अभिषेक बच्चन से अजय ब्रह्मात्मज की बातचीत
अभिषेक बच्चन की पहली फिल्म से लेकर आज तक जितनी भी फिल्में आयीं है सभी में उनका अलग अंदाज देखने को मिला। प्रस्तुत है अभिषेक से बातचीत-
अभिषेक इन दिनों क्या कर रहे हैं?
शूटिंग कर रहा हूं। दिल्ली-6 की शूटिंग कर रहा था। उसके बाद करण जौहर की फिल्म कर रहा हूं, जो तरूण मनसुखानी निर्देशित कर रहे हैं। फिर रोहन सिप्पी की फिल्म शुरू करूंगा। काम तो है और आप लोगों के आर्शीवाद से काफी काम है।
सरकार राज आ रही है। उसके बारे में कुछ बताएं?
सरकार राज, सरकार की सीक्वल है। इसमें फिर से नागरे परिवार को देखेंगे। सरकार जहां खत्म हुई थी, उससे आगे की कहानी है इसमें। नयी कहानी है और नयी समस्या है। इसमें ऐश्वर्या राय भी हैं। मैं तो बहुत एक्साइटेड हूं। ऐश्वर्या इस फिल्म में बिजनेस वीमैन का रोल निभा रही हैं। वह नागरे परिवार के सामने एक प्रस्ताव रखती हैं और बाद में उस परिवार के साथ काम करती हैं।
द्रोण के बारे में क्या कहेंगे? सुपरहीरो फिल्म है?
सब लोग द्रोण को सुपरहीरो फिल्म समझ रहे हैं। वह सुपरहीरो फिल्म नहीं है। हां, मैं फिल्म का हीरो हूं, लेकिन सुपरहीरो नहीं हूं। द्रोण एक फैंटेसी फिल्म है। उस फिल्म का थोड़ा सा काम बाकी है। उस फिल्म में पोस्ट प्रोडक्शन का काम लंबा है। फिल्म में काफी मैजिक है। द्रोण आज की फिल्म है। कॉस्ट्यूम भी है, लेकिन कॉस्ट्यूम ड्रामा नहीं है। यह हाइपर रियल फिल्म है। मैंने ऐसी फिल्म पहले नहीं की। मेरे खयाल में कटिंग एज एंटरटेनमेंट होगा। इंटरनेशन स्टैंडर्ड के करीब होगी फिल्म। मैंने कभी स्पेशल इफेक्ट की फिल्म नहीं की है, इसलिए मैं तो सब कुछ सीख रहा हूं। फिल्म के डायरेक्टर गोल्डी मेरे दोस्त हैं। और क्या बताऊं फिल्म के बारे में।
फिल्म में आपका नाम द्रोण ही होगा न? प्रियंका चोपड़ा क्या कर रही हैं?
हां, मेरा नाम द्रोण ही है। प्रियंका चोपड़ा मेरी बॉडी गार्ड हैं। मैं उनसे प्रेम भी करता हूं।
संयोग से आपकी सरकार राज और द्रोण दोनों में आपके मां-पिता में से एक हैं। उनके साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?
द्रोण में मां के साथ ज्यादा काम नहीं है। दो-तीन दिनों का ही काम था, लेकिन बहुत मजा आया। लागा चुनरी में दाग में भी हम दोनों थे। उसमें एक दिन का काम था। उसके पहले हम दोनों ने एक बंगाली फिल्म देस की थी। मां के साथ सबसे बड़ा मजा यही है कि कट बोलते ही वह एक्टर से मां बन जाती हैं। पूछती हैं कि खाना खाया कि नहीं या ममता भरी कोई बात करने लगती है। परिवार में सारे लोग अपने कॅरियर और काम में इतने व्यस्त है कि हम अलग-अलग जगह काम कर रहे होते है। डैड के साथ तो फिर भी ज्यादा टाइम मिल जाता है। मां के साथ कम मौका मिलता है रहने का। एक्टर के तौर पर मैं क्या कह सकता हूं। शी इज जस्ट एन आउटस्टैंडिग आर्टिस्ट। आप उन्हें काम करते देख कर भी बहुत कुछ सीख सकते हैं। उनके साथ काम करना तो शुद्ध आनंद है। उन जैसी प्रतिभा का नियमित काम नहीं करना तो प्रतिभा की बर्बादी है।
अभिनेता की तरह निर्देशक की जिंदगी में भी उतार-चढ़ाव आता है। रामू की बात करें, रामगोपाल वर्मा की आग के बाद ऐसा लग रहा है कि वे खत्म हो गए। ऐसी स्थिति में रामू के साथ सरकार राज करते समय कोई संकोच या डर नहीं लगा?
बिल्कुल नहीं, कभी नहीं, मेरे अनुसार रामू अपने देश के एक प्रतिभाशाली निर्देशक हैं। निर्देशक कभी सफल होते हैं और कभी नहीं हो पाते। सरकार राज करते समय किसी के मन में यह ख्याल तक नहीं आया। रामू ने मुझे नाच तब दी थी, जब मेरी कोई फिल्म हिट नहीं हुई थी। उन्होंने मुझमें विश्वास किया था। उन्होंने मुझ में कुछ देखा था। रामू के साथ काम करते समय मैं उनकी प्रतिभा देख पाता हूं। उनकी एक फिल्म नहीं चली तो इसका मतलब यह नहीं होता कि आप उनका नाम मिटा दें। उन्होंने सरकार राज में गजब का काम किया है। मुझे पूरा विश्वास है कि इस फिल्म से वे सभी को खामोश कर देंगे।
ऐसा माना जाता है कि आपकी कोई ब्रांडिंग नहीं हुई है। किसी एक इमेज में आप नहीं बंधे हैं। यह आपकी कोशिश है या संयोग से ऐसा हुआ है?
