प्यार का मर्म समझाएगी यू मी और हम : अजय देवगन
अप्रैल का महीना अजय के लिए खुशियों की सौगात बनकर आया है। दो अप्रैल को अजय का जन्मदिन था और इसी शुक्रवार उनके निर्देशन में बनी पहली फिल्म यू मी और हम प्रदर्शित हो रही है। यही नहीं फिल्म की नायिका उनकी पत्नी काजोल है। अजय ब्रह्मात्मज इस मौके पर उनसे खास बातचीत की-
निर्देशन में आने का फैसला क्यों लिया?
निर्देशन वैसे ही मेरा पहला पैशन था। एक्टर बनने से पहले मैं सहायक निर्देशक था और अपनी फिल्में बनाता था। मैंने तो सोचा भी नहीं था कि एक्टर बनना है। मेरा ज्यादा इंटरेस्ट डायरेक्शन में था। एक्टिंग में तो मुझे धकेल दिया गया कि चलो फूल और कांटे फिल्म कर लो। वह फिल्म हिट हो गयी और मेरा रास्ता ही बदल गया। मैं एक्टिंग में चला गया।
एक स्थापित एक्टर को निर्देशक की कुर्सी पर बैठने की जरूरत क्यों महसूस हुई?
बहुत ज्यादा मैंने नहीं सोचा कि अभी मुझे डायरेक्ट करना है, इसलिए कोई सब्जेक्ट खोजूं। ऐसा इरादा भी नहीं था। मैंने अपने दिल की बात मानी। एक विचार दो-तीन सालों से मुझे मथ रहा था। मैं उसे बनाना चाहता था। ऐसा इसलिए क्योंकि अपने आइडिया को सबसे अच्छे तरीके से मैं ही अभिव्यक्त कर पाऊंगा।
फिल्म को लेकर मन में अनेक विचार आते होंगे, क्या कहते है?
यह पूरी तरह से कॉमर्शियल और एंटरटेनिंग फिल्म है। इसमें भरपूर कॉमेडी है। पूरा ड्रामा है। इमोशंस हैं। हिंदी पिक्चर का कंपलीट पैकेज है। गाने हैं। उस दायरे में रहते हुए फिल्म बनायी है। मेरे लिए फिल्ममेकिंग की सबसे ज्यादा जरूरी चीज यही लगती है कि आप पब्लिक को एंटरटेन करें। वे खुश होकर सिनेमाघर से निकलें। विचार के बारे में बताऊं तो मुझे लगा कि हमलोग इतने नकारात्मक माहौल में जी रहे हैं। कोई अच्छी बात बोलने की कोशिश नहीं कर रहा है। अब अगर प्यार की ही बात करें, संबंधों की बात करें या पति-पत्नी की बात करें तो आप जिधर देखो उधर तलाक हो रहे हैं। लोग कहते हुए मिल जाएंगे कि यार प्यार तो था, लेकिन अब जम नहीं रही है। मैंने महसूस किया कि रोमांटिक चीजों को जस्टीफाई करना ही नहीं चाहिए। जस्टीफाई करने पर जिंदगी का एहसास कम हो जाता है। अगर आप किसी लड़की के प्रति आकर्षित होते हैं तो विज्ञान के मुताबिक वह केमिकल रिएक्शन है। अगर आप ऐसे विश्लेषण करने लगे तो प्यार का चार्म ही खत्म हो जाता है। जो लोग कहते हैं कि प्यार नहीं रहा। उनके बारे में मेरा यही कहना है कि या तो वे तब गलत थे या अब गलत हैं। विवाह में कुछ गलत नहीं है। गलत आप हैं। संबंधों में कोई कमी नहीं होती। कमी हमारे अंदर पैदा होती है।
एक ऐसे समय में जब सारे संबंध और एहसास मर रहे हैं, तब एक फिल्मकार के तौर पर आप कैसे उन्हें जीवित रखने की वकालत कर रहे हैं?
आस्था, एहसास और विश्वास से हमें ऊर्जा मिलती है। मेरा कहना है कि हर आदमी की जिंदगी में समस्याएं आती हैं, लेकिन समस्याएं इंसान से बड़ी नहीं होतीं। इंसान ही उसे बड़ा बनाता है। आप समस्या के बारे में सोचने के बजाए उसके समाधान के बारे में सोचेंगे तो हर आदमी अपनी समस्या का हल खोज सकता है।
आस्था, एहसास और विश्वास की बात कर रहे हैं आप। इस भाव को फिल्म में कैसे व्यक्त किया गया है?
