मिर्जा ग़ालिब:१९५४ में बनी एक फ़िल्म
मिर्जा ग़ालिब सन् १९५४ में बनी थी.इसे सोहराब मोदी ने डायरेक्ट किया था.सोहराब मोदी पिरीयड फिल्मों के निर्माण और निर्देशन में माहिर थे.इस फ़िल्म में भारत भूषण ने मिर्जा ग़ालिब का किरदार निभाया था और उनकी बीवी के रोल में निगार थीं. ग़ालिब की प्रेमिका चौदवीं का किरदार सुरैया ने बहुत खूबसूरती से निभाया था.इस फ़िल्म को १९५५ में स्वर्ण कमल पुरस्कार मिला था.अगले साल फिल्मफेअर ने इसे कला निर्देशन का पुरस्कार दिया।
इस फ़िल्म को देखने के बाद तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू ने सुरैया से कहा था की तुम ने मिर्जा ग़ालिब की रूह को जिंदा कर दिया.फ़िल्म देखने के पहले चवन्नी पंडित नेहरू की इस तारीफ का आशय नहीं समझ पा रहा था.आप फ़िल्म देखें और महसूस करें कि यह कैसे मुमकिन हुआ होगा.सुरैया की आवाज ने ग़ालिब की गजलों को गहराई दी है। galib को बाद में लगभग हर गायक ने gaya है,लेकिन गुलाम मोहम्मद के संगीत निर्देशन में सुरैया की गायकी ने जैसे मानदंड स्थापित कर दिया था.चवन्नी चाहेगा कि इरफान भाई,यूनुस भाई या विमल भाई सुरैया की gaayi ग़ज़लों को हम सभी के लिए पेश करें।
इस फ़िल्म में पहले मधुबाला को लेने की बात चली थी। फ़िल्म इतिहास के जानकार और चवन्नी के मित्र सुरेश शर्मा ने बताया की उस समय की फ़िल्म इंडस्ट्री की राजनीति के कारन मधुबाला चाह कर भी यह फ़िल्म नहीं कर सकी थीं.चूनको गज़लें सुरैया की आवाज में रेकॉर्ड कर ली गई थीं,इसलिए उन्हीं को मुख्य भूमिका मिल गई.भारत भूषण को ग़ालिब के रोल में लिया जाना तय था. वैसे इस फ़िल्म में ग़ालिब थोड़े कमजोर लगते हैं.अगर भारत भूषण की जगह कोई और बेहतरीन कलाकार होता तो फ़िल्म और प्रभावशाली बनी होती।
और एक खास बात.इस फ़िल्म की कहानी सआदत हसन मंटो ने लिखी थी.फ़िल्म में उनका नाम s.h.minto गया है.इस फ़िल्म के संवाद राजेंद्र सिंह बेदी ने लिखे हैं.
इस फ़िल्म को देखने के बाद तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू ने सुरैया से कहा था की तुम ने मिर्जा ग़ालिब की रूह को जिंदा कर दिया.फ़िल्म देखने के पहले चवन्नी पंडित नेहरू की इस तारीफ का आशय नहीं समझ पा रहा था.आप फ़िल्म देखें और महसूस करें कि यह कैसे मुमकिन हुआ होगा.सुरैया की आवाज ने ग़ालिब की गजलों को गहराई दी है। galib को बाद में लगभग हर गायक ने gaya है,लेकिन गुलाम मोहम्मद के संगीत निर्देशन में सुरैया की गायकी ने जैसे मानदंड स्थापित कर दिया था.चवन्नी चाहेगा कि इरफान भाई,यूनुस भाई या विमल भाई सुरैया की gaayi ग़ज़लों को हम सभी के लिए पेश करें।
इस फ़िल्म में पहले मधुबाला को लेने की बात चली थी। फ़िल्म इतिहास के जानकार और चवन्नी के मित्र सुरेश शर्मा ने बताया की उस समय की फ़िल्म इंडस्ट्री की राजनीति के कारन मधुबाला चाह कर भी यह फ़िल्म नहीं कर सकी थीं.चूनको गज़लें सुरैया की आवाज में रेकॉर्ड कर ली गई थीं,इसलिए उन्हीं को मुख्य भूमिका मिल गई.भारत भूषण को ग़ालिब के रोल में लिया जाना तय था. वैसे इस फ़िल्म में ग़ालिब थोड़े कमजोर लगते हैं.अगर भारत भूषण की जगह कोई और बेहतरीन कलाकार होता तो फ़िल्म और प्रभावशाली बनी होती।
और एक खास बात.इस फ़िल्म की कहानी सआदत हसन मंटो ने लिखी थी.फ़िल्म में उनका नाम s.h.minto गया है.इस फ़िल्म के संवाद राजेंद्र सिंह बेदी ने लिखे हैं.
Comments
आपने वाकई बहुत महत्वपूर्ण काम किया है सुरैया के बारे में बता कर,आपने तो एक पोस्ट लिखने का मैटर दे दिया आपका बहुत बहुत शुक्रिया..