खेमों में बंटी फ़िल्म इंडस्ट्री, अब नहीं मनती होली
-अजय ब्रह्मात्मज
हर साल होली के मौके पर मुंबई की हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में मिथक बन चुकी आरके स्टूडियो की होली याद की जाती है। उस जमाने में बच्चे रहे अनिल कपूर, ऋषि कपूर, रणधीर कपूर से बातें करें, तो आज भी उनकी आंखों में होली के रंगीन नजारे और धमाल दिखाई देने लगते हैं। कहते हैं, होली के दिन तब सारी फिल्म इंडस्ट्री सुबह से शाम तक आरके स्टूडियो में बैठी रहती थी। सुबह से शुरू हुए आयोजन में शाम तक रंग और भंग का दौर चलता रहता था। विविध प्रकार के व्यंजन भी बनते थे। वहां आर्टिस्ट के साथ तकनीशियन भी आते थे। कोई छोटा-बड़ा नहीं होता था। उस दिन की मौज-मस्ती में सभी बराबर के भागीदार होते थे। एक ओर शंकर-जयकिशन का लाइव बैंड रहता था, तो दूसरी ओर सितारा देवी और गोपी कृष्ण के शास्त्रीय नृत्य के साथ बाकी सितारों के फिल्मी ठुमके भी लगते थे। सभी दिल खोल कर नाचते-गाते थे। स्वयं राजकपूर होली के रंग और उमंग की व्यवस्था करते थे। दरअसल, हिंदी सिनेमा के पहले शोमैन राजकपूर जब तक ऐक्टिव रहे, तब तक आरके स्टूडियो की होली ही फिल्म इंडस्ट्री की सबसे रंगीन और हसीन होली बनी रही। उन दिनों स्टार के रूप में दिलीप कुमार और देव आनंद भी राजकपूर की तरह ही पॉपुलर थे और फिल्म इंडस्ट्री में उन्हें वैसा ही सम्मान प्राप्त था, लेकिन वे दोनों राजकपूर की तरह सामाजिक और दोस्तबाज नहीं थे। यही कारण था कि राजकपूर इंडस्ट्री की सोशल गतिविधियों का केंद्र हमेशा बने रहे। उन्होंने अपनी इस हैसियत को खूब एंज्वॉय भी किया।
राजकपूर के निधन के बाद उनके बेटों ने कुछ वर्षो तक होली की वह परंपरा जरूर बनाए रखी, लेकिन धीरे-धीरे आरके आरके स्टूडियो की होली में फिल्म इंडस्ट्री के लोगों की संख्या कम होने लगी। दरअसल, महसूस यह किया गया कि होली तो होती है, लेकिन राजकपूर वाली गर्मजोशी और स्नेह नदारद रहती है। फिर यश चोपड़ा और सुभाष घई सरीखे स्वघोषित शोमैन अपनी फिल्मों की कामयाबी के साथ होली का आयोजन करने जैसे शगूफे भी जरूरी मान बैठे। यश चोपड़ा और सुभाष घई भी होली का आयोजन करने लगे। चढ़ते सूरज को प्रणाम करने में यकीन रखनेवाली इंडस्ट्री ने रुख बदल लिया। अब उन्हें अचानक आरके स्टूडियो काफी दूर लगने लगा!