एक एक्टर के तौर पर हम सभी चाहते हैं कि हम ब्रांडेड न हों। उससे बचे रहने पर मौका मिलता है कि हम अलग किस्म की फिल्में करें। हमारा हर किरदार अलग हो। मेरी पीढ़ी की बात करें और रितिक का उदाहरण लें। रितिक ने कहो ना..प्यार है से शुरूआत की। उसने फिजा, कोई मिल गया, कृष, धूम और जोधा अकबर जैसी फिल्में कीं। आप वैरायटी देखिए और ये सभी फिल्में हिट है। इन सारी फिल्मों में रितिक का काम बहुत सराहा गया। हम एक्टर है कुछ नया करते हैं तो हमें अच्छा लगता है। मैंने भी रिफ्यूजी से शुरूआत की थी। फिर मैंने कुछ न कहो जैसी फिल्म की। युवा, सरकार , बंटी बबली, दस, धूम, धूम-2 । मैं मानता हूं कि मेरी पीढ़ी किसी ब्रांड या इमेज में नहीं बंधी है। मेरी पीढ़ी निर्देशकों को मौका दे रही है कि वे रोचक रोल लिखें और हम उन्हें यह विश्वास दिला सकते हैं कि हम वे रोल कर पाएंगे। हमारी पीढ़ी का कोई भी अभिनेता एक तरह की फिल्म तक सीमित नहीं रहा है। हम सभी इस तथ्य के लिए सचेत नहीं हैं कि हमें एक्शन हीरो बनना है या रोमांटिक हीरो बनना है। हम सब कुछ करना चाहते हैं। इसे आप लालच कहेंगे या मूर्खता कहेंगे, मुझे नहीं मालूम, लेकिन मुझे खुशी है कि हम ऐसा कर पा रहे हैं।
क्या यह बात आप तक पहुंची कि आप रितिक रोशन के समान मेहनत नहीं करते या काम के प्रति उनकी तरह गंभीर नहीं रहते?
नहीं, मुझे किसी ने नहीं कहा कि मैं मेहनत नहीं करता हूं। मुझे लगता है कि दूसरों के समान मैं भी मेहनत करता हूं। और ज्यादा करनी चाहिए। जरूर करनी चाहिए, क्योंकि सुधार की संभावना हमेशा बनी रहती है। मेहनत की गुंजाइश रहती है। अभी तक किसी ने नहीं कहा कि मैं अपने काम के प्रति गंभीर नहीं रहता। मुझे हंसी आती है। आप इसे मेरा प्रमाद या अहंकार ना समझें। गुरु पिछले साल की हिट फिल्म थी। वह जनवरी में रिलीज हुई थी। दर्शक खुश थे। समीक्षकों ने दयालुता दिखाई। अब चूंकि लंबे समय से कोई फिल्म नहीं आई है तो लोग कहने लगे कि अभिषेक गंभीर नहीं है। यह बात मेरी समझ में नहीं आती। मेरे ख्याल में यह असंगत और मिथ्या आरोप है, लेकिन ऐसे आरोपों के बीच जीना हमारी नियति है। हमारा काम ही बोलता है। हम प्रचारक रख कर दूसरों की राय नहीं बदल सकते। हमारे बारे में राय हमारे काम से बनती है। हमें इसी में यकीन रखना चाहिए। मैं नहीं जानता हूं कि ऐसी बातें कहने वाले लोग कौन हैं? उन्होंने मेरे साथ कौन सी फिल्म की है? उन्होंने ऐसी धारणा किस आधार पर बनाई। और फिर कड़ी मेहनत क्या है? कौन तय करेगा। हर आदमी की अपनी शैली होती है। अगर कड़ी मेहनत का मतलब एक कोने में बैठकर अपनी पंक्तियां याद करना है तो मुझे खेद है कि मैं ऐसा नहीं कर सकता। मेरा अपना अप्रोच है और वह मेरे लिए कारगर है। हो सकता है वह अप्रोच दूसरों के लिए कारगर न हो, लेकिन मैं अपनी प्रक्रिया दूसरों पर नहीं लादता। मुझे लगता है कि मैं अपना काम पूरी ईमानदारी और मेहनत से करता हूं। फिर भी अगर कोई कुछ कह रहा है तो मुझे ध्यान देना चाहिए। मैं ऐसे लोगों से मिलकर यह जानना चाहूंगा कि वे ऐसा क्यों कह रहे हैं?
फिल्म हिट होती है तो सारा श्रेय एक्टर को मिलता है। उसी प्रकार फिल्म फ्लॉप हो तो दोषी भी एक्टर ही माना जाता है, ऐसा क्यों?
