नहीं उतरता जल्दी यश पाने का नशा-महेश भट्ट
पुरानी यहूदी कहावत है- अगर लंबी उम्र चाहते हो तो यशस्वी मत बनो। हाल ही में जेल जाते और वहां से निकलते कमजोर संजय दत्त और समर्पण के लिए जोधपुर जाने से पहले अपने घर की बैलकनी से पीले पड चुके सलमान खान को हाथ हिलाते दिखाकर राष्ट्रीय मीडिया ने हलचल मचा दी। यह सब देखते हुए मुझे लगा कि जिंदगी की सर्वोत्तम चीजें मुफ्त में नहीं मिलतीं। किसी मशहूर हस्ती के जीवन की ट्रैजडी मीडिया के लिए सोने का खजाना होती है। यही कारण है कि मीडिया किसी मशहूर हस्ती की जिंदगी की छोटी से छोटी घटनाओं को भी वैश्विक मनोरंजन में बदल देता है। यश के आकर्षक वृत्त में जीने वाले हम सभी को यह सच समझ लेना चाहिए।
सिनेमा, क्रिकेट या राजनीति, सभी क्षेत्रों के सुपरस्टार ने मीडिया की कमाई बढाने में योगदान किया है। केबल और सैटेलाइट टेलीविजन ने भारत के मध्यमवर्ग को सिनेमाघरों से निकाल लिया। इन दिनों सारे चैनल दर्शकों को उनके पसंदीदा स्टार की जिंदगी की सारी कहानियां परोस रहे हैं, जबकि फिल्मों की कहानियां तो काल्पनिक होती हैं। इसलिए जब एक चैनल के मालिक ने बताया कि टीवी नेटवर्क की कमाई 600 करोड से बढकर 2000 करोड हो गई है तो में चौंका नहीं।
मिलता है लोगों को आनंद
हम दरअसल दृश्यरतिक देश के हैं। हमें चलती-फिरती चीजें देखने में आनंद मिलता है। अपनी जिंदगी की मुश्किलों से बचने के लिए हम अमीर और मशहूर लोगों की जिंदगी में झांकते हैं। इससे अपनी रोजमर्रा की परेशानियों की तकलीफ कम होती है और हमें दूसरों के वास्तविक दुख-दर्द को देखने की आदत पड जाती है। लोग दूसरों के यश को उनके बारे में बढा-चढाकर कही गयी बातों से आंकते हैं और मशहूर हस्तियों के यश को शक्ति प्रदर्शन के रूप में देखते और उसका आनंद लेते हैं। जब भी कोई मशहूर व्यक्ति ध्यान आकर्षित करता है, वह ध्यान देने वालों का शिकार हो जाता है और नरपिशाचों की तरह प्रशंसक और ध्यान देने वाले अपनी जरूरतों के लिए दूसरों के यश के सहारे जीते हैं। पर मशहूर हस्तियों की कहानी परिप्रेक्ष्य से बिलकुल अलग होती है। मैंने अपनी जिंदगी में देखा है कि अपने करियर में ऊंचाई पर चढने के बाद मशहूर हस्तियां यश के प्रति कटु हो जाती हैं। संजीव कुमार अपने ढंग के स्टार थे। अपने करियर की शुरुआत में मैं उनसे कई दफा मिला। एक बार मदिरापान करते समय उन्होंने बताया कि 25 की उम्र में वे यशस्वी होना चाहते थे। 30 तक यशस्वी होने के बाद वे यश के प्रति उदासीन हो गए और 35 की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते ही अपना ही यश उन्हें बुरा लगने लगा।
बढ जाती हैं लोगों की उम्मीदें
