फ़िल्म समीक्षा:गॉड तूसी ग्रेट हो
ठीक नहीं है परिवर्तन
इस फिल्म की धारणा रोचक है। अगर प्रकृति और जीवन के कथित नियंता भगवान की जिम्मेदारी इंसान को दे दी जाए तो क्या होगा? अरुण प्रजापति नौकरी, प्रेम, परिवार और जीवन की उलझनों में फंसा निराश युवक है। लगातार असफलताओं ने उसे चिडि़चिड़ा बना दिया है। वह भगवान से संवाद करता है और अपनी नाकामियों के लिए उन्हें दोषी ठहराता है। उसके आरोपों से झुंझला कर भगवान उसे अपनी दिव्य शक्तियों से लैस कर देते हैं और कहते हैं कि अगले दस दिनों तक वह दुनिया चलाए।
मध्यवर्गीय अरुण सबसे पहले अपनी समस्याएं दूर करता है और फिर दुनिया भर के लोगों की मनोकामनाएं पूरी कर देता है। सबकी मनोकामना पूरी होते ही दुनिया में हड़कंप मच जाता है। व्यवस्था चरमरा जाती है। फिर भगवान समझाते हैं कि दुनिया को नियंत्रण में रखना कितना जरूरी है। यथास्थिति बनी रहे तो दुनिया सुचारू ढंग से चलती रहती है। परिवर्तन दुनिया के लिए ठीक नहीं है। हर इंसान को अपना जीवन भगवान के ऊपर या सहारे छोड़ देना चाहिए? भगवान इस दुनिया में संतुलन बनाए रखते हैं। दुनिया को व्यवस्थित करने के लिए भगवान उसे फिर से यथास्थिति में ले आते हैं।
इस फिल्म का उद्देश्य इंसान और भगवान की भिड़ंत से लोगों को हंसाना है। कुछ दृश्यों में प्रयास सफल भी रहा है। गॉड तूसी ग्रेट हो में इंसान की इच्छाओं को गलत, असामाजिक, गैरकानूनी और खतरनाक स्वरूप में ही रखा गया है। क्या हर इंसान गलत इच्छाओं के वशीभूत ही रहता है? इंसान को असमर्थ और अयोग्य दिखलाने के लिए उसके सोच को विध्वंसात्मक दिखाया गया है। मनुष्य द्वारा निर्मित सभी जीवनोपयोगी उपकरणों को नजरअंदाज कर बम, बंदूक आदि का उल्लेख किया गया है। बताया गया है कि इंसान ने केवल संहारक चीजें ही बनाई हैं। गॉड तूसी ग्रेट हो मानव सभ्यता के विकास का विरोध करती है और हमें समझाती है कि सुखी रहने के लिए सब कुछ भगवान पर छोड़कर आदिम युग में लौट जाना उचित है।
सलमान के अभिनय में लाउडनेस बढ़ गया है। उन्हें अपनी संवाद अदायगी पर मेहनत करनी चाहिए। अदृश्य को अद्रष्य नहीं बोलना चाहिए। कानों को बुरा लगता है। प्रियंका चोपड़ा सीमित एक्सप्रेशन की अभिनेत्री हैं। योग्य निर्देशक ही उन्हें अलग अंदाज में पेश कर पाते हैं। अमिताभ बच्चन के लिए यह साधारण रोल था, जिसे उन्होंने उतने ही साधारण तरीके से निभा दिया है।
उम्मीद थी कि लेखक के तौर पर सफल रहे रूमी जाफरी की फिल्म ज्यादा रोचक और मनोरंजक होगी। रूमी संतुष्ट तो नहीं करते, लेकिन संकेत देते हैं कि वह दर्शकों की भावनाओं को समझते हैं। समय, संसाधन और सहयोग मिले तो वे अच्छी कामेडी फिल्म बना सकते हैं। इस फिल्म में अरुण के पिता के रूप में उन्होंने अनुपम खेर को जो किरदार दिया है, वह उल्लेखनीय है। अनुपम खेर ने उसे बहुत अच्छी तरह निभाया है।
मुख्य कलाकार : सलमान खान, प्रियंका चोपड़ा, अमिताभ बच्चन, मनीषा कोईराला, अनुपम खेर आदि।
निर्देशक : रूमी जाफरी
तकनीकी टीम : निर्माता- अफजल खान, कथा-पटकथा-संवाद - रूमी जाफरी, गीत- जलीस शेरवानी, शब्बीर अहमद, देवेन शुक्ला, संगीत- साजिद-वाजिद
