दरअसल:क्यों धीरे चलें बच्चन?
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बहुत पहले की बात न करें। पिछले छह महीनों की दिनचर्या ही देख लें, तो अमिताभ बच्चन की व्यस्तता और सक्रियता का अनुमान हो जाएगा। सबूत के लिए उनके ब्लॉग पर जाएं। वहां दिखेगा कि पिछले छह महीनों में ही उन्होंने इस पृथ्वी पर पूर्व से पश्चिम और पश्चिम से पूर्व की कई यात्राएं कीं। कई देशों में गए और अनेक कार्यक्रमों में भी शामिल हुए। अपने परिजन और अन्य स्टारों के साथ अनफारगेटेबल टुअॅर पूरा किया। नई फिल्मों के लिए बैठकें कीं। प्रतिकूल परिस्थितियों और मौसम में फिल्मों की शूटिंग की। 66-67 की उम्र में उनकी यह सक्रियता अचंभित करती है। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में देव आनंद को सदाबहार अभिनेता कहा जाता है। ऐसे में अमिताभ बच्चन को सदासक्रिय अभिनेता कहना गलत नहीं होगा।
सारी सुविधाओं और साधन के बावजूद अमिताभ बच्चन नहीं चाहते कि उनकी वजह से किसी और को परेशानी या तकलीफ हो। यही वजह रही होगी कि इस बार जन्मदिन से पहले वाली रात को पेट दर्द होने पर भी वे बर्दाश्त करते रहे। शायद उन्होंने सोचा हो कि दर्द खुद ही कम हो जाएगा और उनके जन्मदिन के अवसर पर एकत्रित हुए परिचितों और शुभचिंतकों की खुशी में खलल नहीं पड़ेगी। जन्मदिन के दिन भी सामान्य दिनचर्या आरंभ हुई। वे अपने प्रशंसकों के अभिवादन के लिए बाहर आने वाले थे, लेकिन पेट का दर्द असहनीय हो गया और आखिरकार उन्हें मेडिकल सहायता भी लेनी पड़ी। पहले नानावटी और फिर लीलावती अस्पताल जाना पड़ा। निश्चित ही इन पंक्तियों के छपने तक वे सकुशल घर लौट आएंगे, लेकिन उपचार के बाद उन्हें विश्राम की आवश्यकता भी होगी। उनके सारे शुभचिंतक मानते हैं कि उन्हें अपनी उम्र का लिहाज करते हुए थोड़ा धीरे चलना चाहिए। उन्हें अपनी सक्रियता कम करनी चाहिए। उन्हें अहसास होना चाहिए कि अब उनमें युवावस्था वाली ऊर्जा नहीं है!
पिछले दिनों एक पत्रकार मित्र ने उन्हें सलाह दी कि उन्हें थोड़ा धीरे चलना चाहिए। उन्होंने पलटकर पूछा, क्यों धीरे चलूं मैं? उनका यह सवाल बताता है कि वे अपनी सक्रियता कम करने के मूड में नहीं हैं। उनके करीबी बताते हैं कि वे सुबह से देर रात तक व्यस्त रहते हैं। ऐसे में उन्हें खुद के साथ समय बिताने या अपने शरीर पर अतिरिक्त ध्यान देने का अवसर ही नहीं मिल पाता। वे इसकी अधिक परवाह नहीं करते। डॉक्टर की सलाह के मुताबिक आवश्यक एक्सरसाइज करने के अलावा, वे उम्र की जरूरत के हिसाब से विश्राम नहीं करते। करीबी बताते हैं कि इन दिनों फुर्सत मिलते ही वे लैपटॉप खोलकर बैठ जाते हैं और अपने ब्लॉग पर नई पोस्ट लिखने या ब्लॉगरों के पत्र पढ़ने और उन्हें जवाब देने में व्यस्त हो जाते हैं। उनकी दिनचर्या में से घंटे-दो घंटे का समय ब्लॉग लेखन और उसकी अपडेटिंग में निकल जाता है। इससे भी मानसिक थकान होती है।
अमिताभ बच्चन 1982 के बड़े आघात के बाद छिटपुट बीमारियों के शिकार होते रहे हैं। किसी आम इनसान की तरह ही उन्हें भी ज्वर, खांसी और अन्य आम बीमारियां होती हैं, फिर भी वे दवाइयों का उपयोग कर अपना काम जारी रखते हैं। अनफारगेटेबल टुअॅर के दौरान भी वे बीमार पड़े थे, लेकिन उन्होंने अपना शो रद्द नहीं किया। उन्होंने शो के टिकट खरीद चुके दर्शकों और प्रशंसकों को निराश नहीं किया, लेकिन उसका असर शरीर पर पड़ा। संभव है, उन दिनों की थकान और शारीरिक पीड़ाएं एकत्रित होकर इस असहनीय स्थिति में पहुंची हों। अभी उनकी तीन फिल्में फ्लोर पर हैं। अलादीन पूरी हो चुकी है, लेकिन जनवरी तक शूबाइट और तीन पत्ती की शूटिंग होनी है। अगले साल उन्होंने बड़े निर्देशकों की बड़ी फिल्मों के लिए हां कह रखा है। संजय लीला भंसाली, राकेश मेहरा, रवि चोपड़ा, प्रीतीश नंदी, डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी और बालाकृष्णन की फिल्में भी आरंभ होनी हैं। इन सभी फिल्मों में उन्हें अलग-अलग भूमिकाएं निभानी हैं। हमें लगता है कि ऐक्टिंग आनंददायक कार्य है, लेकिन ऐक्टिंग की तकलीफ को कोई ऐक्टर ही समझ सकता है। हर भूमिका की अलग डिमांड होती है और उसे पूरा करने में ऐक्टर निचुड़ता है। अमिताभ बच्चन के प्रशंसक के रूप में हम सभी चाहेंगे कि वे जीवनपर्यत सक्रिय रहें, फिल्मों में काम करते रहें, लेकिन वे खुद को भी थोड़ा समय दें। धीरे चलने में क्या बुराई है? पुरानी कहावत भी है कि लंबा चलना है, तो धीरे चलो..।
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