जन्मदिन विशेष:तब शाहरुख गार्जियन बन जाते हैं
-अब्बास टायरवाला
शाहरुख खान की जिन दो फिल्मों अशोका और मैं हूं ना का लेखन मैंने किया, उन दोनों के वे स्वयं निर्माता भी थे। निर्माता होने के साथ ही उन्होंने फिल्मों में लीड भूमिकाएं भी की थीं। गौर करने वाली बात यह है कि दोनों निर्देशकों को ही उन्होंने पहला अवसर दिया था। हालांकि संतोष शिवन पहले फिल्म बना चुके थे, लेकिन हिंदी में यह उनकी पहली फिल्म थी और यह अवसर उन्हें शाहरुख ने ही दिया। वैसे, संतोष हों या फराह खान, दोनों ही उनके पुराने परिचित और करीबी हैं। संतोष से उनकी मित्रता दिल से के समय हुई थी। इसी तरह फराह उनकी फिल्मों में नृत्य-निर्देशन करती रही हैं। फराह को वे छोटी बहन की तरह मानते हैं। शाहरुख के व्यक्तित्व की यही खास बात है कि वे अपने करीबी लोगों के गार्जियन बन जाते हैं या यूं कहें कि लोग उन्हें उसी रूप में देखने लगते हैं। सच तो यह है कि वे अपने मित्र और भरोसे के व्यक्तियों के साथ काम करना पसंद करते हैं। लोग उनके निर्देशक की सूची बनाकर देख सकते हैं। बतौर ऐक्टर वे अपने निर्देशक पर पूरी तरह से निर्भर करते हैं। शायद इसी वजह से भी वे मित्र निर्देशकों की फिल्में करते हैं। अशोका की शूटिंग का किस्सा बताता हूं, जिसमें कुछ नए ऐक्टर थे। शूटिंग करते समय एक प्वॉइंट के बाद शाहरुख के परफॉर्मेस से संतोष संतुष्ट हो जाते थे। शाहरुख के हिसाब से शॉट भी ओके हो जाता था, लेकिन साथ के कलाकारों की किसी छोटी गड़बड़ी से कई बार शॉट फिर से लेना पड़ता था। ऐसे में शाहरुख ने कभी उफ तक नहीं की और न कभी नए ऐक्टरों के बारे में कुछ कहा! वे शांत भाव से ओके किए शॉट को ही रिपीट कर देते थे। उनकी यह खूबी होती थी कि नए शॉट में वे कुछ नया नहीं जोड़ते थे। वे पहले शॉट की तरह खास समय पर ही पलकें झपकाते थे, टर्न लेते थे और मुस्कराते थे। दो-चार सेकंड भी आगे-पीछे नहीं होते थे। शाहरुख की ऐक्टिंग या कैमरे के सामने उनका परफॉर्मेस कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग की तरह होता है। वे मेथॅड ऐक्टर नहीं हैं, लेकिन उनकी ऐक्टिंग की अपनी मेथॅडोलॉजी है। शाहरुख को जानना मुश्किल काम नहीं है। दरअसल, उनके बारे में हर कोई सारी बातें जानता है। उनसे चालू किस्म की जान-पहचान सभी से रहती है, लेकिन आप उन्हें किसी परिचित या स्टार से अधिक नहीं जान पाते। वे बहुत ही उम्दा अभिनेता हैं। पर्दे की तरह वे जिंदगी में भी बारीकी से अभिनय करते हैं और आपको दोस्त बताते हुए भी खुद से दूर रखते हैं। शाहरुख को गहरे दोस्त और व्यक्ति के रूप में जानना बहुत कम लोगों को नसीब हुआ है। वे सभी से कायदे से बात करते हैं। खुलकर जरूर मिलते हैं, लेकिन यदि लोग गौर करेंगे, तो पाएंगे कि वे अपने इर्द-गिर्द ऊंची दीवार तो नहीं, लेकिन एक पर्दा जरूर रखते हैं। उस पर्दे के पार के इनसान और शाहरुख को जान पाना आसान नहीं है। दरअसल, उस पर्दे के भीतर बहुत कम लोगों को ही आने दिया जाता है। पर्दे के बाहर से जो झीना-झीना दिखता है, वह बहुत साफ और सच्चा नहीं होता। असली शाहरुख तो पर्दे के अंदर हैं। शाहरुख ने कामयाबी हासिल की है, जो कि उन्हें किसी से खैरात में नहीं मिली है। लोग देखें कि दिल्ली से आया एक लड़का कैसे मुंबई में धीरे-धीरे सबसे मजबूत और चमकता सितारा बन गया! इसके पीछे उनकी मेहनत और लगन है। दर्शकों ने उन्हें सिर पर बिठाया, लेकिन शाहरुख ने यह साबित किया कि वे इस काबिल हैं। उन्होंने अपने प्रशंसक और दर्शकों को कभी निराश नहीं किया। उन्होंने निर्माता-निर्देशकों को हमेशा उचित सम्मान दिया और सेट पर शूटिंग के वक्त निर्देशक के हर आदेश का पालन भी किया। मैंने देखा है कि वे दूसरों की तरह निर्देशकों को सुझाव नहीं देते। मैं चाहूंगा कि भविष्य में कभी उन्हें निर्देशित करूं। मुझे पूरा यकीन है कि वे अपने पुराने निर्देशकों की तरह मुझ पर भी भरोसा करेंगे। उनके साथ काम करने का मेरा पिछला अनुभव हर लिहाज से सुखद और फायदेमंद रहा। उनके जन्मदिन पर बधाई देने के साथ मैं उनकी सुखद जिंदगी और कामयाब करियर की दुआ करता हूं।
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