क्योंकि वह फिल्म का चेहरा होता है। आप ने पहले कहा था कि आप आलोचकों की टिप्पणियों से सीखते और खुद को सुधारते हैं, लेकिन जब लोग आपकी तारीफ करते हैं तो वह माथे पर चढ़ता भी होगा। आप कैसे संतुलन बनाए रखते हैं? मैं शुरू से स्पष्ट हूं कि जो आज ऊपर है, कल वह नीचे आएगा। यह प्रकृति का नियम है। यही जिंदगी का नियम है। गुरु हिट हुई। फिल्म की, मेरे रोल की और मेरे परफॉर्मेस की तारीफ हुई , मुझे यह मालूम था कि अगली फिल्म गुरु जैसी नहीं चलेगी, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैं कोशिश करना छोड़ दूं। पर आप कामयाब होते हैं। आप गिरते हैं, फिर उठते हैं और आगे बढ़ते हैं। आप गिरने पर रुक नहीं जाते। फिर से आगे बढ़ते हैं। मेरे दादाजी कहते थे कि जिंदगी में यह महत्वपूर्ण नहीं है कि आप कितनी बार गिरते हैं। महत्व इस बात का है कि आप कितनी बार खुद को बटोर कर उठते हैं और आगे बढ़ते हैं।
मणिरत्नम की युवा और गुरु दोनों ही फिल्मों में आपका काम बेहतरीन रहा। कहते है निर्देशक-अभिनेता की समझदारी हो तो फिल्म एवं भूमिका में निखार आता है। और किन निर्देशकों के साथ आप ऐसी समझदारी महसूस करते हैं?
मैं सारा श्रेय निर्देशकों को दूंगा। मैं बहुत ही सीमित किस्म का एक्टर हूं। इसलिए मैं अपने निर्देशकों से खास मदद चाहता हूं। मुझे अपनी सीमाएं मालूम हैं। मुझे मालूम है कि मैं क्या कर रहा हूं। मुझे यह भी मालूम है कि मैं क्या नहीं कर सकता हूं। मेरे खयाल से यह मालूम होना ज्यादा जरूरी है। मुझे निर्देशक का प्यार और विश्वास चाहिए होता है। अगर निर्देशक के साथ मैं सहज हूं तो मैं कुछ भी कर सकता हूं। शायद यही वजह है कि मैंने अपने दोस्तों के साथ ज्यादा काम किया है। गोल्डी बहल, रोहन सिप्पी, करण जौहर ये सब के सब मेरे दोस्त हैं। मणिरत्नम भी दोस्त हो गए हैं। हमारी समझदारी थी, तभी युवा वैसी बन पाई। बिल्कुल सही कहा आपने कि निर्देशक-अभिनेता की समझदारी हो तो सब कुछ निखर जाता है।
आजकल बॉडी बनाने पर बहुत जोर दिया जा रहा है। सिक्स पैक एब तो मशहूर ही हो गया। क्या इसे जरूरी नहीं मानते?
जरूरी मानता हूं, अगर किरदार की जरूरत है। जब मैं गुरु कर रहा था तो मणि सर ने कहा था कि जैसे-जैसे गुरु बूढ़ा होता जा रहा है, वैसे-वैसे उसे मोटा होना है। उस फिल्म के लिए मैंने ग्यारह किलो वजन बढ़ाया था। वह फिल्म की जरूरत थी। अगर कल किसी फिल्म में सिक्स पैक की जरूरत होगी तो उसकी कोशिश करूंगा। मेरा मानना है कि यह विजुअल मीडियम है और आपको कैरेक्टर की तरह दिखना चाहिए। जरूरी नहीं है कि सिक्स पैक एब हो ही। एक्टर होने की पहली शर्त है कि आप एक्टिंग जानें, लेकिन कैरेक्टर की तरह दिखना भी चाहिए। सरकार राज में लुक है, हल्की दाढ़ी और खास तरीके से काढ़े गए बाल। रामू ने इस बार कहा कि पार्ट वन की तरह पतला-दुबला नहीं होना है, क्योंकि शंकर नागरे बड़ा हुआ है। वह परिवार का मुखिया बन गया है। वह समृद्ध हुआ है। इसलिए हमने उसे पतला-दुबला नहीं दिखाया है। पहले में शंकर के हाथ में चीजें नहीं थीं। अब सब कुछ शंकर के हाथ में है। सरकार में उसे पतला-दुबला दिखाया गया था। उसकी आंखों में जिंदगी की भूख थी। अब वह भूख नहीं है। अब चूंकि वजन घटाने का फैशन चल रहा है, इसलिए खालिद मोहम्मद ने कहीं लिख दिया कि मैं मोटा दिखता हूं। आपको नहीं मालूम कि मैं क्या कर रहा हूं। मैं कौन सा रोल निभा रहा हूं।
शरीर सौष्ठव दिखने का नया क्रेज है। आप क्या कहते है?
हां है न, समय बदल गया है। अगर दर्शक वैसे ही देखना चाहते हैं तो हमारे ऊपर दबाव आएगा ही। मुझे अभी तक कोई ऐसा रोल नहीं मिला है। न ही कोई दबाव पड़ा है।
पिछले दिनों खबर आई थी कि ऐश्वर्या राय पिंक पैंथर-2 की शूटिंग के समय अकेलापन महसूस कर रही थीं, तो आप उनसे मिलने चले गए थे, लेकिन उसकी वजह से क्या शूटिंग में व्यवधान पड़ा?