यशस्वी होने के बाद आपसे लोगों की उम्मीदें बढ जाती हैं। उनकी मांगें बढ जाती हैं। यशस्वी व्यक्तियों को लगातार सफलता चाहिए, उन पर यह दबाव रहता है, क्योंकि उन पर बडी रकम लगी रहती है। यश पाने के आकांक्षी यशस्वी होने की इस कीमत का अनुमान नहीं लगा पाते। मेरे भतीजे इमरान हाशमी ने एक बार मुझसे कहा, शुरुआती दिनों में पता नहीं रहता कि यश की क्या कीमत देनी होगी। आप अपनी पंक्तियां याद कर रहे होते हैं और नृत्य एवं अभिनय की बारीकियां सीख रहे होते हैं। फिर अचानक आपकी फिल्में सफल हो जाती हैं तो आपको खास किस्म के रोल के लिए सीरियल किसर का खिताब दे दिया जाता है। पर सच तो यह है कि उस नाम और पहचान में आपका कोई योगदान नहीं रहता।
अतीत के सुपरस्टार राजेश खन्ना ने एक बार मुझसे कहा था, अपने जन्मदिन पर एक दिन मैंने महसूस किया कि फूल आने बंद हो गए हैं तो मेरी समझ में आ गया कि मैं लोगों के जेहन से निकल गया हूं। महानतम यश की अवधि इस ब्रह्मांड के आकार और इतिहास के अनुपात में बहुत कम होती है। मशहूर व्यक्तियों के बारे में पढने पर आप पाएंगे कि यश कितना क्षणभंगुर होता है, फिर भी आश्चर्य होता है कि हम उसे स्थायी बनाना चाहते हैं। अजय देवगन ने एक बार मुझसे कहा था, यश का नशा होता है और आपको उसकी आदत लग जाती है।
नहीं छूटती यश की लत
मेरे खयाल में किसी भी समझदार व्यक्ति को यश के लालच से दूर ही रहना चाहिए। अपने चारों तरफ मैं देखता हूं तो पाता हूं कि इससे वाकिफ लोग भी यश के कारण मिल रहे भौतिक और यौन सुखों से मुंह नहीं मोड पाते। यश की चाहत ज्यादा से ज्यादा बाहरी पहचान के लिए प्रेरित करती है, जबकि इससे कोई फायदा नहीं होता। यश के आदी लोगों की प्रशंसा में सुख भोगने लगते हैं और जीवन के दूसरे आनंद में उनका मन नहीं लगता। यशस्वी व्यक्तियों के लिए जन सराहना के आगे सब कुछ तुच्छ हो जाता है। दुनिया के मशहूर बॉक्सर मोहम्मद अली भी यश के भूखे थे। वे अपना नाम रोशनी में पढना चाहते थे और सराहना में चीखते लोगों की आवाज सुनना चाहते थे। यही कारण है कि यश की तलाश में वे शारीरिक रूप से अस्वस्थ होने पर भी बॉक्सिंग करते रहे। यश की उन्हें ऐसी लत लग गई थी।
ख्वाहिश ऐसी भी लोगों की
कुछ लोगों को सिर्फ पहचान के लिए प्रशंसा चाहिए होती है। हॉलीवुड के श्वेत-श्याम दौर की सुपरस्टार कैथरीन हैपबर्न ने एक बार कहा था, शुरुआती दौर में अभिनेत्री बनने या अभिनय सीखने की मेरी कोई इच्छा नहीं थी। मैं तो सिर्फ मशहूर होना चाहती थी। मल्लिका शेरावत मुझे भारत की कैथरीन हैपबर्न लगती है। मर्डर की अपार सफलता के पहले मल्लिका शेरावत ने बेझिझक स्वीकार किया था कि वह प्रतिभाशाली नहीं है, लेकिन स्पॉटलाइट में आने की ख्वाहिश में उसे नींद नहीं आती। मर्डर के प्रचार के लिए हमलोग निकले थे तब उसने कहा था, स्टारडम हासिल करने के लिए मैं कुछ भी करूंगी।