इसी बीच अमिताभ बच्चन एक बड़े स्टार के रूप में उभरे। उनका संबंध इलाहाबाद से था और उनकी फिल्म का एक गीत रंग बरसे भीगे चुनरवाली.. काफी चर्चित और लोकप्रिय होली गीत हो चुका था। यही वजह है कि होली का संबंध सहज ही अमिताभ बच्चन से जुड़ गया। अमिताभ बच्चन के आवास प्रतीक्षा में होली के दिन भीड़ बढ़ने लगी। एक दौर ऐसा भी आया, जब देखा जाने लगा कि इस बार किस-किस को बच्चन जी ने बुलाया है! अगर निमंत्रण नहीं मिला है, तो यह मान लिया जाता था कि अभी आप इंडस्ट्री में किसी मुकाम पर नहीं पहुंचे हैं या फिर आपका वक्त निकल गया। ऐसे ही कयासों और उपेक्षाओं से खेमेबाजी आरंभ हुई। जाहिर-सी बात थी कि जिन्हें प्रतीक्षा से निमंत्रण नहीं मिलता था, वैसे लोगों का खेमा धीरे-धीरे ऐक्टिव हो गया। हालांकि और किसी की होली में न तो भीड़ जुटती थी और न ही कोई खबर बन पाती थी, क्योंकि सारे स्टारों की जमघट प्रतीक्षा में ही लगती थी। इस तरह लंबे समय तक प्रतीक्षा में होली की रंगीन फुहारें और गीतों की गूंज छाई रही, लेकिन यह सिलसिला अमिताभ बच्चन के पिता कवि हरिवंश राय बच्चन के निधन के साथ टूट गया। उसके बाद से बच्चन परिवार अभी तक खुद को संभाल नहीं पाया है। पिछले साल उनकी माता तेजी बच्चन के निधन होने की वजह से होली के आयोजन का सवाल ही नहीं उठता। हालांकि बीच में एक बार शाहरुख खान ने अवश्य अपने पुराने बंगले के टेरेस पर होली का आयोजन किया, तो लोगों ने यह मान लिया था कि अब होली का नया सेंटर शाहरुख खान का बंगला होगा, लेकिन उन्होंने अगले साल आयोजन नहीं किया और खुद दूसरों की होली में दिखे। हां, यहां यह याद दिलाना आवश्यक होगा कि सेटेलाइट चैनलों के आगमन और सीरियल के बढ़ते प्रसार के दिनों में सीरियल निर्माताओं ने अपनी यूनिट के लिए होली का आयोजन आरंभ किया। इस प्रकार की होली चुपके से होली के पहले ही होली के दृश्य जोड़ने के काम आने लगी। होली ने कृत्रिम रूप ले लिया। अभी फिल्म इंडस्ट्री घोषित-अघोषित तरीके से इतने खेमों में बंट गई है कि किसी ऐसी होली के आयोजन की उम्मीद ही नहीं की जा सकती, जहां सभी एकत्रित हों और बगैर किसी वैमनस्य के होली के रंगों में सराबोर हो सकें!
हर साल होली के मौके पर मुंबई की हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में मिथक बन चुकी आरके स्टूडियो की होली याद की जाती है। उस जमाने में बच्चे रहे अनिल कपूर, ऋषि कपूर, रणधीर कपूर से बातें करें, तो आज भी उनकी आंखों में होली के रंगीन नजारे और धमाल दिखाई देने लगते हैं। कहते हैं, होली के दिन तब सारी फिल्म इंडस्ट्री सुबह से शाम तक आरके स्टूडियो में बैठी रहती थी। सुबह से शुरू हुए आयोजन में शाम तक रंग और भंग का दौर चलता रहता था। विविध प्रकार के व्यंजन भी बनते थे। वहां आर्टिस्ट के साथ तकनीशियन भी आते थे। कोई छोटा-बड़ा नहीं होता था। उस दिन की मौज-मस्ती में सभी बराबर के भागीदार होते थे। एक ओर शंकर-जयकिशन का लाइव बैंड रहता था, तो दूसरी ओर सितारा देवी और गोपी कृष्ण के शास्त्रीय नृत्य के साथ बाकी सितारों के फिल्मी ठुमके भी लगते थे। सभी दिल खोल कर नाचते-गाते थे। स्वयं राजकपूर होली के रंग और उमंग की व्यवस्था करते थे। दरअसल, हिंदी सिनेमा के पहले शोमैन राजकपूर जब तक ऐक्टिव रहे, तब तक आरके स्टूडियो की होली ही फिल्म इंडस्ट्री की सबसे रंगीन और हसीन होली बनी रही। उन दिनों स्टार के रूप में दिलीप कुमार और देव आनंद भी राजकपूर की तरह ही पॉपुलर थे और फिल्म इंडस्ट्री में उन्हें वैसा ही सम्मान प्राप्त था, लेकिन वे दोनों राजकपूर की तरह सामाजिक और दोस्तबाज नहीं थे। यही कारण था कि राजकपूर इंडस्ट्री की सोशल गतिविधियों का केंद्र हमेशा बने रहे। उन्होंने अपनी इस हैसियत को खूब एंज्वॉय भी किया।
राजकपूर के निधन के बाद उनके बेटों ने कुछ वर्षो तक होली की वह परंपरा जरूर बनाए रखी, लेकिन धीरे-धीरे आरके आरके स्टूडियो की होली में फिल्म इंडस्ट्री के लोगों की संख्या कम होने लगी। दरअसल, महसूस यह किया गया कि होली तो होती है, लेकिन राजकपूर वाली गर्मजोशी और स्नेह नदारद रहती है। फिर यश चोपड़ा और सुभाष घई सरीखे स्वघोषित शोमैन अपनी फिल्मों की कामयाबी के साथ होली का आयोजन करने जैसे शगूफे भी जरूरी मान बैठे। यश चोपड़ा और सुभाष घई भी होली का आयोजन करने लगे। चढ़ते सूरज को प्रणाम करने में यकीन रखनेवाली इंडस्ट्री ने रुख बदल लिया। अब उन्हें अचानक आरके स्टूडियो काफी दूर लगने लगा!