मेरी फिल्म में तीन जोड़ियां हैं। एक जोड़ी है, जो अपनी शादी से खुश नहीं है। उनकी नाखुशी की वजह यह नहीं है कि उनकी जिंदगी में कोई तीसरा आदमी या औरत मौजूद है। वे एक- दूसरे से ही नाखुश रहते हैं। वजह पूछो तो छोटी-मोटी बातें बताते हैं। एक अविवाहित जोड़ी है, जो बहुत खुश रहती है। उन्हें लगता है कि हमारे संबंध ऐसे ही इतने खूबसूरत हैं तो शादी क्यों करे? एक मुख्य जोड़ी है। वे मिलते हैं। उनमें प्यार होता है। कैसे वे शादी करते हैं और कैसे उनकी जिंदगी में तकलीफ भी आती है। वे हंसते-हंसते तकलीफ का सामना करते हैं और साथ रहते हैं। मुख्य जोड़ी की जिंदगी को देखकर नाखुश जोड़ी सबक लेती है। जो अविवाहित हैं, वे प्रेरित होकर शादी कर लेते हैं। इसी भाव को ड्रामा, इमोशन और ह्यूमर के जरिए कहा गया है।
हिंदी फिल्मों के जिस दायरे की बात आप कर रहे हैं, उसे आप खासियत मानते हैं, लेकिन क्या नाच-गाना और ड्रामा-ह्यूमर से फिल्मकार की सीमाएं नहीं तय हो जातीं?
अगर आप स्क्रिप्ट पर ठीक से काम करें और हिंदी फिल्म के दायरे को याद रखें तो कोई सीमा नहीं बनती। हम फिल्में बनाते हैं पब्लिक के लिए, पब्लिक को यह सब अच्छा लगता है। अगर दायरे मे रह कर फिल्म की प्लानिंग करें तो वह खासियत बन जाती है। मैं अपनी फिल्म की बात करूं तो मेरा हर गाना फिल्म की कहानी को आगे बढ़ाता है। अगर आप मेरी फिल्म के गाने ही ध्यान से सुन लें तो आप को कहानी समझ में आ जाएगी। मैं इसका श्रेय विशाल और मुन्ना को दूंगा। यह आप पर निर्भर करता है कि आप उसे अपनी सीमा बनाते हैं या खासियत। स्क्रिप्ट पूरी हो जाने के बाद कुछ जोड़ा जाता है तो वह चिप्पी की तरह लगता है।
हां, अगर आप खुद ही निर्माता, निर्देशक और एक्टर हैं तो क्रिएटिव रिस्क भी ले सकते हैं। यू मी और हम की बात करें तो हम क्या नया देखेंगे?
रिस्क जैसा तो नहीं लिया है। मैंने बेहतरीन फिल्म बनाने की कोशिश की है। कितनी बेहतरीन हो पाई है? यह तो दर्शक तय करेंगे। मैंने बाजार और हिंदी फिल्मों के दर्शकों की रुचि का खयाल रखा है। इस फिल्म में चौंकाने वाली कोई बात नहीं है। मैंने कुछ कहने की अवश्य कोशिश की है। इसमें ज्यादा मेहनत लगती है। कॉमर्शियल ढांचे में रह कर लोगों को एंटरटेन करते हुए ऐसी दो बातें कह जाएं जो दर्शकों को याद रह जाएं। मेरा इरादा यह नहीं है कि फिल्म देखने के बाद कोई दंपति ताली बजाए। अगर बैठे-बैठे उन्होंने एक-दूसरे का हाथ थाम लिया तो मुझे लगेगा कि मेरी फिल्म कामयाब हो गयी है। अगर कोई अकेले फिल्म देख रहा है तो वह फिल्म देखने के बाद अपनी बीवी या प्रेमिका को फोन करे कि मैं तुम्हें मिस कर रहा हूं। अभी तक जिन लोगों ने फिल्म देखी है, उनकी यही राय है।
एक बार पहले भी आपने कुछ कहने की कोशिश की थी। राजू चाचा को आज किस रूप में देखते हैं?
उस फिल्म के जरिए मैंने कुछ कहने की कोशिश नहीं की थी। वह बहुत खूबसूरत फिल्म थी। आज भी लोग उसकी तारीफ करते हैं।
पिछले आठ-दस सालों में अजय देवगन में क्या परिवर्त्तन आया है?