एक औसत भारतीय पैसा, ताकत और यौन सुखों के साधन के रूप में यश को देखता है लेकिन इसके लिए कोई दूसरा जटिल लक्ष्य भी हो सकता है। कुछ मदर टेरेसा जैसी शख्सीयतें भी होती हैं, जो दूसरों की मदद और उनके लिए धन उगाहने के लिए मशहूर होना चाहती हैं। सामान्य तौर पर कलाकारों के लिए यश सृजनात्मक अभिव्यक्ति का पूरक है। रविशंकर को सितार बजाने में आनंद मिलता है, लेकिन अगर कोई न सुने तो उनका यह आनंद कम हो जाता है। कपिलदेव ने एक मुलाकात में कहा था कि जीतने की इच्छा से ही उनमें और उनके दोस्तों में जोश आता था, लेकिन खेल के मैदान में लोगों की वाहवाही और खेल के इतिहास में जगह पाने की ख्वाहिश भी मन में पैदा होने लगी थी।
कुछ विचित्र लोग भी
कुछ विचित्र लोग भी होते हैं। बीटल ग्रुप के जॉन लेनन के हत्यारे मार्क डेविड चैपमैन ने सोचा था कि जॉन लेनन की हत्या करने से वह मशहूर हो जाएगा। पश्चिम बंगाल से मेरे ऑिफस में आए एक लडके ने अपने ऊपर कैरोसिन छिडक लिया था और मेरा ध्यान आकर्षित करने के लिए खुद को जलाने जा रहा था। बाद में मैंने जब उसे इस मूर्खतापूर्ण हरकत के लिए डांटा तो मैंने पाया कि उसके चेहरे पर संतुष्टि तैर रही थी। उसने कहा था, इसके बगैर मेरा नाम कौन जानता? मेरे घर वालों ने मुझे टीवी पर देखा। मुझे बेहद खुशी हुई। इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि अनेक अयोग्य और प्रतिभाहीन व्यक्ति मशहूर होने के लिए लालायित रहते हैं। ऐसे व्यक्ति खतरनाक होते हैं, क्योंकि उनके अंदर कोई नैतिकता नहीं रहती और वे मशहूर होने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। आजकल टीवी नेटवर्क पर चल रहे रियेलिटी शो देख लें। उनकी लोकप्रियता को सबसे बडी वजह यही है कि वे किसी अज्ञात व्यक्ति को पांच मिनट के अंदर मशहूर कर देते हैं। उस पांच मिनट में वह व्यक्ति शाहरुख खान के कंधे से कंधा मिलाकर खडा हो जाता है।
नष्ट हो जाता है ऐसा यश
लेकिन ऐसा यश नष्ट हो जाता है। टीवी बंद होते ही दर्शक भूल जाते हैं कि उन्होंने एक मिनट पहले क्या देखा था। पांच मिनट के लिए मशहूर हुए व्यक्तियों की सबसे बडी हसरत और कोशिश यह रहती है कि वह यश बरकरार रहे। मेरे पास कई लडके आते हैं, जो चाहते हैं कि उन्हें फिर से वैसा ही यश दिलाने में मैं उनकी मदद करूं। लेकिन उनकी स्थिति किसी पुराने फिल्म स्टार से अलग नहीं होती, जो अपने कामयाबी से दूर जा रहा होता है। मैं उन लडकों के प्रति ज्यादा दुखी होता हूं, क्योंकि वे जवान हैं और उनके सामने पूरी जिंदगी पडी है। यश की मेरी तलाश दस साल की उम्र में आरंभ हुई। मैं हमेशा भीड से अलग रहना चाहता था। मैं गुमनाम रहने की असुरक्षा से बचने की जरूरत महसूस करता था, लेकिन यश के लिए उपयुक्त न होने का एहसास मेरे अंदर बना रहता था और मैं उससे भागता था। बाद में लोगों से मिली सराहना से मेरी वह असुरक्षा बढ गई। कामयाबी और यश ने मेरे भय को और भी बढा दिया। मैंने महसूस किया कि यश के आकांक्षी हम सभी लक्षणों की चिंता कर निजी जीवन की रिक्तता भरते हैं। हम कारणों तक नहीं जाते। हम आत्मसंतुष्टि और सम्मान से अधिक बाहरी स्वीकृति को महत्व देने लगते हैं और फिर खुद ही सर्वनाश के द्वार खोल देते हैं। बुद्ध ने कहा था, आत्मदीपो भव। यशस्वी बाहरी प्रकाश से चमकते हैं, जिस पर उनका नियंत्रण नहीं रहता। वे अंदर से प्रकाशित नहीं होते। यही कारण है कि हमारी जिंदगी इसी चिंता में खत्म हो जाती है कि कब कोई स्विच ऑफ करेगा और हम अंधेरे में डूब जाएंगे।
