प्रचलित परंपरा से जरा हट कर है आमिर
-अजय ब्रह्मात्मज
यूटीवी स्पाटब्वाय की पहली फिल्म आमिर हिंदी फिल्मों की लोकप्रिय परंपरा में नहीं है। यह निर्देशक राज कुमार गुप्ता और अभिनेता राजीव खंडेलवाल की पहली फिल्म है। उन्होंने साबित किया है कि बेहतर फिल्म बनाने के लिए स्टार, नाच-गाने और लटके-झटकों की जरूरत नहीं है। अगर आपका कथ्य मजबूत है और आपके कलाकार उसे सही संदर्भ में अभिव्यक्त कर देते हैं तो फिल्म प्रभावित करती है।
आमिर डा. आमिर अली के जीवन के एक दिन की कहानी है। लंदन से तीन साल बाद भारत लौटे डा. आमिर अली का जीवन एयरपोर्ट से निकलते ही एक कुचक्र में फंसता है। उनके परिवार को किसी ने किडनैप कर लिया है और वह व्यक्ति उनसे कुछ ऐसे काम करवाना चाहता है, जिसके लिए वह तैयार नहीं हैं। परिजनों की सुरक्षा के दबाव में वह मजबूरन अनचाहे काम को अंजाम देने के लिए बढ़ते हैं। आखिरकार एक ऐसी घड़ी आती है, जब वह फैसला लेते हैं और वह फैसला उनके जीवन को हमेशा के लिए बदल देता है।
आमिर की पृष्ठिभूमि में मुंबई है, लेकिन यहां न तो ताज होटल है और न गेट वे आफ इंडिया है, न क्वीन नेकलेस और न ही हाजी अली की दरगाह। मुंबई के नाम पर जो प्रतीक हम फिल्मों में देखते रहे हैं उनमें से केवल मुंबई वीटी स्टेशन ही फिल्म में दिखा है। इस मुंबई में डोंगरी, मुहम्मद अली रोड, क्राफर्ड मार्केट, कसाईवाड़ा जैसे निचले इलाके हैं, जहां इस महानगर की महत्वपूर्ण आबादी गुजर-बसर करती है। आमिर देखते हुए अनुराग कश्यप की ब्लैक फ्राइडे और नो स्मोकिंग की याद आती है। यह स्वाभाविक भी है। एक तो कहानी उन निचले इलाकों की है और दूसरे फिल्म के निर्देशक लंबे समय तक अनुराग के सहायक रहे हैं।
आमिर में दिखाया गया है कि कैसे एक समझदार और आधुनिक व्यक्ति उनके द्वारा घृणा की राजनीति के खिलाफ खड़े होकर कट्टरपंथियों के सोच को चुनौती दे रहा है। यह फिल्म तो टैक्स फ्री होनी चाहिए और हर माध्यम से सभी समूह के दर्शकों के बीच पहुंचनी चाहिए।
यूटीवी स्पाटब्वाय की पहली फिल्म आमिर हिंदी फिल्मों की लोकप्रिय परंपरा में नहीं है। यह निर्देशक राज कुमार गुप्ता और अभिनेता राजीव खंडेलवाल की पहली फिल्म है। उन्होंने साबित किया है कि बेहतर फिल्म बनाने के लिए स्टार, नाच-गाने और लटके-झटकों की जरूरत नहीं है। अगर आपका कथ्य मजबूत है और आपके कलाकार उसे सही संदर्भ में अभिव्यक्त कर देते हैं तो फिल्म प्रभावित करती है।
आमिर डा. आमिर अली के जीवन के एक दिन की कहानी है। लंदन से तीन साल बाद भारत लौटे डा. आमिर अली का जीवन एयरपोर्ट से निकलते ही एक कुचक्र में फंसता है। उनके परिवार को किसी ने किडनैप कर लिया है और वह व्यक्ति उनसे कुछ ऐसे काम करवाना चाहता है, जिसके लिए वह तैयार नहीं हैं। परिजनों की सुरक्षा के दबाव में वह मजबूरन अनचाहे काम को अंजाम देने के लिए बढ़ते हैं। आखिरकार एक ऐसी घड़ी आती है, जब वह फैसला लेते हैं और वह फैसला उनके जीवन को हमेशा के लिए बदल देता है।
आमिर की पृष्ठिभूमि में मुंबई है, लेकिन यहां न तो ताज होटल है और न गेट वे आफ इंडिया है, न क्वीन नेकलेस और न ही हाजी अली की दरगाह। मुंबई के नाम पर जो प्रतीक हम फिल्मों में देखते रहे हैं उनमें से केवल मुंबई वीटी स्टेशन ही फिल्म में दिखा है। इस मुंबई में डोंगरी, मुहम्मद अली रोड, क्राफर्ड मार्केट, कसाईवाड़ा जैसे निचले इलाके हैं, जहां इस महानगर की महत्वपूर्ण आबादी गुजर-बसर करती है। आमिर देखते हुए अनुराग कश्यप की ब्लैक फ्राइडे और नो स्मोकिंग की याद आती है। यह स्वाभाविक भी है। एक तो कहानी उन निचले इलाकों की है और दूसरे फिल्म के निर्देशक लंबे समय तक अनुराग के सहायक रहे हैं।
आमिर में दिखाया गया है कि कैसे एक समझदार और आधुनिक व्यक्ति उनके द्वारा घृणा की राजनीति के खिलाफ खड़े होकर कट्टरपंथियों के सोच को चुनौती दे रहा है। यह फिल्म तो टैक्स फ्री होनी चाहिए और हर माध्यम से सभी समूह के दर्शकों के बीच पहुंचनी चाहिए।
Comments
जहाँ है शुक्र शिकायत किसी को क्या मालूम । ।