फट से फायर फिलम लगा दे

चवन्नी को राकेश रंजन की यह कविता बहुत सही लगी.चवन्नी के पाठक यह न समझें कि आजकल चवन्नी फिल्मों की दुनिया से बाहर टाक-झाँक कर रहे हैं.इस कविता में भी फ़िल्म का ज़िक्र है और वह भी विवादास्पद फ़िल्म फायर का...
आ बचवा,चल चिलम लगा दे।
रात भई,जी अकुलाता है
कैसा तो होता जाता है
ऊ ससुरा रमदसवा सरवा
अब तक रामचरित गाता है
रमदसवा जल्दी सो जाए
ऐसा कोई इलम लगा दे ।
आ बचवा,अन्दरवा आजा
हौले से जड़ दे दरवाजा
रामझरोखे पे लटका दे
तब तक यह बजरंगी धाजा
हाँ,अब,सब कुछ बहुत सही है
फट से फायर फिलम लगा दे.
अभी-अभी जन्मा है कवि संग्रह से

Comments

Swapnil said…
Ajay Ji, mere jaise anadiyon ke liye please thoda sa explain kariye ki fire film kaise fit ho rahi hai ismein ... ya ki bas yun hi kavi ne randomly ek naam choose kar liya hai.

Cheers!

Swapnil
Udan Tashtari said…
बहुत बढ़िया प्रस्तुत की राकेश जी कविता. आभार पढ़वाने का.

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