए मैंने फिल्म निर्देशन से अवकाश ले लिया था। पिछले साल मैंने दो फिल्मों की योजना बनायी। एक का नाम ब्लैक एंड ह्वाइट था और दूसरी युवराज थी। पहली सीरियस लुक की फिल्म थी। युवराज कमर्शियल फिल्म है। मेरी ऐसी फिल्म का दर्शकों को इंतजार रहा है, इसलिए युवराज के प्रोमो देखने के बाद से ही सुभाष घई की वापसी की बात चल रही है।
सुभाष घई देश के प्रमुख एंटरटेनर रहे हैं, क्या इसलिए दर्शकों को आपकी शैली की फिल्म का इंतजार रहता है?
लोग जब पूछते हैं कि मेरी अगली फिल्म कौन सी होगी, तो खुशी होती है, लेकिन साथ ही चिंता बढ़ जाती है। ब्लैक एंड ह्वाइट के निर्देशन के समय मैं आश्वस्त था कि मुझे सीरियस फिल्म बनानी है। टेररिज्म पर वह फिल्म थी। मैंने तय कर लिया था कि उसमें कोई भी कमर्शियल मसाला नहीं होगा। युवराज पूरी तरह से कमर्शियल फिल्म है। इसका म्यूजिक रिलीज हो चुका है और वह लोगों को पसंद आ रहा है। यह हमारी पहली सफलता है। दूसरी सफलता 21 नवंबर को रिलीज पर निर्भर करती है। मुझे उम्मीद है कि दर्शकों को उनके इंतजार का मनोरंजक फल मिलेगा।
युवराज के बारे में बताएं? यह किस रूप में विशेष फिल्म है?
युवराज म्यूजिकल फिल्म है। मेरी फिल्मों में लोगों को भव्यता के साथ मधुर संगीत की अपेक्षा रहती है। इस फिल्म में दोनों चीजें हैं। फिल्म की कहानी सिंपल है, लेकिन उसके मूवमेंट्स और रिश्ते बहुत मजबूत हैं। आशा करता हूं कि यह फिल्म दर्शकों को पसंद आएगी। फिल्म में बताया गया है कि पैसों की वजह से परिवार में कैसे हमारे संबंध बदल जाते हैं। हम ऊपर से प्यार जतलाते हैं, लेकिन अंदर से पैसों के बारे में सोचते रहते हैं। परिवार का मुखिया पूरे परिवार के लिए पैसे बनाता और जोड़ता है, लेकिन पैसा आते ही परिवार टूटना शुरू हो जाता है। यह आज की बड़ी समस्या है, मैंने इसी को संगीत और चरित्रों के माध्यम से मनोरंजक रूप में पेश किया है। इसमें एक संदेश भी मिलेगा।
सुभाष घई कई स्तरों पर काम करते हैं। उन कामों की जिम्मेदारी निभाते समय अलग व्यक्तित्व रहता होगा आपका, उनमें कैसे सामंजस्य बिठाते हैं?
सुभाष घई लेखक और निर्देशक हैं। वे एक पब्लिक लिमिटेड कंपनी के चेयरमैन हैं। उन्हें अपने निवेशकों की लाभ-हानि के बारे में सोचना पड़ता है। तीसरा रूप शिक्षक का है। मुझे इस बात की खुशी है कि मैं ऐसा इंस्टीट्यूट खोल सका, जो आज दूसरे या तीसरे नंबर पर है। आप भारतीय इतिहास को देखें तो पाएंगे कि अनेक व्यक्तियों ने कई काम एक साथ किए हैं। मैं तो तीन ही कर पा रहा हूं। जमाना बहुआयामी व्यक्तित्व का है। मैं एक साथ व्यापारी, रचनाकार और शिक्षक हूं। काम में मन लगे तो सामंजस्य बिठाना मुश्किल नहीं होता। हां, मैं राजनीति में नहीं जा सकता। मैं खेल जगत में नहीं जा सकता।
सुभाष घई एक्टर बनने की इच्छा से फिल्म इंडस्ट्री में आए थे। आज सुभाष घई की अनेक पहचानों में एक्टर कहां है?