सिनेमा, क्रिकेट या राजनीति, सभी क्षेत्रों के सुपरस्टार ने मीडिया की कमाई बढाने में योगदान किया है। केबल और सैटेलाइट टेलीविजन ने भारत के मध्यमवर्ग को सिनेमाघरों से निकाल लिया। इन दिनों सारे चैनल दर्शकों को उनके पसंदीदा स्टार की जिंदगी की सारी कहानियां परोस रहे हैं, जबकि फिल्मों की कहानियां तो काल्पनिक होती हैं। इसलिए जब एक चैनल के मालिक ने बताया कि टीवी नेटवर्क की कमाई 600 करोड से बढकर 2000 करोड हो गई है तो में चौंका नहीं।
मिलता है लोगों को आनंद
हम दरअसल दृश्यरतिक देश के हैं। हमें चलती-फिरती चीजें देखने में आनंद मिलता है। अपनी जिंदगी की मुश्किलों से बचने के लिए हम अमीर और मशहूर लोगों की जिंदगी में झांकते हैं। इससे अपनी रोजमर्रा की परेशानियों की तकलीफ कम होती है और हमें दूसरों के वास्तविक दुख-दर्द को देखने की आदत पड जाती है। लोग दूसरों के यश को उनके बारे में बढा-चढाकर कही गयी बातों से आंकते हैं और मशहूर हस्तियों के यश को शक्ति प्रदर्शन के रूप में देखते और उसका आनंद लेते हैं। जब भी कोई मशहूर व्यक्ति ध्यान आकर्षित करता है, वह ध्यान देने वालों का शिकार हो जाता है और नरपिशाचों की तरह प्रशंसक और ध्यान देने वाले अपनी जरूरतों के लिए दूसरों के यश के सहारे जीते हैं। पर मशहूर हस्तियों की कहानी परिप्रेक्ष्य से बिलकुल अलग होती है। मैंने अपनी जिंदगी में देखा है कि अपने करियर में ऊंचाई पर चढने के बाद मशहूर हस्तियां यश के प्रति कटु हो जाती हैं। संजीव कुमार अपने ढंग के स्टार थे। अपने करियर की शुरुआत में मैं उनसे कई दफा मिला। एक बार मदिरापान करते समय उन्होंने बताया कि 25 की उम्र में वे यशस्वी होना चाहते थे। 30 तक यशस्वी होने के बाद वे यश के प्रति उदासीन हो गए और 35 की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते ही अपना ही यश उन्हें बुरा लगने लगा।
बढ जाती हैं लोगों की उम्मीदें
यशस्वी होने के बाद आपसे लोगों की उम्मीदें बढ जाती हैं। उनकी मांगें बढ जाती हैं। यशस्वी व्यक्तियों को लगातार सफलता चाहिए, उन पर यह दबाव रहता है, क्योंकि उन पर बडी रकम लगी रहती है। यश पाने के आकांक्षी यशस्वी होने की इस कीमत का अनुमान नहीं लगा पाते। मेरे भतीजे इमरान हाशमी ने एक बार मुझसे कहा, शुरुआती दिनों में पता नहीं रहता कि यश की क्या कीमत देनी होगी। आप अपनी पंक्तियां याद कर रहे होते हैं और नृत्य एवं अभिनय की बारीकियां सीख रहे होते हैं। फिर अचानक आपकी फिल्में सफल हो जाती हैं तो आपको खास किस्म के रोल के लिए सीरियल किसर का खिताब दे दिया जाता है। पर सच तो यह है कि उस नाम और पहचान में आपका कोई योगदान नहीं रहता।