हुआ यों था कि ऐश्वर्या बोस्टन में पिंक पैंथर-2 की शूटिंग कर रही थी। मेरा मुंबई का शेड्यूल रद्द हो गया था। मैं खाली था तो बस ऐसे ही मिलने चला गया। अब मालूम नहीं कि मीडिया को कैसे महसूस हो गया कि वह अकेलापन महसूस कर रही हैं। शूटिंग में कोई व्यवधान नहीं पड़ा।
आप एक्टर हैं। दुनिया में तमाम किस्म के लोगों से मिलते हैं। आपका एक्सपोजर गजब का होता है। कई सारी चीजें आप यों ही सीख और जान लेते हैं?
एक्टर तो स्पंज की तरह होते हैं। सब कुछ देखना और समझना ही हमारा काम है। यह हमारे काम का हिस्सा है। अब जैसे कि इस इंटरव्यू के समय आपका दाहिना हाथ गाल के आसपास रहा है। आप सवाल पूछते समय ऊपर दायीं तरफ देखते हैं और जब मैं लंबा जवाब देता हूं तो आप रिकॉर्डर देखते हैं। यह मेरा निरीक्षण है। यही मेरा काम है। हो सकता है कि कल किसी किरदार को निभाते समय मैं आपकी इस आदत का इस्तेमाल कर लूं। गुरु के समय मैंने बॉडी लैंग्वेज और बोलने का लहजा वासु भगनानी की तरह रखा था।
आप राजनीतिक रूप से कितने जागरूक हैं?
मैं राजनीतिक रूप से जागरूक नहीं हूं और होना भी नहीं चाहता हूं। मैं राजनीति समझ नहीं पाता। देश की घटनाओं की चर्चा होती है, लेकिन जरूरी नहीं है कि उस पर राजनीतिक नजरिए से बात हो। मेरा अपना दृष्टिकोण है। मैं परिवार में बात करते समय उसे रखता हूं। मेरी ऐसी कोई हैसियत नहीं है कि मैं अपना दृष्टिकोण सार्वजनिक रूप से रखूं या उसकी बात करूं। मेरा वह काम नहीं है। मेरा काम है एक्टिंग करना।
आप एक्टिंग के साथ कुछ प्रोडक्ट के साथ भी जुड़े हैं। उनके ब्रांड एंबैसडर हैं?
यह एक्टिंग का ही विस्तार है। मैं वैसे ही प्रोडक्ट का ब्रांड एंबैस्डर बनना स्वीकार करता हूं, जिन में यकीन रखता हूं। मैं मोटोरोला मोबाइल इस्तेमाल करता हूं। मेरे ख्याल में दर्शकों तक पहुंचने और उनसे जुड़ने का यह भी एक जरिया है।
ओम शांति ओम में आप थोड़ी देर के लिए दिखे और अपना ही मजाक उड़ाते हैं? और सांवरिया कैसी लगी?
वह स्क्रिप्ट का हिस्सा था। फराह और शाहरुख दोस्त हैं हमारे। वे बहुत करीबी हैं। आप उन्हें ना नहीं कह सकते। मैं दोस्ती के लिए बहुत कुछ करता हूं। मुझे वह फिल्म पसंद आई।
सांवरिया भी मुझे अच्छी लगी। वह बिल्कुल अलग फिल्म है। दोनों अलग फिल्में हैं।
इन दोनों फिल्मों के एक ही दिन रिलीज होने से असहज स्थितियां बनीं। अगर कभी आपके साथ ऐसा हुआ तो आप का क्या स्टैंड होगा?
मैं कोशिश करूंगा कि ऐसी स्थिति न बने। अगर किसी भी तरह से टाला नहीं जा सके तो मैं दर्शकों की राय का इंतजार करूंगा।
लगभग सभी स्टार अपने होम प्रोडक्शन को तरजीह दे रहे हैं और उनकी फिल्में सफल भी रहती हैं। क्या आप इस दिशा में नहीं सोच रहे हैं?
अगर ऐसी बात है तो मैं इस दिशा में सोचूंगा। वैसे, मैं इसे नहीं मानता। क्योंकि फिल्में चलती हैं, एक्टर या प्रोडक्शन हाउस कोई भी हो।
कभी किसी से प्रतियोगिता महसूस करते हैं?
आज सबसे अच्छी बात यह है कि कोई प्रतिद्वंद्विता या प्रतियोगिता नहीं है। स्वस्थ प्रतियोगिता है। हम एक-दूसरे को इसके लिए प्रेरित करते हैं। फिल्म इंडस्ट्री बहुत प्यारी जगह है और हमारे रिश्ते परिवार की तरह हैं।
क्या आप इसके प्रति सचेत रहते हैं कि फिल्म क्या संदेश दे रही है?
अगर कोई फिल्म गलत संदेश दे रही है तो आप उसका हिस्सा नहीं हो सकते। अगर आप ऐसा करते हैं तो आप एक्टर के तौर पर जिम्मेदार नहीं हैं। आपको जानकारी होनी चाहिए। आप यह नहीं कह सकते कि कोई भी फिल्म कर लूंगा। वह चाहे जो भी संदेश दे। मैं ऐसी फिल्म का हिस्सा नहीं हो सकता जो समाज विरोधी संदेश दे रही हो। एक्टर के तौर पर तब मैं अपनी जिम्मेदारी से चूकूंगा।
अभिषेक इन दिनों क्या कर रहे हैं?
