रेस: बुरे किरदारों की एंटरटेनिंग फिल्म

-अजय ब्रह्मात्मज

प्रेम, आपसी संबंध और संबंधों में छल-कपट की कहानियां हमें अच्छी लगती हैं। अगर उनमें अपराध मिल जाए तो कहानी रोचक एवं रोमांचक हो जाती है। साहित्य, पत्रिकाएं और अखबार ऐसी कहानियों से भरे रहते हैं। फिल्मों में भी रोमांचक कहानियों की यह विधा काफी पॉपुलर है। हम इस विधा को सिर्फ थ्रिलर फिल्मों के नाम से जानते हैं। निर्देशक अब्बास मस्तान ऐसी फिल्मों में माहिर हैं। हालांकि उनकी 36 चाइना टाउन और नकाब को दर्शकों ने उतना पसंद नहीं किया था। इस बार वे फॉर्म में दिख रहे हैं।
रणवीर और राजीव सौतेले भाई हैं। ऊपरी तौर पर दोनों के बीच भाईचारा दिखता है, लेकिन छोटा भाई ग्रंथियों का शिकार है। वह अंदर ही अंदर सुलगता रहता है। उसे लगता है कि बड़ा भाई रणवीर हमेशा उस पर तरस खाता रहता है। वह उसके प्रेम को भी उसका दिखावा समझता है। रणवीर घोड़ों के धंधे में है। उसमें आगे रहने की ललक है और वह हमेशा जीतने की कोशिश में रहता है। दूसरी तरफ राजीव को शराब की लत लग गई है। रणवीर की जिंदगी में दो लड़कियां हैं। एक तो उसकी नयी-नयी बनी प्रेमिका सोनिया और दूसरी सोफिया, जो उसकी सेक्रेटरी है। राजीव की नजर सोनिया पर पड़ती है तो वह भाई से वादा करता है कि अगर उसकी शादी सोनिया से हो जाए तो वह शराब छोड़ देगा। रणवीर अपने पनपते प्रेम की कुर्बानी देता है। शादी के बाद भी राजीव की आदतें नहीं बदलतीं। ऐसे में सोनिया और रणवीर करीब आ जाते हैं। राजीव को इसकी भनक लगती है और फिर नए नाटकीय मोड़ आते हैं। इस दरम्यान एक हत्या भी हो जाती है। उस हत्या की गुत्थी सुलझाने आरडी और मिनी आते हैं। उनके आने के बाद फिल्म में हंसी के पल आते हैं। ऊपरी तौर पर वर्णित इस कहानी के कई पेंच हैं। चूंकि यह थ्रिलर और मर्डर मिस्ट्री है, इसलिए कहानी बता देना उचित नहीं होगा। बस यों समझिए कि हर किरदार दूसरे के खिलाफ साजिश रचने में लगा है। लेखक शिराज अहमद ने पटकथा को इतना चुस्त और रहस्यपूर्ण रखा है कि हर सिक्वेंस के बाद शक की सूई किसी और दिशा में घूम जाती है। थ्रिलर फिल्मों का यही आनंद है कि अंत-अंत तक दर्शक असमंजस में रहें। अब्बास मस्तान रेस में दर्शकों का असमंजस बनाए रखते हैं।
सैफ अली खान की निजी जिंदगी में जो भी चल रहा हो, बतौर एक्टर वे ग्रो कर रहे हैं। उन्होंने कूल अंदाज में इस किरदार को निभाया है। अक्षय खन्ना असुरक्षित और कायर भाई के रूप में अपनी भूमिका के साथ पूरा न्याय करते हैं। उनकी प्रतिभा का फिल्मों में सही उपयोग नहीं हो पा रहा है। अनिल कपूर एक बार फिर साबित करते हैं कि वे हर तरह के रोल में जंचते हैं। अभिनेत्रियों में बेवकूफ मिनी के रोल में समीरा रेड्डी अपनी भावमुद्राओं से हंसने का मौका देती हैं। बिपाशा बसु और कैटरीना कैफ का उपयोग ग्लैमर के लिए किया गया है। उन्हें थोड़े भावपूर्ण दृश्य भी दिए गए हैं, जिनमें दोनों अभिनय करने की कोशिश करती दिखती हैं।
फिल्म का तकनीकी पक्ष उपयुक्त और उत्तम है। चेज के दृश्य हों या रोमांचक एक्शन के सिक्वेंस ़ ़ ़कैमरामैन ने उन्हें खूबसूरती से पेश किया है। साउथ अफ्रीका के डरबन और केप टाउन शहर का वैभव दिखता है। बैकग्राउंड संगीत में सलीम-सुलेमान ने रहस्य बढ़ाने में निर्देशक की मदद की है। प्रीतम का संगीत पॉपुलर टेस्ट का है।
होली के मौके पर अब्बास मस्तान ने दर्शकों को एंटरटेनिंग फिल्म दी है। बस एक ही बात खलती है कि फिल्म के सारे किरदार बुरे स्वभाव के हैं। क्या आज की दुनिया ऐसी ही हो गई है?

Comments

Anonymous said…
अच्छा रीव्यू लगा, मैने जागरण की साईट पर पढा
फ़िल्म दिल्चस्प लग रही है।
अंकित माथुर...

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