बच्चन का सराहनीय व्यवहार
-अजय ब्रह्मात्मज
यह उम्र का असर हो सकता है। यह भी संभव है कि इसके पीछे किसी भी प्रकार के विवाद से दूर रहने की मंशा काम करती हो। इन दिनों अमिताभ बच्चन तुरंत बचाव की मुद्रा में आ जाते हैं। वे अपने ब्लॉग पर झट से लिखते हैं कि अगर मेरी बात से कोई आहत हुआ हो, तो मैं माफी मांगता हूं। एंग्री यंग मैन अब कूल ओल्ड मैन में बदल चुका है। उनके इस आकस्मिक व्यवहार से उनके पुराने प्रशंसकों को तकलीफ भी हो सकती है। विजय अब चुनौती नहीं देता। मुठभेड़ नहीं करता। विवाद की स्थिति आने पर दो कदम पीछे हट कर माफी मांग लेता है। ऐक्टर की इमेज को सच समझने वालों को निश्चित ही अमिताभ बच्चन की ऐसी मुद्राओं से आश्चर्य होता होगा! पिछले दिनों मुंबई में जो हुआ, उसे एक प्रहसन ही कहा जा सकता है। द्रोण फिल्म की म्यूजिक रिलीज के अवसर पर जया बच्चन के कथन का गलत आशय निकाला गया और उसे मराठी अस्मिता से जोड़कर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे ने बच्चन परिवार के विरोध का नारा दे दिया। बच्चन परिवार उनके निशाने पर पहले से है। इस विरोध के कारणों की पड़ताल करें तो हम राज ठाकरे के वक्तव्य और आचरण का निहितार्थ समझ सकते हैं। बच्चन को निशाना बना कर ही वे राष्ट्रीय खबरों में आ सकते हैं। दूसरे बच्चन ने अपनी इंटरनेशनल लोकप्रियता के बावजूद यह कभी नहीं छिपाया कि वे यूपी के हैं। छोरा गंगा किनारे वाला के नाम से मशहूर अमिताभ बच्चन उत्तर प्रदेश के साथ ही सारे हिंदी प्रदेशों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
हिंदी भाषा और उससे जुड़े मसलों की यही विडंबना है कि कोई भी इसके समर्थन में खड़ा नहीं होता। हिंदी इस देश की राजभाषा है। इस भाषा के बोलने पर एक प्रादेशिक नेता बिफर जाता है। मजेदार तथ्य यह है कि कानून और व्यवस्था के जिम्मेदार भी हाथ खड़े कर देते हैं। अमिताभ बच्चन को माफी मांगनी पड़ती है। अगले चुनाव के समीकरणों को देखते हुए कोई भी राजनीतिक पार्टी एक मशहूर नागरिक के लोकतांत्रिक और संवैधानिक अधिकार का समर्थन नहीं करती। ऊहापोह की इस स्थिति में सदी के महानायक को माफी मांगने के अलावा और कोई उपाय नहीं सूझता।
अमिताभ बच्चन ने अपने ब्लॉग पर माफीनामे के साथ जो सफाई पेश की है, उससे उनकी असहाय स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। उन्हें एक-एक कर सारे कार्यो का विवरण देना पड़ा है और बताना पड़ा है कि उन्होंने कब और कैसे मराठी लोगों की मदद की। वे अपने इस पोस्ट में बचाव की मुद्रा में दिखते हैं। समझ में नहीं आता कि उन्हें इस तरह अपने बचाव में सबूत पेश करने की क्या जरूरत पड़ गई? और इसके बावजूद उनके खिलाफ उठाया कदम वापस नहीं लिया जाता। जब वे सार्वजनिक माफी मांगते हैं और उसे विभिन्न समाचार चैनलों के जरिए दिखाया और समाचार पत्रों के जरिए पढ़ाया जाता है, तब जाकर विवाद समाप्त होता है।
बच्चन परिवार के इस प्रसंग ने कई सवाल छोड़ दिए हैं? जरूरत है कि इन सवालों पर हम समय रहते विचार करें और किसी कारगर नतीजे पर पहुंचें। अगर कोई राह नहीं खोजी गई, तो भविष्य में इससे भयंकर घटनाएं होंगी। धर्म, राजनीति और संप्रदाय में बंटे देश को भाषा के आधार पर बांटने की नई कोशिश की जाएगी। हिंदी फिल्मों का अस्तित्व खतरे में नहीं पड़ेगा, क्योंकि वह बाजार की जरूरत है। बाजार की जरूरत हर किस्म के भेदभाव और राजनीति से ऊपर रहती है, लेकिन अस्मिता और अहं की लड़ाई में कई बार व्यक्तियों और समूहों का नुकसान होता है। गनीमत है कि बच्चन परिवार के सदस्य सुरक्षित रहे, लेकिन संवेदनशील अमिताभ बच्चन को मानसिक आघात अवश्य लगा होगा। यह उनका बड़प्पन है कि उन्होंने बगैर कोई अपराध किए ही माफी मांग ली। उन्होंने शांति की पहल की, निश्चित ही उनका यह प्रयास सराहनीय है।