शूटिंग कर रहा हूं। दिल्ली-6 की शूटिंग कर रहा था। उसके बाद करण जौहर की फिल्म कर रहा हूं, जो तरूण मनसुखानी निर्देशित कर रहे हैं। फिर रोहन सिप्पी की फिल्म शुरू करूंगा। काम तो है और आप लोगों के आर्शीवाद से काफी काम है।
सरकार राज आ रही है। उसके बारे में कुछ बताएं?
सरकार राज, सरकार की सीक्वल है। इसमें फिर से नागरे परिवार को देखेंगे। सरकार जहां खत्म हुई थी, उससे आगे की कहानी है इसमें। नयी कहानी है और नयी समस्या है। इसमें ऐश्वर्या राय भी हैं। मैं तो बहुत एक्साइटेड हूं। ऐश्वर्या इस फिल्म में बिजनेस वीमैन का रोल निभा रही हैं। वह नागरे परिवार के सामने एक प्रस्ताव रखती हैं और बाद में उस परिवार के साथ काम करती हैं।
द्रोण के बारे में क्या कहेंगे? सुपरहीरो फिल्म है?
सब लोग द्रोण को सुपरहीरो फिल्म समझ रहे हैं। वह सुपरहीरो फिल्म नहीं है। हां, मैं फिल्म का हीरो हूं, लेकिन सुपरहीरो नहीं हूं। द्रोण एक फैंटेसी फिल्म है। उस फिल्म का थोड़ा सा काम बाकी है। उस फिल्म में पोस्ट प्रोडक्शन का काम लंबा है। फिल्म में काफी मैजिक है। द्रोण आज की फिल्म है। कॉस्ट्यूम भी है, लेकिन कॉस्ट्यूम ड्रामा नहीं है। यह हाइपर रियल फिल्म है। मैंने ऐसी फिल्म पहले नहीं की। मेरे खयाल में कटिंग एज एंटरटेनमेंट होगा। इंटरनेशन स्टैंडर्ड के करीब होगी फिल्म। मैंने कभी स्पेशल इफेक्ट की फिल्म नहीं की है, इसलिए मैं तो सब कुछ सीख रहा हूं। फिल्म के डायरेक्टर गोल्डी मेरे दोस्त हैं। और क्या बताऊं फिल्म के बारे में।
फिल्म में आपका नाम द्रोण ही होगा न? प्रियंका चोपड़ा क्या कर रही हैं?
हां, मेरा नाम द्रोण ही है। प्रियंका चोपड़ा मेरी बॉडी गार्ड हैं। मैं उनसे प्रेम भी करता हूं।
संयोग से आपकी सरकार राज और द्रोण दोनों में आपके मां-पिता में से एक हैं। उनके साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?
द्रोण में मां के साथ ज्यादा काम नहीं है। दो-तीन दिनों का ही काम था, लेकिन बहुत मजा आया। लागा चुनरी में दाग में भी हम दोनों थे। उसमें एक दिन का काम था। उसके पहले हम दोनों ने एक बंगाली फिल्म देस की थी। मां के साथ सबसे बड़ा मजा यही है कि कट बोलते ही वह एक्टर से मां बन जाती हैं। पूछती हैं कि खाना खाया कि नहीं या ममता भरी कोई बात करने लगती है। परिवार में सारे लोग अपने कॅरियर और काम में इतने व्यस्त है कि हम अलग-अलग जगह काम कर रहे होते है। डैड के साथ तो फिर भी ज्यादा टाइम मिल जाता है। मां के साथ कम मौका मिलता है रहने का। एक्टर के तौर पर मैं क्या कह सकता हूं। शी इज जस्ट एन आउटस्टैंडिग आर्टिस्ट। आप उन्हें काम करते देख कर भी बहुत कुछ सीख सकते हैं। उनके साथ काम करना तो शुद्ध आनंद है। उन जैसी प्रतिभा का नियमित काम नहीं करना तो प्रतिभा की बर्बादी है।
अभिनेता की तरह निर्देशक की जिंदगी में भी उतार-चढ़ाव आता है। रामू की बात करें, रामगोपाल वर्मा की आग के बाद ऐसा लग रहा है कि वे खत्म हो गए। ऐसी स्थिति में रामू के साथ सरकार राज करते समय कोई संकोच या डर नहीं लगा?
बिल्कुल नहीं, कभी नहीं, मेरे अनुसार रामू अपने देश के एक प्रतिभाशाली निर्देशक हैं। निर्देशक कभी सफल होते हैं और कभी नहीं हो पाते। सरकार राज करते समय किसी के मन में यह ख्याल तक नहीं आया। रामू ने मुझे नाच तब दी थी, जब मेरी कोई फिल्म हिट नहीं हुई थी। उन्होंने मुझमें विश्वास किया था। उन्होंने मुझ में कुछ देखा था। रामू के साथ काम करते समय मैं उनकी प्रतिभा देख पाता हूं। उनकी एक फिल्म नहीं चली तो इसका मतलब यह नहीं होता कि आप उनका नाम मिटा दें। उन्होंने सरकार राज में गजब का काम किया है। मुझे पूरा विश्वास है कि इस फिल्म से वे सभी को खामोश कर देंगे।
ऐसा माना जाता है कि आपकी कोई ब्रांडिंग नहीं हुई है। किसी एक इमेज में आप नहीं बंधे हैं। यह आपकी कोशिश है या संयोग से ऐसा हुआ है?
