फ़िल्म सामीक्षा : महबूबा

पुराना रोमांस और त्याग
-अजय ब्रह्मात्मज
अफजल खान की फिल्म महबूबा शैली, शिल्प, विषय और प्रस्तुति- हर लिहाज से पुरानी लगती है। और है भी। हालांकि फिल्म के हीरो संजय दत्त और अजय देवगन आज भी पापुलर हैं, लेकिन उनकी आठ साल पुरानी छवि कहीं न कहीं दर्शकों को खटकेगी। फिल्म की हीरोइन मनीषा कोईराला आज के दर्शकों के मानस से निकल चुकी हैं। पापुलर किस्म की फिल्मों के लिए उनका टटका होना जरूरी है। फिल्म बासी हो चुकी हो तो उसका आनंद कम हो जाता है।
फिल्म की कहानी वर्षा उर्फ पायल (मनीषा कोईराला) पर केंद्रित है। उसके जीवन में श्रवण धारीवाल (संजय दत्त) और करण (अजय देवगन) आते हैं। संयोग है कि श्रवण और करण भाई हैं। ऐसी फिल्मों में अगर हीरोइन के दो दीवाने हों तो एक को त्याग करना पड़ता है या उसकी बलि चढ़ जाती है। महबूबा में भी यही होता है। यहां बताना उचित नहीं होगा कि मनीषा के लिए संजय दत्त बचते हैं या अजय देवगन।
महबूबा भव्य, महंगी और बड़ी फिल्म है। फिल्म के बाहरी तामझाम और दिखावे पर जो खर्च किया गया है, उसका छोटा हिस्सा भी अगर कथा-पटकथा पर खर्च किया गया होता तो फिल्म मनोरंजक हो जाती। चूंकि फिल्म का विषय और शिल्प लगभग एकदशक पुराना है, इसलिए महानगरों में इसे दर्शक नहीं मिलेंगे। कस्बे और छोटे शहरों में यह फिल्म दर्शकों को पसंद आ सकती है। महबूबा हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का पर्याय बन चुकी बॉलीवुड श्रेणी की फिल्म है। अब ऐसी फिल्में नहीं बनतीं।
महबूबा में मनीषा को कुछ अच्छे दृश्य मिले हैं। उन दृश्यों में उन्होंने अभिनय क्षमता का परिचय दिया है। संजय और अजय का काम साधारण है। फिल्म की फोटोग्राफी अवश्य आकर्षित करती है। अशोक मेहता कैमरे से कमाल करते हैं और साधारण दिखने वाली वस्तुओं में भी चमक पैदा कर देते हैं। बुडापेस्ट के सौंदर्य को उन्होंने बहुत अच्छी तरह शूट किया है। अफसोस है कि एक साधारण फिल्म में उनका यह योगदान निरर्थक ही रहेगा।

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