फ़िल्म समीक्षा:१९२०

डर लगता है
-अजय ब्रह्मात्मज

डरावनी फिल्म की एक खासियत होती है कि वह उन दृश्यों में नहीं डराती, जहां हम उम्मीद करते हैं। सहज ढंग से चल रहे दृश्य के बीच अचानक कुछ घटता है और हम डर से सिहर उठते हैं। विक्रम भट्ट की 1920 में ऐसे कई दृश्य हैं। इसे देखते हुए उनकी पिछली डरावनी फिल्म राज के प्रसंग याद आ सकते हैं। यह विक्रम की विशेषता है।

1920 वास्तव में एक प्रेम कहानी है, जो आजादी के पहले घटित होती है। अर्जुन और लिसा विभिन्न धर्मोके हैं। अर्जुन अपने परिवार के खिलाफ जाकर लिसा से शादी कर लेता है। शादी के तुरंत बाद दोनों एक मनोरम ठिकाने पर पहुंचते हैं। वहां रजनीश को एक पुरानी हवेली को नया रूप देना है। फिल्म में हम पहले ही देख चुके हैं कि हवेली में बसी अज्ञात शक्तियां ऐसा नहीं होने देतीं। लिसा को वह हवेली परिचित सी लगती है। उसे कुछ आवाजें सुनाई पड़ती हैं और कुछ छायाएं भी दिखती हैं। ऐसा लगता है किहवेली से उसका कोई पुराना रिश्ता है। वास्तव में हवेली में बसी अतृप्त आत्मा को लिसा का ही इंतजार है। वह लिसा के जिस्म में प्रवेश कर जाती है। जब अर्जुन को लिसा की अजीबोगरीब हरकतों से हैरत होती है तो वह पहले मेडिकल सहायता लेता है। डाक्टर के असफल होने पर वह पादरी की भी मदद लेता है। आखिरकार उसे बचपन में सुने कुछ भजन और मंत्र याद आते हैं और वह उनके उपयोग से लिसा को बचाता है।

डरावनी फिल्मों में रूढि़यां, धार्मिक मान्यताएं और पुराने विश्वास इस्तेमाल किए जाते हैं। विक्रम ने भी इस फिल्म में धार्मिक भजन का उपयोग किया है। इस फिल्म को रहस्यपूर्ण बनाने में उन्हें फिल्म के छायाकार प्रवीण भट्ट की भरपूर मदद मिली है। फिल्म का कला पक्ष उल्लेखनीय है। 1920 को पीरियड का रंग और परिवेश देने में कला निर्देशक राजेश पोद्दार ने मनोयोग से काम किया है।

1920 रजनीश और अदा शर्मा की पहली फिल्म है। अदा की अदाकारी से ऐसा नहीं लगता कि यह उनकी पहली फिल्म है। अदा ने सभी तरह के भावों को सुंदर तरीके से अभिव्यक्त किया है। उनके साथ रजनीश भी जंचे हैं। विक्रम की पिछली कुछ फिल्में दर्शकों ने नापसंद की थीं। इस फिल्म से उन्हें अपने दर्शक वापस मिल सकते हैं। अगर संगीत भी परिवेश के अनुरूप होता तो फिल्म का प्रभाव और बढ़ जाता। राखी सावंत का आइटम गीत अनावश्यक है। वह फिल्म में थोपा हुआ लगता है।

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