अतीत के सुपरस्टार राजेश खन्ना ने एक बार मुझसे कहा था, अपने जन्मदिन पर एक दिन मैंने महसूस किया कि फूल आने बंद हो गए हैं तो मेरी समझ में आ गया कि मैं लोगों के जेहन से निकल गया हूं। महानतम यश की अवधि इस ब्रह्मांड के आकार और इतिहास के अनुपात में बहुत कम होती है। मशहूर व्यक्तियों के बारे में पढने पर आप पाएंगे कि यश कितना क्षणभंगुर होता है, फिर भी आश्चर्य होता है कि हम उसे स्थायी बनाना चाहते हैं। अजय देवगन ने एक बार मुझसे कहा था, यश का नशा होता है और आपको उसकी आदत लग जाती है।
नहीं छूटती यश की लत
मेरे खयाल में किसी भी समझदार व्यक्ति को यश के लालच से दूर ही रहना चाहिए। अपने चारों तरफ मैं देखता हूं तो पाता हूं कि इससे वाकिफ लोग भी यश के कारण मिल रहे भौतिक और यौन सुखों से मुंह नहीं मोड पाते। यश की चाहत ज्यादा से ज्यादा बाहरी पहचान के लिए प्रेरित करती है, जबकि इससे कोई फायदा नहीं होता। यश के आदी लोगों की प्रशंसा में सुख भोगने लगते हैं और जीवन के दूसरे आनंद में उनका मन नहीं लगता। यशस्वी व्यक्तियों के लिए जन सराहना के आगे सब कुछ तुच्छ हो जाता है। दुनिया के मशहूर बॉक्सर मोहम्मद अली भी यश के भूखे थे। वे अपना नाम रोशनी में पढना चाहते थे और सराहना में चीखते लोगों की आवाज सुनना चाहते थे। यही कारण है कि यश की तलाश में वे शारीरिक रूप से अस्वस्थ होने पर भी बॉक्सिंग करते रहे। यश की उन्हें ऐसी लत लग गई थी।
ख्वाहिश ऐसी भी लोगों की
कुछ लोगों को सिर्फ पहचान के लिए प्रशंसा चाहिए होती है। हॉलीवुड के श्वेत-श्याम दौर की सुपरस्टार कैथरीन हैपबर्न ने एक बार कहा था, शुरुआती दौर में अभिनेत्री बनने या अभिनय सीखने की मेरी कोई इच्छा नहीं थी। मैं तो सिर्फ मशहूर होना चाहती थी। मल्लिका शेरावत मुझे भारत की कैथरीन हैपबर्न लगती है। मर्डर की अपार सफलता के पहले मल्लिका शेरावत ने बेझिझक स्वीकार किया था कि वह प्रतिभाशाली नहीं है, लेकिन स्पॉटलाइट में आने की ख्वाहिश में उसे नींद नहीं आती। मर्डर के प्रचार के लिए हमलोग निकले थे तब उसने कहा था, स्टारडम हासिल करने के लिए मैं कुछ भी करूंगी।
एक औसत भारतीय पैसा, ताकत और यौन सुखों के साधन के रूप में यश को देखता है लेकिन इसके लिए कोई दूसरा जटिल लक्ष्य भी हो सकता है। कुछ मदर टेरेसा जैसी शख्सीयतें भी होती हैं, जो दूसरों की मदद और उनके लिए धन उगाहने के लिए मशहूर होना चाहती हैं। सामान्य तौर पर कलाकारों के लिए यश सृजनात्मक अभिव्यक्ति का पूरक है। रविशंकर को सितार बजाने में आनंद मिलता है, लेकिन अगर कोई न सुने तो उनका यह आनंद कम हो जाता है। कपिलदेव ने एक मुलाकात में कहा था कि जीतने की इच्छा से ही उनमें और उनके दोस्तों में जोश आता था, लेकिन खेल के मैदान में लोगों की वाहवाही और खेल के इतिहास में जगह पाने की ख्वाहिश भी मन में पैदा होने लगी थी।