एक एक्टर के तौर पर हम सभी चाहते हैं कि हम ब्रांडेड न हों। उससे बचे रहने पर मौका मिलता है कि हम अलग किस्म की फिल्में करें। हमारा हर किरदार अलग हो। मेरी पीढ़ी की बात करें और रितिक का उदाहरण लें। रितिक ने कहो ना..प्यार है से शुरूआत की। उसने फिजा, कोई मिल गया, कृष, धूम और जोधा अकबर जैसी फिल्में कीं। आप वैरायटी देखिए और ये सभी फिल्में हिट है। इन सारी फिल्मों में रितिक का काम बहुत सराहा गया। हम एक्टर है कुछ नया करते हैं तो हमें अच्छा लगता है। मैंने भी रिफ्यूजी से शुरूआत की थी। फिर मैंने कुछ न कहो जैसी फिल्म की। युवा, सरकार , बंटी बबली, दस, धूम, धूम-2 । मैं मानता हूं कि मेरी पीढ़ी किसी ब्रांड या इमेज में नहीं बंधी है। मेरी पीढ़ी निर्देशकों को मौका दे रही है कि वे रोचक रोल लिखें और हम उन्हें यह विश्वास दिला सकते हैं कि हम वे रोल कर पाएंगे। हमारी पीढ़ी का कोई भी अभिनेता एक तरह की फिल्म तक सीमित नहीं रहा है। हम सभी इस तथ्य के लिए सचेत नहीं हैं कि हमें एक्शन हीरो बनना है या रोमांटिक हीरो बनना है। हम सब कुछ करना चाहते हैं। इसे आप लालच कहेंगे या मूर्खता कहेंगे, मुझे नहीं मालूम, लेकिन मुझे खुशी है कि हम ऐसा कर पा रहे हैं।
क्या यह बात आप तक पहुंची कि आप रितिक रोशन के समान मेहनत नहीं करते या काम के प्रति उनकी तरह गंभीर नहीं रहते?
नहीं, मुझे किसी ने नहीं कहा कि मैं मेहनत नहीं करता हूं। मुझे लगता है कि दूसरों के समान मैं भी मेहनत करता हूं। और ज्यादा करनी चाहिए। जरूर करनी चाहिए, क्योंकि सुधार की संभावना हमेशा बनी रहती है। मेहनत की गुंजाइश रहती है। अभी तक किसी ने नहीं कहा कि मैं अपने काम के प्रति गंभीर नहीं रहता। मुझे हंसी आती है। आप इसे मेरा प्रमाद या अहंकार ना समझें। गुरु पिछले साल की हिट फिल्म थी। वह जनवरी में रिलीज हुई थी। दर्शक खुश थे। समीक्षकों ने दयालुता दिखाई। अब चूंकि लंबे समय से कोई फिल्म नहीं आई है तो लोग कहने लगे कि अभिषेक गंभीर नहीं है। यह बात मेरी समझ में नहीं आती। मेरे ख्याल में यह असंगत और मिथ्या आरोप है, लेकिन ऐसे आरोपों के बीच जीना हमारी नियति है। हमारा काम ही बोलता है। हम प्रचारक रख कर दूसरों की राय नहीं बदल सकते। हमारे बारे में राय हमारे काम से बनती है। हमें इसी में यकीन रखना चाहिए। मैं नहीं जानता हूं कि ऐसी बातें कहने वाले लोग कौन हैं? उन्होंने मेरे साथ कौन सी फिल्म की है? उन्होंने ऐसी धारणा किस आधार पर बनाई। और फिर कड़ी मेहनत क्या है? कौन तय करेगा। हर आदमी की अपनी शैली होती है। अगर कड़ी मेहनत का मतलब एक कोने में बैठकर अपनी पंक्तियां याद करना है तो मुझे खेद है कि मैं ऐसा नहीं कर सकता। मेरा अपना अप्रोच है और वह मेरे लिए कारगर है। हो सकता है वह अप्रोच दूसरों के लिए कारगर न हो, लेकिन मैं अपनी प्रक्रिया दूसरों पर नहीं लादता। मुझे लगता है कि मैं अपना काम पूरी ईमानदारी और मेहनत से करता हूं। फिर भी अगर कोई कुछ कह रहा है तो मुझे ध्यान देना चाहिए। मैं ऐसे लोगों से मिलकर यह जानना चाहूंगा कि वे ऐसा क्यों कह रहे हैं?
फिल्म हिट होती है तो सारा श्रेय एक्टर को मिलता है। उसी प्रकार फिल्म फ्लॉप हो तो दोषी भी एक्टर ही माना जाता है, ऐसा क्यों?
