ठंडी और सपाट 'वाया दार्जिलिंग'
-अजय ब्रह्मात्मज
खुशी इस बात की है एनएफडीसी की फिल्म नियमित सिनेमाघरों में रिलीज हुई, लेकिन गम इस बात का है कि एनएफडीसी की फिल्म अभी तक अपने ढर्रे से बाहर नहीं निकल सकी है। अरिंदम नंदी शिल्प, कथ्य और प्रस्तुति में कला फिल्मों के नाम पर बदनाम हो चुकी शैली में जकड़े हुए हैं। वाया दार्जिलिंग आखिरकार निराश करती है।हनीमून के लिए दार्जिलिंग गए नवदंपती में से पति लौटने के दिन गायब हो जाता है। मामले की तहकीकात कर रहे पुलिस अधिकारी राबिन रहस्य की तह तक नहीं पहुंच पाते। सालों बाद दोस्तों की महफिल में वह उस घटना की बातें करते हैं। वहां मौजूद दूसरे दोस्त उस घटना के कारण और परिणाम की अलग-अलग व्याख्या करते हैं। एक ही घटना के चार अंत सुनाए और दिखाए जाते हैं।अरिंदम नंदी ने रोशोमन से मशहूर हुई एक कहानी अनेक अंत की शैली तो अपना ली है, लेकिन अपनी अनेकता में वह रोचकता नहीं बनाए रख पाते। हर व्याख्या में कुछ खामियां और कमियां हैं, जिनके कारण रहस्य कौतूहल पैदा नहीं करता। फिल्म की मूल कहानी में गति और रोचकता है, लेकिन व्याख्याओं का चित्रण बिल्कुल ठंडा और सपाट है। केके मेनन, रजत कपूर और विनय पाठक जैसे एक्टर भी एक जैसी फिल्मों और एक जैसी भूमिकाओं में अब नीरस लगने लगे हैं। संभवत: निर्देशक इन प्रतिभाशाली एक्टरों को भूमिकाओं की चुनौती नहीं दे पा रहे हैं। दोष एक्टरों का यही है कि वे भी आजमाए हुए फार्मूलों में बंध गए हैं। प्रशांत नारायण एकआयामी अभिनेता हैं और संध्या मृदुल के अभिनय की एकरसता साफ झलकती है।वाया दार्जिलिंग में दार्जिलिंग की खूबसूरती नहीं उभर सकी है। फिल्म के परिवेश से नहीं जाहिर होता कि हम बंगाल में बन रही कोई फिल्म देख रहे हैं। अरिंदम नंदी कथित हिंदी फिल्म बनाने की कोशिश में विफल रहे हैं।
खुशी इस बात की है एनएफडीसी की फिल्म नियमित सिनेमाघरों में रिलीज हुई, लेकिन गम इस बात का है कि एनएफडीसी की फिल्म अभी तक अपने ढर्रे से बाहर नहीं निकल सकी है। अरिंदम नंदी शिल्प, कथ्य और प्रस्तुति में कला फिल्मों के नाम पर बदनाम हो चुकी शैली में जकड़े हुए हैं। वाया दार्जिलिंग आखिरकार निराश करती है।हनीमून के लिए दार्जिलिंग गए नवदंपती में से पति लौटने के दिन गायब हो जाता है। मामले की तहकीकात कर रहे पुलिस अधिकारी राबिन रहस्य की तह तक नहीं पहुंच पाते। सालों बाद दोस्तों की महफिल में वह उस घटना की बातें करते हैं। वहां मौजूद दूसरे दोस्त उस घटना के कारण और परिणाम की अलग-अलग व्याख्या करते हैं। एक ही घटना के चार अंत सुनाए और दिखाए जाते हैं।अरिंदम नंदी ने रोशोमन से मशहूर हुई एक कहानी अनेक अंत की शैली तो अपना ली है, लेकिन अपनी अनेकता में वह रोचकता नहीं बनाए रख पाते। हर व्याख्या में कुछ खामियां और कमियां हैं, जिनके कारण रहस्य कौतूहल पैदा नहीं करता। फिल्म की मूल कहानी में गति और रोचकता है, लेकिन व्याख्याओं का चित्रण बिल्कुल ठंडा और सपाट है। केके मेनन, रजत कपूर और विनय पाठक जैसे एक्टर भी एक जैसी फिल्मों और एक जैसी भूमिकाओं में अब नीरस लगने लगे हैं। संभवत: निर्देशक इन प्रतिभाशाली एक्टरों को भूमिकाओं की चुनौती नहीं दे पा रहे हैं। दोष एक्टरों का यही है कि वे भी आजमाए हुए फार्मूलों में बंध गए हैं। प्रशांत नारायण एकआयामी अभिनेता हैं और संध्या मृदुल के अभिनय की एकरसता साफ झलकती है।वाया दार्जिलिंग में दार्जिलिंग की खूबसूरती नहीं उभर सकी है। फिल्म के परिवेश से नहीं जाहिर होता कि हम बंगाल में बन रही कोई फिल्म देख रहे हैं। अरिंदम नंदी कथित हिंदी फिल्म बनाने की कोशिश में विफल रहे हैं।
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