कुछ विचित्र लोग भी
कुछ विचित्र लोग भी होते हैं। बीटल ग्रुप के जॉन लेनन के हत्यारे मार्क डेविड चैपमैन ने सोचा था कि जॉन लेनन की हत्या करने से वह मशहूर हो जाएगा। पश्चिम बंगाल से मेरे ऑिफस में आए एक लडके ने अपने ऊपर कैरोसिन छिडक लिया था और मेरा ध्यान आकर्षित करने के लिए खुद को जलाने जा रहा था। बाद में मैंने जब उसे इस मूर्खतापूर्ण हरकत के लिए डांटा तो मैंने पाया कि उसके चेहरे पर संतुष्टि तैर रही थी। उसने कहा था, इसके बगैर मेरा नाम कौन जानता? मेरे घर वालों ने मुझे टीवी पर देखा। मुझे बेहद खुशी हुई। इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि अनेक अयोग्य और प्रतिभाहीन व्यक्ति मशहूर होने के लिए लालायित रहते हैं। ऐसे व्यक्ति खतरनाक होते हैं, क्योंकि उनके अंदर कोई नैतिकता नहीं रहती और वे मशहूर होने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। आजकल टीवी नेटवर्क पर चल रहे रियेलिटी शो देख लें। उनकी लोकप्रियता को सबसे बडी वजह यही है कि वे किसी अज्ञात व्यक्ति को पांच मिनट के अंदर मशहूर कर देते हैं। उस पांच मिनट में वह व्यक्ति शाहरुख खान के कंधे से कंधा मिलाकर खडा हो जाता है।
नष्ट हो जाता है ऐसा यश
लेकिन ऐसा यश नष्ट हो जाता है। टीवी बंद होते ही दर्शक भूल जाते हैं कि उन्होंने एक मिनट पहले क्या देखा था। पांच मिनट के लिए मशहूर हुए व्यक्तियों की सबसे बडी हसरत और कोशिश यह रहती है कि वह यश बरकरार रहे। मेरे पास कई लडके आते हैं, जो चाहते हैं कि उन्हें फिर से वैसा ही यश दिलाने में मैं उनकी मदद करूं। लेकिन उनकी स्थिति किसी पुराने फिल्म स्टार से अलग नहीं होती, जो अपने कामयाबी से दूर जा रहा होता है। मैं उन लडकों के प्रति ज्यादा दुखी होता हूं, क्योंकि वे जवान हैं और उनके सामने पूरी जिंदगी पडी है। यश की मेरी तलाश दस साल की उम्र में आरंभ हुई। मैं हमेशा भीड से अलग रहना चाहता था। मैं गुमनाम रहने की असुरक्षा से बचने की जरूरत महसूस करता था, लेकिन यश के लिए उपयुक्त न होने का एहसास मेरे अंदर बना रहता था और मैं उससे भागता था। बाद में लोगों से मिली सराहना से मेरी वह असुरक्षा बढ गई। कामयाबी और यश ने मेरे भय को और भी बढा दिया। मैंने महसूस किया कि यश के आकांक्षी हम सभी लक्षणों की चिंता कर निजी जीवन की रिक्तता भरते हैं। हम कारणों तक नहीं जाते। हम आत्मसंतुष्टि और सम्मान से अधिक बाहरी स्वीकृति को महत्व देने लगते हैं और फिर खुद ही सर्वनाश के द्वार खोल देते हैं। बुद्ध ने कहा था, आत्मदीपो भव। यशस्वी बाहरी प्रकाश से चमकते हैं, जिस पर उनका नियंत्रण नहीं रहता। वे अंदर से प्रकाशित नहीं होते। यही कारण है कि हमारी जिंदगी इसी चिंता में खत्म हो जाती है कि कब कोई स्विच ऑफ करेगा और हम अंधेरे में डूब जाएंगे।
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