उम्र बढ़ने के साथ हम सभी मैच्योर होते हैं। छोटी उम्र में अनुभव कम होने से कुछ फैसले हम भावावेश में ले लेते हैं। अनुभव होने पर आप बिजनेस समझने लगते हैं। मैंने बिजनेस का यह पक्ष सीख लिया है। क्रिएटिव तौर पर यह सीखा है कि कोई समझौता नहीं करना चाहिए। अगर आप ही प्रोड्यूसर और डायरेक्टर हैं तो यह झगड़ा कम हो जाता है। मेरे पास टीम बहुत अच्छी है। मुझे टीम के साथ काम करना आ गया है।
कहते हैं डायरेक्टर ही टीम का कप्तान होता है। आज के माहौल में यह बात कितनी सच रह गयी है?
आज भी यही सच है। डायरेक्टर ही कप्तान है और रहेगा। फिल्म का विजन उसका होता है। फिल्म उसको नजर आती है। क्या चाहिए और क्या नहीं चाहिए? यह किसी और को नजर आ ही नहीं सकता। उसका संबंध फिल्म के हर दृश्य और किरदार से रहता है। सीन और शॉट के बारे में वही फैसला ले सकता है। बाकी टीम को उसका कहा मानना चाहिए। डायरेक्टर की सोच को निखारने का काम उसकी टीम करती है।
काजोल कम फिल्में क्यों कर रही हैं?
वह पहले से ही ऐसा कर रही हैं। साल में एक-दो फिल्में ही करती रही हैं। अब भी यह नहीं है कि वह साल में चार फिल्में करेंगी। शादी के बाद उन्हें कोई फिल्म पसंद नहीं आई। मैंने कहानी सुनाई तो उन्होंने फट से हां कह दिया। उन्होंने मुझे ज्यादा चार्ज कर दिया। काजोल ने कहा कि तुम बनाओ। मैं इसमें काम करूंगी। उन्होंने कॅरियर और परिवार के बीच अच्छा संतुलन बिठाया है।
काजोल को अभिनेत्री के तौर पर आप कैसे देखते हैं और उन्हें निर्देशित करना कितना आसान या मुश्किल रहा, क्योंकि वह आप की बीवी भी हैं?
एक्ट्रेस के तौर पर उनके बारे में मुझे कुछ कहने या बताने की जरूरत नहीं है। इसके बारे में दुनिया जानती है। वह स्पॉनटेनियस एक्ट्रेस है। वह शॉट देने के पहले ज्यादा नहीं सोचतीं। वह बहुत ईमानदार है। उनकी ईमानदार स्क्रीन पर दिखती है। वह अंदर से महसूस कर किरदार में उतार देती है। निर्देशक के तौर पर आप को कम ज्यादा लग रहा हो तो आप बता दें। इस फिल्म में आप को उनके टलेंट के नए पहलू दिखाई पड़ेंगे।
निर्देशन में आने का फैसला क्यों लिया?
निर्देशन वैसे ही मेरा पहला पैशन था। एक्टर बनने से पहले मैं सहायक निर्देशक था और अपनी फिल्में बनाता था। मैंने तो सोचा भी नहीं था कि एक्टर बनना है। मेरा ज्यादा इंटरेस्ट डायरेक्शन में था। एक्टिंग में तो मुझे धकेल दिया गया कि चलो फूल और कांटे फिल्म कर लो। वह फिल्म हिट हो गयी और मेरा रास्ता ही बदल गया। मैं एक्टिंग में चला गया।
एक स्थापित एक्टर को निर्देशक की कुर्सी पर बैठने की जरूरत क्यों महसूस हुई?
बहुत ज्यादा मैंने नहीं सोचा कि अभी मुझे डायरेक्ट करना है, इसलिए कोई सब्जेक्ट खोजूं। ऐसा इरादा भी नहीं था। मैंने अपने दिल की बात मानी। एक विचार दो-तीन सालों से मुझे मथ रहा था। मैं उसे बनाना चाहता था। ऐसा इसलिए क्योंकि अपने आइडिया को सबसे अच्छे तरीके से मैं ही अभिव्यक्त कर पाऊंगा।
फिल्म को लेकर मन में अनेक विचार आते होंगे, क्या कहते है?
