देओल परिवार का दम
-अजय ब्रह्मात्मज
तमाम अवसरों पर हम सभी ने धर्मेन्द्र को सुना है। फिल्मफेअर, आईफा और दूसरे समारोहों में दर्शकों से मुखातिब होकर जब धर्मेन्द्र बोलते हैं, तो उनकी आवाज में तकलीफ का अहसास होता है। उस क्षण हमें शोले के चहकते वीरू का उत्साह नहीं दिखता। उनके शब्द, स्वर और संभाषण में सत्यकाम के सत्यप्रिय आचार्य और नया जमाना के अनूप का दर्द साफ सुनाई देता है। फिल्म बिरादरी में भी लोग मानते हैं कि धर्मेन्द्र को उनके योगदान की तुलना में सम्मान और पुरस्कार नहीं मिले। वैसे, कारण जो भी रहा हो, लेकिन यह सच है कि धर्मेन्द्र सुर्खियों में नहीं रहे।
पंजाब के गांव साहनिवाल से निकले धर्मेन्द्र केवल कृष्ण देओल को पहली फिल्म दिल भी तेरा हम भी तेरे 1960 में मिली थी। उनकी आखिरी फिल्म जॉनी गद्दार पिछले साल रिलीज हुई थी। 47 सालों के इस सफर में धर्मेन्द्र ने अनेक यादगार फिल्में दी हैं। उन्होंने हर तरह के किरदार निभाए और इसमें कोई दो राय नहीं कि उन सभी किरदारों को अपनी स्वाभाविक अदा से जीवंत भी किया। धीर-गंभीर नायक से लेकर चुहलबाज और हंसोड़ विदूषक तक की भूमिकाओं में हमने उन्हें देखा। रोमांटिक फिल्मों में वे आकर्षक लगे, तो ऐक्शन फिल्मों में दमदार..। धर्मेन्द्र जब शेट्टी (विलेन) के गंजे सिर पर मुक्का मारते थे, तो सिनेमाघरों में तालियां बजती थीं। लगभग ढाई सौ फिल्में कर चुके धर्मेन्द्र को उसका फल नहीं मिला। उनसे कम प्रतिभाशाली अभिनेता मीडिया में छाए रहे। फिल्म इंडस्ट्री की राजनीति में पंजाब से आए किसान मानसिकता केधर्मेन्द्र छल-प्रपंच से दूर रहे। इसी कारण वे सम्मान जुटाने और पुरस्कार बटोरने में पीछे रह गए।
धर्मेन्द्र के करियर पर गौर करें, तो हम पाएंगे कि उनसे गलतियां भी हुई। एक दौर में उन्होंने सी-ग्रेड की फिल्मों में लगातार काम कर खुद को ही ग्रहण लगाया और सच तो यह है कि उन फिल्मों से धर्मेन्द्र की छवि धूमिल हुई। यह तो अच्छा हुआ कि सही वक्त पर बेटे सनी देओल ने हस्तक्षेप किया और सी-ग्रेड फिल्मों के चंगुल से उन्हें बाहर निकाला। उनके दोनों बेटे सनी और बॉबी फिल्मों में सक्रिय हैं। सनी को बड़ी कामयाबी मिली। अपने मुक्के के लिए मशहूर सनी कुछ फिल्मों के बाद उस छवि से ऐसे मोहासक्त हुए किआज भी वे अलग किस्म की फिल्म चुनने से घबराते हैं। सनी की ऐक्शन इमेज उनके करियर पर हावी हो गई है। दूसरी तरफ बॉबी बगैर किसी इमेज के लगातार फिल्में कर रहे हैं। वे असफल जरूर नहीं हैं, लेकिन सच यह भी है कि वे दूसरे स्टारों की तरह लोकप्रिय भी नहीं हैं।
