थोड़ा प्यार थोड़ा मैजिक:और परी को प्यार हो गया
थोडा प्यार, थोडा मैजिक चौंके नहीं। पर्दे पर फिल्म का नाम हिंदी में ऐसे ही आता है- थोड़ा प्यार थोड़ा मैजिक। ड के नीचे बिंदी लगाना पब्लिसिटी डिजाइनर भूल गया और हमारे निर्माता-निर्देशकों का हिंदी ज्ञान इतना नहीं होता कि वे ड और ड़ का फर्क समझ सकें। प्रसंगवश पिछले दिनों पांचवी पास के एक इवेंट में किंग खान शाहरुख भी पढ़ो को पढो लिखते पाए गए थे। बहरहाल, थोड़ा प्यार थोड़ा मैजिक रोचक फिल्म है। इस तरह की फिल्में हम पहले भी देख चुके हैं। विदेशों में कई फिल्में इस विधा में बनी हैं। उनमें से कुछ के दृश्य तो थोड़ा प्यार थोड़ा मैजिक में भी लिए गए हैं। मौलिकता की शर्त थोड़ी ढीली करने के बाद फिल्म देखें तो मजा आएगा। रणबीर तलवार के जीवन की एक दुर्घटना उनके वर्तमान और भविष्य को बदल देती है। उनकी गलती से एक दंपती की सड़क दुर्घटना में मौत हो जाती है। जज महोदय अनोखा फैसला सुनाते हैं, जिसके तहत मृत दंपती के चारों बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी रणबीर को सौंप दी जाती है। रणबीर और चारों बच्चों के बीच छत्तीस का आंकड़ा है। स्थिति यह आती है कि दोनों ही पक्ष भगवान से कुछ करने की गुहार लगाते हैं। थ्री पीस सूट और फ्रेंच दाढ़ी के भगवान (ऋषि कपूर) एक परी को गीता (रानी मुखर्जी) नाम से धरती पर भेजते हैं। वह अपनी जादुई शक्ति और इमोशनल युक्ति से चारों बच्चों और रणबीर को जोड़ देती है। इस प्रक्रिया में वह खुद भी बदल जाती है। परी को इंसान से प्यार हो जाता है। उसकी आंखों में भी आंसू आ जाते हैं और वह आंसू में छिपी खुशी और प्यार के दर्द के अहसास से भर जाती है। कुणाल कोहली ने पहले बन चुकी फिल्मों की थीम को नए तरीके से पेश किया है। दुलाल गुहा की फिल्म दुश्मन में भी कुछ ऐसी ही कहानी थी। एक सड़क दुर्घटना के दोषी राजेश खन्ना को विधवा मीना कुमारी की मदद के लिए उसके पास जाकर रहना होता है। कुणाल कोहली फिल्म पत्रकार के तौर पर भले ही नकल करने पर दूसरे निर्देशकों का मखौल उड़ाते रहे हों। अपनी बारी आई तो वह भी नकल करने से नहीं चूके। चूंकि इस तरह की फिल्में एक स्तर पर दर्शकों के दिलों को छू लेती हैं, इसलिए कुणाल नकल के बावजूद अपने प्रयास में सफल हो जाते हैं। हां, उन्होंने बच्चों से सुंदर काम लिया है। बच्चे स्वाभाविक और प्रिय लगते हैं। उनकी मासूमियत कहानी को मार्मिक बनाती है। सैफ अली खान अपने किरदार के साथ न्याय करते हैं। उनका खिंचा और तनाव युक्त चेहरा उनकी कठोरता जाहिर नहीं कर पाता, लेकिन हल्के-फुल्के दृश्यों में वे सटीक लगते हैं। रानी मुखर्जी लंबे समय के बाद नेचुरल लगी हैं। शायद यह किरदार का असर हो। फिल्म का गीत-संगीत सुना हुआ लगता है। प्रसून जोशी और शंकर एहसान लाय ने मिलकर लगभग ऐसा ही गीत-संगीत तारे जमीन पर में भी दिया था। दूसरी बात जो अखरती है, वह परिवेश का मनमर्जी से बदलना दिल्ली से लास एंजिलिस और फिर दिल्ली.. ऐसे आगे-पीछे के दृश्यों में आते हैं कि निर्देशक के दृश्य संयोजन पर शक होता है।
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