अनुराग सिन्हा:उदित हुआ एक सितारा
दूर-दूर तक अनुराग सिन्हा का फ़िल्म इंडस्ट्री से कोई रिश्ता नहीं है.वे हिन्दी फिल्मों के मशहूर सिन्हा के रिश्तेदार भी नहीं हैं.हाँ,फिल्मों से उनका परिचय पुराना है.अपने परिवार के साथ पटना के अशोक और मोना में फिल्में देख कर वे बड़े हुए हैं.मन के एक कोने में सपना पलता रहा कि फिल्मों में जाना है...एक्टिंग करनी है.आज वह सपना पूरा हो चुका है.अनुराग सिन्हा कि पहली फ़िल्म ७ मार्च को देश-विदेश में एक साथ रिलीज हो रही है.इस फ़िल्म में उनहोंने नाराज़ मुसलमान युवक नुमैर काजी की भूमिका निभाई है और फ़िल्म का नाम है ब्लैक एंड ह्वाइट .
यह हिन्दी फ़िल्म इंडस्ट्री की एक ऐतिहासिक घटना है.लंबे समय के बाद हिन्दी प्रदेश से आया कोई सितारा हिन्दी फिल्मों के आकाश में चमकने जा रहा है.गौर करें तो पायेंगे कि हिन्दी फिल्मों में हिन्दी प्रदेशों से सितारे नहीं आते.चवन्नी तो मानता है कि उन्हें आने ही नहीं दिया जाता.अगर कभी कोई मनोज बाजपेयी या आशुतोष राणा आ भी जाता है तो उसे किसी न किसी तरह किनारे करने या उसकी चमक धूमिल करने की कोशिश की जाती है.हिन्दी फ़िल्म इंडस्ट्री के गलियारों में कुचले गए सपनों की दास्ताँ आम है.बाहर के लोग उन्हें सुन नहीं पाते.हिन्दी प्रदेश से आए महत्वाकांक्षी अभिनेताओं को अपमान की घूँट पीने पड़ते हैं।
अनुराग सिन्हा पटना से चले और फिर नैनीताल,ग्वालियर और दिल्ली से पढाई कर पूना पहुँच गए.दोस्त जानते थे कि अनुराग सिन्हा ऐक्टर बनना चाहता है.एक दोस्त ने बताया कि पूना के फ़िल्म इंस्टीट्यूट में फिर से एक्टिंग की पढाई शुरू हो रही है.अनुराग ने फॉर्म भर दिया.वहाँ बुला लिया गया और फिर पढाई आरंभ हो गई.तब भी कहाँ निश्चित था कि फ़िल्म इंडस्ट्री में प्रवेश मिल ही जायेगा.एक आस थी और उसी आस से विश्वास कायम था. पढाई पूरी होने के बाद एक्टिंग के सारे छात्र एक नाटक लेकर मुम्बई आए.इरादा था कि मुम्बई की फ़िल्म इंडस्ट्री को अपनी प्रतिभा दिखायी जाए.वहीं सुभाष घई ने अनुराग सिन्हा को पहली बार देखा.फिर बैठकें हुईं और अनुराग को फ़िल्म मिल गई।
अनुराग सिन्हा यहाँ तक पहुँचने का श्रेय अपने पिता श्री आर आर एन सिन्हा और माता हेमलता सिन्हा को देना चाहते हैं.उसके बाद दोस्तों के वे एहसानमंद हैं,जिन्होंने हर कदम पर हौसला बढाया.और आखिरकार सुभाष घई...सुभाष घई ने उनके सपनों को साकार कर दिया।
७ मार्च के बाद दर्शक तय करेंगे कि अनुराग सिन्हा उन्हें पसंद हैं या नहीं?हिन्दी फ़िल्म इंडस्ट्री में बाहर से आए ऐक्टर की परीक्षा थोड़ी कठिन होती है.बस अनुराग सिन्हा की हिम्मत न टूटे.उन्होंने जोखिम भरी छलांग लगा दी है...अब तो कामयाबी के करीब पहुँचना है.
Comments
कुछ bloggers की comment moderation की policy से परेशान हूँ. अब कल ही श्री क्रिशन लाल 'क्रिशन' जी की कविता नुमा पोस्ट अब नया हम गीत लिखेंगे पर अपनी टिप्पणी दी थी. पर उन्होंने उसे पोस्ट पर जाने लायक नहीं समझा. आप ही देखिये, क्या कुछ ग़लत कहा था मैंने:
"कोई पन्द्रह वर्ष पूर्व मेरे दस वर्षीय भतीजे महोदय को अचानक कविता लिखने का शौक़ चर्राया था. आपकी कविता पढ़कर बरबस ही उन कविताओं की याद आ गई. आप भी थोड़ा और प्रयास करें तो उस स्तर को छू सकते हैं."
हाँ महक जी की प्रशंसा और समीर लाल जी के व्यंग्य को सधन्यवाद प्रकाशित किया है. मैं बड़ा क्षुब्ध हूँ इस घटना से.