क्योंकि वह फिल्म का चेहरा होता है। आप ने पहले कहा था कि आप आलोचकों की टिप्पणियों से सीखते और खुद को सुधारते हैं, लेकिन जब लोग आपकी तारीफ करते हैं तो वह माथे पर चढ़ता भी होगा। आप कैसे संतुलन बनाए रखते हैं? मैं शुरू से स्पष्ट हूं कि जो आज ऊपर है, कल वह नीचे आएगा। यह प्रकृति का नियम है। यही जिंदगी का नियम है। गुरु हिट हुई। फिल्म की, मेरे रोल की और मेरे परफॉर्मेस की तारीफ हुई , मुझे यह मालूम था कि अगली फिल्म गुरु जैसी नहीं चलेगी, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैं कोशिश करना छोड़ दूं। पर आप कामयाब होते हैं। आप गिरते हैं, फिर उठते हैं और आगे बढ़ते हैं। आप गिरने पर रुक नहीं जाते। फिर से आगे बढ़ते हैं। मेरे दादाजी कहते थे कि जिंदगी में यह महत्वपूर्ण नहीं है कि आप कितनी बार गिरते हैं। महत्व इस बात का है कि आप कितनी बार खुद को बटोर कर उठते हैं और आगे बढ़ते हैं।
मणिरत्नम की युवा और गुरु दोनों ही फिल्मों में आपका काम बेहतरीन रहा। कहते है निर्देशक-अभिनेता की समझदारी हो तो फिल्म एवं भूमिका में निखार आता है। और किन निर्देशकों के साथ आप ऐसी समझदारी महसूस करते हैं?
मैं सारा श्रेय निर्देशकों को दूंगा। मैं बहुत ही सीमित किस्म का एक्टर हूं। इसलिए मैं अपने निर्देशकों से खास मदद चाहता हूं। मुझे अपनी सीमाएं मालूम हैं। मुझे मालूम है कि मैं क्या कर रहा हूं। मुझे यह भी मालूम है कि मैं क्या नहीं कर सकता हूं। मेरे खयाल से यह मालूम होना ज्यादा जरूरी है। मुझे निर्देशक का प्यार और विश्वास चाहिए होता है। अगर निर्देशक के साथ मैं सहज हूं तो मैं कुछ भी कर सकता हूं। शायद यही वजह है कि मैंने अपने दोस्तों के साथ ज्यादा काम किया है। गोल्डी बहल, रोहन सिप्पी, करण जौहर ये सब के सब मेरे दोस्त हैं। मणिरत्नम भी दोस्त हो गए हैं। हमारी समझदारी थी, तभी युवा वैसी बन पाई। बिल्कुल सही कहा आपने कि निर्देशक-अभिनेता की समझदारी हो तो सब कुछ निखर जाता है।
आजकल बॉडी बनाने पर बहुत जोर दिया जा रहा है। सिक्स पैक एब तो मशहूर ही हो गया। क्या इसे जरूरी नहीं मानते?
जरूरी मानता हूं, अगर किरदार की जरूरत है। जब मैं गुरु कर रहा था तो मणि सर ने कहा था कि जैसे-जैसे गुरु बूढ़ा होता जा रहा है, वैसे-वैसे उसे मोटा होना है। उस फिल्म के लिए मैंने ग्यारह किलो वजन बढ़ाया था। वह फिल्म की जरूरत थी। अगर कल किसी फिल्म में सिक्स पैक की जरूरत होगी तो उसकी कोशिश करूंगा। मेरा मानना है कि यह विजुअल मीडियम है और आपको कैरेक्टर की तरह दिखना चाहिए। जरूरी नहीं है कि सिक्स पैक एब हो ही। एक्टर होने की पहली शर्त है कि आप एक्टिंग जानें, लेकिन कैरेक्टर की तरह दिखना भी चाहिए। सरकार राज में लुक है, हल्की दाढ़ी और खास तरीके से काढ़े गए बाल। रामू ने इस बार कहा कि पार्ट वन की तरह पतला-दुबला नहीं होना है, क्योंकि शंकर नागरे बड़ा हुआ है। वह परिवार का मुखिया बन गया है। वह समृद्ध हुआ है। इसलिए हमने उसे पतला-दुबला नहीं दिखाया है। पहले में शंकर के हाथ में चीजें नहीं थीं। अब सब कुछ शंकर के हाथ में है। सरकार में उसे पतला-दुबला दिखाया गया था। उसकी आंखों में जिंदगी की भूख थी। अब वह भूख नहीं है। अब चूंकि वजन घटाने का फैशन चल रहा है, इसलिए खालिद मोहम्मद ने कहीं लिख दिया कि मैं मोटा दिखता हूं। आपको नहीं मालूम कि मैं क्या कर रहा हूं। मैं कौन सा रोल निभा रहा हूं।
शरीर सौष्ठव दिखने का नया क्रेज है। आप क्या कहते है?
हां है न, समय बदल गया है। अगर दर्शक वैसे ही देखना चाहते हैं तो हमारे ऊपर दबाव आएगा ही। मुझे अभी तक कोई ऐसा रोल नहीं मिला है। न ही कोई दबाव पड़ा है।
पिछले दिनों खबर आई थी कि ऐश्वर्या राय पिंक पैंथर-2 की शूटिंग के समय अकेलापन महसूस कर रही थीं, तो आप उनसे मिलने चले गए थे, लेकिन उसकी वजह से क्या शूटिंग में व्यवधान पड़ा?