यह पूरी तरह से कॉमर्शियल और एंटरटेनिंग फिल्म है। इसमें भरपूर कॉमेडी है। पूरा ड्रामा है। इमोशंस हैं। हिंदी पिक्चर का कंपलीट पैकेज है। गाने हैं। उस दायरे में रहते हुए फिल्म बनायी है। मेरे लिए फिल्ममेकिंग की सबसे ज्यादा जरूरी चीज यही लगती है कि आप पब्लिक को एंटरटेन करें। वे खुश होकर सिनेमाघर से निकलें। विचार के बारे में बताऊं तो मुझे लगा कि हमलोग इतने नकारात्मक माहौल में जी रहे हैं। कोई अच्छी बात बोलने की कोशिश नहीं कर रहा है। अब अगर प्यार की ही बात करें, संबंधों की बात करें या पति-पत्नी की बात करें तो आप जिधर देखो उधर तलाक हो रहे हैं। लोग कहते हुए मिल जाएंगे कि यार प्यार तो था, लेकिन अब जम नहीं रही है। मैंने महसूस किया कि रोमांटिक चीजों को जस्टीफाई करना ही नहीं चाहिए। जस्टीफाई करने पर जिंदगी का एहसास कम हो जाता है। अगर आप किसी लड़की के प्रति आकर्षित होते हैं तो विज्ञान के मुताबिक वह केमिकल रिएक्शन है। अगर आप ऐसे विश्लेषण करने लगे तो प्यार का चार्म ही खत्म हो जाता है। जो लोग कहते हैं कि प्यार नहीं रहा। उनके बारे में मेरा यही कहना है कि या तो वे तब गलत थे या अब गलत हैं। विवाह में कुछ गलत नहीं है। गलत आप हैं। संबंधों में कोई कमी नहीं होती। कमी हमारे अंदर पैदा होती है।
एक ऐसे समय में जब सारे संबंध और एहसास मर रहे हैं, तब एक फिल्मकार के तौर पर आप कैसे उन्हें जीवित रखने की वकालत कर रहे हैं?
आस्था, एहसास और विश्वास से हमें ऊर्जा मिलती है। मेरा कहना है कि हर आदमी की जिंदगी में समस्याएं आती हैं, लेकिन समस्याएं इंसान से बड़ी नहीं होतीं। इंसान ही उसे बड़ा बनाता है। आप समस्या के बारे में सोचने के बजाए उसके समाधान के बारे में सोचेंगे तो हर आदमी अपनी समस्या का हल खोज सकता है।
आस्था, एहसास और विश्वास की बात कर रहे हैं आप। इस भाव को फिल्म में कैसे व्यक्त किया गया है?
मेरी फिल्म में तीन जोड़ियां हैं। एक जोड़ी है, जो अपनी शादी से खुश नहीं है। उनकी नाखुशी की वजह यह नहीं है कि उनकी जिंदगी में कोई तीसरा आदमी या औरत मौजूद है। वे एक- दूसरे से ही नाखुश रहते हैं। वजह पूछो तो छोटी-मोटी बातें बताते हैं। एक अविवाहित जोड़ी है, जो बहुत खुश रहती है। उन्हें लगता है कि हमारे संबंध ऐसे ही इतने खूबसूरत हैं तो शादी क्यों करे? एक मुख्य जोड़ी है। वे मिलते हैं। उनमें प्यार होता है। कैसे वे शादी करते हैं और कैसे उनकी जिंदगी में तकलीफ भी आती है। वे हंसते-हंसते तकलीफ का सामना करते हैं और साथ रहते हैं। मुख्य जोड़ी की जिंदगी को देखकर नाखुश जोड़ी सबक लेती है। जो अविवाहित हैं, वे प्रेरित होकर शादी कर लेते हैं। इसी भाव को ड्रामा, इमोशन और ह्यूमर के जरिए कहा गया है।
हिंदी फिल्मों के जिस दायरे की बात आप कर रहे हैं, उसे आप खासियत मानते हैं, लेकिन क्या नाच-गाना और ड्रामा-ह्यूमर से फिल्मकार की सीमाएं नहीं तय हो जातीं?
अगर आप स्क्रिप्ट पर ठीक से काम करें और हिंदी फिल्म के दायरे को याद रखें तो कोई सीमा नहीं बनती। हम फिल्में बनाते हैं पब्लिक के लिए, पब्लिक को यह सब अच्छा लगता है। अगर दायरे मे रह कर फिल्म की प्लानिंग करें तो वह खासियत बन जाती है। मैं अपनी फिल्म की बात करूं तो मेरा हर गाना फिल्म की कहानी को आगे बढ़ाता है। अगर आप मेरी फिल्म के गाने ही ध्यान से सुन लें तो आप को कहानी समझ में आ जाएगी। मैं इसका श्रेय विशाल और मुन्ना को दूंगा। यह आप पर निर्भर करता है कि आप उसे अपनी सीमा बनाते हैं या खासियत। स्क्रिप्ट पूरी हो जाने के बाद कुछ जोड़ा जाता है तो वह चिप्पी की तरह लगता है।
हां, अगर आप खुद ही निर्माता, निर्देशक और एक्टर हैं तो क्रिएटिव रिस्क भी ले सकते हैं। यू मी और हम की बात करें तो हम क्या नया देखेंगे?