जो एक्टर सुभाष घई है, उसी ने सब कुछ बनाया है। फिल्मों की स्क्रिप्ट लिखना। संजय दत्त, शाहरुख खान और अनिल कपूर से एक्टिंग करवाना। इन सभी के चरित्रों को लिखना और उनसे परफॉर्म करवा लेना वास्तव में मेरी अभिनय क्षमता से ही संभव हुआ। मेरे किरदार बड़े चटपटे और मजेदार होते हैं। वे एक आयामी और नीरस नहीं होते। आप युवराज में सलमान खान, जाएद खान, अनिल कपूर और कैटरीना कैफ के अभिनय में सुभाष घई को पा सकते हैं।
अपने कॅरियर का टर्निग पाइंट किसे मानते हैं?
दूसरे निर्माताओं के लिए फिल्में बनाते हुए मुझे कई तरह के समझौते करने पड़ते थे। बहुत तकलीफ होती थी। फिर एक मित्र आए। उन्होंने सपोर्ट किया। मुझे निर्माता बनने में डर लगता था। उस मित्र की मदद से मैंने कर्ज बनायी। वह मेरे हिसाब से बनी। कर्ज की बहुत सराहना हुई। उसकी रीमेक अभी आयी है। वह पहला टर्निग पाइंट रहा। फिर एक टर्निग पाइंट हीरो से आया। वह फिल्म मैंने स्टार सिस्टम के विरोध में की थी। मैंने एक नए लड़के-लड़की को लेकर हीरो फिल्म बनायी। वह उस समय की मल्टीस्टारर फिल्मों से बड़ी हिट साबित हुई। उस फिल्म ने मुझे नया मोड़ और मान दिया। उसके बाद दिलीप कुमार के साथ बनी कर्मा और सौदागर को भी मोड़ मानता हूं। मुक्ता आटर््स के तौर पर मैंने सबसे पहली पब्लिक लिमिटेड कंपनी स्थापित की। फिर ह्विस्लिंग वुड इंस्टीट्यूट की स्थापना भी बड़ी घटना है। अपनी इच्छाशक्ति और ऊर्जा के दम पर यहां तक पहुंचा।
युवराज के प्रचार से ताल की याद आ रही है?
ताल से तुलना स्वाभाविक है। इस फिल्म के बारे में सोचते समय भी ताल हमारे दिमाग में थी। मैंने रहमान साहब से बात भी की थी। इसका संगीत सुनते समय ऐसा लग सकता है कि ताल जैसी फिल्म होगी। फिल्म रिलीज होने के बाद यह धारणा बदल जाएगी। ताल एक लड़की की कहानी थी। यह तीन भाइयों की मसालेदार कहानी है। फिल्म देखते समय पृथकता महसूस होगी। वैसे दोनों ही सुभाष घई की फिल्में हैं तो समानता स्वाभाविक है। एम एफ हुसैन की रेखाएं उनकी कृतियों में आती रहेंगी।
युवराज के कलाकारों के चुनाव के बारे में क्या कहेंगे?
कहानी लिखते समय मेरे दिमाग में किरदार रहते हैं। फिर उन किरदारों के लिहाज से एक्टर चुनता हूं। उनकी सहूलियत देखता हूं। उनकी उपलब्धता और सहूलियत देख कर ही चुनता हूं। इस फिल्म के लिए सलमान खान राजी हो गए। अनिल कपूर मुझ पर पूरा विश्वास करते हैं। जाएद खान मेरे साथ काम करना चाहते थे। इस तरह मेरी टीम पूरी हो गयी। फिल्म में तीनों एकदम उपयुक्त लगेंगे। आप तय नहीं कर पाएंगे कि किस ने सबसे अच्छा परफॉर्म किया है।
कैटरीना कैफ को चुनने की वजह क्या रही?
कैटरीना को इसलिए चुना कि उन्हें म्यूजिसियन का रोल करना था। मुझे ऐसी एक्ट्रेस चाहिए थी, जो देखने में योरोपीयन लगे। मेरी फिल्म योरोप में है। कैटरीना वेस्टर्न आर्केस्ट्रा में काम करती हैं। इस फिल्म में वह बहुत खूबसूरत लगी हैं। उन्होंने अपने किरदार को अच्छी तरह निभाया है।
Comments
kuch yuvraj ke baare me bhi likhe.
your other reviews are great.
If you read me plz reply.
Gajendra singh bhati
IIMC