हिन्दी फ़िल्म:महिलायें:तीसरा दशक
ललिता पवार
कानन देवी
आज ८ मार्च है.पूरी दुनिया में यह दिन महिला दिवस के तौर पर मनाया जाता है.चवन्नी ने सोचा कि क्यों न सिनेमा के परदे की महिलाओं को याद करने साथ हीउन्हें रेखांकित भी किया जाए.इसी कोशिश में यह पहली कड़ी है.इरादा है कि हर दशक की चर्चित अभिनेत्रियों के बहाने हम हिन्दी सिनेमा को देखें.यह एक परिचयात्मक सीरीज़ है।
तीसरा दशक
सभी जानते हैं के दादा साहेब फालके की फ़िल्म 'हरिश्चंद्र तारामती' में तारामती की भूमिका सालुंके नाम के अभिनेता ने निभाई थी.कुछ सालों के बाद फालके की ही फ़िल्म 'राम और सीता' में उन्होंने दोनों किरदार निभाए।इस दौर में जब फिल्मों में अभिनेत्रियों की मांग बढ़ी तो सबसे पहले एंगलो-इंडियन और योरोपीय पृष्ठभूमि के परिवारों की लड़कियों ने रूचि दिखाई.केवल कानन देवी और ललिता पवार ही हिंदू परिवारों से आई थीं.उस ज़माने की सबसे चर्चित अभिनेत्री सुलोचना थीं.उनका असली नाम रूबी मेयेर्स था.कहा जाता है कि उनकी महीने की कमाई मुम्बई के तत्कालीन गवर्नर से ज्यादा थी.सुलोचना आम तौर पर शहरी किरदार ही निभाती थीं.एक अभिनेत्री गौहर थीं.वह ज्यादातर घरेलू औरत की भूमिका निभाती थीं,जो अपने पति का हर नखरा सहती थी.रेनी स्मिथ ने फिल्मों में अपना नाम सीता देवी रखा.सीता देवी हिमांशु राय की पसंदीदा अभिनेत्री थीं.वह प्रणय और चुम्बन दृश्यों के लिए अधिक मशहूर हुईं.चुम्बन की बात चली तो चवन्नी आप को बता दे कि ललिता पवार ने १९२२ में 'पति भक्ति' फ़िल्म में चुम्बन देकर सबको चौंका दिया था.फाल्के की बेटी मंदाकिनी पहली बाल कलाकार थी.पतिएंस कूपर डबल रोल करने वाली पहली अभिनेत्री थीं.उन्हें वैसी भूमिकाएं अधिक मिलती थीं,जिसमें मासूम लड़की यौन इच्छाओं के कारन नैतिक द्वंद्व में फँसी रहती थी.तीसरे दशक में ही हिन्दी फिल्मों की पहली महिला निर्देशक का आगमन हो चुका था.बेगम फातिमा सुल्ताना ने १९२६ में 'बुलबुल-ए-परिस्तान' का निर्माण और निर्देशन करने के साथ ही उसमें काम भी किया था.
तीसरा दशक
सभी जानते हैं के दादा साहेब फालके की फ़िल्म 'हरिश्चंद्र तारामती' में तारामती की भूमिका सालुंके नाम के अभिनेता ने निभाई थी.कुछ सालों के बाद फालके की ही फ़िल्म 'राम और सीता' में उन्होंने दोनों किरदार निभाए।इस दौर में जब फिल्मों में अभिनेत्रियों की मांग बढ़ी तो सबसे पहले एंगलो-इंडियन और योरोपीय पृष्ठभूमि के परिवारों की लड़कियों ने रूचि दिखाई.केवल कानन देवी और ललिता पवार ही हिंदू परिवारों से आई थीं.उस ज़माने की सबसे चर्चित अभिनेत्री सुलोचना थीं.उनका असली नाम रूबी मेयेर्स था.कहा जाता है कि उनकी महीने की कमाई मुम्बई के तत्कालीन गवर्नर से ज्यादा थी.सुलोचना आम तौर पर शहरी किरदार ही निभाती थीं.एक अभिनेत्री गौहर थीं.वह ज्यादातर घरेलू औरत की भूमिका निभाती थीं,जो अपने पति का हर नखरा सहती थी.रेनी स्मिथ ने फिल्मों में अपना नाम सीता देवी रखा.सीता देवी हिमांशु राय की पसंदीदा अभिनेत्री थीं.वह प्रणय और चुम्बन दृश्यों के लिए अधिक मशहूर हुईं.चुम्बन की बात चली तो चवन्नी आप को बता दे कि ललिता पवार ने १९२२ में 'पति भक्ति' फ़िल्म में चुम्बन देकर सबको चौंका दिया था.फाल्के की बेटी मंदाकिनी पहली बाल कलाकार थी.पतिएंस कूपर डबल रोल करने वाली पहली अभिनेत्री थीं.उन्हें वैसी भूमिकाएं अधिक मिलती थीं,जिसमें मासूम लड़की यौन इच्छाओं के कारन नैतिक द्वंद्व में फँसी रहती थी.तीसरे दशक में ही हिन्दी फिल्मों की पहली महिला निर्देशक का आगमन हो चुका था.बेगम फातिमा सुल्ताना ने १९२६ में 'बुलबुल-ए-परिस्तान' का निर्माण और निर्देशन करने के साथ ही उसमें काम भी किया था.
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पहले बैच की नायिकाओं में है - स्नेहलता, बनमाला और शोभना समर्थ की माँ जिनका नाम मैं भूल रही हूँ।
अन्नपूर्णा