इसी बीच अमिताभ बच्चन एक बड़े स्टार के रूप में उभरे। उनका संबंध इलाहाबाद से था और उनकी फिल्म का एक गीत रंग बरसे भीगे चुनरवाली.. काफी चर्चित और लोकप्रिय होली गीत हो चुका था। यही वजह है कि होली का संबंध सहज ही अमिताभ बच्चन से जुड़ गया। अमिताभ बच्चन के आवास प्रतीक्षा में होली के दिन भीड़ बढ़ने लगी। एक दौर ऐसा भी आया, जब देखा जाने लगा कि इस बार किस-किस को बच्चन जी ने बुलाया है! अगर निमंत्रण नहीं मिला है, तो यह मान लिया जाता था कि अभी आप इंडस्ट्री में किसी मुकाम पर नहीं पहुंचे हैं या फिर आपका वक्त निकल गया। ऐसे ही कयासों और उपेक्षाओं से खेमेबाजी आरंभ हुई। जाहिर-सी बात थी कि जिन्हें प्रतीक्षा से निमंत्रण नहीं मिलता था, वैसे लोगों का खेमा धीरे-धीरे ऐक्टिव हो गया। हालांकि और किसी की होली में न तो भीड़ जुटती थी और न ही कोई खबर बन पाती थी, क्योंकि सारे स्टारों की जमघट प्रतीक्षा में ही लगती थी। इस तरह लंबे समय तक प्रतीक्षा में होली की रंगीन फुहारें और गीतों की गूंज छाई रही, लेकिन यह सिलसिला अमिताभ बच्चन के पिता कवि हरिवंश राय बच्चन के निधन के साथ टूट गया। उसके बाद से बच्चन परिवार अभी तक खुद को संभाल नहीं पाया है। पिछले साल उनकी माता तेजी बच्चन के निधन होने की वजह से होली के आयोजन का सवाल ही नहीं उठता। हालांकि बीच में एक बार शाहरुख खान ने अवश्य अपने पुराने बंगले के टेरेस पर होली का आयोजन किया, तो लोगों ने यह मान लिया था कि अब होली का नया सेंटर शाहरुख खान का बंगला होगा, लेकिन उन्होंने अगले साल आयोजन नहीं किया और खुद दूसरों की होली में दिखे। हां, यहां यह याद दिलाना आवश्यक होगा कि सेटेलाइट चैनलों के आगमन और सीरियल के बढ़ते प्रसार के दिनों में सीरियल निर्माताओं ने अपनी यूनिट के लिए होली का आयोजन आरंभ किया। इस प्रकार की होली चुपके से होली के पहले ही होली के दृश्य जोड़ने के काम आने लगी। होली ने कृत्रिम रूप ले लिया। अभी फिल्म इंडस्ट्री घोषित-अघोषित तरीके से इतने खेमों में बंट गई है कि किसी ऐसी होली के आयोजन की उम्मीद ही नहीं की जा सकती, जहां सभी एकत्रित हों और बगैर किसी वैमनस्य के होली के रंगों में सराबोर हो सकें!
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