वुडस्टाक विला: एक और धोखा
-अजय ब्रह्मात्मज
संजय गुप्ता ने खुद को एक ब्रांड के तौर पर स्थापित कर लिया है। उनकी फिल्मों की रिलीज के पहले खूब चर्चा रहती है। अलग-अलग तरीके से वह फिल्म से संबंधित कार्यक्रम करते रहते हैं और टीवी चैनलों के लिए जरूरी फुटेज की व्यवस्था कर देते हैं। दर्शकइस भ्रम में रहते हैं कि कोई महत्वपूर्ण फिल्म आ रही है। एक बार फिर ऐसा ही धोखा हुआ है। हंसल मेहता के निर्देशनमें बनी वुडस्टाक विला इसी धोखे के कारण निराश करती है।
विदेश में बसे भारतीय मूल के मां-बाप का बेटा सैम तफरीह के लिए भारत आया है। एक बातचीत में वह अपने दोस्त को बताता है कि भारत में हाट स्पाइसेज हैं, इसलिए वह यहां आया है। माफकरें, हाट स्पाइसेज का अर्थ आप गरम मसाला न लें। उसका इशारा लड़कियों की तरफ है। हर रात एक नई लड़की की तलाश उसका शौक है।
इसी शौक के चक्कर में वह जारा के संपर्क में आता है। जारा उससे एक डील करती है कि वह उसे किडनैप कर ले और उसके पति से पचास लाख रुपयों की मांग करे। वह जांचना चाहती है कि उसका पति उसे प्यार करता है या नहीं? भूल से भी आप अपने पति का प्यार जांचने के लिए ऐसा तरीका आजमाने की मत सोचिएगा। बहरहाल, इस प्रपंच में एक हत्या हो जाती है। सैम मुश्किल में फंसता है, लेकिन फिल्म का लेखक उसे आसानी से अंतत: निकाल ले जाता है। वह विदेश लौट जाता है। बीच की कहानी का रहस्य लिखना उचित नहीं है, क्योंकि अगर आप संजय और हंसल के प्रशंसक हैं तो कुछ तो रहस्य बचा रहे।
वुडस्टॉक विला सिकंदर खेर की पहली फिल्म है। चिराग तले अंधेरा का सिकंदर से उपयुक्त उदाहरण नहीं हो सकता। सिकंदर के पिता अनुपम खेर और मां किरण खेर हैं। दोनों अभिनय के क्षेत्र में कई पुरस्कार ले चुके हैं और अनुपम तो कई शहरों में अभिनय की पाठशाला चलाते हैं। लेकिन इसमें उनका क्या दोष? सिकंदर खेर के चेहरे पर न तो कोई भाव दिखता है और न उनकी आंखों में कोई चमक है। ठंडी आंखों और भावशून्य चेहरे के इस अभिनेता की कद-काठी अच्छी है। उनके लंबे सुंदर बाल हैं और रफ लुक देने के लिए फिल्म में दाढ़ी रखने की छूट दे दी गयी है। फिर भी सिकंदर खेर प्रभावित नहीं करते।
फिल्म निश्चित रूप से स्टाइलिश है, लेकिन चमकदार थाली में करीने से बेस्वाद व्यंजन की तरह है। आरंभ के दृश्य में अलग अंदाज में दिखी मुंबई बाद में विला और पब में सिमट कर रह जाती है। एक गाने में संजय दत्त की मौजूदगी यों ही निकल जाती है। वुडस्टाक विला हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में विदेशी फिल्मों के प्रभाव में बन रही अभारतीय फिल्मों का नमूना है। अफसोस की बात है कि असफलता के बावजूद यह चलन जोर पकड़ रहा है, क्योंकि ऐसी फिल्मों के सपोर्ट में बाजार खड़ा है।
संजय गुप्ता ने खुद को एक ब्रांड के तौर पर स्थापित कर लिया है। उनकी फिल्मों की रिलीज के पहले खूब चर्चा रहती है। अलग-अलग तरीके से वह फिल्म से संबंधित कार्यक्रम करते रहते हैं और टीवी चैनलों के लिए जरूरी फुटेज की व्यवस्था कर देते हैं। दर्शकइस भ्रम में रहते हैं कि कोई महत्वपूर्ण फिल्म आ रही है। एक बार फिर ऐसा ही धोखा हुआ है। हंसल मेहता के निर्देशनमें बनी वुडस्टाक विला इसी धोखे के कारण निराश करती है।
विदेश में बसे भारतीय मूल के मां-बाप का बेटा सैम तफरीह के लिए भारत आया है। एक बातचीत में वह अपने दोस्त को बताता है कि भारत में हाट स्पाइसेज हैं, इसलिए वह यहां आया है। माफकरें, हाट स्पाइसेज का अर्थ आप गरम मसाला न लें। उसका इशारा लड़कियों की तरफ है। हर रात एक नई लड़की की तलाश उसका शौक है।
इसी शौक के चक्कर में वह जारा के संपर्क में आता है। जारा उससे एक डील करती है कि वह उसे किडनैप कर ले और उसके पति से पचास लाख रुपयों की मांग करे। वह जांचना चाहती है कि उसका पति उसे प्यार करता है या नहीं? भूल से भी आप अपने पति का प्यार जांचने के लिए ऐसा तरीका आजमाने की मत सोचिएगा। बहरहाल, इस प्रपंच में एक हत्या हो जाती है। सैम मुश्किल में फंसता है, लेकिन फिल्म का लेखक उसे आसानी से अंतत: निकाल ले जाता है। वह विदेश लौट जाता है। बीच की कहानी का रहस्य लिखना उचित नहीं है, क्योंकि अगर आप संजय और हंसल के प्रशंसक हैं तो कुछ तो रहस्य बचा रहे।
वुडस्टॉक विला सिकंदर खेर की पहली फिल्म है। चिराग तले अंधेरा का सिकंदर से उपयुक्त उदाहरण नहीं हो सकता। सिकंदर के पिता अनुपम खेर और मां किरण खेर हैं। दोनों अभिनय के क्षेत्र में कई पुरस्कार ले चुके हैं और अनुपम तो कई शहरों में अभिनय की पाठशाला चलाते हैं। लेकिन इसमें उनका क्या दोष? सिकंदर खेर के चेहरे पर न तो कोई भाव दिखता है और न उनकी आंखों में कोई चमक है। ठंडी आंखों और भावशून्य चेहरे के इस अभिनेता की कद-काठी अच्छी है। उनके लंबे सुंदर बाल हैं और रफ लुक देने के लिए फिल्म में दाढ़ी रखने की छूट दे दी गयी है। फिर भी सिकंदर खेर प्रभावित नहीं करते।
फिल्म निश्चित रूप से स्टाइलिश है, लेकिन चमकदार थाली में करीने से बेस्वाद व्यंजन की तरह है। आरंभ के दृश्य में अलग अंदाज में दिखी मुंबई बाद में विला और पब में सिमट कर रह जाती है। एक गाने में संजय दत्त की मौजूदगी यों ही निकल जाती है। वुडस्टाक विला हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में विदेशी फिल्मों के प्रभाव में बन रही अभारतीय फिल्मों का नमूना है। अफसोस की बात है कि असफलता के बावजूद यह चलन जोर पकड़ रहा है, क्योंकि ऐसी फिल्मों के सपोर्ट में बाजार खड़ा है।
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