घटोत्कच: एनीमेशन के नाम पर फूहड़ प्रस्तुति
-अजय ब्रह्मात्मज
एस श्रीनिवास के निर्देशन में बनी घटोत्कच एनीमेशन फिल्मों के नाम पर चल रहे कारोबार की वास्तविकता सामने ला देती है। महाभारत के पात्र घटोत्कच के जीवन पर बनी इस एनीमेशन फिल्म को सुंदर और प्रभावशाली बनाने की संभावनाएं थीं, लेकिन निर्देशक ने एक मिथकीय किरदार को कैरीकेचर और कार्टून बना कर रख दिया है।
एनीमेशन की बारीकियों में न जाकर सिर्फ कहानी की ही बात करें तो घटोत्कच के जीवन में हास्यास्पद प्रसंग दिखाने के लिए निर्देशक की कपोल कल्पना उसे आज तक खींचती है। समझ में नहीं आता कि निर्देशक की क्या मंशा है? आखिर किन दर्शकों के लिए यह फिल्म बनाई गई है। घटोत्कच की विकृत प्रस्तुति महाभारत के एक उल्लेखनीय वीर का मखौल उड़ाती है और उसे हिंदी फिल्मों के साधारण कामेडियन में बदल देती है।
भीम और हिडिम्बा के बेटे घटोत्कच की महाभारत में खास भूमिका रही है। उन्होंने अपने शौर्य, पराक्रम और चमत्कार से श्रीकृष्ण का आर्शीवाद भी पाया था। अगर यह फिल्म बाल घटोत्कच के कारनामों तक सीमित रहती तो भी मनोरंजक और शिक्षाप्रद होती।
घटोत्कच एनीमेशन के नाम पर फूहड़ प्रस्तुति है। दिक्कत यह है कि ऐसी फिल्म की मार्केटिंग बच्चों के बीच की जा रही है, जो आधुनिक शिक्षा के नाम पर पहले ही अपने इतिहास और मिथक से कट रहे हैं।
एस श्रीनिवास के निर्देशन में बनी घटोत्कच एनीमेशन फिल्मों के नाम पर चल रहे कारोबार की वास्तविकता सामने ला देती है। महाभारत के पात्र घटोत्कच के जीवन पर बनी इस एनीमेशन फिल्म को सुंदर और प्रभावशाली बनाने की संभावनाएं थीं, लेकिन निर्देशक ने एक मिथकीय किरदार को कैरीकेचर और कार्टून बना कर रख दिया है।
एनीमेशन की बारीकियों में न जाकर सिर्फ कहानी की ही बात करें तो घटोत्कच के जीवन में हास्यास्पद प्रसंग दिखाने के लिए निर्देशक की कपोल कल्पना उसे आज तक खींचती है। समझ में नहीं आता कि निर्देशक की क्या मंशा है? आखिर किन दर्शकों के लिए यह फिल्म बनाई गई है। घटोत्कच की विकृत प्रस्तुति महाभारत के एक उल्लेखनीय वीर का मखौल उड़ाती है और उसे हिंदी फिल्मों के साधारण कामेडियन में बदल देती है।
भीम और हिडिम्बा के बेटे घटोत्कच की महाभारत में खास भूमिका रही है। उन्होंने अपने शौर्य, पराक्रम और चमत्कार से श्रीकृष्ण का आर्शीवाद भी पाया था। अगर यह फिल्म बाल घटोत्कच के कारनामों तक सीमित रहती तो भी मनोरंजक और शिक्षाप्रद होती।
घटोत्कच एनीमेशन के नाम पर फूहड़ प्रस्तुति है। दिक्कत यह है कि ऐसी फिल्म की मार्केटिंग बच्चों के बीच की जा रही है, जो आधुनिक शिक्षा के नाम पर पहले ही अपने इतिहास और मिथक से कट रहे हैं।
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दोस्त की बेटी से बलात्कार की कोशिश
अपने भीतर की बुराइयों को दिलेरी से सार्वजनिक करने वाले ब्लॉग भड़ास में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वो इस ख़बर को अपने साथियों से बांटता। ऐसा तब भी नहीं हुआ था, जब यशवंत को उनकी कंपनी ने थोड़े दिनों पहले अपने यहां से धक्के देकर बाहर निकाल दिया था। जी हां, जागरण के बाद इंडिकस ने उन्हें अपने यहां से निकाल बाहर किया है - क्योंकि यशवंत की जोड़-तोड़ की आदत से वे परेशान हो चुके थे।
ताज़ा ख़बर ये है कि नौकरी से निकाले जाने के बाद यशवंत नयी कंपनी बनाने में जुटे थे। उन्होंने भाकपा माले के एक साथी को इसके लिए अपने घर बुलाया। ग्रामीण कार्यकर्ता का भोला मन - अपनी बेटी के साथ वो दिल्ली आ गये। सोचा यशवंत का परिवार है - घर ही तो है। लेकिन यशवंत ने हर बार की तरह नौकरी खोने के बाद अपने परिवार को गांव भेज दिया था। ख़ैर, शाम को वे सज्जन वापसी का टिकट लेने रेलवे जंक्शन गये, इधर यशवंत ने उनकी बेटी से मज़ाक शुरू किया। मज़ाक धीरे-धीरे अश्लील हरक़तों की तरफ़ बढ़ने लगा। दोस्त की बेटी डर गयी। उसने यशवंत से गुज़ारिश की कि वे उसे छोड़ दें। लेकिन यशवंत पर जैसे सनक और वासना सवार थी।
यशवंत ने दोस्त की बेटी के कपड़े फाड़ डाले और उससे बलात्कार की कोशिश की। लेकिन दोस्त की बहादुर बेटी यशवंत को धक्के देकर सड़क की ओर भागी और रास्ते के पीसीओ बूथ से भाकपा माले के दफ़्तर फोन करके मदद की गुहार लगायी। भाकपा माले से कविता कृष्णन पहुंची और उसे अपने साथ थाने ले गयी। थाने में मामला दर्ज हुआ और पुलिस ने यशवंत के घर पर छापा मारा।
यशवंत घर से भागने की फिराक में थे, लेकिन धर लिये गये। ख़ैर पत्रकारिता की पहुंच और भड़ास के सामाजिक रूप से ग़ैरज़िम्मेदार और अपराधी प्रवृत्ति के उनके दोस्तों ने भाग-दौड़ करके उनके लिए ज़मानत का इंतज़ाम किया।
अब फिर यशवंत आज़ाद हैं और किसी दूसरे शिकार की तलाश में घात लगाये बैठे हैं।