दे ताली: उलझी कहानी
-अजय ब्रह्मात्मज
प्रचार के लिए बनाए गए प्रोमो धोखा भी देते हैं। दे ताली ताजा उदाहरण है। इस फिल्म के विज्ञापनों से लग रहा था कि एक मनोरंजक और यूथफुल फिल्म देखने को मिलेगी। फिल्म में मनोरंजन तो है, लेकिन कहानी के उलझाव में वह उभर नहीं पाता। ईश्वर निवास के पास मिडिल रेंज के ठीक-ठाक एक्टर थे, लेकिन उनकी फिल्म साधारण ही निकली। दे ताली देखकर ताली बजाने का मन नहीं करता।
तीन दोस्तों अमु, अभी और पगलू की दोस्ती और उनके बीच पनपे प्यार को एक अलग एंगल से रखने की कोशिश में ईश्वर निवास कामयाब नहीं हो पाए। दोस्ती और प्रेम की इस कामिकल कहानी में लाया गया ट्विस्ट नकली और गढ़ा हुआ लगता है। साथ-साथ रहने के बावजूद एक-दूसरे के प्रति मौजूद प्यार को न समझ सकने के कारण सारी गलतफहमियां होती हैं। इन गलतफहमियों में रोचकता नहीं है।
ईश्वर निवास ने शूल जैसी फिल्म से शुरुआत की थी, लेकिन उसके बाद की अपनी फिल्मों में वह लगातार निराश कर रहे हैं। या तो उन्हें सही स्क्रिप्ट नहीं मिल पा रही है या कुछ बड़ा करने के चक्कर में वह फिसल जा रहे हैं। दे ताली जैसी फिल्म की कल्पना उनकी सीमाओं को जाहिर कर रही है। कुछ नया करने से पहले उन्हें अपनी सारी फिल्में एक बार देख लेनी चाहिए ताकि, वह उनकी भूलों से भविष्य में बच सकें।
अभिनेताओं में केवल रितेश देशमुख ही संतुष्ट करते हैं। उन्होंने अपने किरदार को पूरी ईमानदारी से निभाया है। आफताब शिवदासानी और रिम्मी सेन को किरदार अच्छे मिले थे, लेकिन उन्हें पर्दे पर उतारने में उनकी संजीदगी नजर नहीं आती। आयशा टाकिया में ग्लैमर है। मुस्कुराना, नृत्य करना या होंठ दिखाना ही एक्टिंग है तो आयशा टाकिया जबरदस्त एक्ट्रेस हैं। फिल्म के गीत-संगीत में दम है, लेकिन फिल्म में उसका उचित उपयोग नहीं हो पाया है। फिल्म खत्म होने के बाद गीत देने का चलन निर्माता-निर्देशक की फिजूलखर्ची ही है। दर्शक थिएटर से निकलने की हड़बड़ी में ऐसे गीत का आनंद नहीं उठा पाते।
प्रचार के लिए बनाए गए प्रोमो धोखा भी देते हैं। दे ताली ताजा उदाहरण है। इस फिल्म के विज्ञापनों से लग रहा था कि एक मनोरंजक और यूथफुल फिल्म देखने को मिलेगी। फिल्म में मनोरंजन तो है, लेकिन कहानी के उलझाव में वह उभर नहीं पाता। ईश्वर निवास के पास मिडिल रेंज के ठीक-ठाक एक्टर थे, लेकिन उनकी फिल्म साधारण ही निकली। दे ताली देखकर ताली बजाने का मन नहीं करता।
तीन दोस्तों अमु, अभी और पगलू की दोस्ती और उनके बीच पनपे प्यार को एक अलग एंगल से रखने की कोशिश में ईश्वर निवास कामयाब नहीं हो पाए। दोस्ती और प्रेम की इस कामिकल कहानी में लाया गया ट्विस्ट नकली और गढ़ा हुआ लगता है। साथ-साथ रहने के बावजूद एक-दूसरे के प्रति मौजूद प्यार को न समझ सकने के कारण सारी गलतफहमियां होती हैं। इन गलतफहमियों में रोचकता नहीं है।
ईश्वर निवास ने शूल जैसी फिल्म से शुरुआत की थी, लेकिन उसके बाद की अपनी फिल्मों में वह लगातार निराश कर रहे हैं। या तो उन्हें सही स्क्रिप्ट नहीं मिल पा रही है या कुछ बड़ा करने के चक्कर में वह फिसल जा रहे हैं। दे ताली जैसी फिल्म की कल्पना उनकी सीमाओं को जाहिर कर रही है। कुछ नया करने से पहले उन्हें अपनी सारी फिल्में एक बार देख लेनी चाहिए ताकि, वह उनकी भूलों से भविष्य में बच सकें।
अभिनेताओं में केवल रितेश देशमुख ही संतुष्ट करते हैं। उन्होंने अपने किरदार को पूरी ईमानदारी से निभाया है। आफताब शिवदासानी और रिम्मी सेन को किरदार अच्छे मिले थे, लेकिन उन्हें पर्दे पर उतारने में उनकी संजीदगी नजर नहीं आती। आयशा टाकिया में ग्लैमर है। मुस्कुराना, नृत्य करना या होंठ दिखाना ही एक्टिंग है तो आयशा टाकिया जबरदस्त एक्ट्रेस हैं। फिल्म के गीत-संगीत में दम है, लेकिन फिल्म में उसका उचित उपयोग नहीं हो पाया है। फिल्म खत्म होने के बाद गीत देने का चलन निर्माता-निर्देशक की फिजूलखर्ची ही है। दर्शक थिएटर से निकलने की हड़बड़ी में ऐसे गीत का आनंद नहीं उठा पाते।
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