अपनी गलतियों के कारण देओल परिवार बीच में आर्थिक मुश्किलों में फंस गया था। लेनदारों ने उन्हें काफी बदनाम किया। अपने में तीनों देओल (धर्मेन्द्र, सनी और बॉबी) साथ दिखे। यह फिल्म कामयाब रही। उसके बाद फिर से देओल परिवार में चहल-पहल के साथ खुशी लौटी। सनी ने परिवार की कमान अपने हाथों में ली और प्रोडक्शन हाउस को फिर से खड़ा किया। कई फिल्में एक साथ शुरू हुई हैं। इस बार सनी थोड़े संभल कर या यों कहें कि फूंक-फूंक कर कदम बढ़ा रहे हैं। यह स्वाभाविक है, क्योंकि दूध का जला छाछ भी फूंक कर ही पीता है।
देओल परिवार ने फिल्म इंडस्ट्री को दो निर्देशक दिए हैं। घायल से राज कुमार संतोषी आए, तो सोचा न था से इम्तियाज अली, इन दोनों निर्देशकों की खास पहचान है। मुनाफे की मानसिकता की इस इंडस्ट्री में नए निर्देशकों को मौका देना साहस का काम होता है। नए जोश के साथ देओल परिवार ऐक्टिव है और इस बार उनकी समझदारी नजर आ रही है। अब इस परिवार केसदस्य मीडिया से झेंपते नहीं हैं और न ही उनसे बचने और छिपने की कोशिश करते हैं। उम्र, वक्त और माहौल ने उन्हें अच्छी तरह समझा दिया है कि चुप रहकर या मीडिया से मुंह फेर कर वे अपना ही नुकसान करते हैं।
देओल परिवार की ही एक शाखा हेमा मालिनी और उनकी बेटी एषा और आहना देओल हैं। इसी परिवार से अभय देओल का भी संबंध है। उन सभी पर बातें फिर कभी..। फिलहाल थोड़ा ध्यान देकर धर्मेन्द्र, सनी और बॉबी देओल की हुंकार सुनें। दरअसल, यह परिवार फिल्म इंडस्ट्री में एकखास पहचान के साथ अपनी जगह बनाता हुआ ऊंचाई की ओर बढ़ रहा है।
तमाम अवसरों पर हम सभी ने धर्मेन्द्र को सुना है। फिल्मफेअर, आईफा और दूसरे समारोहों में दर्शकों से मुखातिब होकर जब धर्मेन्द्र बोलते हैं, तो उनकी आवाज में तकलीफ का अहसास होता है। उस क्षण हमें शोले के चहकते वीरू का उत्साह नहीं दिखता। उनके शब्द, स्वर और संभाषण में सत्यकाम के सत्यप्रिय आचार्य और नया जमाना के अनूप का दर्द साफ सुनाई देता है। फिल्म बिरादरी में भी लोग मानते हैं कि धर्मेन्द्र को उनके योगदान की तुलना में सम्मान और पुरस्कार नहीं मिले। वैसे, कारण जो भी रहा हो, लेकिन यह सच है कि धर्मेन्द्र सुर्खियों में नहीं रहे।
पंजाब के गांव साहनिवाल से निकले धर्मेन्द्र केवल कृष्ण देओल को पहली फिल्म दिल भी तेरा हम भी तेरे 1960 में मिली थी। उनकी आखिरी फिल्म जॉनी गद्दार पिछले साल रिलीज हुई थी। 47 सालों के इस सफर में धर्मेन्द्र ने अनेक यादगार फिल्में दी हैं। उन्होंने हर तरह के किरदार निभाए और इसमें कोई दो राय नहीं कि उन सभी किरदारों को अपनी स्वाभाविक अदा से जीवंत भी किया। धीर-गंभीर नायक से लेकर चुहलबाज और हंसोड़ विदूषक तक की भूमिकाओं में हमने उन्हें देखा। रोमांटिक फिल्मों में वे आकर्षक लगे, तो ऐक्शन फिल्मों में दमदार..। धर्मेन्द्र जब शेट्टी (विलेन) के गंजे सिर पर मुक्का मारते थे, तो सिनेमाघरों में तालियां बजती थीं। लगभग ढाई सौ फिल्में कर चुके धर्मेन्द्र को उसका फल नहीं मिला। उनसे कम प्रतिभाशाली अभिनेता मीडिया में छाए रहे। फिल्म इंडस्ट्री की राजनीति में पंजाब से आए किसान मानसिकता केधर्मेन्द्र छल-प्रपंच से दूर रहे। इसी कारण वे सम्मान जुटाने और पुरस्कार बटोरने में पीछे रह गए।