इस फिल्म की धारणा रोचक है। अगर प्रकृति और जीवन के कथित नियंता भगवान की जिम्मेदारी इंसान को दे दी जाए तो क्या होगा? अरुण प्रजापति नौकरी, प्रेम, परिवार और जीवन की उलझनों में फंसा निराश युवक है। लगातार असफलताओं ने उसे चिडि़चिड़ा बना दिया है। वह भगवान से संवाद करता है और अपनी नाकामियों के लिए उन्हें दोषी ठहराता है। उसके आरोपों से झुंझला कर भगवान उसे अपनी दिव्य शक्तियों से लैस कर देते हैं और कहते हैं कि अगले दस दिनों तक वह दुनिया चलाए।
मध्यवर्गीय अरुण सबसे पहले अपनी समस्याएं दूर करता है और फिर दुनिया भर के लोगों की मनोकामनाएं पूरी कर देता है। सबकी मनोकामना पूरी होते ही दुनिया में हड़कंप मच जाता है। व्यवस्था चरमरा जाती है। फिर भगवान समझाते हैं कि दुनिया को नियंत्रण में रखना कितना जरूरी है। यथास्थिति बनी रहे तो दुनिया सुचारू ढंग से चलती रहती है। परिवर्तन दुनिया के लिए ठीक नहीं है। हर इंसान को अपना जीवन भगवान के ऊपर या सहारे छोड़ देना चाहिए? भगवान इस दुनिया में संतुलन बनाए रखते हैं। दुनिया को व्यवस्थित करने के लिए भगवान उसे फिर से यथास्थिति में ले आते हैं।
इस फिल्म का उद्देश्य इंसान और भगवान की भिड़ंत से लोगों को हंसाना है। कुछ दृश्यों में प्रयास सफल भी रहा है। गॉड तूसी ग्रेट हो में इंसान की इच्छाओं को गलत, असामाजिक, गैरकानूनी और खतरनाक स्वरूप में ही रखा गया है। क्या हर इंसान गलत इच्छाओं के वशीभूत ही रहता है? इंसान को असमर्थ और अयोग्य दिखलाने के लिए उसके सोच को विध्वंसात्मक दिखाया गया है। मनुष्य द्वारा निर्मित सभी जीवनोपयोगी उपकरणों को नजरअंदाज कर बम, बंदूक आदि का उल्लेख किया गया है। बताया गया है कि इंसान ने केवल संहारक चीजें ही बनाई हैं। गॉड तूसी ग्रेट हो मानव सभ्यता के विकास का विरोध करती है और हमें समझाती है कि सुखी रहने के लिए सब कुछ भगवान पर छोड़कर आदिम युग में लौट जाना उचित है।
सलमान के अभिनय में लाउडनेस बढ़ गया है। उन्हें अपनी संवाद अदायगी पर मेहनत करनी चाहिए। अदृश्य को अद्रष्य नहीं बोलना चाहिए। कानों को बुरा लगता है। प्रियंका चोपड़ा सीमित एक्सप्रेशन की अभिनेत्री हैं। योग्य निर्देशक ही उन्हें अलग अंदाज में पेश कर पाते हैं। अमिताभ बच्चन के लिए यह साधारण रोल था, जिसे उन्होंने उतने ही साधारण तरीके से निभा दिया है।
उम्मीद थी कि लेखक के तौर पर सफल रहे रूमी जाफरी की फिल्म ज्यादा रोचक और मनोरंजक होगी। रूमी संतुष्ट तो नहीं करते, लेकिन संकेत देते हैं कि वह दर्शकों की भावनाओं को समझते हैं। समय, संसाधन और सहयोग मिले तो वे अच्छी कामेडी फिल्म बना सकते हैं। इस फिल्म में अरुण के पिता के रूप में उन्होंने अनुपम खेर को जो किरदार दिया है, वह उल्लेखनीय है। अनुपम खेर ने उसे बहुत अच्छी तरह निभाया है।
मुख्य कलाकार : सलमान खान, प्रियंका चोपड़ा, अमिताभ बच्चन, मनीषा कोईराला, अनुपम खेर आदि।
निर्देशक : रूमी जाफरी
तकनीकी टीम : निर्माता- अफजल खान, कथा-पटकथा-संवाद - रूमी जाफरी, गीत- जलीस शेरवानी, शब्बीर अहमद, देवेन शुक्ला, संगीत- साजिद-वाजिद
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