बस नाम से ही 'जन्नत'
-अजय ब्रह्मात्मज
भट्ट कैंप की खूबी है कि वे फटाफट फिल्में बनाते हैं। सीमित बजट, छोटी बात, नए व मझोले कलाकार और चौंकाने वाले कुछ संवाद..। जन्नत भी इसी प्रकार की फिल्म है। इसे युवा निर्देशक कुणाल देशमुख ने निर्देशित किया है।
अर्जुन दीक्षित आदर्शवादी पिता का बेटा है। पिता से अलग मिजाज के अर्जुन द्वारा चुना हुआ माहौल अलग है। वह तीन पत्ती के खेल से जल्दी पैसे कमाने के चक्र में घुसता है और क्रिकेट मैच की फिक्सिंग तक पहुंचता है। धारावी की झोपड़पट्टी से निकला अर्जुन एक दिन दक्षिण अफ्रीका के केप टाउन के शानदार बंगले में रहने लगता है।
कहते हैं पाकिस्तानी कोच वूल्मर की हत्या की घटना से प्रेरित है यह फिल्म। अमीर बनने की लालसा रखने वाले अर्जुन की कहानी उस घटना के इर्द-गिर्द बुनी गई है। फिल्म में एक प्रेम कहानी भी है, जिसका तनाव किरदारों को जोड़े रखता है। भट्ट कैंप की फिल्मों में नायक-नायिका हमेशा खिंचे-खिंचे से रहते हैं। तनावपूर्ण प्रेम संबंध उनकी फिल्मों की विशेषता बन गयी है। जन्नत में अर्जुन और जोया के बीच भी ऐसा ही संबंध है। जन्नत की कहानी दो स्तरों पर चलती है। प्रेम कहानी के आगे-पीछे अर्जुन के अमीर बनने की कहानी का दुष्चक्र है।
जन्नत जल्दबाजी में बनायी गयी फिल्म है। प्रेम कहानी और मैच फिक्सिंग से अमीर बनने की कहानी जुड़ नहीं पाई है। ऐसा लगता है कि बीच-बीच में प्रेम प्रसंग की गांठ लगायी जा रही है। अर्जुन के चरित्र के शेड्स को व्यक्त करने में इमरान हाशमी असफल रहे। वे द्वंद्व और भावनाओं को व्यक्त नहीं कर पाते। गहरी अनुभूतियों के समय भी उनका चेहरा सपाट बना रहता है। नयी अभिनेत्री सोनल चौहान की मौजूदगी आकर्षक है। पुलिस इंस्पेक्टर की भूमिका में नए अभिनेता समीर कोचर ने उल्लेखनीय कार्य किया है। छोटी सी भूमिका में अभिमन्यु सिंह दिखे हैं।
जन्नत की खूबी संवाद और माहौल में है। फिल्म का परिवेश हमें अपने आसपास का लगता है। लगता है कि ऐसे किरदार हो सकते हैं, जो ऐसी स्थितियों में इसी तरह से बोलते हैं। दिक्कत यह है कि जन्नत की वास्तविकता सतही है। लेखक और निर्देशक ने गहरे उतरने या सच को खुरचने की कोशिश नहीं है। इसी कारण फिल्म अंतिम प्रभाव में निष्फल रहती है।
भट्ट कैंप की खूबी है कि वे फटाफट फिल्में बनाते हैं। सीमित बजट, छोटी बात, नए व मझोले कलाकार और चौंकाने वाले कुछ संवाद..। जन्नत भी इसी प्रकार की फिल्म है। इसे युवा निर्देशक कुणाल देशमुख ने निर्देशित किया है।
अर्जुन दीक्षित आदर्शवादी पिता का बेटा है। पिता से अलग मिजाज के अर्जुन द्वारा चुना हुआ माहौल अलग है। वह तीन पत्ती के खेल से जल्दी पैसे कमाने के चक्र में घुसता है और क्रिकेट मैच की फिक्सिंग तक पहुंचता है। धारावी की झोपड़पट्टी से निकला अर्जुन एक दिन दक्षिण अफ्रीका के केप टाउन के शानदार बंगले में रहने लगता है।
कहते हैं पाकिस्तानी कोच वूल्मर की हत्या की घटना से प्रेरित है यह फिल्म। अमीर बनने की लालसा रखने वाले अर्जुन की कहानी उस घटना के इर्द-गिर्द बुनी गई है। फिल्म में एक प्रेम कहानी भी है, जिसका तनाव किरदारों को जोड़े रखता है। भट्ट कैंप की फिल्मों में नायक-नायिका हमेशा खिंचे-खिंचे से रहते हैं। तनावपूर्ण प्रेम संबंध उनकी फिल्मों की विशेषता बन गयी है। जन्नत में अर्जुन और जोया के बीच भी ऐसा ही संबंध है। जन्नत की कहानी दो स्तरों पर चलती है। प्रेम कहानी के आगे-पीछे अर्जुन के अमीर बनने की कहानी का दुष्चक्र है।
जन्नत जल्दबाजी में बनायी गयी फिल्म है। प्रेम कहानी और मैच फिक्सिंग से अमीर बनने की कहानी जुड़ नहीं पाई है। ऐसा लगता है कि बीच-बीच में प्रेम प्रसंग की गांठ लगायी जा रही है। अर्जुन के चरित्र के शेड्स को व्यक्त करने में इमरान हाशमी असफल रहे। वे द्वंद्व और भावनाओं को व्यक्त नहीं कर पाते। गहरी अनुभूतियों के समय भी उनका चेहरा सपाट बना रहता है। नयी अभिनेत्री सोनल चौहान की मौजूदगी आकर्षक है। पुलिस इंस्पेक्टर की भूमिका में नए अभिनेता समीर कोचर ने उल्लेखनीय कार्य किया है। छोटी सी भूमिका में अभिमन्यु सिंह दिखे हैं।
जन्नत की खूबी संवाद और माहौल में है। फिल्म का परिवेश हमें अपने आसपास का लगता है। लगता है कि ऐसे किरदार हो सकते हैं, जो ऐसी स्थितियों में इसी तरह से बोलते हैं। दिक्कत यह है कि जन्नत की वास्तविकता सतही है। लेखक और निर्देशक ने गहरे उतरने या सच को खुरचने की कोशिश नहीं है। इसी कारण फिल्म अंतिम प्रभाव में निष्फल रहती है।
Comments