हुआ यों था कि ऐश्वर्या बोस्टन में पिंक पैंथर-2 की शूटिंग कर रही थी। मेरा मुंबई का शेड्यूल रद्द हो गया था। मैं खाली था तो बस ऐसे ही मिलने चला गया। अब मालूम नहीं कि मीडिया को कैसे महसूस हो गया कि वह अकेलापन महसूस कर रही हैं। शूटिंग में कोई व्यवधान नहीं पड़ा।
आप एक्टर हैं। दुनिया में तमाम किस्म के लोगों से मिलते हैं। आपका एक्सपोजर गजब का होता है। कई सारी चीजें आप यों ही सीख और जान लेते हैं?
एक्टर तो स्पंज की तरह होते हैं। सब कुछ देखना और समझना ही हमारा काम है। यह हमारे काम का हिस्सा है। अब जैसे कि इस इंटरव्यू के समय आपका दाहिना हाथ गाल के आसपास रहा है। आप सवाल पूछते समय ऊपर दायीं तरफ देखते हैं और जब मैं लंबा जवाब देता हूं तो आप रिकॉर्डर देखते हैं। यह मेरा निरीक्षण है। यही मेरा काम है। हो सकता है कि कल किसी किरदार को निभाते समय मैं आपकी इस आदत का इस्तेमाल कर लूं। गुरु के समय मैंने बॉडी लैंग्वेज और बोलने का लहजा वासु भगनानी की तरह रखा था।
आप राजनीतिक रूप से कितने जागरूक हैं?
मैं राजनीतिक रूप से जागरूक नहीं हूं और होना भी नहीं चाहता हूं। मैं राजनीति समझ नहीं पाता। देश की घटनाओं की चर्चा होती है, लेकिन जरूरी नहीं है कि उस पर राजनीतिक नजरिए से बात हो। मेरा अपना दृष्टिकोण है। मैं परिवार में बात करते समय उसे रखता हूं। मेरी ऐसी कोई हैसियत नहीं है कि मैं अपना दृष्टिकोण सार्वजनिक रूप से रखूं या उसकी बात करूं। मेरा वह काम नहीं है। मेरा काम है एक्टिंग करना।
आप एक्टिंग के साथ कुछ प्रोडक्ट के साथ भी जुड़े हैं। उनके ब्रांड एंबैसडर हैं?
यह एक्टिंग का ही विस्तार है। मैं वैसे ही प्रोडक्ट का ब्रांड एंबैस्डर बनना स्वीकार करता हूं, जिन में यकीन रखता हूं। मैं मोटोरोला मोबाइल इस्तेमाल करता हूं। मेरे ख्याल में दर्शकों तक पहुंचने और उनसे जुड़ने का यह भी एक जरिया है।
ओम शांति ओम में आप थोड़ी देर के लिए दिखे और अपना ही मजाक उड़ाते हैं? और सांवरिया कैसी लगी?
वह स्क्रिप्ट का हिस्सा था। फराह और शाहरुख दोस्त हैं हमारे। वे बहुत करीबी हैं। आप उन्हें ना नहीं कह सकते। मैं दोस्ती के लिए बहुत कुछ करता हूं। मुझे वह फिल्म पसंद आई।
सांवरिया भी मुझे अच्छी लगी। वह बिल्कुल अलग फिल्म है। दोनों अलग फिल्में हैं।
इन दोनों फिल्मों के एक ही दिन रिलीज होने से असहज स्थितियां बनीं। अगर कभी आपके साथ ऐसा हुआ तो आप का क्या स्टैंड होगा?
मैं कोशिश करूंगा कि ऐसी स्थिति न बने। अगर किसी भी तरह से टाला नहीं जा सके तो मैं दर्शकों की राय का इंतजार करूंगा।
लगभग सभी स्टार अपने होम प्रोडक्शन को तरजीह दे रहे हैं और उनकी फिल्में सफल भी रहती हैं। क्या आप इस दिशा में नहीं सोच रहे हैं?
अगर ऐसी बात है तो मैं इस दिशा में सोचूंगा। वैसे, मैं इसे नहीं मानता। क्योंकि फिल्में चलती हैं, एक्टर या प्रोडक्शन हाउस कोई भी हो।
कभी किसी से प्रतियोगिता महसूस करते हैं?
आज सबसे अच्छी बात यह है कि कोई प्रतिद्वंद्विता या प्रतियोगिता नहीं है। स्वस्थ प्रतियोगिता है। हम एक-दूसरे को इसके लिए प्रेरित करते हैं। फिल्म इंडस्ट्री बहुत प्यारी जगह है और हमारे रिश्ते परिवार की तरह हैं।
क्या आप इसके प्रति सचेत रहते हैं कि फिल्म क्या संदेश दे रही है?
अगर कोई फिल्म गलत संदेश दे रही है तो आप उसका हिस्सा नहीं हो सकते। अगर आप ऐसा करते हैं तो आप एक्टर के तौर पर जिम्मेदार नहीं हैं। आपको जानकारी होनी चाहिए। आप यह नहीं कह सकते कि कोई भी फिल्म कर लूंगा। वह चाहे जो भी संदेश दे। मैं ऐसी फिल्म का हिस्सा नहीं हो सकता जो समाज विरोधी संदेश दे रही हो। एक्टर के तौर पर तब मैं अपनी जिम्मेदारी से चूकूंगा।
Comments
Abhishek me talent hai lekin MANI sir jaisa koi director chahiye usse nikalne ke liye.ABHI me sochne-bolne ki bhi kshamta hai ,koi usse bahar nikalne wala chahiye. AJAY JI aap safal rahe.