धर्मेन्द्र के करियर पर गौर करें, तो हम पाएंगे कि उनसे गलतियां भी हुई। एक दौर में उन्होंने सी-ग्रेड की फिल्मों में लगातार काम कर खुद को ही ग्रहण लगाया और सच तो यह है कि उन फिल्मों से धर्मेन्द्र की छवि धूमिल हुई। यह तो अच्छा हुआ कि सही वक्त पर बेटे सनी देओल ने हस्तक्षेप किया और सी-ग्रेड फिल्मों के चंगुल से उन्हें बाहर निकाला। उनके दोनों बेटे सनी और बॉबी फिल्मों में सक्रिय हैं। सनी को बड़ी कामयाबी मिली। अपने मुक्के के लिए मशहूर सनी कुछ फिल्मों के बाद उस छवि से ऐसे मोहासक्त हुए किआज भी वे अलग किस्म की फिल्म चुनने से घबराते हैं। सनी की ऐक्शन इमेज उनके करियर पर हावी हो गई है। दूसरी तरफ बॉबी बगैर किसी इमेज के लगातार फिल्में कर रहे हैं। वे असफल जरूर नहीं हैं, लेकिन सच यह भी है कि वे दूसरे स्टारों की तरह लोकप्रिय भी नहीं हैं।
अपनी गलतियों के कारण देओल परिवार बीच में आर्थिक मुश्किलों में फंस गया था। लेनदारों ने उन्हें काफी बदनाम किया। अपने में तीनों देओल (धर्मेन्द्र, सनी और बॉबी) साथ दिखे। यह फिल्म कामयाब रही। उसके बाद फिर से देओल परिवार में चहल-पहल के साथ खुशी लौटी। सनी ने परिवार की कमान अपने हाथों में ली और प्रोडक्शन हाउस को फिर से खड़ा किया। कई फिल्में एक साथ शुरू हुई हैं। इस बार सनी थोड़े संभल कर या यों कहें कि फूंक-फूंक कर कदम बढ़ा रहे हैं। यह स्वाभाविक है, क्योंकि दूध का जला छाछ भी फूंक कर ही पीता है।
देओल परिवार ने फिल्म इंडस्ट्री को दो निर्देशक दिए हैं। घायल से राज कुमार संतोषी आए, तो सोचा न था से इम्तियाज अली, इन दोनों निर्देशकों की खास पहचान है। मुनाफे की मानसिकता की इस इंडस्ट्री में नए निर्देशकों को मौका देना साहस का काम होता है। नए जोश के साथ देओल परिवार ऐक्टिव है और इस बार उनकी समझदारी नजर आ रही है। अब इस परिवार केसदस्य मीडिया से झेंपते नहीं हैं और न ही उनसे बचने और छिपने की कोशिश करते हैं। उम्र, वक्त और माहौल ने उन्हें अच्छी तरह समझा दिया है कि चुप रहकर या मीडिया से मुंह फेर कर वे अपना ही नुकसान करते हैं।
देओल परिवार की ही एक शाखा हेमा मालिनी और उनकी बेटी एषा और आहना देओल हैं। इसी परिवार से अभय देओल का भी संबंध है। उन सभी पर बातें फिर कभी..। फिलहाल थोड़ा ध्यान देकर धर्मेन्द्र, सनी और बॉबी देओल की हुंकार सुनें। दरअसल, यह परिवार फिल्म इंडस्ट्री में एकखास पहचान के साथ अपनी जगह बनाता हुआ ऊंचाई की ओर बढ़ रहा है।
Comments
vah bahut hi achhe insan bhi hai
unki filme vastvik lagti hai
mai unko ek bar damini wale role me dekhna chahata hu