शैली और शिल्प में दोहराव: मेरे बाप पहले आप
अजय ब्रह्मात्मज
प्रियदर्शन कभी अपनी कामेडी फिल्मों से गुदगुदाया और हंसाया करते थे। अब उनकी शैली और शिल्प के दोहराव से ऊब होने लगी है। यही कारण है कि मेरे बाप पहले आप विषय की नवीनता के बावजूद रोचक नहीं लगती है।
विधुर पिता जनार्दन और बेटे गौरव का अजीबोगरीब रिश्ता है। बेटा बाप को बेटा कह कर बुलाता है। वह उन्हें डांटता, फटकारता, धमकाता और पुचकारता है। चूंकि बाप ने दूसरी शादी नहीं की और बेटों को पालने में अपनी जिंदगी निकाल दी, इसलिए अब बेटा उन्हें अपने बेटे की तरह प्यार से पालता है। वह उन्हें बुरी संगत से बचाना चाहता है। फिल्म की नायिका शिखा है। वह किसी पुरानी घटना का बदला लेने के लिए पहले नायक गौरव को तंग करती है और फिर दोस्त बन जाती है। इस दोस्ती के दरम्यान गौरव और शिखा को पता चलता है कि गौरव के पिता और शिखा की आंटी पुराने प्रेमी हैं। वे उन दोनों की शादी करवाने की युक्ति रचते हैं। इस प्रक्रिया में वे खुद भी एक-दूसरे से प्यार करने लगते हैं, लेकिन अपनी शादी से पहले वे बुजुर्गो की शादी करवाते हैं। बेटे से पहले बाप की शादी के कंसेप्ट पर दृश्यों को जोड़-मोड़ कर यह फिल्म बना दी गयी है।
अक्षय खन्ना के अभिनय का हाइपर रूप फिल्म के अनुकूल है। इसी प्रकार परेश रावल और ओमपुरी भी स्वतंत्र रूप से कुछ दृश्यों में अच्छे लगते हैं। जीनिलिया की मासूमियत और खूबसूरती आंखों को भाती है। इन वजहों से हम फिल्म से बंधे रहते हैं, लेकिन अंत में ठगे जाने का अहसास होता है। फिल्म के बनावटी दृश्यों से उत्पन्न की गयी स्थिति देर तक नहीं हंसाती।
मेरे बाप पहले आप का तकनीकी पक्ष भी कमजोर है। खास कर साउंड डिजाइनिंग में बरती गयी लापरवाही स्पष्ट है। प्रियदर्शन समर्थ फिल्मकार हैं, लेकिन ऐसी फिल्मों के निर्देशन से वे अपनी ही चमक फीकी कर रहे हैं। दर्शक फिल्म देख कर हंसे तो ठीक है। मेरे बाप पहले आप जैसी फिल्म देख कर प्रियदर्शन पर हंसी आती है और यह शुभ संकेत नहीं है।
अक्षय खन्ना और जीनिलिया का उच्चारण दोष खटकता है। अक्षय खन्ना बाहर को भाहर और ब्राह्मण को भ्रामण बोलते हैं तो जीनिलिया दिन-दहाड़े को दिन-धाड़े बोलती हैं।
प्रियदर्शन कभी अपनी कामेडी फिल्मों से गुदगुदाया और हंसाया करते थे। अब उनकी शैली और शिल्प के दोहराव से ऊब होने लगी है। यही कारण है कि मेरे बाप पहले आप विषय की नवीनता के बावजूद रोचक नहीं लगती है।
विधुर पिता जनार्दन और बेटे गौरव का अजीबोगरीब रिश्ता है। बेटा बाप को बेटा कह कर बुलाता है। वह उन्हें डांटता, फटकारता, धमकाता और पुचकारता है। चूंकि बाप ने दूसरी शादी नहीं की और बेटों को पालने में अपनी जिंदगी निकाल दी, इसलिए अब बेटा उन्हें अपने बेटे की तरह प्यार से पालता है। वह उन्हें बुरी संगत से बचाना चाहता है। फिल्म की नायिका शिखा है। वह किसी पुरानी घटना का बदला लेने के लिए पहले नायक गौरव को तंग करती है और फिर दोस्त बन जाती है। इस दोस्ती के दरम्यान गौरव और शिखा को पता चलता है कि गौरव के पिता और शिखा की आंटी पुराने प्रेमी हैं। वे उन दोनों की शादी करवाने की युक्ति रचते हैं। इस प्रक्रिया में वे खुद भी एक-दूसरे से प्यार करने लगते हैं, लेकिन अपनी शादी से पहले वे बुजुर्गो की शादी करवाते हैं। बेटे से पहले बाप की शादी के कंसेप्ट पर दृश्यों को जोड़-मोड़ कर यह फिल्म बना दी गयी है।
अक्षय खन्ना के अभिनय का हाइपर रूप फिल्म के अनुकूल है। इसी प्रकार परेश रावल और ओमपुरी भी स्वतंत्र रूप से कुछ दृश्यों में अच्छे लगते हैं। जीनिलिया की मासूमियत और खूबसूरती आंखों को भाती है। इन वजहों से हम फिल्म से बंधे रहते हैं, लेकिन अंत में ठगे जाने का अहसास होता है। फिल्म के बनावटी दृश्यों से उत्पन्न की गयी स्थिति देर तक नहीं हंसाती।
मेरे बाप पहले आप का तकनीकी पक्ष भी कमजोर है। खास कर साउंड डिजाइनिंग में बरती गयी लापरवाही स्पष्ट है। प्रियदर्शन समर्थ फिल्मकार हैं, लेकिन ऐसी फिल्मों के निर्देशन से वे अपनी ही चमक फीकी कर रहे हैं। दर्शक फिल्म देख कर हंसे तो ठीक है। मेरे बाप पहले आप जैसी फिल्म देख कर प्रियदर्शन पर हंसी आती है और यह शुभ संकेत नहीं है।
अक्षय खन्ना और जीनिलिया का उच्चारण दोष खटकता है। अक्षय खन्ना बाहर को भाहर और ब्राह्मण को भ्रामण बोलते हैं तो जीनिलिया दिन-दहाड़े को दिन-धाड़े बोलती हैं।
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