रिस्क जैसा तो नहीं लिया है। मैंने बेहतरीन फिल्म बनाने की कोशिश की है। कितनी बेहतरीन हो पाई है? यह तो दर्शक तय करेंगे। मैंने बाजार और हिंदी फिल्मों के दर्शकों की रुचि का खयाल रखा है। इस फिल्म में चौंकाने वाली कोई बात नहीं है। मैंने कुछ कहने की अवश्य कोशिश की है। इसमें ज्यादा मेहनत लगती है। कॉमर्शियल ढांचे में रह कर लोगों को एंटरटेन करते हुए ऐसी दो बातें कह जाएं जो दर्शकों को याद रह जाएं। मेरा इरादा यह नहीं है कि फिल्म देखने के बाद कोई दंपति ताली बजाए। अगर बैठे-बैठे उन्होंने एक-दूसरे का हाथ थाम लिया तो मुझे लगेगा कि मेरी फिल्म कामयाब हो गयी है। अगर कोई अकेले फिल्म देख रहा है तो वह फिल्म देखने के बाद अपनी बीवी या प्रेमिका को फोन करे कि मैं तुम्हें मिस कर रहा हूं। अभी तक जिन लोगों ने फिल्म देखी है, उनकी यही राय है।
एक बार पहले भी आपने कुछ कहने की कोशिश की थी। राजू चाचा को आज किस रूप में देखते हैं?
उस फिल्म के जरिए मैंने कुछ कहने की कोशिश नहीं की थी। वह बहुत खूबसूरत फिल्म थी। आज भी लोग उसकी तारीफ करते हैं।
पिछले आठ-दस सालों में अजय देवगन में क्या परिवर्त्तन आया है?
उम्र बढ़ने के साथ हम सभी मैच्योर होते हैं। छोटी उम्र में अनुभव कम होने से कुछ फैसले हम भावावेश में ले लेते हैं। अनुभव होने पर आप बिजनेस समझने लगते हैं। मैंने बिजनेस का यह पक्ष सीख लिया है। क्रिएटिव तौर पर यह सीखा है कि कोई समझौता नहीं करना चाहिए। अगर आप ही प्रोड्यूसर और डायरेक्टर हैं तो यह झगड़ा कम हो जाता है। मेरे पास टीम बहुत अच्छी है। मुझे टीम के साथ काम करना आ गया है।
कहते हैं डायरेक्टर ही टीम का कप्तान होता है। आज के माहौल में यह बात कितनी सच रह गयी है?
आज भी यही सच है। डायरेक्टर ही कप्तान है और रहेगा। फिल्म का विजन उसका होता है। फिल्म उसको नजर आती है। क्या चाहिए और क्या नहीं चाहिए? यह किसी और को नजर आ ही नहीं सकता। उसका संबंध फिल्म के हर दृश्य और किरदार से रहता है। सीन और शॉट के बारे में वही फैसला ले सकता है। बाकी टीम को उसका कहा मानना चाहिए। डायरेक्टर की सोच को निखारने का काम उसकी टीम करती है।
काजोल कम फिल्में क्यों कर रही हैं?
वह पहले से ही ऐसा कर रही हैं। साल में एक-दो फिल्में ही करती रही हैं। अब भी यह नहीं है कि वह साल में चार फिल्में करेंगी। शादी के बाद उन्हें कोई फिल्म पसंद नहीं आई। मैंने कहानी सुनाई तो उन्होंने फट से हां कह दिया। उन्होंने मुझे ज्यादा चार्ज कर दिया। काजोल ने कहा कि तुम बनाओ। मैं इसमें काम करूंगी। उन्होंने कॅरियर और परिवार के बीच अच्छा संतुलन बिठाया है।
काजोल को अभिनेत्री के तौर पर आप कैसे देखते हैं और उन्हें निर्देशित करना कितना आसान या मुश्किल रहा, क्योंकि वह आप की बीवी भी हैं?
एक्ट्रेस के तौर पर उनके बारे में मुझे कुछ कहने या बताने की जरूरत नहीं है। इसके बारे में दुनिया जानती है। वह स्पॉनटेनियस एक्ट्रेस है। वह शॉट देने के पहले ज्यादा नहीं सोचतीं। वह बहुत ईमानदार है। उनकी ईमानदार स्क्रीन पर दिखती है। वह अंदर से महसूस कर किरदार में उतार देती है। निर्देशक के तौर पर आप को कम ज्यादा लग रहा हो तो आप बता दें। इस फिल्म में आप को उनके टलेंट के नए पहलू दिखाई पड़ेंगे।
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