यह उम्र का असर हो सकता है। यह भी संभव है कि इसके पीछे किसी भी प्रकार के विवाद से दूर रहने की मंशा काम करती हो। इन दिनों अमिताभ बच्चन तुरंत बचाव की मुद्रा में आ जाते हैं। वे अपने ब्लॉग पर झट से लिखते हैं कि अगर मेरी बात से कोई आहत हुआ हो, तो मैं माफी मांगता हूं। एंग्री यंग मैन अब कूल ओल्ड मैन में बदल चुका है। उनके इस आकस्मिक व्यवहार से उनके पुराने प्रशंसकों को तकलीफ भी हो सकती है। विजय अब चुनौती नहीं देता। मुठभेड़ नहीं करता। विवाद की स्थिति आने पर दो कदम पीछे हट कर माफी मांग लेता है। ऐक्टर की इमेज को सच समझने वालों को निश्चित ही अमिताभ बच्चन की ऐसी मुद्राओं से आश्चर्य होता होगा! पिछले दिनों मुंबई में जो हुआ, उसे एक प्रहसन ही कहा जा सकता है। द्रोण फिल्म की म्यूजिक रिलीज के अवसर पर जया बच्चन के कथन का गलत आशय निकाला गया और उसे मराठी अस्मिता से जोड़कर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे ने बच्चन परिवार के विरोध का नारा दे दिया। बच्चन परिवार उनके निशाने पर पहले से है। इस विरोध के कारणों की पड़ताल करें तो हम राज ठाकरे के वक्तव्य और आचरण का निहितार्थ समझ सकते हैं। बच्चन को निशाना बना कर ही वे राष्ट्रीय खबरों में आ सकते हैं। दूसरे बच्चन ने अपनी इंटरनेशनल लोकप्रियता के बावजूद यह कभी नहीं छिपाया कि वे यूपी के हैं। छोरा गंगा किनारे वाला के नाम से मशहूर अमिताभ बच्चन उत्तर प्रदेश के साथ ही सारे हिंदी प्रदेशों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
हिंदी भाषा और उससे जुड़े मसलों की यही विडंबना है कि कोई भी इसके समर्थन में खड़ा नहीं होता। हिंदी इस देश की राजभाषा है। इस भाषा के बोलने पर एक प्रादेशिक नेता बिफर जाता है। मजेदार तथ्य यह है कि कानून और व्यवस्था के जिम्मेदार भी हाथ खड़े कर देते हैं। अमिताभ बच्चन को माफी मांगनी पड़ती है। अगले चुनाव के समीकरणों को देखते हुए कोई भी राजनीतिक पार्टी एक मशहूर नागरिक के लोकतांत्रिक और संवैधानिक अधिकार का समर्थन नहीं करती। ऊहापोह की इस स्थिति में सदी के महानायक को माफी मांगने के अलावा और कोई उपाय नहीं सूझता।
अमिताभ बच्चन ने अपने ब्लॉग पर माफीनामे के साथ जो सफाई पेश की है, उससे उनकी असहाय स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। उन्हें एक-एक कर सारे कार्यो का विवरण देना पड़ा है और बताना पड़ा है कि उन्होंने कब और कैसे मराठी लोगों की मदद की। वे अपने इस पोस्ट में बचाव की मुद्रा में दिखते हैं। समझ में नहीं आता कि उन्हें इस तरह अपने बचाव में सबूत पेश करने की क्या जरूरत पड़ गई? और इसके बावजूद उनके खिलाफ उठाया कदम वापस नहीं लिया जाता। जब वे सार्वजनिक माफी मांगते हैं और उसे विभिन्न समाचार चैनलों के जरिए दिखाया और समाचार पत्रों के जरिए पढ़ाया जाता है, तब जाकर विवाद समाप्त होता है।
बच्चन परिवार के इस प्रसंग ने कई सवाल छोड़ दिए हैं? जरूरत है कि इन सवालों पर हम समय रहते विचार करें और किसी कारगर नतीजे पर पहुंचें। अगर कोई राह नहीं खोजी गई, तो भविष्य में इससे भयंकर घटनाएं होंगी। धर्म, राजनीति और संप्रदाय में बंटे देश को भाषा के आधार पर बांटने की नई कोशिश की जाएगी। हिंदी फिल्मों का अस्तित्व खतरे में नहीं पड़ेगा, क्योंकि वह बाजार की जरूरत है। बाजार की जरूरत हर किस्म के भेदभाव और राजनीति से ऊपर रहती है, लेकिन अस्मिता और अहं की लड़ाई में कई बार व्यक्तियों और समूहों का नुकसान होता है। गनीमत है कि बच्चन परिवार के सदस्य सुरक्षित रहे, लेकिन संवेदनशील अमिताभ बच्चन को मानसिक आघात अवश्य लगा होगा। यह उनका बड़प्पन है कि उन्होंने बगैर कोई अपराध किए ही माफी मांग ली। उन्होंने शांति की पहल की, निश्चित ही उनका यह प्रयास सराहनीय है।
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क्षमा, शान्ति का अमोघ अस्त्र है.
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डॉ चन्द्रकुमार जैन